• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • साधना पथ और अनन्त ऐश्वर्य
    • आत्मिक प्रगति के लिए साधना की आवश्यकता
    • गायत्री के पाँच मुख पाँच दिव्य कोश
    • Quotation
    • प्राणमय कोश में सन्निहित प्रचण्ड जीवनी शक्ति
    • मनोमय कोश की साधना से सर्वार्थ सिद्धि
    • विज्ञानमयकोश सूक्ष्म सिद्धियों का केन्द्र
    • आनन्दमय कोश की तीन उपलब्धियाँ समाधि स्वर्ग और मुक्ति
    • Quotation
    • कुण्डलिनी और अध्यात्मिक काम विज्ञान
    • मानवी सत्ता के दो ध्रुव प्रदेश मूलाधार सहस्रार
    • Quotation
    • साधना के अवरोध दुष्कर्मों का निराकरण प्रायश्चित
    • Quotation
    • तीर्थ यात्रा क्यों और कैसे?
    • समग्र प्रगति के लिये जिज्ञासा समाधान और साधना विधान के दो चरण
    • एकाग्रता अभ्यास के लिए त्राटक योग की साधना
    • सिद्धि का अहंकार (kahani)
    • अंतः त्राटक से आत्म-ज्योति की साधना
    • नादयोग और उसकी आर्ष परम्परा
    • नादयोग से दिव्य क्षमताओं और दिव्य-भावनाओं का विकास
    • कुण्डलिनी का प्राणयोग-सूर्यभेदन प्राणायाम
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • साधना पथ और अनन्त ऐश्वर्य
    • आत्मिक प्रगति के लिए साधना की आवश्यकता
    • गायत्री के पाँच मुख पाँच दिव्य कोश
    • Quotation
    • प्राणमय कोश में सन्निहित प्रचण्ड जीवनी शक्ति
    • मनोमय कोश की साधना से सर्वार्थ सिद्धि
    • विज्ञानमयकोश सूक्ष्म सिद्धियों का केन्द्र
    • आनन्दमय कोश की तीन उपलब्धियाँ समाधि स्वर्ग और मुक्ति
    • Quotation
    • कुण्डलिनी और अध्यात्मिक काम विज्ञान
    • मानवी सत्ता के दो ध्रुव प्रदेश मूलाधार सहस्रार
    • Quotation
    • साधना के अवरोध दुष्कर्मों का निराकरण प्रायश्चित
    • Quotation
    • तीर्थ यात्रा क्यों और कैसे?
    • समग्र प्रगति के लिये जिज्ञासा समाधान और साधना विधान के दो चरण
    • एकाग्रता अभ्यास के लिए त्राटक योग की साधना
    • सिद्धि का अहंकार (kahani)
    • अंतः त्राटक से आत्म-ज्योति की साधना
    • नादयोग और उसकी आर्ष परम्परा
    • नादयोग से दिव्य क्षमताओं और दिव्य-भावनाओं का विकास
    • कुण्डलिनी का प्राणयोग-सूर्यभेदन प्राणायाम
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1977 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


आत्मिक प्रगति के लिए साधना की आवश्यकता

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 1 3 Last
निम्न योनियों का गुजारा तो सामान्य शरीर निर्वाह भर का होता है- पर खोज, असन्तोष जैसे कोई कारण नहीं होते। इस दृष्टि से विकसित समझा जाने वाला मनुष्य अविकसित कहे जाने वाले प्राणियों से भी अधिक घाटे में रहता है। अन्य प्राणी आत्म-ग्लानि एवं आत्म-प्रताड़ना जैसी पीड़ाएँ नहीं सहते, किन्तु मनुष्य इस जन्म में भी विक्षोभों और पीड़ाओं से संत्रस्त नारकीय जीवन जीता है, और भविष्य भी अन्धकारमय बनाता है।

विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या मनुष्य को भगवान् ने ऐसी ही विडम्बना भरी स्थिति में उलझा कर भेजा है जिसमें वह एक ओर तो सृष्टि का मुकुट-मणि कहलाये और दूसरी ओर अविकसित कहे जाने वाले प्राणियों की तुलना में भी अधिक व्यथा-वेदनाएँ सहते हुए जीवन गुजारे?

खोजने पर एक ही उत्तर निखर कर सामने आता है कि ईश्वर के पास जो कुछ वह सब कुछ उसने बीज रूप से मनुष्य को सौंप दिया है और यह स्वतन्त्रता दी है कि इन साधारण और असाधारण उपलब्धियों में से जो भी- जितनी भी चाहे उतनी प्रसन्नतापूर्वक बिना किसी रोक-टोक के प्राप्त कर सकता है। शर्त एक ही है कि अपनी पात्रता सिद्ध करे और उसी अनुपात से प्रगति पथ पर अग्रसर कराने वाले अनुदान प्राप्त करता चला जाये। सामान्य गृहस्थ में भी ऐसा होता है। साधन सम्पन्न पिता के मन में अपनी सम्पदा सन्तान को देने का निश्चय रहता है किन्तु उनमें विकसित होने और उत्तरदायित्व सम्भालने की क्षमता जैसे-जैसे बढ़ती है, उसी अनुपात से साधन एवं अधिकार हस्तांतरित किये जाने लगते हैं। पागल, आवारा या ऐसी ही अन्य हीनताओं से ग्रसित सन्तान के प्रति समुचित ममता होते हुए भी ऐसा कुछ याँ सौंपा नहीं जाता जो महत्त्वपूर्ण कहा जा सके। इसमें पिता का पक्ष-पात या विद्वेष नहीं, विवेक ही काम कर रहा होता है। स्पष्ट है कि यदि पात्रता विकसित न होने पर भी निर्वाह से अधिक अनुदान दिये जायेंगे तो उनका दुरुपयोग होगा। इसमें प्राप्तकर्ता और दाता दोनों का ही अहित है। बारूद का थैला बच्चों के हाथ में सौंप दिया जाय तो बच्चे उससे फुलझड़ी छुड़ाने का लोभ संवरण कर नहीं सकेंगे और बेतरह जल मरेंगे सौंपने वाला बदनाम होगा और अबोधों को न देने लायक वस्तु देकर उनके विनाश का निमित्त बनने पर पश्चाताप भी करेगा। बारूद तथा समीपवर्ती वस्तुएँ जल जाने की आर्थिक हानि तो स्पष्ट है ही।

भगवान ने मानवी सत्ता में अजस्र अनुदानों के भाण्डागार भर दिये हैं। साथ ही ऐसी स्वसंचालित व्यवस्था भी जोड़ दी है कि जो जितनी पात्रता का प्रमाण दे वह उतनी ही मात्रा में उतने ही स्तर के अनुदान प्राप्त कर सके। सरकारी नियुक्तियों और पदोन्नतियों में भी यही सिद्धान्त काम करता है। योग्यता का प्रमाण देने- कुशलता प्रकट करने और प्रतिस्पर्धा में सफल होने की कसौटियों पर कसे जाने के पश्चात् ही नियुक्तियाँ होती है। पदोन्नति में भी अनुभव काल और क्रिया कौशल को ध्यान में रखा जाता है। वेतन की न्यूनाधिकता-पद-सम्मान आदि का निर्धारण इसी पात्रता की कसौटी पर कसने के उपरान्त ही किया जाता है। कृपापूर्वक किसी को कुछ दिया जाने लगे तो इसमें पक्ष-पात का दोषारोपण किया जाने लगेगा। खुशामद पसन्द और रिश्वतखोर लोग जिस पर अनुपयुक्त कृपा बरसा देते हैं, उसके प्रति तथा अपने प्रति जन आक्रोश ही उभारते हैं। यहाँ न्याय और औचित्य की ही प्रतिष्ठा है। यदि भगवान भी अहैतुकी कृपा बरसाने लगें तो उतने उच्च पद बने रहने के अधिकार से उन्हें भी वंचित होना पड़ेगा विश्व की स्वसंचालित औचित्य गरिमा उनके प्रभुत्व को भी चुनौती देने लगेगी। स्पष्ट है कि विश्व व्यवस्था बनाने वाले भगवान स्वयं ही अव्यवस्था फैलाने के दोषी नहीं बन सकते।

मनोयोग पर अध्ययन करने वाले छात्र ऊँची श्रेणी में उत्तीर्ण होते हैं, परिश्रमी किसान अच्छी फसल काटते हैं, कर्मठ शिल्पी यशस्वी बनते हैं। उत्साही व्यायाम परायण पहलवान कहलाते और कुश्ती पछाड़ते हैं। सूझ-बूझ और तत्परता के बल पर व्यापारिक सफलताएँ मिलती हैं, निष्ठावान् साधकों को सिद्धियाँ उपलब्ध होती है। तन्मय कलाकार दर्शकों का मन मोहते हैं। साहसी योद्धा विजय थी इस का वरण करते हैं। विभिन्न क्षेत्रों की सफलताएँ इस बात पर निर्भर रहती है कि प्रस्तुत प्रयोजनों के लिए कितनी तत्परता एवं तन्मयता बरती गई। कितने धैर्य, साहस और श्रम का नियोजन किया गया?

भौतिक क्षेत्र के सभी पक्षों में योग्यता एवं दक्षता के मूल्य पर प्रगतिशाली उपहार खरीदे जाते हैं। भिक्षुकों तक को दानी लोग इस आधार पर न्यूनाधिक देते हैं कि किस भिक्षुक को कितनी आवश्यकता है और किसे कितना देने पर उसका क्या उपयोग होगा? सब भिक्षुकों को कोई अविवेकी दानी ही समान मात्रा में सहायता देगा। आम-तौर से गिड़गिड़ाहट और आग्रह पर कम और याचक की स्थिति पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है।

अध्यात्म क्षेत्र में भी यही सिद्धान्त काम करता है। भगवान् से या देवताओं से अनुनय-विनय के आधार पर वरदान प्राप्त होने की मान्यता भ्रमपूर्ण है। वे शक्तियाँ इतनी उदात्त है कि शब्द जंजाल से अथवा छुट-फूट उपहारों से उन्हें फुसलाना किसी भी प्रकार सम्भव नहीं हो सकता। जो देव प्रकृति को इतनी घटिया मानते हैं वे परोक्ष रूप से उन्हें ऐसे अबोध बालकों की स्थिति में खड़ा कर देते हैं जिन्हें वस्तुस्थिति से- औचित्य से कोई वास्ता नहीं है। जो प्रार्थना मात्र से प्रभावित होकर मनोकामना पूर्ति का वरदान देने लगे वे पात्रता के सिद्धान्त को ही समाप्त करेंगे। देवता या भगवान् यदि मनुष्यों से अधिक बुद्धिमान और आदर्शवादी है, तो उनसे इस प्रकार के अंधेर की आशा नहीं ही करनी चाहिए।

आत्मिक क्षेत्र की ऐसी असंख्य उपलब्धियाँ है जिनके सहारे मानवी व्यक्तित्व असाधारण रूप से परिष्कृत होता है। उस उपलब्धि के सहारे उन्हें एक से एक बढ़ी-चढ़ी साँसारिक सफलताएँ मिलती है और गुण, कर्म, स्वभाव की विभूतियों से सुसम्पन्न होने के कारण उन्हें महामानवों के स्तर पर पहुँचने का सौभाग्य मिलता है कहना न होगा कि पात्रता अपने अनुरूप सत्परिणाम सुनिश्चित विश्व-व्यवस्था के कारण सहज ही उपलब्ध करती चली जाती है।

पात्रता का विकास है-वह उपलब्धि जिसके लिए ‘साधना’ के आधार पर आत्म-परिष्कार के प्रबल प्रयत्न सम्पन्न किये जाते हैं। ईश्वर की प्रसन्नता इसी उपाय से सम्भव हो सकती है। उन्हें अभीष्ट वरदान देने के लिए एकमात्र इसी शर्त पर सहमत किया जा सकता है। साधना का स्वरूप- विधि-विधान-क्रिया कृत्य समझने से पहले हमें उसके उद्देश्य को समझना चाहिए। तथ्य से विपरीत स्तर की मान्यता बना लेने से नये-नये किस्म की भ्रान्तियाँ उत्पन्न होगी और सफलता न मिलने पर तरह-तरह के संशयों और अविश्वासों के जंगलों में भटकना पड़ेगा।

साधना को बाजीगरों जैसी हाथ की सफाई वाली क्रिया करके तरह-तरह के अजूबे दिखाने, बनाने वाली कौतुक करतूत नहीं मानना चाहिए । आमतौर से लोग साधना के नाम पर प्रयुक्त होने वाले विधि-विधानों को ही सब कुछ समझते हैं और असफलता मिलने पर इन्हीं विधानों में कोई खोट रह जाने की बात सोचते हैं। यह तथ्य भुला दिया जाता है कि वाणी के उच्चारण, अंगों के संचालन एवं पूजा वस्तुओं के उपयोग भर से आध्यात्मिक क्षमताएँ विकसित होने तथा उनके सत्परिणाम सामने आने का लाभ नहीं मिल सकता है। क्रिया-कृत्यों का महत्त्व तो है, पर उनका उद्देश्य व्यक्तित्व के स्तर को उत्कृष्ट बनाने के लिए प्रेरणात्मक आधार खड़े करना है। यदि निष्कृष्ट चिन्तन और घृणित चरित्र की स्थिति में सुधार, परिवर्तन न हो तो फिर समझना चाहिए कि पूजा-पाठ के उपचार मात्र कौतुक कौतूहल ही बनकर रह गये। घिनौने व्यक्तित्व किसी दैवी शक्ति के प्रिय पात्र नहीं बन सकते । उनका कोई साधन विधान आत्म-शक्ति के अभिवर्धन में सहायक नहीं हो सकता। इसके बिना वे लाभ मिल ही नहीं सकते जो आध्यात्मिक उपलब्धियों के नाम से जाने जाते हैं। धूर्तता के आधार पर जादूगरों

First 1 3 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • साधना पथ और अनन्त ऐश्वर्य
  • आत्मिक प्रगति के लिए साधना की आवश्यकता
  • गायत्री के पाँच मुख पाँच दिव्य कोश
  • Quotation
  • प्राणमय कोश में सन्निहित प्रचण्ड जीवनी शक्ति
  • मनोमय कोश की साधना से सर्वार्थ सिद्धि
  • विज्ञानमयकोश सूक्ष्म सिद्धियों का केन्द्र
  • आनन्दमय कोश की तीन उपलब्धियाँ समाधि स्वर्ग और मुक्ति
  • Quotation
  • कुण्डलिनी और अध्यात्मिक काम विज्ञान
  • मानवी सत्ता के दो ध्रुव प्रदेश मूलाधार सहस्रार
  • Quotation
  • साधना के अवरोध दुष्कर्मों का निराकरण प्रायश्चित
  • Quotation
  • तीर्थ यात्रा क्यों और कैसे?
  • समग्र प्रगति के लिये जिज्ञासा समाधान और साधना विधान के दो चरण
  • एकाग्रता अभ्यास के लिए त्राटक योग की साधना
  • सिद्धि का अहंकार (kahani)
  • अंतः त्राटक से आत्म-ज्योति की साधना
  • नादयोग और उसकी आर्ष परम्परा
  • नादयोग से दिव्य क्षमताओं और दिव्य-भावनाओं का विकास
  • कुण्डलिनी का प्राणयोग-सूर्यभेदन प्राणायाम
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj