
व्यर्थ बटोरी संपदा अनर्थ ही करता है (कहानी)
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एक उदारमना व्यक्ति ने अपनी संपदा परमार्थ-प्रयोजनों के लिए दान कर दी और लोकसेवा के कार्यों में निरत रहने लगा।
उसकी सर्वत्र प्रशंसा होने लगी। इस परिवर्तन के लिए भूरि-भूमि सराहना करते और बधाई देने आते। उत्तर में उदार व्यक्ति एक प्रश्न करते— “आपके झोलों में कंकड़-पत्थर भरे हैं और अनायास कोई बहुमूल्य वस्तु मिले, तो उन पत्थरों को फेंककर मूल्यवान वस्तु उसमें भरेंगे या नहीं!” लोग उत्तर में सिर हिला देते।
उदारमना समझाते— “मैंने कोई त्याग नहीं किया, मात्र समझदारी का परिचय दिया है। जो व्यर्थ ही बटोर रखा था, वह बोझ बढ़ाता और अनर्थ सिखाता था। अब इस जंजाल को फेंक देने पर मनःस्थिति परमार्थ करने जैसी बन गई और वे कार्य हो सके, जिसकी प्रशंसा आप सब करते हैं। मुझे तो संतोष पाने, भविष्य उज्ज्वल बनाने का अवसर मिलता है, यही मेरा सौभाग्य है।
उसकी सर्वत्र प्रशंसा होने लगी। इस परिवर्तन के लिए भूरि-भूमि सराहना करते और बधाई देने आते। उत्तर में उदार व्यक्ति एक प्रश्न करते— “आपके झोलों में कंकड़-पत्थर भरे हैं और अनायास कोई बहुमूल्य वस्तु मिले, तो उन पत्थरों को फेंककर मूल्यवान वस्तु उसमें भरेंगे या नहीं!” लोग उत्तर में सिर हिला देते।
उदारमना समझाते— “मैंने कोई त्याग नहीं किया, मात्र समझदारी का परिचय दिया है। जो व्यर्थ ही बटोर रखा था, वह बोझ बढ़ाता और अनर्थ सिखाता था। अब इस जंजाल को फेंक देने पर मनःस्थिति परमार्थ करने जैसी बन गई और वे कार्य हो सके, जिसकी प्रशंसा आप सब करते हैं। मुझे तो संतोष पाने, भविष्य उज्ज्वल बनाने का अवसर मिलता है, यही मेरा सौभाग्य है।