
जीव-जगत का संकट आगे मनुष्य जाति पर आयेगा
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पिछले दिनों प्रगति की होड़ में दूरगामी परिणामों पर ध्यान नहीं दिया गया। अधिक उपार्जन एवं संग्रह की लालसा ने कम समय एवं कम श्रम की कीमत पर अधिक उत्पादन करने की प्रेरणा से बड़े उद्योगों को बढ़ावा दिया। तुरन्त का लाभ अधिक उत्पादन के रुप में मिला तो, पर दूरगामी परिणाम प्रदूषण की विभीषिका के रुप में आया। इसका प्रभाव मनुष्यों एवं वातावरण पर भयंकर रुप से पड़ा है। वायु एवं जल में विषाक्त तत्वों के मिल जाने से विभिन्न प्रकार के नये रोग उठ खड़े हुए हैं। अदूरदर्शी प्रगति के इस प्रयास का सबसे घातक प्रभाव मनुष्योत्तर जीवों पर पड़ा है। प्रदूषण के खतरों से बचने के लिए मनुष्यों के पास बुद्धि है और विभिन्न प्रकार के साधन, उपचार भी। पर जीव-जन्तू, पक्षी तो असहाय एंव असमर्थ हैं। उनके पास न तो इस संकट से बचने की न तो इतनी बुद्धि है और न ही उपचार पद्धति। इसका परिणाम यह है कि वे प्रदूषण की विषाक्ता से दम तोड़ते जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि औद्योगिकीकरण इसी प्रकार बढ़ता गया और उससे निकले प्रदूषण की रोकथाम की व्यवस्था नहीं बनी तो वायुमंडल में उड़ने वाले पक्षी ही नहीं, नदी, सागरों के निकट रहने वाले जीव-जन्तुओं का वंश भी सदा के लिए लुप्त हो जायगा।
युद्ध के समय प्रयुक्त हो रहे आग्नेय आयुधों, अणुआयुधों की चपेट में भी अधिकतर यह असहाय जीव ही आते है। कोरिया, वियतनाम, इजराइल, अरबों, बंगलादेश के युद्धों से पशु-पक्षियों की कई जातियाँ समूल रुप से नष्ट हो गईं। उदाहरणार्थ वियतनाम युद्ध में कुप्रे जाति की गाय सदा के लिए समाप्त हो गई। सारे जंगलों में फौज के फैल जाने के कारण यह शर्मीला जानवर भाग न सका और युद्ध के घेरे में आकर दम तोड़ दिया।
अमेरिका, जापान, वियतनाम, रुय ने बढ़ते हुए औद्योगीकरण से अन्तरिक्ष में उड़ने वाले पक्षियों का दर्शन दुर्लभ हो गया है। अमेरिका में पाये जाने वाले ‘बाज’ पक्षी की विशिष्ट स्में अब कहीं नहीं दिखाई देती। जो थीं वे प्रदूषण की विषाक्ता से बचने के लिए अन्यत्र चली गईं। कल-कारखानों से निकलने वाले रसायन एवं कचरे नदी, नालों के माध्यम से सागरों तक पहुँचते है। समुद्र के किनारे एवं अन्दर रहने वाले जीव उस विषाक्ता की चपेट में आ जाते हैं। समुद्र में रहने वाली मछलियों की कितनी ही जातियाँ तो लुप्त हो गईं और कितनी ही समाप्त होती जा रही हैं। लुप्त होते हुए जीव-जन्तुओं के सर्वेक्षण में निकले प्रसिद्ध जीवशास्त्री ‘फ्रला मोरफन्ड, ने भारत में आने पर बताया कि विश्व भर में ढ़ाई सौ दुधारु जानवरों की नस्लें, तीन सौ पक्षियों तथा अन्य कुछ दुर्लभ जीव अन्तिम मरण के सन्निकट हैं। भारत का उल्लेख करते हुए उन्होने बताया कि “यहाँ भी हाथी, जहरीले साँप, कछुए, सिंह, गेन्डे, मणिपुरी मृग, फ्रेगेड, मोर, शेर जैसे जीव तेजी से लुप्त होते जा रहे हैं।
पशु-पक्षी, जीव-जन्तुओं के लुप्त होते अस्तित्व के संकट को देखते हुए पर्यावरण विशषज्ञों ने ये आगाह किया है तथा प्रकृति सन्तुलन के लिए घातक बताया है। कई राष्ट्रों में इस संकट से बचने के लिए कुछ प्रयास भी चल पड़े हैं। कुछ विचारशीलों ने मिलकर विश्व जंगली जीव सुरक्षा फंड नामक संस्था का निर्माण किया है। इसके डारेक्टर हैं ‘फ्रला मोरमन्ड’। यह संस्था जीव-जन्तुओं पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करती तथा उन कारणों का पता भी लगाती है जिससे वे तेजी से मरते हैं। प्रस्तुत संकट से बचने के लिए संस्था उस राष्ट्र को उपयोगी सुझाव देती है।
यह प्रारम्भिक चेतावनी है कि यदि मनुष्य अपना जीवन क्रम नहीं बदलता तो जीव-जन्तु ही नहीं मनुष्य भी एक दिन नष्ट होकर रहेगा।