• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • ईश्वर के अनुग्रह का सदुपयोग किया जाय।
    • जीवन के अपव्यय का पश्चाताप
    • ईश्वर भक्ति और प्रेम-साधना का तत्वज्ञान
    • Quotation
    • स्थूल को ही न देखते रहें- सूक्ष्म को भी समझें।
    • Quotation
    • पूर्वाग्रह पर अड़े ही रहना, बुद्धिमत्ता नहीं
    • कलुषित अन्तःकरण स्वयं दण्ड भोगता है।
    • Quotation
    • हवाना होकीची नामक एक बालक (Kahani)
    • बाहुबलि की दूरदर्शिता
    • Quotation
    • त्वचा का सामर्थ्य सब इन्द्रियों से बढ़कर
    • Quotation
    • स्वर्गीय पं. जवाहरलाल नेहरू (Kahani)
    • महानता की दृष्टि से मनुष्य घास से भी छोटा है।
    • अमरबेल की शोषक कथा(Kahani)
    • आत्म चेतना की साँकेतिक भाषा-स्वप्न
    • Quotation
    • हारमोन नियन्त्रित और परिष्कृत किये जा सकते हैं।
    • Quotation
    • Quotation
    • तप साधना ही शक्ति और सिद्धि का स्रोत है।
    • Quotation
    • अपने आपको पहचानिये।
    • गहन अन्त चेतना को प्रभावित करने की आवश्यकता
    • Quotation
    • शिल्पकार की कारीगरी (Kahani)
    • अन्य प्राणधारी भी विभूतियों से रहित नहीं
    • महारानी विक्टोरिया की ट्रेन का कीड़ा(Kahani)
    • सामूहिकता से सुसम्बद्ध आत्म चेतना
    • मनोबल-संकटों को पार करता है।
    • Quotation
    • यह आवश्यक नहीं (Kahani)
    • विचार शक्ति का महत्व समझिये।
    • समस्त रोगों का एकमात्र कारण-असंयम
    • इकलौते लड़के का ब्याह (Kahani)
    • माँसाहार नहीं, दुग्धाहार अपनाइये।
    • अनुदान लें तो पर उसे वापिस भी करें
    • Quotation
    • वाचस्पति मिश्र (Kahani)
    • निराशाग्रस्त-निर्जीव और निरर्थक जीवन
    • प्राणायाम द्वारा सूर्य-शक्ति का आकर्षण
    • जीवन का स्वरूप और उपयोग सिखा सकने वाली शिक्षा चाहिए।
    • चींटियों को आटा खिलाने (Kahani)
    • चरित्र, सौंदर्य से भी श्रेष्ठ
    • देवाधिदेव आत्मदेव की साधना
    • विज्ञापन (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • ईश्वर के अनुग्रह का सदुपयोग किया जाय।
    • जीवन के अपव्यय का पश्चाताप
    • ईश्वर भक्ति और प्रेम-साधना का तत्वज्ञान
    • Quotation
    • स्थूल को ही न देखते रहें- सूक्ष्म को भी समझें।
    • Quotation
    • पूर्वाग्रह पर अड़े ही रहना, बुद्धिमत्ता नहीं
    • कलुषित अन्तःकरण स्वयं दण्ड भोगता है।
    • Quotation
    • हवाना होकीची नामक एक बालक (Kahani)
    • बाहुबलि की दूरदर्शिता
    • Quotation
    • त्वचा का सामर्थ्य सब इन्द्रियों से बढ़कर
    • Quotation
    • स्वर्गीय पं. जवाहरलाल नेहरू (Kahani)
    • महानता की दृष्टि से मनुष्य घास से भी छोटा है।
    • अमरबेल की शोषक कथा(Kahani)
    • आत्म चेतना की साँकेतिक भाषा-स्वप्न
    • Quotation
    • हारमोन नियन्त्रित और परिष्कृत किये जा सकते हैं।
    • Quotation
    • Quotation
    • तप साधना ही शक्ति और सिद्धि का स्रोत है।
    • Quotation
    • अपने आपको पहचानिये।
    • गहन अन्त चेतना को प्रभावित करने की आवश्यकता
    • Quotation
    • शिल्पकार की कारीगरी (Kahani)
    • अन्य प्राणधारी भी विभूतियों से रहित नहीं
    • महारानी विक्टोरिया की ट्रेन का कीड़ा(Kahani)
    • सामूहिकता से सुसम्बद्ध आत्म चेतना
    • मनोबल-संकटों को पार करता है।
    • Quotation
    • यह आवश्यक नहीं (Kahani)
    • विचार शक्ति का महत्व समझिये।
    • समस्त रोगों का एकमात्र कारण-असंयम
    • इकलौते लड़के का ब्याह (Kahani)
    • माँसाहार नहीं, दुग्धाहार अपनाइये।
    • अनुदान लें तो पर उसे वापिस भी करें
    • Quotation
    • वाचस्पति मिश्र (Kahani)
    • निराशाग्रस्त-निर्जीव और निरर्थक जीवन
    • प्राणायाम द्वारा सूर्य-शक्ति का आकर्षण
    • जीवन का स्वरूप और उपयोग सिखा सकने वाली शिक्षा चाहिए।
    • चींटियों को आटा खिलाने (Kahani)
    • चरित्र, सौंदर्य से भी श्रेष्ठ
    • देवाधिदेव आत्मदेव की साधना
    • विज्ञापन (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1972 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


तप साधना ही शक्ति और सिद्धि का स्रोत है।

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 22 24 Last
दूध को तपाने से मलाई और घी निकलता है। धातुओं को तपाने से वे बहुमूल्य भस्म और रसायन बनती हैं। सामान्य अन्न तपाये जाने पर स्वादिष्ट आहार बनता है, मिट्टी को तपाने से पत्थर बनती है। कच्चा लोहा पकाने पर ही फौलाद बनता है। स्वर्ण की आभा अग्नि संस्कार से ही निखरती है। खारी और भारी समुद्र जल तपने के उपराँत मीठा और हलका बादल बनकर आकाशगामी होता और तृषित भूमि की तृप्ति करता है। हिमालय पर जमी बरफ तपने पर ही गंगा-यमुना का सम्मान पाती है, तपता हुआ सूर्य अपनी आत्मा और ऊष्मा से समस्त विश्व में प्राण वर्षा करता है और ग्रह परिवार को अपने साथ बाँध रहने में समर्थ है।

यदि यह सब तपने के लिये तैयार न हों, कच्चे और शिथिल ही बने रहें तो उनमें प्रखरता उत्पन्न न होगी ऐसी ही कच्ची कमजोर स्थिति में पड़े रहेंगे। दबी हुई समर्थता को उभारने के लिए तप एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। वह कष्ट साध्य तो है पर उसके द्वारा होने वाले लाभों को देखते हुए महत्ता इतनी बड़ी है कि उसे घाटे का सौदा नहीं कह सकते हैं। व्यायामशाला में किया हुआ तप पहलवान बनाता है। पाठशाला में तप करने वाला विद्वान बनता है। खेत का तपस्वी सुसम्पन्न कृषक बनता है। पत्थर को प्रतिमा, कागज को चित्र बना देने की क्षमता मूर्तिकार के, चित्रकार के तप में ही सन्निहित है।

लौकिक जीवन में पग-पग पर कठोर श्रम, पुरुषार्थ, साहस, मनोयोग की महत्ता स्पष्ट है। अध्यात्म क्षेत्र में भी यही तथ्य काम करता है। तपस्वी शक्तिशाली बनते हैं और उस तप साधित शक्ति के आधार पर वे भौतिक सिद्धियों से सम्पन्न बनते हैं। इतिहास के महामानवों, ऋषियों, तत्वदर्शियों, देवदूतों की महत्ता उसके तप के कारण ही प्रकाशवान हुई है। देवताओं के वरदान केवल तपस्वियों के लिये सुरक्षित रहते हैं। केवल याचना प्रार्थना से किसी का कुछ प्रयोजन सिद्ध नहीं हुआ है। पुराणों का प्रत्येक पृष्ठ तप साधना के द्वारा उपलब्ध विभूतियों की महत्ता प्रतिपादित करता है धर्म-शास्त्रों में तपश्चर्या का महात्म्य ही विभिन्न प्रकारों और प्रकरणों में गाया गया है।

मनुष्य के भीतर बहुत कुछ दिव्य, अलौकिक एवं अद्भुत है। उसके उत्खनन के लिए तपश्चर्या अनिवार्य है। भगवान ने विभूतियों का भण्डार मानवी कलेवर में भर दिया है, पर उससे लाभान्वित होने का अधिकार उसी को दिया है जो तप साधना द्वारा अपनी पात्रता सिद्ध कर सके। समुद्र में अनादि काल से अगणित रत्न भरे पड़े हैं पर उन्हें प्राप्त करने के लिये गहरे में गोता लगाने का साहस करना पड़ता है। जब समुद्र मंथन किया गया तो उसमें से 14 रत्न निकले, यदि वह कठोर पुरुषार्थ न किया गया होता तो उन रत्नों के प्राप्त होने की आशा कैसे की जा सकती थी। देवताओं ने गौरवशाली पद तप साधना से ही प्राप्त किये हैं। इसके बिना वे भी अन्य प्राणियों की तरह मात्र जीवधारी ही बने रह सकते थे। जो तप की कष्ट साध्य प्रक्रिया को देखकर डरा, या घबराया उसके लिए विभूतियों ने अपना द्वार बन्द ही कर दिया है। सहज ही सब कुछ प्राप्त करने का स्वप्न देखते रखने वाले व्यक्ति खाली हाथ ही रहते हैं।

हमें अभीष्ट उद्देश्य के लिए तपस्वी बनने का प्रयत्न करना चाहिए और इस मान्यता को दृढ़तापूर्वक हृदयंगम कर लेना चाहिए कि भौतिक उन्नति के लिये जिस प्रकार कठोर श्रम और प्रचण्ड साहस की, एकाग्र मनोयोग की आवश्यकता पड़ती है उसी प्रकार आत्मिक विभूतियाँ प्राप्त करने के लिये तप साधना की अनिवार्य आवश्यकता रहती है। जो इस मूल्य को चुका सकते हैं वे ही शक्तियों और सिद्धियों से सम्पन्न होते हैं।

तपश्चर्या की उपलब्धियों का वर्णन विवेचन करते हुए शास्त्रकारों ने कहा है कि ईश्वर भी तप के प्रभाव से ही इस सृष्टि की रचना में समर्थ हुआ है। मनुष्य के लिए तो अभीष्ट उपलब्धियों के लिए भी तप ही एकमात्र मार्ग है-

यः पूर्वं तपसो जातमद्भ्यः पूर्वमजायत।

गुहा प्रविश्य तिष्ठन्तं यो भूतेभिर्व्यपश्यत ॥ एतद्वैतत्। 6।

क. 2। 1। 6

उस परमेश्वर ने सर्वप्रथम तप किया। उस तप के श्रम स्वेद से जल उत्पन्न हुआ।

तस्मै स होवाच प्रजाकामौ वै प्रजापतिः स तपोऽतप्यत स तपस्तप्त्वा स मिथुनमुत्पादयते। रयिं च प्राणं चेत्येतौ में बहुधा प्रजाः करिष्यत इति॥ 5

आदित्यो ह वै प्राणो रयिरेव चन्द्रमा रयिर्वा एतत् सर्व यन्मुर्तं चामूर्तं च तस्मान्मूर्तिरेव रयि॥5

-प्रश्नोपनिषद् 1।4-5

प्रजा उत्पन्न करने की कामना वाले प्रजापति ने तप किया। तप द्वारा प्राण और रति यह दो तत्व उत्पन्न किये संसार में जो मूर्तिमान है वह प्राण है और जो अमूर्तिमान है वह रति है।

सोऽकामयत्। बहुस्याँ प्रजायेयेति। स तपोऽतप्यत। स तपस्त्वप्त्वा इद œ सर्वमसृजत यदि किं च। सत्सृष्ट्वा तदेवानुप्राविशित्।

-तैत्तरीय ब्रह्मावल्ली 6

उस परमात्मा ने प्रकट होने की इच्छा की। इसके लिये तप किया। तप की शक्ति से जगत रचा और फिर उसी में प्रविष्ट हो गया।

अवीहि भगवो ब्रह्मेति। तँ होवाच ब्रह्म विजिज्ञासस्व। तपो ब्रहयेति। स तपोऽतप्त्वा।

-तैत्तरीय भृगुवल्ली 2

भृगु ने कहा-ब्रह्म का ज्ञान कराइये। तब वरुण बोले- तप के द्वारा ब्रह्म को जानो। तप ही ब्रह्म है। यह सुनकर भृगु तप करने चले गये।

अथैष ज्ञानमयेन तपसा यीयमानोऽकामयत बहुस्याँ प्रजायेयेति। अथैतस्मात् तप्यमानात् सत्यकामात् त्रीण्यक्षराण्यजायन्त। तिस्त्रो व्याहृतयस्त्रिपदा गायत्रीं त्रयो वेदास्त्रयो देवास्त्रयो वर्णास्त्रयोऽनयश्च जायन्ते।

-शाण्डिल्योपनिषद् 3।1

ब्रह्म ने ज्ञान मय तप किया। उस तप से वृद्धि पाकर उसने इच्छा की मैं एक से अनेक जाऊँ। इसके लिये उसने फिर तपस्या की तब तीन अक्षर, तीन आवृत्ति, त्रिपदा गायत्री, तीन वेद, तीन वर्ण, तीन अग्नि प्रकट हुए।

तप्श्वचार प्रथमममराणाँ पितामहः।

आविर्भूतास्ततो वेदाः साँगोपाँगपदक्रमाः॥

-मत्स्यपुराण

देवों के पितामह ने सबसे प्रथम तो तपश्चर्या की थी। इसके अनन्तर सब वेदों का आविर्भाव हुआ था जो अपने अंग शास्त्र, उपांग तथा पद एवं क्रम से संयुक्त थे।

मानव जीवन की भौतिक और आत्मिक प्रगति के लिये तपश्चर्या अनिवार्य रूप से आवश्यक है। जो साहसी उसके लिए कटिबद्ध होते हैं वे इतना प्राप्त करते हैं कि उस तप साधना का कष्ट उन उपलब्धियों की तुलना में नगण्य ही होता है। बीज का तप वृक्ष के रूप में परिणत होता है। मनुष्य का तप उसे नर से नारायण-पुरुष से पुरुषोत्तम-आत्मा से परमात्मा बना देता है।

तपोमूलमिदं सर्वं यन्माँ पृच्छसि क्षत्रिय।

तपसा वेदविद्धाँसः परं त्वमृतमाप्नुयूः॥

-महाभारत

राजन्! तुम जिस तपस्या के विषय में मुझसे पूछ रहे हो, यह तपस्या ही सारे जगत का मूल है! वेदवेत्ता विद्वान इस तप से ही परम अमृत मोक्षों को प्राप्त होते हैं।

तपसा स्वर्गगमनं भोगो दानेन जायते।

ज्ञानेन मोक्षो विज्ञेयस्तीर्थस्नानादघक्षयः॥

-महाभारत

तप से स्वर्गलोक में जाने का सौभाग्य प्राप्त होता है, दान से भोगों की प्राप्ति होती है। ज्ञान से मोक्ष मिलता है, यह जानना चाहिये तथा तीर्थ स्नान से पापों का क्षय हो जाता है।

न विद्यया केवलया तपसा चाऽपि पात्रता।

यत्र वृत्तमिमे चोभे तद्धि पात्रम्प्रचक्षते॥

-स्कन्द

केवल विद्या से और न केवल तपश्चर्या से पात्रता हुआ करती है। जहाँ पर सच्चरित्रता है और ये दोनों (विद्या और तप) भी विद्यमान हैं वह ही वस्तुतः पात्र कहा जाया करता है।

अद्भिर्गात्राणि शुद्धयन्ति, मनः सत्येन शुद्धयति।

विद्यातपोभ्याँ भतात्मा, बुद्धिर्ज्ञानेन शुद्धयति ॥

-मनु

शरीर जल से शुद्ध होता है। मन सत्य से। आत्मा विद्या और तप से तथा बुद्धि, ज्ञान से शुद्ध होती है।

जिह्वा ज्या भवति कुल्मलं वाँ नाडीका दन्तास्पतसाभिदिग्धाः तेभिर्ब्रह्मा विध्यति देवपीयून् हृदयबलैर्धनुर्भिर्देवजूतैः।

-अथर्व 5।18। 8

देव भावनाओं से भरा ब्राह्मण का आत्म-बल ही धनुष है। उनकी वाणी प्रत्यंचा है। उसका तप बाण है। इस अचूक ब्रह्मास्त्र से सुसज्जित ब्रह्मवेत्ता असुरता को बेध कर रखा देता है।

तपसा स्वर्गभवाप्नोति।

-अत्रि

तप से ही स्वर्ग मिल सकता है।

तपस्विनः पूजनीयाः।

-याज्ञवलक्य

पूजनीय केवल तपस्वी होते हैं।

चेत्युच्यतं एतदप्युक्त नातपस्कस्यात्मज्ञानेऽधिगमः कर्मशुद्धिर्वेत्यवं ह्याह।

तपसा प्राप्यते सत्वं सत्वात् संप्राप्यते तनः।

मनसा प्राप्यते त्वामा ह्यात्मापत्त्या निवर्तते॥

-मैत्रायण्यपुपनिषद् 4।3

तपश्चर्या बिना आत्मा में ध्यान नहीं लगता। न कर्म शुद्धि होती है। तप द्वारा ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञान से मन का निग्रह होता है। मन स्थिर होने पर आत्मा की प्राप्ति होती है और इस उपलब्धि से बन्धन छूट जाते हैं।

आत्म-कल्याण के लिए तप सम्पदा सम्पन्न लोगों की ही शरण में जाना चाहिए। वे ही स्वयं पार होते और दूसरों को पार कर सकने में समर्थ होते हैं-

ऋषीन्तपस्वतो यमतपोजाँ अभिगच्छतात्।

-ऊचर्वः /8/2/15

तप से उत्पन्न-तपश्चर्या करते हुए ऋषियों की शरण में जाओ। आत्मिक प्रगति और शक्ति सम्पन्नता के लिये, तपस्वी बनने के लिये तत्पर होना आवश्यक है। श्रुति कहती है-

भद्रमिच्छत ऋषयः स्वर्विदस्तपो दीक्षामुपनिषेदरग्रे।

ततो राष्ट्रं बलमोजश्च जातं तदस्यै देवा उपसंनमन्तु॥

-अथर्व 16। 41। 1

उन शिव संकल्पी ऋषियों ने व्रतों में दीक्षित होकर तप का अनुष्ठान किया। जिससे राष्ट्र का जन्म हुआ और तपानुष्ठान से ही उन्होंने इस राष्ट्र में बल और सामर्थ्य का विकास किया। आइये, तप के द्वारा हम सब भी इस सामर्थ्य का सम्वर्धन करें।

जीव परमात्मा से एक ही प्रार्थना करता है कि उसकी प्रवृत्ति तप साधना की ओर मुड़े ताकि वह समस्त विभूतियाँ अनायास ही उपलब्ध कर सके।

यदग्ने तपसा तप, उपतप्यामहे तपः।

प्रियाः श्रुतस्य भूयास्मा, ऽऽयुष्मन्तः सुमेधसः॥

-अथर्व. 7। 61। 1

हे परमात्मन्! हम आपकी कृपा से तप करेंगे, तीव्र तप करेंगे। हम विद्वान और तपस्वी होकर जियें।

अग्ने तपस्तप्यामह, उपतप्यामहे तपः।

श्रुतानि शृण्वन्तो वयम्, आयुष्मन्तः सुमेधसः॥

-अथर्व. 7। 62। 2

First 22 24 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • ईश्वर के अनुग्रह का सदुपयोग किया जाय।
  • जीवन के अपव्यय का पश्चाताप
  • ईश्वर भक्ति और प्रेम-साधना का तत्वज्ञान
  • Quotation
  • स्थूल को ही न देखते रहें- सूक्ष्म को भी समझें।
  • Quotation
  • पूर्वाग्रह पर अड़े ही रहना, बुद्धिमत्ता नहीं
  • कलुषित अन्तःकरण स्वयं दण्ड भोगता है।
  • Quotation
  • हवाना होकीची नामक एक बालक (Kahani)
  • बाहुबलि की दूरदर्शिता
  • Quotation
  • त्वचा का सामर्थ्य सब इन्द्रियों से बढ़कर
  • Quotation
  • स्वर्गीय पं. जवाहरलाल नेहरू (Kahani)
  • महानता की दृष्टि से मनुष्य घास से भी छोटा है।
  • अमरबेल की शोषक कथा(Kahani)
  • आत्म चेतना की साँकेतिक भाषा-स्वप्न
  • Quotation
  • हारमोन नियन्त्रित और परिष्कृत किये जा सकते हैं।
  • Quotation
  • Quotation
  • तप साधना ही शक्ति और सिद्धि का स्रोत है।
  • Quotation
  • अपने आपको पहचानिये।
  • गहन अन्त चेतना को प्रभावित करने की आवश्यकता
  • Quotation
  • शिल्पकार की कारीगरी (Kahani)
  • अन्य प्राणधारी भी विभूतियों से रहित नहीं
  • महारानी विक्टोरिया की ट्रेन का कीड़ा(Kahani)
  • सामूहिकता से सुसम्बद्ध आत्म चेतना
  • मनोबल-संकटों को पार करता है।
  • Quotation
  • यह आवश्यक नहीं (Kahani)
  • विचार शक्ति का महत्व समझिये।
  • समस्त रोगों का एकमात्र कारण-असंयम
  • इकलौते लड़के का ब्याह (Kahani)
  • माँसाहार नहीं, दुग्धाहार अपनाइये।
  • अनुदान लें तो पर उसे वापिस भी करें
  • Quotation
  • वाचस्पति मिश्र (Kahani)
  • निराशाग्रस्त-निर्जीव और निरर्थक जीवन
  • प्राणायाम द्वारा सूर्य-शक्ति का आकर्षण
  • जीवन का स्वरूप और उपयोग सिखा सकने वाली शिक्षा चाहिए।
  • चींटियों को आटा खिलाने (Kahani)
  • चरित्र, सौंदर्य से भी श्रेष्ठ
  • देवाधिदेव आत्मदेव की साधना
  • विज्ञापन (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj