
प्रकृति का उपहार−अनुदान मक्खी जैसे जन्तुओं को भी मिला है
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
कीट विज्ञानियों का कथन है कि संसार के समस्त जीवों में’मक्खी ‘ ही सर्वश्रेष्ठ धावक है। दौड़ने का विश्व रिकार्ड 44−5 सेकेंड में 400 मीटर का है, पर मक्खी इतनी दौड़ एक सेकेंड में ही पूरी कर सकती है। जेट विमानों को उड़ान बहुत तेज समझी जाती है पर मक्खी तो प्रति घण्टे 818 मील की गति से दौड़ती है। उसका कीर्तिमान वायुयानों द्वारा तोड़ा जा सकना कठिन है।
जब मक्खी को किसी के द्वारा अपना पीछा किये जाने का भय होना है। अथवा नाच−कूद की मुद्रा में होती है तो तेज दौड़ते हुये भी कुण्डली उड़ान भरती है और हवा में सीधी डुबकी लगाने और सीधे ऊपर उछलने के करतब दिखाती है। इतनी तेज चाल पर इतने मोड़−तोड़ बदलना किसी वायुयान के लिये भी सम्भव नहीं हो सकता।
वायुयान की गति संचालन में मक्खी की संरचना और क्रिया पद्धति का गहरा अध्ययन किया गया है और उससे बहुत कुछ सीखा गया है। अतिवेग से आती हुई मक्खी ‘हाफ रेल बनाती है। जब वह मन्दगामी होती है। हाफ लूफ तरीका अपनाती है। इसी गति नीति को देख कर वायुयान के गति विधान में महत्वपूर्ण सुधार किये गये हैं। कोई मक्खी अत्यधिक वेग से उड़ रही है तो वह अपने पंखों पर केन्द्राकर्षण का अतिशय भार न पड़ने देने की बात को ध्यान में रखते हुये’रोल’ पद्धति से नीचे उतरती है। ‘लूप’ पद्धति से नहीं। अब वायुयानों ने भी अपने उतरने की विधि में यही संशोधन किया है।
मक्खियों के दुहरे पंख होते है। एक जोड़ा उड़ने का काम करता है और नीचे वाला दूसरा जोड़ा शरीर का सन्तुलन बनाये रहता है। यह निष्क्रिय पंख वायुयानों में लग ‘ जिरास्क्रोप ‘ का काम करते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञान तन्तुओं की अधिकतम संवेदनशीलता जुड़ी रहती है। इसलिए विविध जानकारियाँ प्राप्त करने के लिए यह पंख ही मक्खी के प्रमुख आधार होते हैं।
भिनभिनाने वाली मक्खियों से कई गुनी बड़ी मक्खियाँ संसार के विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाती हैं। कनाडा की ‘पाइनपा’ हजारों एकड़ फसल खा जाती हैं।’स्क्रूवर्म’ मुर्गियों के झुण्ड के झुंड धराशायी कर देती हैं। अफ्रीकी ‘बेडगर्ड’ मक्खी चिड़ियों की बराबर बड़ी और विषैली होती हैं। और उसके काटने से मनुष्य तथा पशु बीमार पड़ जाते हैं। चिकित्सा विज्ञानियों ने मक्खियों के पंखों पर लिपटे हुये एक लाख तक रोग जीवाणु पाये हैं।
मक्खियों का प्रजनन अद्भुत है। वे एक बार में 125 से लेकर 5000 तक अंडे देती हैं। यदि सभी जीवित रहें तो एक जोड़े मक्खी की सन्तान एक वर्ष में इतनी हो जायगी कि सारी धरती पर 46 फुट ऊँची परत इन मक्खियों की ही जमा हो जाय। मक्खियों को वयस्क होने में केवल 6 दिन लगते हैं। इतने समय में ही वे पेट भरने और प्रजनन करने में समर्थ हो जाती हैं। किन्तु उनका जीवन भी कुल 20−25 दिन का ही होता है। एक वर्ष में उनकी प्रायः तीस पीड़ियों हो जाती हैं।
डी. डी. टी. सरीखे कीट नाशक रसायन इसलिए बनाये गये थे कि उनसे मक्खी जैसे जंतुओं का नाश किया जा सकेगा। मक्खी ने इन रसायनों को चुनौती देकर अपने भीतर एक ऐसा तत्व विकसित कर लिये है जिसके कारण वे विषैले रसायन उसकी अधिक हानि नहीं कर सके। इस नाशक द्रव्यों के बावजूद भी मक्खियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है और हार कर वैज्ञानिकों को यह कहना पड़ रहा है कि जनता को सफाई रखने की आदत जब तक नहीं सिखाई जायगी तब तक मक्खी जैसे जन्तुओं से छुटकारा नहीं मिल सकेगा।
छोटी मक्खी को कितनी अद्भुत क्षमतायें मिली हैं। इसे ध्यान पूर्वक देखें तो यह जाना जा सकेगा कि अकेले मनुष्य को ही नहीं अन्य प्राणियों को भी प्रकृति ने मुक्त हस्त से उपहार अनुदान दिये हैं।