
कर्मयोगी तिलक
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सन् 1916 की 23 जुलाई को लोकमान्य तिलक की 60वीं वर्षगाँठ थी। पूना में हीरक जयन्ती मनाने की तैयारियाँ धूमधाम से की गई। लोग अपने प्रिय नेता का जन्मदिन मनाने के लिये हजारों की संख्या में एकत्र हुये।
बड़े ही मधुर वातावरण में गीत, वाद्य, भाषण आदि चल रहे थे तभी स्टेज पर पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट चढ़ते दिखाई दिये। ब्रिटिश हुकूमत में एक पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट आज के एक आई0जी0 से बढ़कर ताकत रखता था। उसे रंगमंच पर चढ़ते देखकर लोगों के होश गुम हो गये।
किन्तु तिलक निश्चल, शान्त और प्रसन्न मुद्रा में ही बैठे रहे। पुलिस कप्तान ने उनके हाथ में कागज दिया जिसमें सरकार के खिलाफ भाषण देने पर उनसे चालीस हजार के जमानत व मुचलके माँगे गये थे। न देने पर जेल भेजने की धमकी भी थी। कोई और होता तो घबड़ा जाता पर कर्मयोगी तिलक ने कागज हाथ में लिया और जेब के हवाले कर दिया। थोड़ी ही देर में कार्यक्रम फिर यथावत चलने लगा। ऐसा लगा मानो उनके साथ कोई घटना ही न घटी हो।