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जैसे लोहे का जंग उत्पन्न होकर उसी को खाता है, वैसे ही सदाचार का उल्लंघन करने वाले मनुष्य के अपने ही कर्म उसे दुर्गति को प्राप्त कराते हैं।
-धम्यपद
यन्त्र तो अब बना है। इससे पूर्व भी प्राचीन काल में इस तथ्य की जानकारी कुशल मनोविज्ञान वेत्ताओं को थी। बुखारा नगर में अब से कोई एक हजार वर्ष पूर्व अबूअलींइब्नसिना नामक दार्शनिक हुआ है। वह चिकित्सक भी था। उसकी विशेषता यह थी कि नाड़ी देखकर न केवल शरीर की वरन् मन की स्थिति भी प्रकट कर देता था। उसकी बातें आमतौर से सच ही निकलती थीं। एकबार उसने राजकुमार के अति रुग्ण हो जाने पर यह बता दिया था कि इसे अमुक स्थान की निवासी अमुक लड़की से प्यार है, उसके वियोग में ही उसकी यह दशा हुई है। जब वह कठिनाई दूर हो गई तो राजकुमार को अच्छा होने में देर न लगी। दूसरों को धोखा दे सकना सरल है पर अपने आपको धोखा कैसे दिया जा सकता है? अपने को तो अपनी वास्तविकता विदित होती है। अनुचित और अवाँछनीय कार्यों को छिपाना ही पड़ता है। छिपाया न जाय तो सामाजिक तिरस्कार और राज्य दण्ड का भागीदार बनना पड़ता है। वस्तु स्थिति से भिन्न तरह की बात प्रकट करने में दुहरा व्यक्तित्व बनता है। एक असली एक नकली दो आदमी एक ही शरीर मन में घुस बैठते हैं और एक म्यान में दो तलवार ठूँसने पर म्यान की जो दुर्गति होती है वही उस कुकर्मी की भी होती है।
सच्चा व्यक्ति दुष्टता की सारी गतिविधियों को जानता है यदि उसे काम करने दिया जाय तो सही बातें ही बाहर प्रकट करेगा। पर वैसा करने से तो सारा खेल बिगड़ता है। बाहर वालों को तो ऐसी जानकारी देनी है जिससे अपनी प्रामाणिकता और भलमनसाहत पर आँच न आती हो। उसके लिये एक झूँठ आदमी को अपने को अन्दर गढ़ना, बनाना पड़ता है। वह झूँठे विवरण सोचता है और उस पर रंग चढ़ाकर सचाई की तरह प्रकट करता है।
इतना होते हुए भी अचेतन मन वस्तुस्थिति से अवगत तो रहता ही है, दुराव, छल, पाखंड, प्रपञ्च की प्रतिक्रिया से स्वयं प्रभावित होता है, वह प्रतिक्रिया जब स्वसञ्चालित क्रम के अनुसार बीज से अंकुर की तरह फलित होती है तो वे शारीरिक, मानसिक विक्षोभ सामने आ खड़े होते हैं जिन्हें अनायास आगत माना जाता है। वस्तुतः अनायास, संयोगवश, भाग्य से, ईश्वर की इच्छानुसार यहाँ कुछ भी नहीं होता। जो भी होता है उसमें एक क्रम विधान ही जुड़ा रहता है।
छल और दुराव के साथ किये गये कुकृत्य अपने अन्तःकरण को कलुषित करते हैं और उसकी प्रतिक्रिया हुए बिना नहीं रहती, इस सचाई को वैज्ञानिक उपकरणों ने सिद्ध कर दिया है। आज इतना और सिद्ध करना बाकी है कि प्रत्येक कुकर्म अपने निर्धारित विधान के अनुसार कर्त्ता को दण्ड दिये बिना नहीं छोड़ता। वह सब किस क्रिया-प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न होता है।