
विशेषता को काम में लाओ पर घमण्ड मत करो
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सन्त याँगत्सी अपने शिष्यों सहित सुँग गये। वहाँ वे एक सराय में ठहरे।
सराय के मालिक की दो औरतें थी। एक रूपवती-दूसरी कुरूपा। अचम्भा यह था कि कुरूप का सम्मान होता था और रूपवती दुत्कारी जाती थी।
इस अनहोनी का कारण पूछा-तो सराय के नौकरों ने बताया। रूपवती को अपने रूप का ज्ञान है, सो वह बात-बात में नखरे दिखाती है। कुरूप को अपनी सूरत का ज्ञान है सो वह नम्र व्यवहार करती है। कोई रूपवती की बड़ाई को स्वीकार नहीं करता और न कुरूपा की हीनता को मंजूर करते हैं। सो सम्मान कुरूपा को मिलता है और तिरस्कार सुन्दरी को
याँगत्सी ने अपने शिष्यों को संबोधित करते हुए कहा-बच्चों, तुममें जो विशेषता हो उसे काम में लाओ, पर घमण्ड मत करो, अन्यथा गुण रहते हुए भी तुम सम्मान प्राप्त न कर सकोगे।