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Magazine - Year 1972 - Version 2

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स्थूल को ही न देखते रहें- सूक्ष्म को भी समझें।

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मोटी आँखों से जब हम अपने चारों ओर नजर उठाकर देखते हैं तो जमीन, पेड़, खेत, आसमान, सूरज, तारे जैसी मोटी वस्तुयें ही देखकर रह जाते हैं। जब बारीकी के साथ खोज-बीन करते हैं तब पता चलता है कि हम प्रचण्ड शक्ति से भरे पूरे एक ऐसे समुद्र में मछली की तरह तैर रहे हैं जिसके एक-एक कण को अद्भुत और आश्चर्यजनक कहा जा सकता है।

मिट्टी का एक ढेला, छदाम से भी कम कीमत का होता है। उसमें अणु परमाणुओं की एक अगणित संख्या रहती है, ऐसी दशा में मूल्य और महत्व की दृष्टि से उसकी कीमत नगण्य ही होगी। छोटे ढेले के प्रहार का परिणाम स्वल्प सा होता है, फिर हाथ से छूने और आँख से देखने तक में न आने वाले परमाणु की प्रतिक्रिया ही कितनी हो सकती है?

यह मोटी दृष्टि हुई। शक्ति के अनन्त भाण्डागार की प्रत्येक छोटी इकाई अपने आप में इतनी महत्ता संजोये बैठी है कि दाँतों तले उँगली दबानी पड़ती है। जब एक कण का यह हाल है तो फिर इन अगणित इकाइयों के पुञ्ज की सत्ता और महत्ता को किस प्रकार समझा और आँका जाय।

अति लघु से अति विशाल कितना बड़ा है। इसकी गणना तो दूर, कल्पना कर सकना भी मानवी बुद्धि से बाहर की बात है। परमाणु भी अब सबसे छोटी इकाई नहीं रही। उनके भी भेद उपभेद हैं। वह भी एक सौरमण्डल है और इस सबसे छोटी इकाई की सूक्ष्मता के अंतर्गत अपना एक अलग संसार भरा और बसा पड़ा है। उसकी अद्भुतता विराट् ब्रह्माण्ड की विलक्षणता से कम रहस्यमय है।

फिर विराट् कितना बड़ा है? इसकी थोड़ी कल्पना करने के लिये पहले उस दूरी का नाप लेने के फीते का स्वरूप समझना चाहिए। प्रकाश एक सैकिण्ड में एक लाख छियासी हजार मील चलता है। यह प्रकाश समस्त पृथ्वी का एक चक्कर एक सेकिण्ड के सातवें हिस्से जैसे स्वल्प समय में लगा लेता है। पृथ्वी से चन्द्रमा तक पहुँचने में डेढ़ मिनट और सूर्य तक पहुँचने में आठ मिनट लगते हैं। यह है प्रकाश की चाल, इस चाल से चलते हुए एक वर्ष में प्रकाश जितनी दूरी तक पहुँच सके वह हुआ एक प्रकाश वर्ष। खगोल भौतिक में गणना का माप यह प्रकाश वर्ष ही है।

हमारे सबसे निकट का तारा प्रोक्सिमा सेन्टोरी चार प्रकाश वर्ष मील दूर है। ऐसे तारों में एक सूर्य भी है जिसके सौर परिवार में अपनी पृथ्वी जुड़ी हुई है। अपनी आकाश गंगा जिसमें ऐसे-ऐसे हजारों तारे हैं उसका नाम मन्दाकिनी है। मन्दाकिनी आकाश गंगा का व्यास लगभग एक लाख प्रकाश वर्ष है।

अपनी आकाश गंगा ध्रुव द्वीप की 19 आकाश गंगाओं में से एक है। पर ऐसे ध्रुव द्वीप भी विराट में असंख्य बिखरे पड़े हैं। माउण्ट पैलोमर पर लगी हुई 200 इंच व्यास के लेंस वाली संसार की सबसे बड़ी ‘हाले’ दूरबीन से पता लगाया गया है कि विराट् में कम से कम एक अरब आकाश गंगाएं हैं।

एक के ऊपर एक रखते हुए परमाणुओं की एक सीधी रेखा खड़ी की जाय तो मनुष्य की ऊँचाई तक पहुँचने में 10 अरब परमाणुओं की एक विशाल शृंखला होगी मनुष्य के शरीर में कुल मिलाकर 7 के ऊपर 20 शून्य लगा दिये जायें तो उसकी संख्या जितनी होती है उतने परमाणु होते हैं। जब एक मनुष्य का शरीर इतने परमाणुओं का समूह है तो धरती के सम्पूर्ण व्यास में कितने परमाणु होंगे इसकी गणना या कल्पना करना गणित शास्त्र की परिधि से आगे निकल जाता है। फिर प्रश्न पृथ्वी का ही कहाँ रहा। बात विराट् ब्रह्माण्ड की हो रही है। धरती सौरमण्डल का एक नन्हा सा ग्रह-सूर्य एक तारा-ऐसे तारों की लाखों की संख्या वाली अपनी आकाश गंगा और फिर एक अरब आकाश गंगाओं से भरा पूरा विराट् ब्रह्माण्ड। परमाणु के-उसके खण्डकों को सबसे छोटा मानें तो उसकी तुलना में यह विराट कितना बड़ा है यह गणित की अथवा कल्पना की परिधि में कैसे समा सकेगा।

विज्ञानी नीत्सेवोर कहते थे अस्तित्व के विशाल नाटक में हम ही अभिनेता हैं और हम ही दर्शक हैं। मनुष्य अपने आप में एक रहस्य है। मानवी कलेवर शरीर और मस्तिष्क उन्हीं तत्वों से बना है जिनसे कि वह ब्रह्माण्ड। अपने आपको खोज और ब्रह्माण्ड की खोज में असाधारण साम्य है। अणु की रचनात्मक शक्ति का अभी विकास नहीं किया गया और विनाशोन्मुख मानवी चित्त वृत्ति केवल ध्वंस सोचती है और उसी का उपक्रम खड़ा करती है। अस्तु अणु की शक्ति को अभी ध्वंसात्मक बमों की परिभाषा के अंतर्गत ही देखा समझा जाता है। उसकी सृजनात्मक शक्ति का जब सृजनोन्मुख मनुष्य उपयोग करेगा तब पता चलेगा कि उसकी सृजन सम्भावना ध्वंस से कम नहीं वरन् अधिक ही है।

अणु बम तथा हाइड्रोजन बम चार प्रकार की हानियाँ पहुँचाते हैं (1) धमक (2) ताप (3) आरम्भिक न्यूक्लीय अभिक्रिया (4) रेडियो सक्रिय विकरण। औसत बम की धमक से 6 मील के घेरे की वस्तुओं का पूर्ण विनाश, 12 मील तक भयंकर क्षति अति 25 मील तक आँशिक हानि होती है। ताप का प्रभाव 10 मील की परिधि में 95 प्रतिशत प्राणियों की तत्काल मृत्यु हो जाती है। 17 मील के घेरे में लोग भयंकर रूप से बीमार अथवा ऐसे अपंग हो जायेंगे जिनका जीना मरने से भी महंगा पड़ेगा। 30 राण्टजेन इकाई का रेडियो विकरण मनुष्य को घुला घुला कर मारता है और उन्हें जल्दी ही मौत के मुँह में धकेल देता है। यह विकरण वर्षा की तरह धूलि के रूप में बरसता है और 12 मील तक 5000 (र. शक्ति) से- 100 मील तक 2300 की शक्ति से 170 मील तक 500 की शक्ति से और 250 मील तक 30 र. की शक्ति से बरसता है। यह 30 र. शक्ति भी 250 मील के घेरे को ऐसा बना देती है जिसमें रहना प्राण संकट का खता मोल लेना है।

यह विकरण धूलि घूम फिरकर समुद्र में पहुँचती है। जल जन्तु उससे प्रभावित होकर बीमार पड़ते हैं जल और मरते हैं। वह जल बादल बनेगा और जमीन पर बरसेगा। यह विकरण प्रभाव उनमें भी प्रवेश करेगा। वर्षा का जल ही तो कुएँ, तालाब, नदी आदि के माध्यम से प्राणी पीते हैं। वर्षा का जल ही तो घास-पात और वृक्ष वनस्पतियों का जीवन है। अन्न शाक और फल वर्षा के कारण ही उगते, बढ़ते और फलते हैं। इन सबमें जब विषाक्तता हो जायेगी तो मनुष्य का शरीर ही नहीं-मन भी विषैला हो जायेगा और वह साँप की तरह अपनी साँस से विषाक्त फुसकारें छोड़ता हुआ एक दूसरे के प्राण हरण का प्रयास करेगा।

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Type: SCAN
Language: HINDI
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Version 2
Type: TEXT
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