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Magazine - Year 1980 - Version 2

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युवक रहता था (kahani)

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एक नगर में एक युवक रहता था। वह सब्जियाँ बेचकर जीवन यापन करता था। कुछ ही सालों में किराने की दुकान खोल ली और धीरे-धीरे उसकी सात दुकानें हो गईं। अब वह धनपतियों में गिना जाने लगा।

कुछ ही दिन बाद वह हज की यात्रा जा कर आया जिससे उसे लोग “हाजी साहब” कहने लगे।

वह जिधर भी निकलता लोग उसे “आदाब” ! हाजी साहब ! झुककर कहते।

लेकिन वह आदाब के जबाव में सिर्फ “कह दूँगा” कहकर आगे बढ़ जाता था।

लोगों को “कह दूँगा” का अर्थ समझ में नहीं आ रहा था। आखिर इतने बड़े आदमी से पूछने की हिम्मत भी तो किसी में नहीं थी।

एक दिन हाजी साहब टहलने जा रहे थे इतने में एक युवक ने साहस करके हाजी साहब को रोककर व्यंग भरे लहजे में पूँछ ही लिया- “हाजी साहब आपको जब लोग आदाब करते हैं तब आप “कह दूँगा” कहकर टाल देते हैं आखिर क्यों ? उस युवक की बात सुनकर वह मुस्करा उठे और उसे अपने साथ अपनी विशाल इमारत के तहखाने में ले गए । जहाँ हीरे, जवाहरात, सोना, चाँदी थे।

युवक ने पूछा- हाजी साहब आप मेरे सवाल को जबाव देने के बजाय धन का अम्बार क्यों दिखा रहें हैं। “ भाई यही तो आपके सवाल का जबाव है। मैं जब सब्जी बेचता था तब तो आदाब नहीं करते थे जब से मेरे पास यह धन का अम्बार लग गया तभी से तो आदाब करते हैं। आप यह आदाब मुझे नहीं मेरे धन को करते हैं इसलिए मैं इस धन को आप लोगों का आदाब कह देता हूँ यही मेरे “कह दूँगा” का अर्थ है।”

मान सम्मान धन का नहीं बल्कि व्यक्ति के सदगुणों का होना चाहिए, यही सोचता युवक चला गया।

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