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Magazine - Year 1976 - Version 2

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नवयुग आगमन की भविष्यवाणियाँ

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अध्यात्मवाद का नकली आवरण ओढ़कर कई व्यक्ति भविष्य दर्शन का दंभ करते और ऐसे ही ‘अटकल पच्चू’ तीर-तुक्का लगाते देखे जाते हैं। संयोगवश कोई तुक्का निशाने पर लगे तो बात दूसरी है अन्यथा बाजारू भविष्यवक्ताओं की अटकलें प्रायः असत्य ही सिद्ध होती हैं। नकल की दुर्गति होना स्वाभाविक है। इतने पर भी ‘असल’ अपने स्थान पर यथावत् ही रहेगा। दिव्य दृष्टि के आधार पर कोई भविष्यवाणियाँ प्रायः समयानुसार सत्य ही सिद्ध होती हैं।

निकट भविष्य में नवयुग के आगमन सम्बन्धी कई महत्वपूर्ण भविष्यवाणियाँ पिछले दिनों होती रही हैं। उनके साथ युग-निर्माण योजना द्वारा देखे गये मनुष्य में देवत्व के उदय और धरती पर स्वर्ग के अवतरण का जो स्वप्न देखा जाता रहा है उसके साकार होने की सम्भावना और भी अधिक स्पष्ट हो जाती है।

विकसित अन्तःचेतना से सूक्ष्म जगत की भूतकालीन तथा भावी गतिविधियों को देख सकना सम्भव है। अतीन्द्रिय क्षमता को विकसित करके अदृश्य दर्शन कर सकना और अविज्ञात को जान सकना सम्भव हो सकता है। त्रिकालदर्शी ऋषियों को अपनी दिव्यदृष्टि से वे जानकारियाँ रहती थीं जिन्हें सर्वसाधारण के लिए समझ सकना संभव नहीं। वे इस ज्ञान का उपयोग खतरे से जनसाधारण को बचाने और अधिक सुविधाएं उत्पन्न करने के कल्याणकारी प्रयोजनों में ही करते थे। उतना ही अंश प्रकट करते थे जो प्रकट करने योग्य है। इतना संयम बरतने के कारण ही उनकी दिव्य क्षमता सुरक्षित रहती है। अन्यथा दुरुपयोग करने पर तो वह उपलब्धियाँ देखते-देखते नष्ट हो जाती हैं।

प्रख्यात अतीन्द्रिय क्षमता सम्पन्न महिला जीन डिक्शन को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति सजवेल्ट ने भेंट के लिए आमंत्रित किया था और वह भेंट नवम्बर सन् 1944 में मध्याह्न 11 बजे सम्पन्न हुई थी। राष्ट्रपति के सामने उन दिनों अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्न दो थे। अपने शेष जीवन की अवधि मालूम करना और रूस के साथ चल रहे गठजोड़ का भविष्य जानना। उन्हें अपनी शारीरिक स्थिति तथा सरे आधार पर अपना जीवन-काल कुछ ही वर्षों में समाप्त हो जाने की आशंका थी। इस प्रकार युद्ध काल में हुआ रूस अमेरिका गठबन्धन किस ओर करवट लेता है इसके आधार पर उस देश की दूरगामी योजनाओं का निर्धारण होना था। जीनडिक्शन से वे प्रधानतया इन्हीं सम्भावनाओं के सम्बन्ध में भविष्य कथन जानने के उत्सुक थे।

भेंट में डिक्शन ने दो ऐसे उत्तर दिये जिन्हें सुनकर राष्ट्रपति तिलमिला गये। ऐसे अद्भुत भविष्य की उन्होंने कभी कल्पना तक नहीं की थी। वे अपना जीवन-काल कुछ वर्ष का होने की आशंका करते थे पर जब उन्होंने उस भविष्यवक्ता के मुँह से यह सुना कि वे छह महीने से अधिक नहीं जी सकते तो वे सन्न रह गये।

समय ने वह कथन सत्य सिद्ध कर दिया। उस बात को कहे पूरे छह महीने हो भी नहीं पाये थे कि वे 12 अप्रैल 1945 को ज्योर्जिया में स्वर्गवासी हो गये।

दूसरी भविष्यवाणी और भी अटपटी थी। डिक्शन ने कहा- ‘वर्तमान युद्ध समाप्त होते ही यह -बन्धन टूट जायगा। किन्तु कम्युनिस्ट चीन के विरुद्ध रूस और अमेरिका में फिर एकता हो जायगी।’

जीनडिक्शन जर्मनी के एक छोटे-से गाँव विसकीनसिन में जन्मी। उन दिनों यूरोप के लोग अपने नये उपनिवेश अमेरिका में बसकर लाभान्वित होने के लिए आतुर हो रहे थे। उनके पिता फ्रेंक पिनकई अपने छोटे-से परिवार को लेकर अमेरिका के कैलिफोर्निया में जाकर बस गये। लड़की जब दो वर्ष की थी तभी से वह अपनी तोतली बोली में भविष्यवाणी करने लगी थी। उसने अपनी माता के और पिता के स्वर्गवास होने की बात कही जो कुछ दिन बाद पत्र आने पर सही सिद्ध हो गई। एक दिन ऐसे ही वह अपनी माँ से बोली पिताजी ने आज चितकबरा कुत्ता खरीदा है और वे जब अगले सप्ताह घर जाएंगे तो साथ लाएंगे। सचमुच उसके पिता जब घर आये तो ठीक वैसे हुलिया का कुत्ता साथ था जैसा कि लड़की ने कई दिन पूर्व बिना किसी जानकारी के बताया था।

डिक्शन ने राष्ट्रपति केनैडी सम्बन्धी दो भविष्यवाणियां की थीं और वे अक्षरशः सही निकलीं। केनैडी की हत्या से 4 वर्ष पहले उन्होंने ‘पैरेड’ पत्रिका में इस सम्भावना की भविष्यवाणी छपा दी थी। किसी ने ध्यान नहीं दिया तो वे व्यक्तिगत रूप से यह सन्देश राष्ट्रपति तक पहुँचाने का प्रयत्न करती रहीं। टैक्सास के प्राणघातक दौरे से पूर्व उन्होंने उसे टाल देने के लिए जोरदार अनुरोध किया था। पर किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया और होनी होकर रही। जिस दिन हत्या हुई है उस दिन वे अपनी दो सहेलियों के साथ होटल में भोजन करने गई थीं। पहला ग्रास तोड़ते ही वे सन्न रह गई और थाली एक ओर खिसकाकर खाना बन्द कर दिया। पूछने पर सहेलियों से उन्होंने इतना कहा अब राष्ट्रपति की हत्या होने में कुछ मिनट ही बाकी हैं, इस दुर्घटना का पूर्वाभास मुझे फिल्म देखने की तरह हो रहा है। सचमुच वैसा ही हुआ। आधा घन्टे बाद ही रेडियो पर दुर्घटना का समाचार आ गया।

उनकी ऐसी भविष्यवाणियों में कुछ अन्तर्राष्ट्रीय महत्व की हैं जो समय से बहुत पहले ऐसी परिस्थितियों में की गई थीं जिनकी कोई सम्भावना नहीं थी, फिर भी वे यथासमय घटित होकर ही रहीं। ऐसे पूर्व कथनों में (1) महात्मा गाँधी की हत्या (2) पं0 जवाहरलाल नेहरू के उत्तराधिकारी का नाम (3) भारत का विभाजन (4) रूस का प्रथम अन्तरिक्षयान छोड़ा जाना (5) आइजन हावर का चुनाव का परिणाम (6) ख्रुश्चेव का पतन (7) प्रख्यात अभिनेत्री मारिलियन मुनरो की आत्म-हत्या (8) सीनेटर केनैडी की हवाई दुर्घटना आदि। यह सभी बातें आरम्भ में अविश्वस्त समझी गईं, पर कालचक्र ने उन्हें सही सिद्ध करके दिखा दिया।

जिन भविष्यवाणियों की परख समयानुसार होनी है, उसमें चीन का बढ़ता हुआ आतंकवाद और उसकी लपेट में झुलसने वाले देशों की दुर्गति-तीसरा महायुद्ध जैसी अनेक बातों में सबसे महत्वपूर्ण है सन् 1980 से लेकर सन् 2000 के बीच युग-परिवर्तन के लक्षणों का अधिकाधिक प्रखर होते जाना। वे कहती हैं कि निकट भविष्य में से मनुष्य जाति की जीवन प्रणाली और शासन व्यवस्था बदल जायगी। विश्व में ऐसी गतिविधियाँ उभरेंगी जो चिरस्थायी सुख-शान्ति का आधार सिद्ध हो सकें ।

इन्हीं श्रीमती जीनडिक्शन की एक महत्वपूर्ण भविष्यवाणी है-‘‘एक महान आत्मा जन्म ले चुकी है। यह दुनिया में सम्प्रदायों की संकीर्णता मिटा देगी। एक ऐसे सार्वभौम विश्व-धर्म की स्थापना करेगी, जो विश्व के हर नागरिक को मान्य होगा।”

एक दूसरे, विश्व-विख्यात भविष्यवक्ता एन्डर्सन ने रुजवेल्ट की मई, 1945 में मृत्यु तथा किसी अमरीकी सेनापति के राष्ट्रपति बनने की भविष्यवाणी की। दोनों सच निकलीं। रुजवेल्ट सहसा रुग्ण हुए और चल बसे। मित्र देशों की सेना में अमेरिकी सेनापति आइजनहावर राष्ट्रपति बने।

इसी तरह उन्होंने एक प्रसिद्ध अमेरिकी अखबार ‘वाकर काउन्टी मैसेन्जर’ के सम्पादक को मई, 1945 में बतलाया कि-‘‘अगस्त को होने वाली एक भयंकर घटना जापान के साथ चल रहे युद्ध को बिलकुल अप्रत्याशित मोड़ देगी। 18 अगस्त तक युद्ध -विराम की घोषणा हो जायगी ।” सम्पादक ने उक्त घटना नोट तो करली, पर छापी नहीं ।

एंडर्सन की भविष्यवाणी सही मिली। 8 अगस्त को हिरोशिमा पर भयंकर बम-काण्ड हुआ, एक लाख से अधिक लोग निष्प्राण अथवा मृतप्राय हो गए। जापान लड़खड़ा गया और उसने आत्म -समर्पण कर दिया। 18 अगस्त को युद्ध -विराम घोषित हो गया।

एंडर्सन ने भविष्यवाणी की थी कि -1947 में एशिया का एक महत्वपूर्ण देश (भारत) अंग्रेजों के राज्य से निकल जाएगा। 1947 में भारत स्वतन्त्र हो गया।

जिन दिनों जर्मनी और रूस अभिन्न मित्र थे तथा द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था, एंडर्सन ने दोनों में शत्रुता हो जाने का भविष्य कथन किया था। उस समय किसी ने इस पर विश्वास न किया। बाद में, सभी जानते हैं कि मित्र राष्ट्रों की सेनाओं में रूसी और अमरीकी दोनों ही शामिल थे।

एण्डर्सन का कथन है- चीनी दुरभिसंधियों के फल-स्वरूप सन् 1980 के लगभग संसार में तीसरे महायुद्ध का आतंक फैलेगा। उससे धन-जन को हानि भी बहुत होगी, पर अन्ततः रूस और अमेरिका मिल-जुलकर उसका समाधान कर लेंगे और नये सिरे से राजनैतिक स्तर पर विश्व शान्ति के प्रयास आरम्भ होंगे। उनमें सफलता भी मिलेगी। उनके भविष्य कथन में यह बात भी सम्मिलित है कि भविष्य में राजनीति का महत्व घटेगा और अध्यात्मवादी रीति-नीति की गरिमा अधिक अच्छी तरह समझी जायगी। भारत से ऐसे प्रकाश का उदय होगा, जिसके फलस्वरूप संसार भर की विचारधारा को प्रभावित करना और उसे सन्मार्गगामी बना सकना सम्भव हो सके। वे कहते हैं इस प्रयोजन को पूरा करने के लिए भारत में एक दिव्य आत्मा बहुत काम करेगी उसका प्रभाव, परिणाम इसी शताब्दी के अंत तक सब के सामने प्रत्यक्ष रूप से परिलक्षित होगा।

प्रो0 कीरो विश्व-विख्यात भविष्यवक्ता थे। उनकी भविष्यवाणियां अक्सर अविश्वसनीय तथ्यों की उद्घोषणा करती थीं और जब वे पूर्ण सिद्ध होतीं, तो लोग विस्मित रह जाते। यहूदियों सम्बन्धी भविष्यवाणी भी ऐसी ही अविश्वसनीय लगती थी। पर हुआ क्या? दुनिया भर के यहूदी पैलेस्टाइन में जमा हुए। ईसाइयों ने सचमुच सहायता की और एक राष्ट्र-सिंह इजराइल खड़ा हो गया। बाज जैसे तेज झपट्टों से उसने जोर्डन की कमर तोड़ दी, मिस्र के सिनाई प्रान्त को दबोच लिया। अरब लोगों का अन्तर्कलह और जीर्ण-शीर्ण हो रही स्थिति सर्वविदित है। प्रो0 कीरो का कथन था- ‘‘अरबों की नील नदी यहूदियों का आदाब बजाएगी।’’ पूर्वार्ध तो सही सिद्ध हुआ।

स्मरणीय है कि जब इजराइल कल्पना में भी नहीं आया था, तब प्रो0 कीरो ने यह भविष्यवाणी की थी- ‘‘ईसाई कौमें यहूदियों को एकबार पुनः पैलेस्टाइन में बसाएँगी। अरब राष्ट्र और उनके इस्लामी बिरादर इससे भड़क उठेंगे। इंग्लैण्ड अमेरिका के विरुद्ध उत्तेजनापूर्ण नारे लगाएंगे। यहूदियों से भिड़ेंगे। लेकिन यहूदियों की शक्ति बढ़ती ही जायेगी। संख्या में कम होते हुए भी दैवी सहायता के कारण यहूदी चमत्कारिक विजय प्राप्त करेंगे और अरबों को पीछे धकेल कर एक बड़ा इलाका अपने अधिकार में कर लेंगे। 1970 के बाद एक जोरदार टक्कर होगी, अरब राष्ट्र इस युद्ध में तहस-नहस हो जाएगा।’’

प्रो0 कीरो की भारत की स्वतन्त्रता सम्बन्धी भविष्यवाणी जनवरी 1945 की अखण्ड-ज्योति में छपी थी। उस समय ब्रिटिश हुकूमत का दमन चक्र तेज था। भारत की स्वतन्त्रता की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। पर प्रो0 कीरो का कहना था- ‘‘भारतवर्ष का सूर्य ग्रह बलवान है और कुम्भ राशि पर है। उसका अभ्युदय संसार की कोई भी ताकत रोक नहीं सकती।’’ आजादी की बात तो अविश्वसनीय थी ही, पर देश विभाजन तो सर्वथा असम्भव बात ही लगती थी। लेकिन प्रो0 कीरो की जनवरी 1943 की अखण्ड-ज्योति में पृष्ठ 23 पर छपी भविष्यवाणी थी कि- ‘‘इंग्लैण्ड भारत को स्वतन्त्र कर देगा, पर मजहबी फिसाद से भारत तबाह हो जाएगा। यहाँ तक कि हिन्दू, बौद्ध और मुसलमानों में बराबर-बर विभक्त हो जायेगा।’’ सभी जानते हैं भारत के अनेक लंका, वर्मा, नेपाल, तिब्बत आदि बौद्ध मतावलम्बी राज्य उससे अलग हो गए और इधर पाकिस्तान का निर्माण हुआ। साम्प्रदायिक दंगों से मानवता कराह उठी। खून की नदियां बहीं और धन-जन की भयंकर क्षति हुई।

इन्हीं प्रो0 कीरो की भविष्यवाणी थी कि ‘‘भारत वर्ष में विशुद्ध आध्यात्मिक नीतियों वाले एक अति शक्तिशाली व्यक्ति के जन्म लेने का योग है। यह व्यक्ति पूरे देश को जागृत करेगा। उसकी आध्यात्मिक शक्ति विश्व की समस्त भौतिक शक्तियों से अधिक समर्थ होगी। बृहस्पति का योग ज्ञान-क्रान्ति का संकेतक है। इस ज्ञान-क्रान्ति का प्रभाव सम्पूर्ण विश्व में पड़ेगा।’’

प्रो0 कीरो की 1925 में लिखी पुस्तक ‘वर्ल्ड प्रीडिक्शन’ की अधिकांश भविष्यवाणियां अब तक निरन्तर सत्य सिद्ध हो रही है। आगामी वर्षों के बारे में उक्त पुस्तक के कतिपय भविष्य कथन यों हैं-

“सूर्य कुम्भ राशि पर प्रवेश कर गया है। यह तीव्रातितीव्र प्रभाव दिखलाएगा, क्योंकि उसके ग्रह यूरेनस और शनि हैं। इनका सम्बन्ध “नये युग के शुभारम्भ” से है। शनि विध्वंस करता है, यूरेनस के प्रभाव से पुराने नियम, कानून, आमूल चूल बदल जाते हैं। सूर्य कुम्भ पर आता है, तब बड़े आश्चर्यजनक परिवर्तन, हलचल और क्राँतियाँ उत्पन्न होती हैं। इसलिए उसे नये युग का निर्माता ग्रह कहा जाता है। इसके प्रभाव से स्त्रियाँ संसार में नये ही रूप में आती हैं।”

8-9-10 सितम्बर 1972 को कोरिया के “स्यूल” नामक नगर में विश्व के शीर्षस्थ 104 ज्योतिषियों ने विश्व ज्योतिर्विद् सम्मेलन में विश्व के वर्तमान व भावी घटनाचक्रों पर विचार किया। इन विख्यात भविष्यवक्ताओं में ऐसे लोग सम्मिलित थे, जिनकी 80 प्रतिशत भविष्यवाणियाँ निश्चित तौर पर सत्य सिद्ध होती रही हैं। इन्होंने अपने सम्मिलित प्रतिवेदन में भविष्य के बारे में कई महत्वपूर्ण घोषणाएं कीं। सिर्फ ऐसी ही घोषणाएं की गईं, जिन पर आम सहमति थी। विश्व ज्योतिर्विद् संस्था के अध्यक्ष श्री हसीरों असानों ने, जो कि कोरिया वासी विश्वविख्यात भविष्यदृष्टा हैं, इसे प्रसारित किया। ये भविष्यवाणियाँ उन दिनों दुनिया के तमाम प्रसिद्ध अखबारों में विस्तार से छपी थीं।

इसमें कहा गया था कि “आगामी पाँच वर्षों के भीतर एशिया में भारी उथल-पुथल होगी। एक ओर “विचारक्रान्ति” का अभ्युदय होगा, दूसरी ओर भयानक आतंक फैलेगा। तीन प्रलयंकर भूकम्प न केवल पूरे एशिया को हाहाकार से भर देंगे, बल्कि उनमें से दूसरे की भीषणता देखकर पूरी दुनिया सिहर उठेगी।

“उधर विचारक्रान्ति के निरन्तर विस्तार का विश्वव्यापी परिणाम होगा। सन् 2000 से पूर्व ही बौद्धिक क्रान्ति की यह लहर न केवल दक्षिण पंथी देशों में बल्कि वामपंथी कम्युनिस्ट देशों में भी फैल जाएगी। जो आध्यात्मिक चिंतन से उपजी विचार-क्रान्ति होगी, जो मत मतान्तरों, सम्प्रदायों, भाषाओं और सभ्यताओं के भेदभाव की जड़े खोद डालेगी और सम्पूर्ण विश्व में आध्यात्मिक समभाव तथा भ्रातृभाव की प्रतिष्ठा करेगी। ईश्वरीय सत्ता की सभी को अनुभूति होगी। नीति-सदाचार में निरत लोग ही समाज के निर्देशक, नियामक और शासक होंगे। विवाह-शादियों के मामले में लोग उदार-दृष्टिकोण अपनाएंगे। भौतिक मान्यताओं वाले व्यक्ति भी आध्यात्मिक मानदंडों की श्रेष्ठता मानने लगेंगे।

“व्यापार, धन, धान्य, कृषि, गौ, विद्या, विज्ञान तथा औद्योगिकी के क्षेत्रों में एशियाई प्रभुत्व भारत वर्ष में आ सकता है। महाशक्तियों की कूट चालों द्वारा विभक्त राष्ट्र पुनः संयुक्त होंगे जैसे जर्मनी, कोरिया, वियतनाम आदि। यहाँ राष्ट्रवादी स्वतन्त्र सरकारें होंगी।”

इस घोषणा में आगे कहा गया था कि एशिया के किसी देश में जन्मा एक महान सन्त विश्वव्यापी विराट परिवर्तनों के लिए निरन्तर क्रियाशील है। सतत गतिशील उसका यह प्रयास बीसवीं शताब्दी के अन्त तक पूरी तरह सफल होगा।

स्पेन के प्रख्यात पत्र ‘साइन्स वेस्ट मिनिस्टर’ पत्र में अब से 50 वर्ष पूर्व तत्कालीन भविष्यदर्शी जी0 वेजीलेटिन की एक भविष्यवाणी छपी थी, जिसमें संसार के अनेक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सभी बातें एक-एक करके सही सिद्ध होती चली आ रही हैं ।

इसी भविष्य सूचना में एक यह है कि सन् 1930 से लेकर 2000 के मध्य एक दिव्य आत्मा संसार के पुनर्निर्माण का कार्य करेगी। उसके प्रयास चलेंगे तो मंद गति से, पर समयानुसार प्रचण्ड बनेंगे। उसमें संसार में आस्तिकता की पुनः स्थापना तथा विचार पद्धति में आदर्शवादी तत्वों के समावेश की संभावना व्यक्त की गई है।

डेनियल के अनुसार “सारे संसार का शासनसूत्र इस शताब्दी के अन्त तक एक स्थान से चलने लगेंगे। शहर थोड़े से ही होंगे। एक भाषा होगी व एक संस्कृति। संचार-साधन अति विकसित हो जाएँगे और लोग अपने मन की बात दूसरों तक बेतार के तार की तरह पहुँचा दिया करेंगे।

हंगरी की प्रसिद्ध महिला ज्योतिषी बोरिस्का सिल-विगर के अनुसार “सतयुग का प्रारम्भ नव-युवकों द्वारा होगा। वृद्ध लोग रूढ़िवादी मान्यताओं से चिपके रहेंगे तब भारतवर्ष में एक ऐसे संत का जन्म होगा जो सारी दुनिया में विचार क्रान्ति खड़ी कर देगा। उसके प्रभाव में सैकड़ों लोग आ जाएंगे । पर मूढ़ मान्यताओं वाले लोग अपने को न बदल पाएंगे। तब नई पीढ़ी उसके विचारों को आत्मसात कर आगे बढ़ेगी। नया युग आरम्भ होगा, लोग आशावादी होंगे। धर्म की स्थापना होगी।

विभिन्न व्यक्तियों की इन भविष्यवाणियों के साथ ही मिश्र की एक अति प्राचीन मीनार में अंकित भविष्यवाणी भी महत्वपूर्ण है। इसके अनुसार इस्लामिक हिजरी सन् के हिसाब से चौदहवीं सदी (जो कि इन दिनों चालू है) में कयामत होगी (यानी भीषण संघर्ष और विनाश)। साथ ही यह भी लिखा है कि ‘‘शीघ्र ही ऐसा युग आ रहा है, जिसमें सत्य ही धर्म होगा, न्याय ही कानून होगा। दुनिया भर के लोग कुटुम्बियों की तरह रहेंगे, बैर-भाव नहीं होगा। चारों ओर अमन-चैन होगा।

सन् 1918 में महर्षि अरविन्द ने एक भविष्यवाणी की थी जिसमें भारत के स्वतन्त्र होने तथा काँग्रेस के सत्तारूढ़ होने की घोषणा थी। उसी में यह भी कहा गया था कि भारत विश्व के नव-निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करेगा। इसी भूमि से उदय हुए आलोक से समस्त विश्व को नया मार्ग-दर्शन प्राप्त होगा।

पिछले दिनों हालैण्ड के दिव्यदर्शी गेरार्डक्राइसे अपनी चमत्कारी विशेषताओं के कारण उस देश की जनता और सरकार के लिए समान रूप से सम्मानास्पद बने हुए थे। उनके सहयोग से अनेकों ने अपनी कठिन गुत्थियों को सुलझाया था। अधिकारी लोग अपनी कठिन समस्याओं को हल करने में उनसे सहायता लेते थे। उच्चकोटि के राजनेता भी उनसे गम्भीर विषयों पर परामर्श करने के लिए आते थे।

एक दिन हालैण्ड के एक ‘वरिष्ठ कूट-नीतिज्ञ ने गेरार्ड क्राइसे से पूछा-‘संसार में बढ़ रही अवाँछनीय गतिविधियाँ इसी प्रकार बढ़ती रहेंगी या उनमें सुधार परिवर्तन भी होगा ?’

उत्तर में गेरार्ड ने ध्यान मग्न होकर अपने दिव्य दर्शन की एक झाँकी कराई और कहा-‘‘मैं देख रहा हूँ कि पूर्व के अति प्राचीन देश (भारत) से प्रकाश फूट रहा है। उसका सूत्र संचालन कोई दिव्य आत्मा कर रही है। अगले दिनों लोग अपनी स्थिति पर फिर से विचार करेंगे और वापिस लौटेंगे। बीसवीं सदी के अन्त तक वह परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाएंगी जिनमें धर्म और ज्ञान के प्रति मनुष्य जाति फिर से अपनी गहरी आस्था व्यक्त कर सके।

ऐसे ही अन्य भविष्यवक्ताओं में पैरा सैल्सस, फादर वैल्टर वेन, जानऐसो आदि के नाम हैं जिन्होंने युग परिवर्तन की संभावनाओं को पूरी दृढ़ता के साथ व्यक्त किया है।

प्रख्यात साहित्यकार-संत रोम्या रोला ने भी कहा है-‘‘मुझे पूर्ण विश्वास है-भारतवर्ष एक बार फिर सम्पूर्ण विश्व को ज्ञान का आलोक देगा। पाश्चात्य सभ्यता की समाप्ति के साथ ही पूर्वी सभ्यता का उदय निश्चित भी है और निर्मल आत्मा की पूर्वानुभूती पर आधारित भी है।”

बुद्धिमान मनुष्य जाति समय-समय पर विपन्न परिस्थितियों से छुटकारा पाने और उलझनों को सुलझाने में सफलता प्राप्त करती रही है। वर्तमान की अगणित विपत्तियों के मूल में झाँकती हुई मानवी चिन्तन की विकृतियों के दुष्परिणाम प्रत्यक्ष हो रहे हैं। दूरदर्शी विवेक का दबाव कुमार्ग छोड़कर सन्मार्ग पर वापिस लौटने के लिए विवश करेगा। इसके बिना सर्वभक्षी विभीषिकाओं से छुटकारा पाने का कोई अन्य उपाय भी नहीं है। सद्भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों का नव-युग आने ही वाला है । मनुष्य अपने चिन्तन और कर्तव्य का नये सिरे से निर्धारण करने ही वाला है। उज्ज्वल भविष्य का यही एकमात्र रास्ता है। भविष्यवक्ता देखते हैं कि अगले कुछ ही समय में अन्धकार का युग बीतेगा और उसके स्थान पर नव-युग का प्रकाश उदय होगा। यही है उपरोक्त भविष्यवादियों का निष्कर्ष।

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