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Magazine - Year 1971 - Version 2

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मनुष्य के चारों ओर ज्ञान का भण्डार बिखरा पड़ा है। संसार की प्रत्येक छोटी बड़ी वस्तु अथवा बात मनुष्य से अपनी जानकारी की अपेक्षा रखती है। संसार की कोई भी चीज अथवा बात ऐसी नहीं जो अपने में जानने योग्य कुछ भी न रखती हो। जब किसी वस्तु की ठीक से जानकारी की जाती है तो छोटी से छोटी वस्तु में भी बड़े-बड़े जानने योग्य रहस्य निकल पड़ते हैं जो कि मनुष्य के बड़े काम के सिद्ध होते हैं।

मनुष्य ने मिट्टी की जानकारी की, फसलें प्राप्त करलीं। पानी की जानकारी की, जीवन तत्व के साथ विद्युत का पता लगा लिया। चीजों के अन्दर छिपी आग जानकार जीवन की गतिविधि ही बदल दी। यह सब सीखने और जानने का ही परिणाम है कि आज मनुष्य अपने उपयोग की असंख्यों वस्तुओं को पहचान सका। जंगल में उत्पन्न होने वाली अगणित वनस्पतियों में से वह लाभ कर तथा हानिकर औषधियों को जानकारी के बल पर ही प्रथक-प्रथक कर सका और पहचानने की क्षमता प्राप्त कर सका। यदि मनुष्य अपनी जानकारी न बढ़ता तो वह आज इतनी अधिक चीजों का जीवन की सुख-सुविधा के लिये उपयोग न कर सकता। संसार की प्रत्येक वस्तु एवं बात मनुष्य के जानने योग्य हैं और उसे अपने संसार के विषय में अधिक से अधिक जानने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए। जिस अनुपात से मनुष्य का ज्ञान बढ़ेगा उसी अनुपात से वह सुखी एवं सम्पन्न होगा।

सामान्य एवं असामान्य, नेता तथा अनुयायी में जो अन्तर हैं वह जानकारी का ही हैं संसार में जितने भी बड़े आदमी अथवा जन-नायक हुये है न तो वे यों ही उस पद पर पहुँचे हैं और न किसी ने यों ही वह पद प्रदान किया है। वे सब अपने ज्ञान का प्रमाण देकर ही उस प्रतिष्ठा के अधिकारी बने हैं। जब सामान्य लोग खा पीकर मौज में लगे होते हैं तब असामान्य बनने वाले व्यक्ति जीवन की सुख सुविधा को त्याग कर ज्ञान प्राप्त करने में लगे होते हैं। जब आदमी चैन से सोते हैं तो ज्ञान के इच्छुक व्यक्ति चिन्तन मनन किया करते हैं। जो संसार की बातें एवं घटनायें अन्य व्यक्तियों के लिये नगण्य एवं सार शून्य होती है। ज्ञानार्थी के लिए वे बड़े-बड़े रहस्य रखती है। ज्ञान पाने का जिज्ञासु व्यक्ति हर घटना के पीछे छिपे, कारण कारक अथवा किसी मानव मनोविज्ञान का रहस्य खोजकर अपने ज्ञान की श्रीवृद्धि किया करते हैं। सामान्य जन जिन अपनी अनेक समस्याओं का कारण एवं निवारण स्वयं नहीं जानते, जानकार ज्ञानी लोग उनका हेतु एवं समाधान बतला देते हैं। अपनी इन्हीं अध्यवसाय-जन्य विशेषताओं के कारण ही ज्ञानवान व्यक्ति नेतृत्व प्रतिष्ठा पाया करते हैं। पूजा-प्रतिष्ठा अथवा आदर सम्मान किसी के पंच-भौतिक शरीर का नहीं होता वह उस ज्ञान का ही होता है जो उनके मस्तिष्क के निवास किया करता है। संसार की जो जितनी अधिक जानकारी रखेगा वह उतना ही अधिक आगे रहेगा।

अजानकारी अथवा अज्ञान मनुष्य के लिये बहुत बड़ा अभिशाप हैं। यही वह दोष है जिसके कारण लोग नित्य-प्रति ठेगे जाया करते हैं। न जानकारी के कारण लोगों को दूसरे की कही बातों पर विश्वास करना पड़ता है और वंचक लोग इसी विवश विश्वास का लाभ उठा कर लोगों को प्रताड़ित करते रहते हैं। जानकारी के अभाव में लोग जीवन की छोटी-छोटी बातों के लिये दूसरों के पास दौड़ते और अपनी जेब कटवाते रहते हैं।

अन्य लम्बे-चौड़े ज्ञान को तो छोड़ दीजिये लोग अपनी साधारण-सी दैनिक बातों का भी तो ज्ञान नहीं रखते। जो भोजन मनुष्य करता है बहुसंख्यक लोग उसके विषय में तो अनभिज्ञ रहते हैं। वे नहीं जानते कि वे क्या खा रहे है? यह उन्हें खाना भी चाहिये या नहीं। कौन-सी चीज उनके लिये स्वास्थ्य कर और कौन−सी हानिकारक है, भोजन के सम्बन्ध में विरले भाग्यवान ही इस बात की जानकारी रखते हैं।

वस्त्रों के ठीक-ठीक भाव, उनकी किस्म तथा स्तर का ज्ञान अथवा उसके मिल अथवा निर्माणशाला का ज्ञान कितने लोग रखते होंगे? अपनी इसी ना जानकारी के कारण ही लोग अच्छे दाम देकर खराब चीज और भाव से अधिक मूल्य देकर ही बाजार से आया करते हैं। इस अनजानकारी के कारण वे बजाज के लिये तो अच्छे खासे लाभदायक सिद्ध होते सो तो होते ही हैं दर्जी के लिये तो और भी। कमीज, कुरता, कोट, पतलून अथवा जम्पर, ब्लाउज में ठीक-ठीक कितना कपड़ा लगना चाहिये इस बात की जानकारी यदि लोगों को आमतौर से हो तो दर्जी कपड़ा काटने में लापरवाही करने के स्थान पर किफायत करने पर मजबूर हों और तब कम जरूरत पर भी ज्यादा कपड़ा लेने का आम रिवाज ही उठ जाये।

हमारे रहने का मकान कैसा हो अथवा जहाँ जिस प्रकार हम रह रहे हैं यदि लोगों को इसका समुचित ज्ञान रहे तो तंग, बन्द और गंदे मकानों में रहे और न स्वयं गन्दगी करे। मजबूरन किसी गलत स्थान अथवा मकान में फंस जाने पर बड़ी जल्दी उसे छोड़ने और दूसरे प्रबन्ध करने की कोशिश की जाये। यदि वास्तव में लोगों को रहने की ठीक विधि की जानकारी रहे तो लोग मकान बनवाना सीख लें। मालिक मकान ही नहीं किरायेदार तक ऐसे मकान पसन्द न करें जो वास्तव में रहने योग्य न हों और तब ऐसी हालत में खराब माल की तरह मालिकों के मकान खाली पड़े रहें या वे उन्हें ठीक से बनवाने का प्रयत्न करें। किन्तु खेद है कि निवास स्थान के महत्व को न जानने के कारण लोग चार दीवारों एक छत और एक दरवाजे भर को ही मकान मान लेते हैं और जब एक बार उसमें डट जाते है तो फिर स्वास्थ्य कर वायुमण्डल के अभाव में गोरे से काले या पीले ही क्यों न हो जायें। सामान्य जीवन की इन दैनिक आवश्यकताओं की इतनी अजानकारी वास्तव में मनुष्य के लिये बड़ी लज्जा की बात हैं।

हम लोगों में ऐसे लोग तो कदाचित नगण्य ही होंगे जो नागरिक नियमों तथा नागरिक शाँति व्यवस्था के कानूनों की जानकारी रखते हों। हम जो कर रहे है या करने की सोच रहे हैं यह नियम सम्मत है या नहीं यह पता करने के लिये हमें अनेक वर्गों पर निर्भर रहना पड़ता है। अपने नागरिक कर्तव्यों तथा अधिकारों का ज्ञान तो हम लोगों के लिये बड़े ज्ञान का विषय बना हुआ है। अनेक क्या बहुसंख्यक लोग ऐसे मिलेंगे जिनको, कोई काम कर डालने के बाद पता चलता है कि उन्होंने नागरिक नियम अथवा कानून का उल्लंघन किया है। इस नागरिक अजानकारी की पराकाष्ठा के कारण ही हम नागरिकों को पुलिस तथा नागरिकों सेवा अधिकारियों से भयभीत रहा पड़ता है।

देशान्तरों के विषय में जानना तो दूर हममें से बहुसंख्यक लोग अपने देश की योजनाओं, गतिविधियों तथा आवश्यकताओं तक की जानकारी नहीं रखते। शासन कैसे चलता है, सरकार किस प्रकार बनती है, देश के प्रजातन्त्र में हमारा क्या मूल्य महत्व अथवा स्थान है, हमारे देश के संविधान में मौलिक अधिकारों की क्या व्याख्या है-इन सब बातों की जानकारी तो बड़ी बात है हम अपने उस मत के मूल्य एवं उसके दान के विधि विधान तक से अनभिज्ञ रहते हैं जो आज के युग में देश का भाग्य विधाता होता है। आज तक हर बार, हर निर्वाचन में हम लोगों को उसके प्रशिक्षण की आवश्यकता पड़ती है। हमारा नागरिक जीवन वास्तव में अनुमानों अभ्यासों तथा एक दूसरे, तीसरे से पूछ-पूछ कर चल रहा है।

अपने शरीर के विषय में तो क्या हममें से कितने ऐसे होंगे जो अपने तथा अपने परिवार के स्वास्थ्य एवं आरोग्य रक्षा के नियम जानते होंगे। यदि ऐसा होता तो हमारे चारों ओर बढ़ते हुये हकीम डाक्टरों की आमदनी सीमित एवं नियन्त्रित होती। हर घर में हर दिन कोई न कोई बीमार न बना रहता। हम अच्छी तरह यह भी तो नहीं जानते कि आजकल हमारा स्वास्थ्य कैसा चल रहा है और उसका कारण क्या हो सकता है? हमारे शरीर में कितने प्रकार के अवयव हैं और उनका क्या काम है। हमारी हड्डियों, माँस एवं मज्जा की मजबूती किन तत्वों से होती है, हम दुबले अथवा मोटे क्यों होते जा रहें है इसका ज्ञान तो हम लोगों के लिए एक विशेषज्ञता ही है।

आज हम लोगों की अजानकारी इस सीमा तक पहुँच गई है कि जितना ज्ञान हर छोटे-बड़े नागरिक को साधारण रूप से होना चाहिए उतने ज्ञान में लोग हमारे नेता बन जाते हैं। कतिपय दवाओं के नाम दाम तथा हानि-लाभ जानने वाले हमारे डॉक्टर ओर चार छः कानून एवं कानूनी घटनाओं की ऊंच-नीच समझा सकने वाले हमारे कानूनी सलाहकार बन जाते हैं।

आज अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोग जब कोई बड़ी महत्वपूर्ण अथवा कीमती चीज खरीदने जाते हैं तो सहायता के लिए एक−आध साथी साथ ले लेते हैं। एक दूसरे के परामर्श से चीजें खरीदना ठीक है किन्तु इसमें परस्पर परामर्श की अपेक्षा अजानकारी की मात्रा अधिक होती है। अपने अज्ञान के कारण एक अकेले को विश्वास ही नहीं होता कि वह ठीक चीज ठीक दाम पर बिना ठगे खरीद सकेगा। इसलिये दो अनजान मिलकर कुछ न कुछ जानकारी की आशा से बाजार करने जाया करते हैं। और कुछ नहीं तो कम से कम खरीददार को ठगे जाने पर यह संतोष तो रहेगा ही कि केवल वह ही नहीं उसका साथी भी उसी की तरह अजानकार है और एक अकेला मैं ही बेवकूफ नहीं बना साथ में एक और भी बेवकूफ बना है।

यदि राजनीति, अर्थनीति, विदेश नीति, शासन नीति, शरीर शास्त्र, मनोविज्ञान शास्त्र, वाणिज्य विद्या का ज्ञान न भी हो, देश के सम्पूर्ण विधि विधान एवं राज नियम संहिताओं का पांडित्य न भी हो तो कम से कम दैनिक जीवन की सामान्य आवश्यकताओं तथा साधारण जानकारियों के साथ खान पान एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान तो होना ही चाहिए। पशुओं की तरह अनुमान से चलने और कतिपय जानकार द्वारा हाँके जाना आज के मनुष्य को शोभा नहीं देता। हम सब को अपनी इस सामान्य ज्ञान की कमी को दूर करें जीवन में धक्के खाने और ठगे जाने से भी अपने मान सम्मान की रक्षा करनी चाहिये।

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