
जन्मजात प्रतिभा पूर्व जन्म के संस्कार
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प्रबल पुरुषार्थ द्वारा जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त की जा सकती है तथा अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को असाधारण रूप से बढ़ाया, विकसित किया जा सकता है। बहुत बार लगता है कि किये जा रहे प्रयत्न निरर्थक जा रहे हैं, उनसे कोई लाभ नहीं मिल रहा है। सम्भव है किन्हीं कारणों से अपने प्रयत्नों का समुचित लाभ न मिल पाता हो, परन्तु उस प्रयत्न के बदले अंतर्निहित प्रतिभा तथा योग्यता में जो निखार आता है, वह जन्म-जन्मान्तरों तक संचित पूँजी के रूप में विद्यमान रहता है, उसे न कोई छीन सकता है न ही उसमें हिस्सा बंटा सकता है। प्रमाण हैं वे असंख्य महापुरुष जिन्होंने छोटी उम्र में ही ऐसे-ऐसे काम कर दिखाए जो बड़ी उम्र के व्यक्तियों के लिए असम्भव नहीं तो दुःसाध्य तो कहे ही जा सकते हैं।
प्रश्न उठता है कि छोटी उम्र में ऐसी महान सफलताएं अर्जित कर पाना किस प्रकार सम्भव हुआ, तो उत्तर में न तो सौभाग्य या वरदान कहा जा सकता है न ईश्वर प्रदत्त विशेष सुविधा। ईश्वर सबको समान अवसर देता है, किसी को अधिक सुविधाएं दे और किसी को कम तो उस पर पक्षपात करने का दोष आता है। ईश्वर न अन्यायी है न पक्षपाती। प्रमाद मनुष्य स्वयं ही करता है और अपनी अंतर्निहित क्षमताओं को जगाने के संबंध में उपेक्षा बरतता है।
प्रयत्न और पुरुषार्थ द्वारा मांजी तथा खरादी गई विशेषताएं मनुष्य के लिए बैंक में फिक्स डिपॉजिट की तरह संचित और अभिवर्धित होती रहती हैं। कभी उनके पकने से पूर्व ही मृत्यु हो जाए तो भी वे चक्रवृद्धि ब्याज सहित अगले जन्म में मिल जाती हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे किसी नगर में रहते हुए वहाँ के बैंक में जमा कराया पैसा दूसरे शहर में चले जाने पर भी मिल जाता है।
राजनीति, विद्वत्ता, कला, साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे अगणित महापुरुष हुए हैं जिन्होंने छोटी उम्र में ही अपनी प्रतिभा का परिचय दिया और इतिहास में अपना स्थान बनाया। उदाहरण के लिए सम्राट अशोक ने 22 वर्ष की आयु में ही राज सिंहासन सम्हाला था। यह आयु राजकाज चलाने की तो क्या, व्यापार व्यवसाय करने तक की नहीं होती। किन्तु अशोक ने न केवल राज्य-व्यवस्था का सुचारु संचालन किया बल्कि मौर्यवंश की डगमगाती धरोहर को फिर से संवारने का सफल प्रयत्न किया। उसने इतिहास प्रसिद्ध कलिंग की लड़ाई 37 वर्ष की आयु में लड़ी और विजय प्राप्त की। यह बात अलग है कि उसके बाद अशोक ने युद्ध न करने की कसम खा ली थी।
सिकन्दर महान 20 वर्ष की आयु में ही मकदूनिया के सिंहासन पर आसीन हुआ और सिंहासन पर बैठते ही उसने विश्व विजय का स्वप्न देखा और इस अभियान पर निकल पड़ा। एशिया के पश्चिमी देशों मिश्र, ईरान, हिंदुकुंश, अन्दक, नाइसा आदि राज्यों पर विजय प्राप्त करता हुआ वह दस वर्ष की अवधि में ही ओहिंद के समीप सिंधु नदी पार करके तक्षशिला की सीमा पर आ खड़ा हुआ था।
सम्राट अकबर का जब राज्याभिषेक हुआ तब उसकी आयु मात्र 13 वर्ष 4 महीने की थी। उसे नाम मात्र का सम्राट बनाकर बैरम खां ने जब अपनी शक्ति बढ़ाना आरंभ किया और वह अकबर के स्थान पर अब्दुल कासिम को सिंहासन पर बिठाने का षड़यंत्र रचने लगा तो सन् 1560 में, अकबर ने उसे पदच्युत कर मात्र 18 वर्ष की आयु में शासन सत्ता की बागडोर पूरी तरह अपने हाथ में ले ली।
छत्रपति शिवाजी ने 19 वर्ष की आयु में ही तोरण के पहाड़ी दुर्ग पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में ले लिया था और दो वर्ष बाद पुरन्दर के किले को भी जीत लिया। इसी प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने भी 19 वर्ष की आयु में ही लाहौर पर विजय प्राप्त की थी।
फ्रांस का लुई चौदहवाँ यद्यपि 4 वर्ष की आयु में ही राजगद्दी पर बैठा था, किन्तु राज्य शासन का वास्तविक कर्ता-धर्ता उसका मंत्री मेजिरा ही था। फिर भी 22 वर्ष की आयु में उसने शासनतन्त्र पूरी तरह अपने हाथ में ले लिया। उल्लेखनीय है कि यूरोप के इतिहास में लुई चौदहवें जितनी लम्बी अवधि तक किसी भी राजा ने राज्य नहीं किया।
रूस का पीटर महान 17 वर्ष की आयु में राजगद्दी पर बैठा। उसने अपने देश का पिछड़ापन दूर करने के लिए जितने प्रयास किये, सम्भवतः रूस के किसी भी शासक ने उतने कार्यक्रम नहीं चलाए। आज भी रूस के इतिहास में पीटर को पीटर महान कहकर उल्लेखित किया जाता है।
नैपोलियन बोनापार्ट 24 वर्ष की आयु में ही फ्राँसीसी सेना में जनरल बन गया था और तीन वर्ष बाद ही उसने इटली की सेना की बागडोर भी सम्हाल ली। यद्यपि इस बीच वह विरोधियों द्वारा सताया और दबाया भी गया। यहाँ तक कि उसे जेल में भी डाल दिया गया किन्तु तीन वर्ष जैसी छोटी-सी अवधि में पतन के बाद एकदम इतनी शीघ्रता से उठ खड़े होने के उदाहरण इतिहास में अन्यत्र कही नहीं मिला।
राजनीति के क्षेत्र में तो फिर भी कहा जा सकता है कि इसमें सफलता बहुत कुछ परिस्थितियों पर निर्भर करती है तथा जिसे जब अवसर मिलता है, वह शिखर पर पहुँच जाता है परन्तु विद्वत्ता के क्षेत्र में तो ऐसा नहीं है। इसके लिए तो दीर्घावधि तक विद्याभ्यास करना होता है और फिर केवल विद्वत्ता तक की ही बात सीमित हो तो भी नजर अन्दाज किया जा सकता है। विद्वत्ता के साथ पूरे सामाजिक क्षेत्र में एक हवा पैदा कर देने की सामर्थ्य क्षमता और सफलता को क्या कहेंगे? आद्य शंकराचार्य ने 15 वर्ष की आयु में ही समस्त धर्मशास्त्रों, वेद-वेदांगों का अध्ययन कर डाला था और 16 वें वर्ष में संन्यास लेकर देश भ्रमण के लिए निकल पड़े थे। 32 वर्ष की आयु में पहुँचने तक तो उन्होंने विशाल साहित्य का निर्माण कर डाला था, चार धामों में चार आश्रमों की स्थापना कर ली थी और देश भर के विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया था।
संत ज्ञानेश्वर ने 21 वर्ष की आयु में ही समाधि ले ली थी। इसके पूर्व वे महाराष्ट्र में ज्ञान और भक्ति की ऐसी गंगा प्रवाहित कर चुके थे, जिसकी धारा आज भी बह रही है। पन्द्रह वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने गीता पर अपनी सुप्रसिद्ध टीका ‘ज्ञानेश्वरी’ लिख डाली थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘अमृतानुभव’ तथा ‘योगवाशिष्ठ’ जैसे ग्रन्थों का भी प्रणयन किया।
स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म का परिचय जिस प्रभावशाली ढंग से देकर 7000 श्रोताओं सहित वहाँ उपस्थित अन्य वक्ताओं को भी चमत्कृत कर दिया था, उस समय उनकी आयु मात्र 30 वर्ष की थी। सम्मेलन में जितने भी प्रतिनिधि उपस्थित थे, उनके बेटे, पोतों की आयु विवेकानन्द के बराबर थी। इसके पूर्व उन्होंने 23 वर्ष की आयु से लेकर सन् 1893 में धर्म सम्मेलन में भाग लेने तक लगभग पूरे भारत का भ्रमण कर लिया था। परिव्राजक के रूप में वे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, मैसूर, मद्रास, केरल, हैदराबाद आदि प्रांतों की यात्रा कर वहाँ के विद्वानों को अपनी प्रतिभा से प्रभावित कर चुके थे।
कहा जा सकता है कि ये महापुरुष तो कोई अवतारी आत्मा या सिद्ध संत रहे हैं। इनके लिए ऐसे चमत्कार प्रस्तुत कर पाना कोई कठिन काम नहीं है। किन्तु ऐसे कलाकार, साहित्यकार और वैज्ञानिक भी हुए हैं जिनके संबंध में यह बात किसी भी तरह लागू नहीं होती। अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि कीट्स 26 वर्ष की अवस्था में ही स्वर्गवासी हो गए थे किन्तु तब तक वे अपनी रची कविताओं के कारण अमर हो चुके थे। विक्टर ह्यूगो 14 साल की आयु तक 3000 से भी अधिक कविताएं लिख चुके थे। महाकवि गेटे ने 10 वर्ष की आयु में पहला नाटक लिखा था और 15 वर्ष की अवस्था में उनकी प्रसिद्ध रचना ‘थाड्स इन द डिस्टेट आव जीसस क्राइस्ट इन टू हेल’ प्रकाशित हुई थी।
प्रसिद्ध बंगला कवियित्री तोरुदत्त अपनी अंग्रेजी कविताओं के लिए 18 वर्ष की आयु में ही विदेशों तक विख्यात हो गई थी। भारत कोकिला श्रीमती सरोजिनी नायडू ने 13 वर्ष की अवस्था में तेरह सौ पंक्तियों की एक अंग्रेजी कविता लिखी थी। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 14 वर्ष की आयु में ही शेक्सपीयर के अंग्रेजी नाटक मैकबैथ का बंगला अनुवाद किया था। वे अपनी कविताओं के लिए 20 वर्ष की आयु में ही प्रसिद्ध हो चुके थे। भारतेन्दु हरिश्चंद्र 23 वर्ष के होने तक हिन्दी साहित्य को कई प्रसिद्ध रचनाएं भेंट कर चुके थे। मुंशी प्रेमचंद्र ने 30 वर्ष की आयु में ही कहानीकार के रूप में अपना स्थान बना लिया था।
कला के क्षेत्र में भी ऐसी कितनी ही प्रतिभाएं हुई हैं जिन्होंने अल्पायु में ही अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। माइकेल एंजिलो ने 17 वर्ष की उम्र में ‘सेण्टर का युद्ध’ नामक प्रतिमा बनाई। 26 वर्ष के होने तक तो वे मूर्तिकार के रूप में विख्यात हो चुके थे।
लुडविग फान विथोफेन का प्रथम संगीत ग्रन्थ जब प्रकाशित हुआ तब उनकी आयु मात्र 13 वर्ष थी। जब वे 23 वर्ष के हुए तब तो संगीत क्षेत्र में मूर्धन्य स्थिति प्राप्त कर चुके थे। संगीतज्ञ मोत्सार्ट ने 8 वर्ष की आयु में अपना पहला संगीत प्रोग्राम दिया और दो वर्ष के भीतर ही उन्होंने यूरोपीय देशों के कई नगरों में अपने कार्यक्रमों की धूम मचा दी।
छोटी उम्र में ही कई वैज्ञानिकों ने भी महत्वपूर्ण आविष्कार किए हैं। एली ह्विटवी ने 28 वर्ष की आयु में कपास ओटाने की मशीन का आविष्कार किया। सैम्युअल कोल्ट ने 16 वर्ष की उम्र में रिवाल्वर का लकड़ी का मॉडल बनाया और बाद में उसे धातु का बनाकर 21 वर्ष की आयु में पहली बार रिवाल्वर से गोली चलाई।
चार्ल्स मार्टिन हाल ने 23 वर्ष की अवस्था में ही विद्युत संश्लेषण द्वारा एल्युमीनियम के उत्पादन की नई विधि पेटेण्ट कराई। जेम्सवाट ने जब भाप के इंजन की कल्पना की तब उनकी आयु 25 वर्ष थी और इस कल्पना को मूर्त रूप देने में उन्हें कुछ ही वर्ष लगे। एलेग्जेण्डर गुरहम वेल ने 20 वर्ष की आयु में टेलीफोन बनाने का प्रयास शुरू किया था, जिसमें उन्हें सफलता मिली। यह आविष्कार पेटेण्ट कराते समय उनकी आयु 26 वर्ष थी।
ब्लेन पास्कल ने 19 वर्ष की अवस्था में नये ज्यामितीय सिद्धांत खोजे और कुछ ही समय के उपरांत एडिंग मशीन का आविष्कार कर डाला। सिगमंड फ्रायड ने जब मनोविज्ञान के क्षेत्र में अपने क्राँतिकारी सिद्धांत प्रमाणों सहित प्रतिपादित किए तो उनकी आयु 29 वर्ष थी। चार्ल्स डार्विन भी 27 वर्ष की आयु में विकासवाद के सिद्धांतों की खोज कर चुके थे। विज्ञान जगत में क्राँति ला देने वाले सापेक्षतावाद (थ्योरी आफ रिलेटिविटी) के जनक आइन्स्टीन ने 26 वर्ष की आयु में ही अपने दर्शन का प्रणयन कर दिया था।
राजनीति, विद्वत्ता, साहित्य, कला और विज्ञान के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा से छोटी उम्र में ही चमत्कृत कर देने वाली इन विभूतियों में से कई तो ऐसी हैं जिनकी स्थिति अत्यन्त साधारण रही थी। फिर भी उन्होंने अनूठी सफलताएं अर्जित कीं। इन सफलताओं का कारण जन्मजात प्रतिभा भी कहा जा सकता है किन्तु प्रतिभा किसी को भी पक्षपात पूर्ण ढंग से नहीं मिलती। जन्म से ही कोई बालक मेधावी दिखाई देते हैं तो इसका कारण पिछले जन्मों में उनके द्वारा किया गया प्रयत्न पुरुषार्थ ही है जिनका समुचित परिणाम उन्हें नहीं मिल सका। उस समय उन्हें जो परिणाम या अवसर मिलने चाहिए थे। वह इस जन्म में बचपन में ही अनुकूल परिस्थितियों के रूप में प्राप्त होते हैं।
भगवान कृष्ण ने गीता में स्पष्ट कहा है कि कोई भी शुभ कर्म करने वाला व्यक्ति न तो दुर्गति को प्राप्त होता है तथा न ही उसे अपने पुण्य कर्मों का फल बिना मिले रहता है। पूर्व जन्म के संस्कार को प्राप्त करते हुए उनके प्रभाव से वह अनायास ही अभीष्ट दिशा में अग्रसर होता है। जन्मजात मेधावी प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति अपने पूर्वजन्म के संस्कारों का उपार्जन का ही लाभ उठाते हैं। इसलिए असफलता के भय से न विचलित होना चाहिए तथा न ही निराश।