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Magazine - Year 1972 - Version 2

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आकाशगमन और जल गमन की सिद्धियाँ

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अगस्त 62 की अन्तरिक्ष उड़ान में वोस्तोक-3 यान की यात्रा करने वाले निकोलायेव ने अन्तरिक्ष की स्थिति का कुछ विवरण सुनाते हुए कहा था-अन्तरिक्ष में फर्श, जमीन, दीवार आदि छूकर चलने की आवश्यकता अनुभव नहीं होती। खाली पोल में आदमी सहज ही चल सकता है। यान की दीवार से उंगली छूकर एक छोटा धक्का देना काफी है। इतने भर में चलने की गति उत्पन्न हो जायगी। फिर मजे में चलते रहिए। हाथ और पैरों की सहायता से किसी भी दिशा में बढ़ा चला जा सकता है। चल ही नहीं वहाँ पानी की तरह तैर भी सकते हैं। तैराक पानी को हाथ पैरों से धक्का देकर अपनी गति बढ़ाता है। अन्तरिक्ष के शून्य में भी उसी तरह तैरा जा सकता है।

गुरुत्वाकर्षण की परिधि से बाहर जाकर स्थूल शरीर का अन्तरिक्ष की पोल में कितनी ही दूरी तक चलना, दौड़ना, तैरना सम्भव है। उसमें आरम्भ में एक छोटे झटके की और पीछे संकल्प शक्ति के आधार पर हाथ पैरों की थोड़ी हरकत करने भर की जरूरत पड़ेगी। इस स्थिति को प्राप्त कर लेना अब अधिक कष्ट साध्य नहीं रहा। सिद्धान्ततः तो वह स्वीकार ही कर लिया है और अन्तरिक्ष में तथा धरती पर भारहीनता की स्थिति में मनुष्य का आकाश गमन प्रत्यक्ष करके देख लिया गया है।

गुरुत्वाकर्षण से रहित कमरे पृथ्वी पर बनाये गये हैं। भारहीनता की स्थिति का अभ्यास कराने के लिए अन्तरिक्ष यात्रियों को उन्हीं कमरों में रखकर उस तरह की स्थिति का अनुभव कराया जाता है। अस्तु अब यह भी आवश्यक नहीं रहा कि गुरुत्वाकर्षण की परिधि में ऊपर उठने के बाद ही आकाश गमन किया जा सके। पृथ्वी के किसी कमरे में विज्ञान ने उस तरह का वातावरण उत्पन्न करके यह सिद्ध कर दिया है कि गुरुत्वाकर्षण से रहित अन्तरिक्ष की स्थिति गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के भीतर भी पैदा की जा सकती है।

योग सिद्धियों में वर्णित आकाश गमन जैसी सिद्धियों की चर्चा को दन्त कथा नहीं मान लिया जाना चाहिए। मानव शरीर में भौतिक उपकरण में प्रयुक्त होने वाले सारे आधार बीज रूप में मौजूद हैं उन शक्ति बीजों को विकसित करके शरीर के कणों को इतना हल्का बनाया जा सकता है जिन पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव न पड़े और मनुष्य का आकाश में उड़ सकना संभव हो सके। प्रयोग की बात आगे की है। पर सिद्धान्त रूप में उसे अब असंभव नहीं कहा जा सकता। मनोबल की प्रचण्ड क्षमता का, शारीरिक विद्युत का मस्तिष्कीय कम्प्यूटर का कायिक रेडिया सक्रियता का वैज्ञानिकों ने जो परिचय पाया है उससे वे आश्चर्यचकित रह गये हैं। सूक्ष्म क्षेत्र की परिधि भौतिक विज्ञान के क्षेत्र से बाहर हैं। षट्चक्र, तीन ग्रंथियाँ, पंच कोश, दस प्राण, तीन शरीर, कुण्डलिनी विद्युत भण्डार, सहस्रार, सूर्य संस्थान आदि सूक्ष्म शरीर के शक्ति भण्डागारों का जब रहस्योद्घाटन होगा तो प्रतीत होगा कि भौतिक विज्ञान की पकड़ में आने वाली मानवीय काया की अद्भुत विशेषताओं की तुलना में अप्रत्यक्ष शरीर की सामर्थ्य असंख्य गुनी अधिक है। इस सामर्थ्य के बल-बूते आकाश गमन की सिद्धि असंभव नहीं ठहराई जा सकती।

जल पर इसी शरीर से बिना किसी जल यान के चल सकना योग साधना की सिद्धियों के अंतर्गत आता है। पूर्व काल में समुद्र पार करने के परिष्कृत साधन नहीं थे। लकड़ी के जहाज समुद्र यात्रा करते तो थे पर उनकी चाल धीमी होती थी। समुद्री तूफानों का खतरा भी रहता था। बहुत दूर की यात्रा तो जहाज करते भी नहीं थे। ऐसी स्थिति में योग माध्यम से उपलब्ध सिद्धियों का उपयोग दूर गमन के लिए किया जाता था। आकाश गमन की सिद्धि से सरल सिद्धि जल गमन की थी। नदी, सरोवरों को पार करने में उससे बहुत सहायता मिलती थी। समुद्र पर भी चला जा सकता था। उन दिनों अब की अपेक्षा वर्षा अधिक होती थी और जल जंगल एक हो जाते थे।

बंगाल जैसे जल प्रधान देशों में तो जल प्लावन से मार्ग ही अवरुद्ध हो जाते थे। तब जल गमन की भारी उपयोगिता अनुभव की जाती थी। आज जल यात्रा के अनेक नये साधन निकल पड़े और पुराने परिष्कृत हो गये। यंत्रों ने उनकी क्षमता बढ़ा दी। ऐसी दशा में सस्ती जल यात्रा की तुलना में कष्ट साध्य जल गमन की सिद्धि उतनी उपयोगी नहीं रह गई। फिर भी मानव शरीर की अद्भुत क्षमताओं की एक कड़ी के रूप में उसकी गरिमा तो है ही उससे इतना पता चलता ही है कि नर-पशु स्थूल काया से जितना पुरुषार्थ करता दीखता है उसकी सीमा अन्तिम नहीं है। सूक्ष्म और कारण शरीर को विकसित किया जा सके तो संसार के समस्त प्राणियों की सम्मिलित विशेषताओं की तुलना में मानवी विशेषतायें कम नहीं अधिक ही सिद्ध होंगी। पक्षियों की तरह उड़ना, मछली की तरह तैरना उसके लिए असंभव नहीं रह जायगा।

पानी की सतह के ऊपर एक अदृश्य झिल्ली होती है। जिसे सतह की तनाव शक्ति-सरफेस टेन्शन भी कहते हैं। यह परत कई बार घनी भी होती है। उसके ऊपर कोई हलकी चीज इस तरह धीरे से तैराई जाय कि उस झिल्ली को आघात न लगे तो वह पानी पर तैरती रहेगी। हजामत बनाने का ब्लेड यदि होशियारी के साथ इस परत के ऊपर छोड़ दिया जाय तो वह तैरता रहेगा, डूबेगा नहीं।

मृत सागर-डैड सी-में क्षार आदि बहुत हैं, उसका पानी भारी है इसलिए उसमें कोई मनुष्य डूबना चाहे तो डूब नहीं सकेगा। कारण कि मनुष्य शरीर के कण उस पानी की तुलना में हल्के हैं। हल्की चीज भारी द्रव में नहीं डूब सकती।

जल कणों से जो भी चीज हल्की होगी आसानी से तैरने लगेगी। लकड़ी हल्की होती है। हवा भरे गुब्बारे, रबड़ के ट्यूब हल्के होते हैं और वे पानी पर तैरते हैं। शरीर गत कणों के भार में न्यूनता करना और उन्हें जल कण की तुलना में हलके बना लेना योग साधनाओं द्वारा संभव है। स्थूल शरीर में सूक्ष्म शरीर की सत्ता यदि प्रखर हो उठे तो उतना हलकापन देह में उत्पन्न किया जा सकता है कि वह जल पर बिना डूबे चल सके एवं आकाश में बिना गिरे उड़ सके। भौतिक विज्ञान की तरह जब आत्मिक विज्ञान की शोध होगी और उस क्षेत्र के विज्ञानी जब आत्मशक्ति उद्भव में साधना रत होंगे तो उन चमत्कारों को प्रत्यक्ष देखा जा सकेगा जो भूतकाल में प्रत्यक्ष प्रचलन के रूप में विद्यमान थे पर अब उन्हें केवल दन्त कथा माना जाता है।

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