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Magazine - Year 1971 - Version 2

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Language: HINDI
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पुनर्जन्म की प्रतिपाद्य एक अद्भुत घटना

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First 21 23 Last
फ्राँस के क्रान्तिकारी विचारक और सन्त लुइस की मृत्यु के बाद लगा जैसे एक महान् विचार शक्ति संसार से खो गई। 5 शताब्दियों से भी अधिक तक एक खामोशी छाई रही। 539 वर्ष बाद फिर से एक ताजी घटना की पुनरावृत्ति हुई जिसने न केवल फ्रांस वरन् दुनिया के करोड़ों विचारशील लोगों को यह मानने के लिये विवश कर दिया कि-संसार में जहाँ सब कुछ मृत्यु और परिवर्तनीय है वहाँ जीवन एक ऐसा अविरल और सतत् प्रवाह है जो अनादि से अनन्त तक चलता है, कभी नष्ट नहीं होता।

लहर के दो रूप एक बार पानी ऊपर को उठता है- उठाव दिखाई देता है फिर पानी गिर जाता है गिरते-गिरते उठने की एक नई शक्ति मिल जाती है और वही लहर फिर ऊपर आ जाती है जीवन का प्रवाह भी ऐसी ही लहर मानी गई है। भारतीय दर्शन के अनुसार जीवन उस स्पन्दन का व्यक्त, ऊपर उठा हुआ रूप है मृत्यु अव्यक्त और अदृश्य न दिखाई देने पर भी उसका अस्तित्व काल के प्रवाह के रूप में बना रहता है। इस भारतीय सिद्धान्त का फ्रांस में सामान्यतः ड्रइड लोग ही समर्थन करते ओर मानते हैं पर सन्त लुइस की मृत्यु के ठीक 539 वर्ष बाद घटित इस घटना के प्रकाश ने समस्त बुद्धिवादियों के मस्तिष्क के एक प्रश्न वाचक चिन्ह लगा दिया जो वैज्ञानिकों के लिये अब भी एक पहेली बना हुआ है।

“रिसर्च इन टू दि इफीसियेन्सी ऑफ डेट्स एण्ड नेक्स इन दि एनालस ऑफ दि नेशन्स” से उद्धृत इस घटना और एक महान् दर्शन का उदय तब हुआ जब फ्रांस में सम्राट लुइस 16वें का जन्म हुआ। जीवन काल और शरीर स्वरुप की साधारण-सी भिन्नता के अतिरिक्त सन्त लुईस और सम्राट लुईस 16वें के जीवन में विलक्षण समानता थी सन्त लुईस के जीवन-काल में घटित सभी घटनाओं की हूबहू पुनरावृत्ति सम्राट लुईस 16वें के जीवन काल में हुई वह भी समय के स्थिर समानुपात में। यदि सेंट लुईस के जीवन की घटनाओं में 539 वर्ष जोड़ते चले जाये तो घटनाओं की समानता तो क्या नामों तथा स्थानों तक की समानता सम्राट लुईस की जीवन घटनाओं में देखी जा सकती है और यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि संत लुईस ने ही 539 वर्ष बाद सम्राट लुईस के रूप में जीवन धारण किया। नीचे उन दोनों के जीवन की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है।

क्रमाँक सन्त लुईस के जीवन की घटना सम्राट लुईस 16वें के जीवन की घटना सन्

1. जन्म 1215 +539

जन्म 1754

2. बहिन इसाबेल का जन्म हुआ 1225 बहिन एलिजाबेथ का जन्म हुआ 1225

+539 = 1764

3. पिता लुईस आइवें की मृत्यु 1226 पिता डाफिन की मृत्यु 1226

+539 = 1765

4. बीमार पडे 1229 उसी बीमारी से बीमार 1229

+539 = 1768

5. विवाह 1231 विवाह 1231

+539 = 1770

6. बालिग घोषित 1235 बालिग अधिकार प्राप्त 1235

+536 = 1774

7. हेनरी तीसरे के साथ शान्ति 1243 आज तीसरे के साथ शान्ति वार्ता 1243

+539 = 1782

8. पूर्व के एक राजकुमार ने ईसाई 1249 सम्राट लुईस 16वें के पास भी पर्व 1249

बनने की इच्छा से ही राजकुमार का राजदूत आया +539 = 1788

राजपूत भेजा उसका उद्देश्य भी ईसाई धर्म 1788 ग्रहण करने का इच्छा ही थी

9. क्रान्तिकारी विचारों के कारण 1250 सत्ता अधिकरण ने सम्राट लुईस से भी 1250

नजरबन्द किये गये सारे शासन के अधिकार छीन लिये

+539 = 1789

10. पद से हटा लिया गया “सिंहासन से उतार दिया गया 11. ट्रिस्टन की स्थापना और क्रान्ति “बैस्टीन का पतन तथा क्रान्ति का “का श्रीगणेश शुभारम्भ

12. जैकब की स्थापना “जैको बिनस का सूत्रपात “

13. इसावेल ऐन्गुलेम की मृत्यु “इसाबेल्ड ऐन्गुलेम का फ्रांस में जन्म “

14. माँ रानी ब्लैक की मृत्यु 1253 माँ हाइट लीली की मृत्यु 1553

+539 = 1792

15. अवकाश ग्रहण कर 1254 जेकोबिन को जीवन 1254

जेकोबिन बनना अर्पण करना

+539 = 1793

16. मैडेलियन प्रान्त में वापसी “पेरिस में मैडेलिन के अन्तिम संस्कार में सम्मिलित हुये

उपरोक्त सारिणी को देखने से पता चलता है कि (1) सन्त लुइस और सम्राट लुईस 16वें के जीवन में एक समान घटनायें घटित हुई। (2) जन्म से मृत्यु तक साम्य था। इससे सिद्ध हो जाता है कि मनुष्य जीवन मात्र रासायनिक संयोग न होकर गणितीय सत्य और दर्शन है उसको ठीक तरह समझे बिना जीवन के सम्बन्ध में लिये गये कोई भी निष्कर्ष अधूरे ही रहते हैं।

अद्भुत सी दीखने वाली यह घटना भारतीय धर्म और दर्शन के लिये कोई नई बात नहीं। शास्त्रकार का कथन है-

चिरकाल प्रत्ययतः कल्पना परिपीवरः । आधिभौतिकबोधमाधते चैषबालवत् ॥

ततौ दिक्कलाकलनास्तदा धारतया स्थिताः। उद्यन्त्यनुदिता एववायों स्पन्दन क्रियाइद ॥ योगवशिष्ठ 3।4॰।42-43

अर्थात्-(मृत्यु के बाद) कुछ समय तक जीव सूक्ष्म शरीर से अदृश्य जगत में बना रहता है उस समय भी उसका कल्पना के द्वारा विकास होता रहता है अर्थात् सूक्ष्म शरीर में स्थूल शरीर की सी विचारणा निरंतर चलती रहती है। उसमें शरीर को पोषण भी मिलता है। उसके बाद वह जीव किसी बालक के शरीर में आता है। उसकी कल्पना में दिशा और समय के रहस्य संस्कार रूप में हुये रहते हैं मनुष्य किसी अज्ञात प्रेरणा से काम करता दिखाई देता है पर वह पूर्व कल्पनायें ही संस्कार ही उसे नये जीवन में मार्गदर्शन करते रहते हैं। हवा की लहरियोँ के समान जीवन के प्रवाह में अनन्त रहस्य छिपे रहते हैं।

विज्ञान और मनोविज्ञान की आगे वाली खोजें इस भारतीय दर्शन को और भी अनेक घटनाओं के आधार पर प्रमाणित कर सकती है। पुनर्जन्म जीवन का अकाट्य नियम है इस बात को मानकर हर व्यक्ति को आत्म-कल्याण की ओर प्रवृत्त होना चाहिए अन्यथा युगों बाद कठिन तपश्चर्या के बाद कठिन तपश्चर्या के बाद मिला मनुष्य जीवन निरर्थक ही गया मानना चाहिए।

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