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Magazine - Year 1967 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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संसार के ऊपर विपत्तियों के बादल घुमड़ रहे हैं।

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पिछले पृष्ठों में हमने जिस युग-परिवर्तन की चर्चा की है उसके सम्बन्ध में विद्वान लोग बहुत समय से चेतावनी देते आये हैं और हम भी गत चालीस वर्ष से समय-समय पर उसके विषय में विभिन्न रूपों में पाठकों को सूचनायें देते ही रहते हैं। पर मनुष्य का स्वभाव है कि वह दूरवर्ती संकट की उपेक्षा ही करता रहता है और जब आफत सर पर आ जाती है तो हाय-तोबा मचाने लगता है तथा अपने भाग्य, देवताओं तथा परमात्मा तक को दोष देने लगता है।

एक शंका यह भी की जा सकती है कि क्या भविष्य को जान सकना सम्भव है? हमारे यहाँ यह कार्य ज्योतिषियों के भरोसे है, जो असंख्यों योजन दूर ग्रह नक्षत्रों की गति से या हाथ की रेखाओं से व्यक्तियों का भविष्य फल बतलाया करते हैं। उनकी बातें कुछ अंशों में ठीक और कभी गलत भी होती रहती हैं। इससे सीधे-साधे व्यक्ति तो उन पर विश्वास कर लेते हैं और बुद्धिमान उन्हें अटकल–पच्चू बतलाया करते हैं। कुछ भी हो हमारे यहाँ जो ज्योतिष का धन्धा करने वाले व्यक्ति मिलते हैं। उनमें से अधिकाँश बहुत सामान्य ज्ञान वाले और गोलमोल उत्तर देकर लोगों को बहकाने वाले ही दिखाई पड़ते हैं। यह दोष हमारे यहाँ ही नहीं विदेशों में भी है-इंग्लैंड, फ्राँस, जर्मनी आदि जैसे देशों में भी बहुत से व्यक्ति भविष्य बतलाने का पेशा करते हैं और अनेक मूर्ख व्यक्ति तथा विशेष रूप से स्त्रियाँ उनके चक्कर में फँस ही जाती हैं।

वास्तव में बात यह है कि ग्रहों अथवा हस्तरेखाओं के द्वारा किसी व्यक्ति की भावी क्रिया-प्रतिक्रियाओं का ठीक हाल जान सकने का दावा सदैव शंकास्पद विषय ही रहेगा। एक सुशिक्षित व्यक्ति ने कहा था कि-किसी व्यक्ति का भविष्य बतला सकना वैसा ही है जैसा यह कह सकना कि यह सामने बैठी हुई बिल्ली अबकी बार किस तरफ कूदेगी? मनुष्य को अपने दैनिक जीवन में निरन्तर जिन बाह्य बाधाओं और विघ्नों का सामना करना पड़ता है उनके कारण उसकी कार्यपद्धति में तरह-तरह के आकस्मिक परिवर्तन और वैसे ही परिणाम होना स्वाभाविक ही है।

पर किसी राष्ट्र या देश का भविष्य एक हद तक जान सकना सम्भव है क्योंकि उनका विकास प्रकृति के नियमानुसार होता है। अगर वे प्रकृति के नियमों को किसी दिशा में भंग करेंगे तो उनको तदनुसार हानि भी उठानी पड़ेगी और उतना पतन भी होगा। इस तथ्य का विश्लेषण करते हुये अंग्रेजी के एक बहुत प्रसिद्ध विद्वान श्री एच॰ जी0 वेल्स ने लन्दन के ‘रायल इन्स्टीट्यूट’ के सामने ष्ठद्बह्यष्शक्द्गह्ब् शद्ध ह्लद्धद्ग द्धह्वह्लह्वह्द्ग (भविष्य की खोज) शीर्षक निबन्ध पढ़ा था, जिसमें उन्होंने साबित किया था कि भविष्य को जानना ज्योतिषियों या जादू-टोना वालों का काम नहीं है, वरन् यह एक वैज्ञानिक विषय है।

आगे चल कर उन्होंने कहा- “दुनिया में प्रायः दो तरह के मनुष्य पाये जाते हैं। अधिकाँश मनुष्य तो उस श्रेणी के होते हैं, जो भविष्य के सम्बन्ध में कुछ भी विचार नहीं कर सकते। उनके लिये भविष्य एक कोरे कागज की तरह है जिस पर वर्तमान काल की घटनायें लिखती जायेंगी। दूसरी श्रेणी वाले बराबर भविष्य की बात सोचते रहते हैं और वर्तमान घटनाओं पर भविष्य की निगाह से विचार करते हैं। पहली श्रेणी वाले अपने समस्त जीवन को पूर्वकर्मों का फल भोगना समझते हैं और दूसरी श्रेणी वाले अपने वर्तमान जीवन को भविष्य-जीवन की तैयारी करना मानते हैं।”

“अब इस विज्ञान युग में यह बात अच्छी तरह साबित हो गई है कि चाहे साधारण आदमी भविष्य के सम्बन्ध में कुछ न समझते हों पर वैज्ञानिकों को सन् 3000 की घटनायें उसी प्रकार साफ दिखलाई पड़ती हैं जैसी कि सन् 1000 की। मैं इस बात को बलपूर्वक कह सकता हूँ कि जिस प्रकार हमने वैज्ञानिक खोज करके भूतकाल के इतिहास का पता लगा लिया है उसी प्रकार हम वर्तमान घटनाओं का ध्यानपूर्वक निरीक्षण और मनन करके आगामी समय में होने वाली घटनाओं का पता भी निश्चित रूप से लगा सकते है। वह समय अब पास आता जाता है जब वैज्ञानिक लोग भविष्य की खोज का काम नियमपूर्वक करने लगेंगे। इस समय तक हम लोगों को भविष्य का ज्ञान जो बहुत कम है उसका कारण यही है कि अब तक इस सम्बन्ध में कुछ भी कोशिश नहीं की गई और न किसी जगत प्रसिद्ध विद्वान ने अपना दिमाग इस तरफ लड़ाया है। विज्ञान द्वारा जो भविष्य का ज्ञान प्राप्त किया जायगा उसका मुकाबला आजकल के ज्योतिषियों और हाथ देखने वालों के भविष्य-कथन से नहीं करना चाहिये। इन लोगों की बातों पर सिवाय मूर्खों के और कोई विश्वास नहीं कर सकता। विज्ञान से भविष्य का जो हाल मालूम होगा वह सार्वजनिक होगा न कि व्यक्ति सम्बन्धी। व्यक्ति सम्बन्धी ज्ञान वैसे भी हानिकारक है, क्योंकि उससे मनुष्य की उन्नति में बाधा पड़ती है और उसकी कर्मठता नष्ट हो जाती है।”

फिर भी हम अपने पाठकों को एक स्पष्ट सम्मति देना चाहते हैं कि वे भविष्य-वाणियों को पत्थर की लकीर मानने की प्रवृत्ति छोड़ दें। आजकल समाचार पत्रों में वर्ष के आरम्भ में और बाद में भी अनेक भविष्य-वाणियाँ प्रकाशित होती रहती हैं वे प्रायः निरर्थक और लोगों को भ्रम में पतित करने वाली ही सिद्ध होती हैं। प्राचीन भविष्यवाणियाँ प्रायः आलंकारिक भाषा में लिखी रहती हैं उनको भी ज्यों का त्यों सही मान लेने से मनुष्य गलती में पड़ जाता है। इसलिये प्रत्येक भविष्य-वाणी का ठीक अर्थ समझने के लिये अपनी बुद्धि से भी काम लेना आवश्यक होता है। जब हम उनकी बातों को मनन करके और दूसरों से मिला कर सही समझ लें तभी उन पर विश्वास करना चाहिये।

प्राचीन काल की जिन भविष्यवाणियों को हम अगले पृष्ठों में दे रहे हैं उनके कहने वाले वे योगी थे जो अध्यात्म विज्ञान की शक्ति से भावी घटनाओं को देख सकते हैं। इन लोगों को संसार त्याग किये कई-कई सौ वर्ष हो गये पर विद्वान लोग आज भी उनके भविष्य-कथन का मनन करके भावी घटनाओं की जानकारी प्राप्त करने में समर्थ होते हैं।

बाइबिल का भविष्य-कथन-

‘बाइबिल’ की भविष्य-वाणियों का कुछ जिक्र हम पिछले लेख में कर चुके हैं। उनमें पृथ्वी पर होने वाले जैसे नाशकारी युद्ध, अकाल महामारी आदि का वर्णन किया गया है उनके चिन्ह इस समय स्पष्ट दिखाई पड़ रहे हैं। इससे अनेक विद्वानों ने यही निष्कर्ष निकाला है कि वे अब शीघ्र ही पूर्ण होने वाली हैं। खासकर तुर्की की खिलाफत का अन्त हो जाने और यहूदियों को फिर से पैलेस्टाइन (फिलिस्तीन) में बसा दिये जाने की घटनाओं से उनकी प्रामाणिकता विशेष रूप से सिद्ध हो गई है। पहली घटना के सम्बन्ध में लिखा है-

च्च््नठ्ठस्र ह्लद्धद्ग ह्यद्बफ्ह्लद्ध ड्डठ्ठद्दद्गद्य श्चशह्वह्द्गस्र शह्वह्ल द्धद्बह्य क्द्बड्डद्य शठ्ठ ह्लद्धद्ग द्दह्द्गड्डह्ल ह्द्बक्द्गह् श्वह्वश्चद्धह्ड्डह्लद्बद्गह्य ड्डठ्ठस्र ह्लद्धद्ग ख्ड्डह्लद्गह् ह्लद्धद्गह्द्ग शद्ध स्रह्द्बद्गस्र ह्वश्च.ज्ज्

(क्रद्गक्द्गद्यड्डह्लद्बशठ्ठ 16)

“छठे फरिश्ते ने अपना ‘वायल’ यूफ्रेटीज नदी पर डाला और उसका पानी सूख गया।”

ईसाई धर्म के सैंकड़ों विद्वान पुराने समय से यह लिखते आये हैं कि इस भविष्य-वाणी में यूफ्रेटीज नदी के सूखने का जो वर्णन है उसका मतलब टर्की की सल्तनत के टुकड़े-टुकड़े होकर खत्म हो जाने से है। इस विषय में ‘तेलनघास्ट’ नाम के लेखक ने सन् 1655 में लिखा था-

‘यूफ्रेटीज नदी से हमको तुर्की साम्राज्य का अर्थ समझना चाहिये। साधारण बोलचाल में भी इस साम्राज्य को ‘बड़ी नदी’ के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि उसमें भिन्न-भिन्न जातियों की कितनी ही प्रजायें शामिल हैं। इसलिये यह निश्चित है कि जब ईश्वरीय कोप का समय आयेगा यह साम्राज्य अवश्य छिन्न-भिन्न हो जायगा।”

‘तेलनघास्ट’ की यह भविष्य-वाणी सचमुच आश्चर्यजनक है, क्योंकि सन् 1955 में चारों ओर तुर्की सुलतान का बोलबाला था और वह आधे योरोप तथा मिस्र आदि अनेक देशों का मालिक बना हुआ था। पर देखते-देखते 1820 में टर्की का पतन आरम्भ हुआ और सन् 1918 में उस साम्राज्य का पूर्ण रूप से अन्त हो गया।

यहूदियों के रहने की पुरानी जगह (फिलिस्तीन) पैलेस्टाइन था। वहीं पर उनका एकमात्र और सबसे पवित्र धार्मिक नगर जरुशलम है। जिस प्रकार संसार-भर के मुसलमान मक्का को प्रधान तीर्थस्थान मानते हैं और हजारों कोस से उसकी ‘यात्रा’ करने जाते हैं, उसी प्रकार यहूदी भी सब तरह की तकलीफें सह कर योरोप और अमरीका के दूरवर्ती देशों से जरुशलम की यात्रा करने जाते थे। यह मुल्क कितने ही समय से टर्की के कब्जे में था और वहाँ अरब लोग रहते थे। पिछले महायुद्ध में टर्की के हार जाने पर वह अंग्रेजों के अधिकार में आ गया और मित्र राष्ट्रों की सलाह से वहाँ यहूदियों को बसाने का निश्चय किया गया। सन् 1949 में इसराइल को एक स्वतंत्र राष्ट्र बना दिया गया और तब से 20-25 लाख यहूदी वहाँ बस चुके हैं। ‘बाइबिल’ की भविष्यवाणी में यह भी कहा गया है कि- “इस प्रदेश का शासक (नया नैपोलियन) पहले तो यहूदियों को बसने और अपना जरुशलम का मन्दिर बनवाने की अनुमति दे देगा, पर बाद में अप्रसन्न होकर उन पर हमला कर देगा और उनको निकालने की कोशिश करेगा।” इसी के ऊपर संसार की सबसे बड़ी लड़ाई छिड़ जायगी अन्त में नये नैपोलियन का अन्त हो जायगा।

भविष्य-कथन के अनुसार जब यह नवयुग आरम्भ होने का समय आयेगा तो उसके पहले एक विश्व-युद्ध होगा, साथ में और भी अनेक प्रकार की आपत्तियाँ मानव जाति पर आयेंगी। उनमें से युद्ध, अकाल और महामारी का वर्णन हम पिछले लेख में कर चुके हैं, पर उसके सिवाय और भी कई महत्वपूर्ण और चमत्कारी घटनायें उस में बताई गई हैं। उनमें से कुछ खास बातों को यहाँ उद्धृत किया जाता है-

ञ्जद्धद्ग द्धद्बह्ह्यह्ल ड्डठ्ठद्दद्गद्य ह्यशह्वठ्ठस्रद्गस्र, ड्डठ्ठस्र ह्लद्धद्गह्द्ग द्धशद्यद्यशख्द्गस्र द्धड्डद्बद्य ड्डठ्ठस्र द्धद्बह्द्ग द्वद्बठ्ठद्दद्यद्गस्र ख्द्बह्लद्ध ड्ढद्यशशस्र, ड्डठ्ठस्र ह्लद्धद्गब् ख्द्गह्द्ग ष्ड्डह्यह्ल ह्वश्चशठ्ठ ह्लद्धद्ग द्गड्डह्ह्लद्ध, ड्डठ्ठस्र ह्लद्धद्ग ह्लद्धद्बह्स्र श्चड्डह्ह्ल शद्ध ह्लद्धद्ग ह्लह्द्गद्गह्य ख्ड्डह्य ड्ढह्वह्ठ्ठह्ल ह्वश्च, ड्डठ्ठस्र ड्डद्यद्य द्दह्द्गद्गठ्ठ द्दह्ड्डह्यह्य ख्ड्डह्य ड्ढह्वह्ठ्ठह्ल ह्वश्च.

्नठ्ठस्र ह्यद्गष्शठ्ठस्र ड्डठ्ठद्दद्गद्य ह्यशह्वठ्ठस्रद्गस्र ड्डठ्ठस्र ह्लद्धद्गह्द्ग ख्द्गह्द्ग ड्ड द्दह्द्गड्डह्ल द्वशह्वठ्ठह्लड्डद्बठ्ठ ड्ढह्वह्ठ्ठद्बठ्ठद्द ख्द्बह्लद्ध द्धद्बह्द्ग ख्ड्डह्य ष्ड्डह्यह्ल द्बठ्ठह्लश ह्लद्धद्ग ह्यद्गड्ड. ्नठ्ठस्र ह्लद्धद्ग ह्लद्धद्बह्स्र श्चड्डह्ह्ल शद्ध ह्लद्धद्ग ह्यद्गड्ड ड्ढद्गष्ड्डद्वद्ग ड्ढद्यशशस्र. ्नठ्ठस्र ह्लद्धद्ग ह्लद्धद्बह्स्र श्चड्डह्ह्ल शद्ध ह्लद्धद्ग ष्ह्द्गड्डह्लह्वह्द्गह्य ख्द्धद्बष्द्ध ख्द्गह्द्ग द्बठ्ठ ह्लद्धद्ग ह्यद्गड्ड ड्डठ्ठस्र द्धड्डस्र द्यद्बद्धद्ग, स्रद्गड्डस्र, ड्डठ्ठस्र ह्लद्धद्ग ह्लद्धद्बह्स्र श्चड्डह्ह्ल शद्ध ह्लद्धद्ग ह्यद्धद्बश्चह्य ख्द्गह्द्ग स्रद्गह्यह्लह्शब्द्गस्र.

्नठ्ठस्र ह्लद्धद्ग ह्लद्धद्बह्स्र ड्डठ्ठद्दद्गद्य ह्यशह्वठ्ठस्रद्गस्र ड्डठ्ठस्र ह्लद्धद्गह्द्ग द्धद्गद्यद्य ड्ड द्दह्द्गड्डह्ल ह्यह्लड्डह् द्धह्शद्व द्धद्गड्डक्द्गठ्ठ, ड्ढह्वह्ठ्ठद्बठ्ठद्द ड्डह्य द्बह्ल ख्द्गह्द्ग ड्ड द्यड्डद्वश्च, ड्डठ्ठस्र द्बह्ल द्धद्गद्यद्य ह्वश्चशठ्ठ ह्लद्धद्ग ह्लद्धद्बह्स्र श्चड्डह्ह्ल शद्ध ह्लद्धद्ग ह्द्बक्द्गह्ह्य ड्डठ्ठस्र ह्वश्चशठ्ठ ह्लद्धद्ग द्धशह्वठ्ठह्लड्डद्बठ्ठह्य शद्ध ख्ड्डह्लद्गह्ह्य. ्नठ्ठस्र ह्लद्धद्ग ठ्ठड्डद्वद्ग शद्ध ह्लद्धद्ग ह्यह्लड्डह् ष्ड्डद्यद्यद्गस्र ख्शह्द्वख्शशस्र, ड्डठ्ठस्र ह्लद्धद्ग ह्लद्धद्बह्स्र श्चड्डह्ह्ल शद्ध ह्लद्धद्ग ख्ड्डह्लद्गह्ह्य ड्ढद्गष्ड्डद्वद्ग ख्शह्द्वख्शशस्र, ड्डठ्ठस्र द्वड्डठ्ठब् द्वड्डठ्ठ स्रद्बद्गस्र शद्ध ह्लद्धद्ग ख्ड्डह्लद्गह्ह्य, ड्ढद्गष्ड्डह्वह्यद्ग ह्लद्धद्गब् ख्द्गह्द्ग द्वड्डस्रद्ग ड्ढद्बह्लह्लद्गह्

(क्रद्गक्द्ग. 16)

अर्थात्- “पहले फरिश्ते ने अपना ट्रम्पेट (बिगुल) बजाया और पृथ्वी पर आग और खून का तूफान आया। इससे पेड़ों का एक तिहाई भाग जल गया और तमाम हरी घास जल गई।”

“दूसरे फरिश्ते ने ‘ट्रम्पेट’ बजाया और एक बहुत बड़ा जलता हुआ पहाड़ समुद्र में गिरा और उससे समुद्र का एक तिहाई हिस्सा खून हो गया। समुद्र में रहने वाले जीवित प्राणियों में से एक तिहाई मर गए और एक तिहाई जहाज नष्ट हो गये।”

“तीसरे फरिश्ते ने ‘ट्रम्पेट’ बजाया और एक बहुत बड़ा तारा गिरा, जो दीपक की तरह प्रकाशित था। यह नदियों और पानी के स्रोतों के एक तिहाई भाग पर पड़ा। इस तारे का नाम वार्मवुड है। इससे जल स्रोतों का एक तिहाई भाग ‘वार्मवुड’ हो गया। यह पानी जहरीला था जिसके पीने से असंख्य मनुष्य मर गये।”

इसी तरह अगले ‘ट्रम्पेट्स’ के बजने से दूसरी आपत्तियाँ दुनिया में रहने वाले लोगों को सहनी पड़ेंगी। चौथे ‘ट्रम्पेट’ से सूर्य-चन्द्रमा का प्रकाश घट जायगा। पाँचवें से मनुष्यों को नष्ट करने वाले टिड्डियों के आकार के प्राणी पृथ्वी के भीतर से निकलेंगे और छठे से ऐसे सवार उत्पन्न होंगे जो आग और धुँआ से मनुष्यों को मारेंगे। जैसा हम कह चुके हैं ये भविष्य-वाणियाँ आलंकारिक भाषा में लिखी गई हैं और उनका आशय उन वैज्ञानिक अस्त्र-शस्त्रों से ही है जो आगामी युद्ध के व्यवहार में लाये जायेंगे। इस बात की आशंका आजकल सब कोई कर रहे हैं कि यदि युद्ध में एटम-अस्त्रों का प्रयोग खुल कर किया गया तो उससे पेड़-पौधे, खेती, समुद्र तथा उसमें रहने वाले प्राणी सभी नष्ट होंगे। टिड्डी के आकार के जो प्राणी कहे गये हैं वे हवाई जहाज हो सकते हैं जो आजकल युद्ध के मुख्य साधन हैं। इसी प्रकार आग और धुँये से मारने वाले सवारों का अर्थ आधुनिक तोपों से समझा जा सकता है। हो सकता है कि जिस समय अंतर्दर्शी योगियों ने इन घटनाओं को ध्यानावस्था में देखा था उस समय उनके पास इन नवीन आविष्कारों का वर्णन करने के लिये आजकल के शब्द न थे, इससे उन्होंने सर्वसाधारण के जाने हुए शब्दों में-जैसे पहाड़ का गिरना, तारे का टूटना, टिड्डियों का निकलना, आग-धुँआ उगलने वाले सवारों का प्रकट होना-उन घटनाओं को प्रकट किया। आगामी युद्ध के लिये जो हजारों एटम और हाइड्रोजन बम तैयार किये गये हैं और जिनमें से हर एक एकाध करोड़ व्यक्तियों को मारने तथा दो सौ वर्गमील जमीन को जला कर नष्ट करने की शक्ति रखता है, जब उनका प्रयोग किया जायगा, तो संसार में जगह-जगह वैसे ही दृश्य देखने को मिलेंगे जिनका बाइबिल में वर्णन किया गया है।

मुसलमानी धर्म-ग्रन्थों में युग-परिवर्तन की सूचना-

यद्यपि मुसलमानी धर्म में अपने अनुयायियों के बाह्य संगठन पर तथा अन्य देशों को जीत कर वहाँ अपना मजहब फैलाने पर विशेष जोर दिया है, तो भी जो थोड़े से आत्मज्ञानी सन्त हुये हैं उन्होंने भविष्य में होने वाले परिवर्तनों की सूचना अपने धर्म-भ्राताओं को दी है, जिससे वे ऐसे अवसर पर भ्रम में न पड़ें और अपने उचित कर्तव्य का पालन करें। चूँकि आरम्भ में मुसलमानों में कट्टरता का भाव अधिक भरा गया था और वे अपने सिवाय संसार के अन्य समस्त मजहब वालों को ‘काफिर’ कहते थे, इसलिये सन्तों ने उन्हें बताया कि कोई भी मजहब संसार में सदैव कायम नहीं रह सकता। जब हमारे मजहब की उम्र पूरी हो जायेगी तो उसका अन्त हो जायगा और उसकी जगह जो कोई नवीन धर्म-प्रचारक आये, उसकी बातों को आदरपूर्वक सुनने और उसके कार्य में सहायक बनना तुम्हारा कर्तव्य है।

कुरान में कुछ ऐसे निशान भी दिये गये हैं जिनसे प्रकट होता है कि उन भविष्य-वक्ताओं की दृष्टि में वर्तमान समय ही युग-परिवर्तन का जमाना था। कहा गया है-

“व एजल एसारो उत्तेलत्”

अर्थात्- “उस समय ऊँटनियों की सवारी नहीं रहेगी।”

यह एक प्रसिद्ध बात है कि अरब के रेगिस्तानी इलाकों में आवागमन और जीवन निर्वाह का प्रधान साधन ऊँट ही है। पर अब युग-परिवर्तन का प्रभाव अरब जैसे बीहड़ प्रदेश पर भी पड़ रहा है और वहाँ भी लम्बे फासले की यात्रा मोटरों द्वारा किये जाने की व्यवस्था हो गई है। इसलिये अब ऊँट की सवारी का प्रचार दिन पर दिन कम होता जाता है और कोई आश्चर्य नहीं कि शीघ्र ही वह नाम मात्र को ही शेष रह जाय। हमारे देश में भी अब बैलों द्वारा खींचे जाने वाले रथों की सवारी केवल एक नुमाइशी चीज रह गई है।

एक स्थान पर छपी हुई पुस्तकों का जिक्र किया गया है-

“व एजल सोहीफो नै शेरत्।”

अर्थात्- “छपी हुई वस्तुएँ फैलाई जायेंगी।”

पुराने जमाने में विद्या प्रचार का एकमात्र साधन मुख्यतः हस्तलिखित ग्रन्थ ही होते थे जो बड़े परिश्रम से और बहुत समय में तैयार होते थे और इसलिये जिनका प्राप्त होना एक समस्या ही थी। पर अब छपाई की मशीनों के कारण छोटी-बड़ी पुस्तकों, ट्रैक्टों, हर तरह के सामयिक पत्रों की बाढ़ आ गई है और दुनिया का कोई कोना ऐसा नहीं जहाँ छपा कागज दिखाई न दे। संभवतः भविष्य-दर्शन में इसी दृश्य को देख कर उपयुक्त संकेत किया गया है कि छपी हुई चीजों का विश्वव्यापी व्यवहार भी नये युग का एक चिन्ह होगा।

वास्तव में युग-परिवर्तन का सिद्धाँत एक विश्वव्यापी मानव-प्रकृति का अंश है। प्रत्येक प्रगतिशील मनोवृत्ति का व्यक्ति भविष्य के लिये किसी उच्च आदर्श की कल्पना और आकाँक्षा करता रहता है। इसके अतिरिक्त दूरदर्शी महापुरुष यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि निरन्तर परिवर्तन संसार का नियम है और यही परिवर्तन बढ़ते-बढ़ते एक दिन नवीन युग का रूप धारण कर लेता है। पर जिस समय इस प्रकार पुरानी दुनिया अथवा एक ‘युग’ की समाप्ति होकर नई दुनिया या दूसरे युग का सूत्रपात होता है तब सर्वत्र बहुत बड़ी हलचल, संघर्ष, अशाँति फैल जाती है। पुरानी प्रथाओं और संस्थाओं के निरर्थक, समय-विरुद्ध और हानिकारक हो जाने पर भी बहुसंख्यक लोग उनको पकड़े रहना चाहते हैं और इसी प्रयत्न में परिवर्तन विरोधी और परिवर्तन-पक्षपाती दलों में कलह होने लग जाती है जिससे सर्वत्र विध्वंस और नाश की लीला दृष्टिगोचर होने लगती है। यद्यपि अपनी प्रिय वस्तुओं का इस प्रकार नष्ट होना लोगों को खेदजनक-शोकोत्पादक जान पड़ता है, पर वास्तव में यह अनिवार्य होता है। अगर प्राचीन का नाश न हो तो नवीन का निर्माण कैसे सम्भव होगा? इस लिये सभी धर्मों के तत्वज्ञानी महात्माओं ने अपने अनुयायियों को इन भावी परिवर्तनों की सूचना दे रखी है, जिससे वे ऐसे अवसर पर अपने मासिक सन्तुलन को कायम रख सकें और ईश्वरीय निर्देशों का श्रद्धाभाव से पालन करते रहें।

बुखारा के सन्त का भविष्य-कथन-

इन दिनों जो भविष्य-वाणियाँ हमारे देखने में आई हैं उनमें बुखारा के सन्त शाह नियामत उल्ला वल्ली साहब की भविष्य वाणी, जो फारसी भाषा में कविता (कसीदा) में लिखी गई है, विशेष महत्वपूर्ण है। उसमें उन्होंने 850 वर्ष पहले संसार की राजनीतिक दशा में होने वाले जिन परिवर्तनों की सूचना दी थी वे बराबर सत्य सिद्ध हो रहे हैं। यह हस्तलिखित प्राचीन पुस्तक इस समय पटना की प्रसिद्ध ‘खुदाबख्श ओरियण्टल लाइब्रेरी’ में सुरक्षित है। वहीं से उसकी खास-खास बातों को संग्रह करके एक सज्जन ने प्रकाशित कराया है जो इस प्रकार है-

“भारत के विषय में प्रकाश डालते हुये उन्होंने लिखा है कि-मुसलमानों के राज्य के बाद यह देश विदेशियों के हाथ में चला जावेगा। इसके बाद जापान और रूस में युद्ध होगा जिसमें जापान विजयी होगा (यह युद्ध 1904 में हुआ था)। तत्पश्चात् जापान में भयंकर भूकम्प आवेगा (ऐसी घटना 1923 में हुई थी)। प्रथम महायुद्ध के विषय में उन्होंने इस प्रकार लिखा है कि-संसार में एक बड़ी लड़ाई होगी जिसमें ‘अलफ’ (अंग्रेज), ‘जीम’ (जर्मनी) पर विजयी होंगे और इसमें एक करोड़ इकत्तीस लाख व्यक्ति मारे जावेंगे। (आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ब्रिटिश कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार एक करोड़ तीस लाख व्यक्ति हताहत हुए थे)। द्वितीय विश्व युद्ध के सम्बन्ध में भी उन्होंने स्पष्ट लिखा था कि-दोनों पक्षों में शाँति-सन्धि हो जावेगी किन्तु दोनों पक्ष गुप्त रूप से युद्ध की तैयारी करते रहेंगे और पहले युद्ध के 21 वर्ष बाद द्वितीय महायुद्ध प्रारम्भ हो जावेगा। (प्रथम महायुद्ध 11-11-1918 को समाप्त हुआ था और दूसरा 3-9-39 को शुरू हो गया था)। भारत इस युद्ध में अंग्रेजों की सहायता करेगा जो भारत के वास्ते घातक सिद्ध होंगी इस युद्ध में प्रयोग किये गये वैज्ञानिक बम आदि का उल्लेख भी किया गया है। इस दूसरे युद्ध में जो देश भाग लेंगे उनके नाम के प्रथम अक्षर भी बताये गये हैं। दो अलफ (अंग्रेज और अमरीका) तथा रूस और चीन आपस में मिल कर अलफ (इटली), जीम (जर्मनी) तथा द्वितीय जीम (जापान) पर अस्त्र-शस्त्र चलायेंगे। अमरीका के पक्ष वाले विजयी होंगे और युद्ध छः वर्ष तक चलेगा।

“पाकिस्तान और भारत के विभाजन के विषय में भी संकेत लिखा गया है। अंग्रेज भारत को मुक्त करके चले जायेंगे किन्तु अपने पीछे बुराई का बीज बो जायेंगे। भारत का विभाजन हो जावेगा किन्तु विभाजित भाग आपस में सदैव लड़ते रहेंगे और अशाँति बनी रहेगी। इसके बाद वर्तमान युग की प्रगति का वर्णन किया है कि स्त्री जाति अधिक स्वतन्त्र हो जावेगी, पर्दे की रस्म प्रायः समाप्त हो जावेगी, आदि आदि। तृतीय विश्वयुद्ध के विषय में शाह साहब ने लिखा है कि-अमरीका इस युद्ध का एक प्रधान दल होगा। परास्त जर्मनी तथा रूस एक होकर संसार को क्षणभर में नष्ट करने वाले हथियारों को लेकर युद्ध में उतर आवेंगे। अंग्रेजों को भारी हानि उठानी पड़ेगी और अंग्रेज अपनी सभ्यता सहित तीसरे महायुद्ध के बाद संसार से नष्ट हो जावेंगे और पुनः उनकी सभ्यता कभी भी संसार के रंगमंच पर नहीं आ पावेगी।”

फ्राँस का प्रसिद्ध भविष्य-वक्ता-

आज से कई सौ वर्ष पहले फ्राँस में ‘नोस्टरडम ‘ नाम का एक भविष्य-वक्ता हुआ है जिसके ग्रन्थ के सम्बन्ध में आज तक विद्वानों में विवाद होता रहता है। उसने अपना ग्रन्थ कविता में लिखा है और वह भी ऐसी गूढ़ कि जिसे समझने में मनुष्यों को काफी ध्यान देना पड़ता है। इस कारण लोग उसके कई तरह के अर्थ निकाल लेते हैं। पर उसमें कितनी ही बातें इतनी स्पष्ट हैं कि उनकी सचाई से कोई इनकार नहीं कर सकता। उसमें फ्राँस की राज्यक्राँति का वर्णन बहुत विस्तार से लिखा है जो ऐतिहासिक घटनाओं से ठीक मिलता-जुलता है। स्वेज की नहर खोदे जाने, संसार में विज्ञान का प्रचार बढ़ने और विश्व युद्धों का उनका लिखा वर्णन भी सत्य सिद्ध हुआ है। तीसरे महायुद्ध के विषय में ‘नोस्टरडम’ ने जो लिखा है वह भी बड़ा महत्वपूर्ण है। यद्यपि उनकी भविष्य-वाणियों का बहुत ही सूक्ष्म भाग हमको प्राप्त हो सका है पर तीसरे युद्ध के विषय में उसके ये शब्द आश्चर्यजनक हैं-

“तीसरा महायुद्ध वैज्ञानिकों की प्रयोगशालाओं में से फट पड़ेगा और उसमें दो मुख्य पक्ष रूस और अमरीका होंगे।” (नोस्टरडम ने लिखा है कि यह गरुड़ (ईगील) और रीछ के बीच होगा)। आज राजनीतिक और साहित्यिक लेखों में ‘ईगिल’ को अमरीका और रीछ को रूस का प्रतीक माना गया है। अखबारों में प्रकाशित होने वाले कार्टूनों में भी उनका प्रतीक गरुड़ और रीछ ही चित्रित किया जाता है।

वर्तमान समय में ज्योतिष शास्त्र व हस्तरेखा शास्त्र का सबसे प्रसिद्ध ज्ञाता ‘कीरो’ या ‘शेरो’ नाम का व्यक्ति हुआ है। उसने भी संसार के भविष्य को बड़े विस्तार से लिखा है। उसकी भविष्य-वाणियों को हम आगे चल कर पृथक लेख के रूप में दे रहे हैं।

अमरीका की सन्त महिला जीन डिक्सन-

आजकल योरोप अमरीका में कैथोलिक धर्मावलम्बी संत महिला जीन डिक्सन की बड़ी प्रसिद्धि है। उसमें भविष्यदर्शन की शक्ति बहुत कुछ स्वाभाविक है। आठ वर्ष की आयु में ही उसकी असाधारण आत्मिक प्रतिभा को देख कर एक जिप्सी जाति की साधुनी ने उसे कुछ साधन बताये और उपकरण दिये जिनकी सहायता से उसने अपनी दिव्य दर्शन की शक्ति को बहुत अधिक बढ़ा लिया। अब उसकी भविष्य-वाणियाँ प्रायः सत्य ही सिद्ध होती हैं और इसलिये योरोप अमरीका के अनेकों प्रधान व्यक्ति, राजनीतिक नेता उससे सलाह लेते रहते हैं। जीन डिक्सन ने पिछले 25 वर्षों में जितनी भविष्य वाणियाँ की हैं वे प्रायः पूर्ण रूप से सच्ची साबित हुई हैं।

उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति श्री फ्रेंकलिन रुजवेल्ट को उनकी मृत्यु के बारे में पहले ही बता दिया था और उनका कथन अक्षरशः सच निकला। राष्ट्रपति से जब उनकी भेंट हुई तो उन्होंने उनकी उँगलियों के पोरुवे छूकर कहा आपकी मृत्यु छः महीने के भीतर हो जायगी। स्वस्थ राष्ट्रपति को इसकी तनिक भी संभावना न थी, इस पर उन्होंने विश्वास भी नहीं किया पर जब वह भविष्यवाणी सच निकली तो लोग आश्चर्यचकित रह गये।

महात्मा गाँधी का उनके बारे में एक वर्ष पूर्व ही कथन यह था कि-वे सन् 48 में एक ऐसे व्यक्ति के हाथों मारे जायेंगे जिसकी बाबत अभी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता। वस्तुतः वैसा हुआ भी।

इस महिला की ख्याति इतनी बढ़ी-चढ़ी है कि संसार के प्रमुख राजनेता भी उनसे अपन-अपने संबंधित विषयों पर पूछताछ करते रहते हैं। इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधान मन्त्री चर्चित ने अपने बारे में पूछा तो उन्होंने कहा था कि-आप अगले चुनाव में हार जायेंगे। उस समय चर्चित का सितारा इतना चमक रहा था कि इस बात की कोई कल्पना तक न कर सकता था, फिर भी वह अनहोनी दिखने वाली बात सच हो गई, चर्चिल चुनाव में हार गये। अमेरिका के प्रेसीडेंट ट्रूमेन चुनाव में खड़े भी न हुये थे कि उसने घोषणा की कि ट्रूमेन खड़े होंगे और जीत जायेंगे। इस विजय को भी एक अचम्भा माना गया।

जिस दिन राष्ट्रपति कनैडी मारे गये उस दिन यह महिला एक होटल में खाना खाते हुए लोगों से कह रही थी कि-आज कनैडी मारे जा सकते हैं। लोगों ने उसकी बात को बेहूदी बकवास कहा, पर जब उस दिन यह समाचार सच हो गया तो लोग हैरत में रह गये।

सन् 44 में अन्तर्राष्ट्रीय घटनाचक्र के बारे में अमेरिका के प्रेसीडेंट श्री रुजवेल्ट ने इस महिला से पूछा था कि क्या रूस के साथ हमारी दोस्ती आगे भी बनी रहेगी जैसी कि हिटलर के विरुद्ध इस समय है? तो उसने उत्तर दिया कि रूस के साथ अमेरिका के सम्बन्ध बिगड़ जायेंगे। लेकिन बहुत समय बाद ऐसा समय आवेगा जब दोनों मिलकर लाल चीन के विरुद्ध लड़ेंगे।

इस महिला द्वारा बताई भविष्यवाणियों में से कुछ ऐसी हैं जिनका सत्य या असत्य होना भविष्य के गर्भ में है।

आगामी विश्व युद्ध और नया ‘अवतार’-

जीन डिक्सन ने कहा है- कुछ समय बाद चीन रूस पर आक्रमण करेगा। प्रारम्भ में यह युद्ध सीमा संघर्ष जैसा रहेगा। तुरन्त ही वह विश्व युद्ध के रूप में नहीं बदलेगा। पर आगे चलकर यही समस्या बढ़ते बढ़ते विश्व-युद्ध का रूप धारण कर लेगी और अन्त में रूस तथा अमरीका मिल कर चीन के विरुद्ध लड़ेंगे।

विश्व युद्ध में एक डेढ़ फुट लम्बी ऐसी छोटी-सी मिसाइल का विकास होगा जो आकार में हलकी होते हुए भी प्रधान शस्त्र का काम करेगी। उन दिनों अमेरिका की जीवन रेखा ‘डेविस स्टेट’ रहेगी। कनाडा और ग्रीनलैण्ड के बीच का यह छोटा सा प्रदेश अमरीका के लिए ढाल का काम करेगा।

विश्व युद्ध सन् 1980 तक हो जायेगा। इसकी आग में सारी दुनिया के लोगों को झुलसना पड़ेगा। यह युद्ध इतना भयानक होगा कि वर्तमानकालीन साधन सामग्रियों को ही नहीं, मानव जाति के विचारों, मान्यताओं, आदर्शों एवं गतिविधियों को भी बदल कर रख देगा। तब नई सभ्यता और उत्कृष्ट आध्यात्मिकता का विकास होगा और ऐसे नये युग की आधार शिला रखी जायगी जिसमें विश्व शाँति अक्षुण्ण रहेगी।

उपरोक्त महिला का कथन है कि- 5 फरवरी 1965 को एक ऐसे बालक का जन्म हो चुका है कि जो संसार का नया कायाकल्प करेगा। संप्रदायों की संकीर्णता वह मिटा देगा और एक सार्वभौम विश्व-धर्म की स्थापना करेगा। 1980 में होने वाले विश्व-युद्ध के बाद वह बालक इतना शक्तिशाली हो जायगा कि संसार भर की सद्भावना उसे प्राप्त होगी और सब लोग उसके निर्देशों का पालन करेंगे। सन् 1999 में इस बालक की प्रतिभा पूर्ण रूप से निखरेगी और उसके हाथों नये युग की आधार शिला रखी जायेगी।

यहूदी भविष्य-वेत्ता ने क्या कहा?

प्रो. हरार इसराइल के रहने वाले एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्यात प्राप्त भविष्यवक्ता हैं। वे भी जीन डिक्सन की तरह आत्मिक शक्ति सम्पन्न व्यक्ति हैं और उनको जानने वाले व्यक्ति कहते हैं कि ईश्वर ने पूर्व जन्मों के सत्कर्मों के फलस्वरूप उनको भविष्य दर्शन की शक्ति दी है। वे हिटलर की मृत्यु का ठीक समय तथा कई भूकम्पों की सही भविष्य वाणी कर चुके हैं। आगामी चार वर्षों के लिए उन्होंने जो कुछ कहा है उसका साराँश इस प्रकार है-

(1) जॉनसन अमरीका के 1968 के चुनाव में पराजित होंगे।

(2) वियतनाम का युद्ध 1969 तक समाप्त हो जायगा, जिसमें अमरीका सफल होगा।

(3)सन् 1968 में राष्ट्रपति नासिर की हत्या कर दी जायगी। (एक अन्य भविष्यवाणी के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि अत्यन्त घातक चोट लगने पर भी वह अन्त में बच जायेंगे।)

(4)सन् 1970 तक रूस और चीन के बीच मंगोलिया और साइबेरिया के प्रश्न पर युद्ध होगा जिसमें अणु-अस्त्रों का भी प्रयोग किया जायगा और उसका प्रभाव समस्त एशिया पर पड़ेगा।

प्रो. हरार ने इसराइल और अरब देशों के बीच भयंकर युद्ध का शुरू होना सन् 1969 में लिखा है। यद्यपि अब भी इन दोनों पक्षों में युद्ध हो चुका है, पर वह छः दिन में ही समाप्त हो गया। हो सकता है अब उनमें जो जीते हुये प्रदेश को लौटाने का विवाद छिड़े वह एक डेढ़ वर्ष में फिर भयंकर रूप धारण कर ले जो होते-होते विश्व युद्ध के रूप में परिणत हो जाय।

जैसा हम पहले लिख चुके हैं जिन भविष्य-वेत्ताओं ने सैंकड़ों वर्ष पहले नवयुग आगमन की घटनाओं का वर्णन किया है उन्होंने उनके होने का संकेत मोटे रूप में ही किया है। अब वर्तमान समय के दूरदर्शी विद्वान सामयिक घटनाओं को देखते हुये उनके ठीक समय का निर्णय कर रहे हैं।

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