Magazine - Year 1971 - Version 2
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Language: HINDI
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ब्रह्म एक समष्टि चेतना और जीव व्यष्टि
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1958 ई. की घटना है। अमेरिका के प्रसिद्ध पत्रकार एवं लेखक बर्नार्ड हटन ने स्वयं पर घटित इस घटना का उल्लेख अपनी “हीलिंग हैण्ड्स” नामक पुस्तक में किया है। ‘हटन’ महोदय न्यूराडिटिस रोग से पीड़ित थे साथ ही उनकी आँखों की देखने की क्षमता भी नष्ट प्रायः हो चुकी थी। नेत्र-रोग विशेषज्ञ डा. हडसन उनकी चिकित्सा कर रहे थे। उन्होंने ‘हटन’ की आँखों के इलाज को असाध्य बता दिया और कहा कि दूसरा ऑपरेशन करने पर आँखों की शेष क्षीण ज्योति के भी चले जाने का खतरा है।
उसी समय हटन की धर्मपत्नी श्रीमती पर्ल हटन को मालूम हुआ कि बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के सुविख्यात नेत्र चिकित्सक स्वर्गीय डा. लैंग की प्रेतात्मा ‘एलिंसबरी’ के मिस्टर चैपमैन पर आती है और वह चैपमैन के माध्यम से सैकड़ों नेत्र रोगियों की चिकित्सा सफलतापूर्वक कर चुकी है। श्रीमती पर्ल ने अपने पति से ‘एलिंसबरी’ जाने के लिए आग्रह किया तो बर्नार्ड हटन ने उसको भ्रान्ति व अन्धविश्वास कहा। परन्तु श्रीमती पर्ल ने निवेदन करते हुए कहा कि यह समझ लीजियेगा कि ‘एलिंसबरी’ का भ्रमण किया है। अस्तु श्री हटन अपनी पत्रकारिता वाली बुद्धि को लेकर ‘एलिंसबरी’ पहुँच गये।
मि. चैपमैन के यहाँ उन्हीं की प्रतीक्षा की जा रही थी। उस समय युवक चैपमैन पर डा. लैंग की आत्मा का स्पष्ट प्रभाव दिखाई दे रहा था। उसका चेहरा, हावभाव बिल्कुल बुद्ध डा. लैंग जैसा लग रहा था। उसने बर्नार्ड हटन को गाड़ी से उतरते ही अपने कक्ष में बुलाया और कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा - “आइये मि. हटन आप नेत्र रोग से पीड़ित हैं। मैं डा. लैंग हूँ आप की हर सम्भव सहायता करूंगा।
बर्नार्ड हटन यह देखकर आश्चर्यचकित थे कि युवक चैपमैन के व्यक्तित्व में आकस्मिक परिवर्तन कैसे हो गया। मि. चैपमैन यह सब कुछ आँख बन्द किये तन्द्रा जैसी अवस्था में कह रहे थे। मि. हटन की तर्क बुद्धि कभी इसे सम्मोहन सोचती, कभी टेलीपैथी, कभी ‘थाट ट्रान्सफरेन्स’ तो कभी दिव्य-दृष्टि आदि। विचारों का ऊहापोह उनके मन में चल रहा था। मि. चैपमैन के माध्यम से डा. लैंग, मि. हटन की कुर्सी के समीप पहुँचे और अपनी बन्द आँखों को हटन की आँखों के पास जमाकर देखा और बोले-”तुम्हें माइनस 18 नम्बर का चश्मा लगता है।” उस समय वास्तव में ही मि. हटन को माइनस 18 नम्बर का लैंस का चश्मा लगता था। बर्नार्ड हटन की आँखों को दो-तीन बार उँगलियों से स्पर्श करके डा. लैंग ने बताया-”युवक मि. हटन! तुम्हारी आंखों का बचपन में जो ऑपरेशन हुआ था, बिल्कुल ठीक था।” हटन महोदय स्वयं भूल चुके थे कि कभी उनका ऑपरेशन हुआ था, परन्तु तब याद आया कि 6 वर्ष की अवस्था में तत्कालीन प्रसिद्ध डॉक्टर ने उनकी आँखों का ऑपरेशन किया था। उस डॉक्टर की भी मृत्यु हो चुकी थी।
मि. हटन की आँखों को दुबारा उँगलियों से स्पर्श करके डा. लैंग ने कहा-”तुम्हारी आँखों का लिम्फ डे्रनेज सिस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा है -ग्लाकोमा हो गया है।” हटन की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, वह तो स्वर्गीय डा. लैंग की जानकारी व प्रश्नों से ही हतप्रभ हो गये थे। इसके बाद डा. लैंग ने बताया कि “जिस बीमारी के वायरस तुम्हें कष्ट दे रहे थे वे तो तुम्हारे डा. के उपचार से नष्ट हो गये हैं, परन्तु उसके स्थान पर प्रतिक्रिया स्वरूप नई भयंकर बीमारी हो गयी है। हिपेटाइटिस वायरस के आक्रमण के कारण तुम्हारे ‘लिवर’ को क्षति पहुँच रही और कष्ट बढ़ रहा है। तुम्हारी पूरी शक्ति क्षीण हुई जा रही है।”
मि. हटन महोदय को डा. लैंग की बाते, रोग की व्याख्या एक पहेली सी लग रही थी, उनकी पत्रकार बुद्धि को कुछ कहते नहीं बन पड़ रहा था। अन्त में डा. लैंग ने कहा -”मि. हटन, मैं तुम्हारी आँखों का एक ऑपरेशन करूंगा जिसमें तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा क्योंकि यह ऑपरेशन सूक्ष्म शरीर का होगा स्थूल का नहीं। तुम हमारी बातें और उपकरणों का प्रयोग अनुभव करोगे पर देख नहीं सकोगे। मेरे अन्य सहायक भी प्रेतात्माएँ हैं।”
इतना कहकर डा. लैंग ने अपना काम शुरू कर दिया। मि. हटन उनकी उँगलियों को चलते, ऑपरेशन के उपकरणों को इधर-उधर प्रयोग करते हुए अनुभव कर रहे थे। डा. लैंग बीच में बोलते जा रहे थे- ‘मैं तुम्हारे सूक्ष्म शरीर को स्थूल शरीर से थोड़ा अलग कर रहा हूँ, फ्लूइड की जाँच कर रहा हूँ क्रिस्टल, लेन्स, रेटिना ........... आदि आदि!’ कुछ मिनट बाद उन्होंने कहा -”अब आपरेशन पूरा हो गया है, तुम्हारे सिलियरी मसल्स अत्यन्त कड़े हो गये थे।” इसके पश्चात डा. लैंग ने अपने सहायकों से कहा-”यदि हिपेटाइटिस वायरस का आपरेशन न किया गया तो वह आपरेशन अधिक लाभदायक न होगा।” डा. लैंग ने एक बार पुनः आँखें बन्द कीं। उसी मुद्रा में ‘हटन’ के शरीर पर हाथ फेरा। बर्नार्ड हटन को लगातार महसूस हो रहा था कि जैसे उनके मूर्छित शरीर पर आपरेशन किया जा रहा हो।
ऑपरेशन पूरा करने के बाद डॉ. लैंग ने हाथ के सहारे से मि. हटन को उठाकर बैठा दिया। उस समय हटन को काफी कमजोरी अनुभव हो रही थी। तभी एक नर्स “मिस मार्गेट” आयीं और उसने हाथ का सहारा देकर हटर महोदय को खड़ा कर दिया। चलते समय डॉ. लैंग ने कहा -”मि. हटन, मैं आपकी बराबर सहायता करता रहूँगा और अपने सूक्ष्म शरीर से ऑपरेशन भी करता रहूँगा। आपकी नेत्र ज्योति पुनः वापस आ जायेगी और आपका जीवन सुखमय बीतेगा। ऐसा मुझे पुरी आशा है।”
मिस माग्रेट ने ‘हटन’ को कार में बैठा दिया उस समय उन्हें कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था, परन्तु थोड़ी ही देर में धीरे-धीरे उन्हें सब कुछ स्पष्ट नजर आने लगा। वह प्रसन्नतापूर्वक अपने घर आ गए। बार-बार मि. हटन का हृदय प्रेतात्मा द्वारा की गयीं अप्रत्याशित सहायता से भर जाता था। इस विलक्षण घटना ने उनका जीवन क्रम ही बदल दिया।
ऐसा नहीं समझा जाना चाहिए कि मरणोत्तर जीवन में सभी प्राणी भूत-प्रेत बनते हैं और जिनके संपर्क में आते हैं उन्हें डराने या दुःख देने भर का कुकृत्य करते रहते हैं। ऐसी आत्माएँ भी होती तो है, पर उनमें से प्रायः विकृष्ट स्तर की होतीं और विक्षोभ ग्रस्त होकर मरी होती है। इसके विपरीत ऐसी दिवंगत पुण्यात्माएँ भी होती है जो जिस प्रकार जीवन काल में सद्भाव प्रदर्शित करने में, उदार सेवा साधना में निरत रहीं वैसा ही प्रयास वे मरने के उपरान्त भी करती रहती हैं। शरीर न रहने पर भी आत्मा का स्तर एवं रुझान मरणोत्तर जीवन में भी प्रायः वैसा ही बना रहता है।