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Magazine - Year 1967 - Version 2

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नये संसार का निर्माण

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“मुझे भय है कि जो लोग इस संसार की वर्तमान घटनाओं पर दुःखी हो रहे हैं, उनको मैं कोई विशेष सान्त्वना की बात नहीं कह सकता। इस समय की परिस्थिति निस्सन्देह बुरी है, निरन्तर अधिक बुरी होती जाती है और सम्भव है कि किसी भी समय वह अधिक से अधिक बुरी बन जाय। अब वर्तमान अशान्तिपूर्ण जगत में कोई द्म॥द्म;स्रद्म;ह्यस्रद्म;स्रद्मस्रद्मभी बात, चाहे वह कितनी भी विपरीत और कठिन क्यों न जान पड़ती हो, हो सकनी असम्भव नहीं है। इस परिस्थिति में सबसे अच्छा यही है कि हम यह विश्वास रखें कि संसार में एक नया और श्रेष्ठ युग आना है तो इसके लिये उन बुराइयों को प्रकट होकर निकल जाना ही चाहिये। यह परिस्थिति वैसी ही है जैसी कि योग साधन में होती है, जबकि अपने भीतर की हीन भावनाओं को प्रकाश में लाकर, उनके साथ संघर्ष करके उन्हें दूर कर दिया जाता है। शुद्धि करने का यही एक तरीका है। इसके सिवाय लोगों को यह कहावत भी याद रखना चाहिए कि प्रभात होने के पहले रात्रि का अन्धकार सबसे अधिक घनीभूत हो जाता है।

नये संसार का निर्माण वर्तमान की अपेक्षा किसी भिन्न प्रकार के साधनों और तत्वों से ही होगा। इस समय बाहरी चीजों का ही ज्यादा महत्व है, जबकि नये युग में आन्तरिक शक्तियों की ही प्रधानता होगी। इसलिये इस समय बाहरी वस्तुओं की दुर्दशा हो रही है- उनमें दोष उत्पन्न होकर वे नष्ट होती जाती हैं, उस पर अधिक ध्यान देने या उनके लिये दुखी होने की आवश्यकता नहीं। इसके बजाय हमको अपनी आत्मिक शक्तियों के विकास का उपयोग करते रहना चाहिये जिससे नये युग में उसके अनुकूल रूप में प्रस्तुत हो सकें- उसके उपयुक्त बन सकें।”

-महायोगी अरविन्द

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