
संगीत सत्ता और उसकी महान महत्ता
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ऐसी असाध्य रोग से ग्रसित महिला को संगीत के द्वारा स्वस्थ होते देखा तो राल्फ लारेन्स हाय का मन संगीत के प्रति श्रद्धा से भर गया। यही नहीं अपनी पत्नी श्रीमती ग्रेश्चैन के साथ विचार-विमर्श करके उन्होंने यह भी निश्चित किया कि भगवान की दी हुई इस बहुमूल्य निधि का मानवीय सेवा के रूप में सदुपयोग क्यों न किया जाय? शब्द शक्ति के वैज्ञानिक पहलू पर ध्यान देते तो इस योजना के लिए उन्हें और भी विकलता होती। अन्ततः उन्होंने इस परियोजना को मूर्त रूप दे ही दिया। पहली बार “आर फोर आर” रिफ्लेक्शन (रिकार्डिंग फॉर रिलैक्सेशन, रिफ्लेक्शन, रेस्पाँस एण्ड रिकवरी) नाम से एक संस्था ने संगीत आन्दोलन के लिए हिम्मत की ओर थोड़े ही समय में वह सफलता के जिस चरम बिन्दु तक पहुँची उससे भी संगीत की महाशक्ति और उसके प्राण वर्द्धक स्वरूप का परिचय मिलता है।
प्रारम्भ में उन्होंने कुछ शास्त्रीय धुनें तैयार कीं और उन्हें पिट्सवर्ग के अस्पतालों में, जहाँ वृद्ध लोग रहते थे वहाँ तथा घायल सैनिकों के अस्पतालों में जाकर सुनाना प्रारम्भ किया। उससे रोगियों को जो शारीरिक तथा मानसिक लाभ हुआ उससे उनका उत्साह और भी बढ़ गया। इस दृष्टि से देखें तो विदेशी हम भारतीयों से हजार गुना अच्छे। जो वस्तु उन्हें उपयोगी और मानवीय हित में दिखाई दी उसके प्रति निष्ठा और कार्यान्वयन का साहस हमें विदेशियों से ही सीखना होगा। उस तरह की हिम्मत हममें भी आ गई होती तो न केवल दहेज, जाति भेद, ऊँच-नीच, छुआछूत, अन्ध-विश्वास, पलायनवाद, जैसी सामाजिक बुराइयों को पूरी तरह समाज से उखाड़ चुके होते वरन् ज्ञान विज्ञान, भाषा, भेष, साहित्य और संस्कृति के पुनर्निर्माण में भी बहुत आगे बढ़ चुके होते।
सेवा-भाव और परिश्रम के साथ संगीत सत्ता के समन्वय ने एक ऐसा प्रभाव उत्पन्न किया कि कुछ ही समय में न केवल पिट्सवर्ग वरन् अमरीका के दूसरे शहरों में भी इस संस्था की चर्चा होने लगी। एक लड़का जिसके हाथ पाँव लकवे से मारे गये थे। स्वस्थ होने की कोई आशा नहीं थी किन्तु उसे लारेन्स हाय का शास्त्रीय संगीत सुनने का सौभाग्य मिला। उसके फलस्वरूप उसका रोग अच्छा हो गया अब यह युवक कम्पनी में टाइपिस्ट का काम करता है।
अस्पताल में एक ऐसी वृद्ध महिला प्रविष्ट की गई जिसका मस्तिष्क लगभग शून्य हो गया था। वह न तो बोल सकती थी और न ही चल फिर सकती थी। भीतर का कष्ट आँसुओं से ही दिखाई देता था। डॉक्टर अनुभव करते थे कि रोगों की प्रक्रिया शारीरिक ही नहीं मानसिक भी है, मानसिक ही नहीं वह आत्मिक भी है क्योंकि बाह्य परिस्थितियाँ ही नहीं अपने स्वभाव और संस्कार भी कई बार ऐसे कर्म करने को विवश कर देते हैं जो हमारे शरीर को रोगान्मुखी कर देते हैं। इतना सोचने पर भी चिकित्सा का कोई विकल्प उनसे पास नहीं था।
डॉ. हाय ने कहा- तब जबकि मनुष्य का रोग का और सामान्य असाध्य हो गया हो उसकी चेतना के अन्तिम स्रोत तक को संगीत की अदृश्य स्वर लहरियों से प्रभावित और ठीक किया जा सकता है। फलस्वरूप यह मामला भी उन्हें सौंपा गया। श्री हाय ने कुछ पुराने लोकप्रिय गीतों के टेप उस महिला को सुनाये। थोड़े ही समय में वह स्त्री न केवल गुनगुनाने और बोलने लगी वरन् जब भी ‘टेप’ बजाये जाते उसके पाँव भी नाचने की मुद्रा में गति देने लगते।
एक और रोगी जो उठकर चल भी नहीं सकता था जिसका सदैव आत्म-हत्या करने का प्रयत्न रहता था वह श्री हाय के संगीत से अच्छा हो गया। नार्वे का एक मरीज भी ऐसी ही निराशाजनक स्थिति में हाय के पास आया। दिक्कत यह थी कि डॉ. हाय के पास नार्वे संगीत के रिकार्ड नहीं थे फलस्वरूप उन्होंने वहाँ के शासनाध्यक्ष को पत्र लिखा। उस पत्र में उन्होंने संगीत की शोध सम्बन्धी उपलब्धियों का भी वर्णन किया उससे नार्वे का राजा बड़ा प्रभावित हुआ उसने अच्छे रिकार्ड हाय को भिजवा दिये। हाय के प्रयोग से यह रोगी भी अच्छा हो गया।
अब हाय के समक्ष एक दूसरा ही जीवन था-संगीत विद्या का प्रसार। हम में से सैकड़ों ऐसे हैं जो अपनी अमूल्य संगीत निधि के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। हम स्वार्थ, संकीर्णता और हिम्मत के अभाव में चाहते हुए भी कुछ कर नहीं पाते, लेकिन डॉ. हाय ने जैसे ही यह निश्चित समझ लिया कि संगीत मनुष्य के लिए एक ईश्वरीय वरदान के समान है उन्होंने ‘अल्कोआ’ कम्पनी के सम्मानास्पद पद से त्याग पत्र दे दिया। इन दिनों वे न्यूयार्क राज्य के एक गाँव ब्रेनार्ड्स विल में रहते हैं। यह स्थान शेटूगे लेक (झील) के पास है। यहाँ उनका सब प्रकार के आधुनिक साधनों से सज्जित आर्केस्ट्रा तथा साउण्ड रिकार्डिंग थियेटर है। एक छोटा सा आश्रम जैसा है वहीं से सब कार्यक्रमों का संचालन, पत्र व्यवहार तथा शोध कार्य सम्पन्न होता है। श्री हाय का विश्वास है कि एक दिन वह भी आयेगा जब मानवीय आदर्शों का नियमन सचमुच संगीत द्वारा होने लगेगा क्योंकि उसमें आश्चर्यजनक आकर्षण और मधुरता है।
इस कार्य में अकेले श्री हाय संलग्न हो सो बात नहीं वहाँ के अधिकाँश लोग शास्त्रीय संगीत की महत्ता अनुभव करने लगे हैं यही कारण है कि सार्वजनिक संस्था के रूप में इस संस्थान को साधनों का कभी अभाव नहीं अखरा। न्यूयार्क फिलहार्मोनिक आर्केस्ट्रा प्रसिद्ध अभिनेता डैनी तथा मार्मन टैबनेंक क्वार, जो कि अमरीका की एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त धार्मिक भजनों को गाने और प्रसार करने वाली मंडली है, ने अपने सामान और कार्यक्रमों के टेप हाय को दिये हैं। स्व. राष्ट्रपति कैनेडी ने व्हाइट हाउस में जो भी संगीत कार्यक्रमों के टेप थे उन सबकी नकल कराके डॉ. हाय को भेंट कर दी। प्रसिद्ध संगीतकार जेनिस हरसॉटी ने अपना स्वर बिना मूल्य हाय को मानवीय सेवाओं के लिए दिया। नार्वे के अतिरिक्त लिसबन (पुर्तगाल) के केलूस्ट गुल्बेकियन फाउंडेशन में भी बहुत से पुर्तगाली रिकार्ड दिये हैं। अब तक इस संस्था के पास 700 से भी अधिक टेप तथा 2000 से अधिक ऐसी संस्थाएँ हैं जो इस कार्य में नियमित सहयोग देती हैं। जन सहयोग इससे भिन्न है हम भी चाहें तो अपने देश के प्रभावशाली व्यक्तियों से अथवा जन-सहयोग से कोई इस तरह का आन्दोलन खड़ा करके लोक जीवन को सरस और प्राणवान बना सकते हैं।
डॉ. हाय को तो शोध कार्य भी करना पड़ता है। हमारे शास्त्रीय संगीत में तो सबकुछ पहले से ही उपलब्ध है। टोड़ी, दीपक, मेघ, मल्हार, पचड़ा आदि रोग, भेरी, शंख, वंशी, मृदंग, पटह, कलह, पणाद, कोण, वीणा, सितार, किलकिला, क्रकच स्वेड आदि वाद्ययन्त्र उसके प्रमाण हैं। इनके प्रसार भर की आवश्यकता है यदि कुछ लोग शास्त्रीय संगीत की प्रतिष्ठा के लिए डॉ. हाय की तरह ही सेवा व्रत लेकर जुट जायें तो अपनी महानतम लोक-कला को फिर से नया जीवन दिया जा सकता है। व्यक्तिगत रूप से तो संगीत जैसी ललित कला के प्रति अभिरुचि सभी को रखनी चाहिये।