Magazine - Year 1971 - Version 2
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Language: HINDI
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ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
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ईश्वरचन्द्र विद्यासागर का निवास दूसरी मंजिल पर था। एक दिन उनके पास उनका एक नौकर एक आवश्यक पत्र लेकर पहुँचा। गर्मी का समय था। गर्मी की तपन से नौकर बेहाल हो सीढ़ी नहीं चढ़ पा रहा था। वह सीढ़ी के कोने में ही बैठकर सो गया। विद्यासागर किसी काम से नीचे उतर रहे थे। नौकर को सीढ़ी पर सोते देख वे तुरन्त समझ गए कि यह किसी आवश्यक कार्य से ही मेरे पास आ रहा होगा। उसके हाथों में लगा पत्र उनने धीरे से निकाला और पढ़ने के बाद वापस अपने कमरे में गए।
कमरे से पंखा व जल लेकर नौकर को हवा करने लगे।
इसी बीच उनके एक मित्र आ गये। नौकर के ऊपर हवा करते देख स्तम्भित होकर बोले! आपने तो गजब कर दिया। 7-8 रुपये महीना पाने वाले नौकर के ऊपर हवा कर रहे हैं।
करुणार्द्र शब्दों में तुरन्त ही विद्यासागर बोले - “तो क्या हुआ? मेरे पिता जी भी तो 7-8 रुपये महीना ही पाते थे। एक दिन सड़क पर चलते-चलते इसी प्रकार मेरे पिता जी बेहोश हो गये थे तो एक फेरी वाले ने उन्हें पानी पिलाया था तथा हवा की थी। मैं तो इस नौकर में अपने स्वर्गीय पिताजी की मूर्ति ही देख रहा हूँ।