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Magazine - Year 1985 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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महान् कार्यों के लिए महान व्यक्तित्वों की आवश्यकता

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बड़ी योजनाएँ बनाने और बड़े काम करने से पूर्व यह देखा जाना चाहिए कि उसके लिए उपयुक्त साधन जुटाये जा सकेंगे या नहीं और वे उपयुक्त रीति से संग्रह हो सकेंगे या नहीं?

बात केवल साधनों की ही नहीं दूरदर्शिता, अनुभव और प्रवीणता की भी है। उसके अभाव में ईमानदार व्यक्ति भी अनजाने में ऐसे काम कर बैठते हैं जिनमें पीछे पछताना पड़े। फिर बड़े कामों के साथ बड़ी ईमानदारी बौर बड़ी जिम्मेदारी का अनुभव करने वाले साथी सहकारी भी चाहिए। अन्यथा हाथी की अम्बारी गधे की पीठ पर लाद देने में हाथी जैसी शोभायात्रा तो नहीं निकलेगी, उलटे गधे की पीठ टूटेगी और मालिक को उस थोड़ी आजीविका से भी हाथ धोना पड़ेगा, जो बेचारा गधा अपनी सामर्थ्य भर धीरे−धीरे उपार्जित करता रहता था। यदि बड़े कामों को, बड़ी योजनाओं को चला सकने की परिस्थिति न हो तो यही अच्छा है कि कार्य छोटे रूप में किया जाय और दायित्वों का विकेन्द्रीकरण किया जाय।

यहाँ भी बात वही आती है कि कार्य छोटा हो या बड़ा, उसके पाये मजबूत होने चाहिए। मजबूत नींव पर ही भव्य भवन खड़े किये जाते हैं। उथली नींव पर जल्दी और किफायत की बात सोचते हुए यदि दुर्बल चरित्र और व्यक्तित्व के लोगों को निर्माण का काम सौंपा जाएगा तो वे अपने तात्कालिक लाभ और आलस्य की बुरी आदतों को ही आगे रखेंगे और इतनी हानि करेंगे जितनी कि बड़ा काम हाथ में न लिये जाने पर हो सकती है।

महत्व साधनों का माना जाता है। साधनों को एकत्रित करना बुद्धिमत्ता समझी जाती है और समझा जाता है कि इनका उपयोग जहाँ भी किया जाएगा वहीं प्रगति के दृश्य उपस्थित होंगे। पर यह मान्यता तथ्यों और उदाहरणों की कसौटी पर खरी उतरती है।

समझने के लिए मोटा सिद्धान्त यह है कि बिचौलिये कमीशन खाते हैं इसलिए उपभोक्ता की वस्तुएँ महंगी पड़ती हैं। वे मिलावट भी करते हैं। इसलिए उन्हें हटा दिया जाय और सरकारी क्षेत्रों में वे सब काम कराये जाँय ताकि लाभांश सरकार को अर्थात् जनता को मिले। अफसरों को भरपूर वेतन और महंगाई भत्ता मिलता है। बुढ़ापे के लिये पेन्शन, ग्रेच्युटी, फण्ड आदि भी। इसलिये उन्हें आर्थिक तंगी की आशंका से बेईमानी न करनी पड़ेगी। सिद्धान्ततः यह प्रतिपादन सर्वथा सही है। पर व्यवहार में कुछ और ही देखा जाता है। जितने व्यवसाय सरकारी नियन्त्रण में चल रहे हैं उनमें से अधिकाँश घाटा देते देखे जाते हैं। बाजार की तुलना में घटिया भी बैठते हैं और महंगे भी पड़ते हैं। इसका कारण समझने के लिए हमें तनिक गहराई में उतरना पड़ेगा और देखना पड़ेगा कि दायित्व सौंपने से पहले व्यक्तियों को कामों में प्रवीण पारंगत बनाया गया है या नहीं। उनकी ईमानदारी को असंदिग्ध बनाया गया है या नहीं। उनकी प्रतिभा का समुचित विकास हो सका है या नहीं? यही वह मूल केन्द्र है जिसमें दुर्बलता रहने के कारण शानदार योजनाएँ भी कागजी घोड़े बनकर रह जाती हैं। असफल होतीं, घाटा देतीं और शिकायतें उत्पन्न करती हैं। वस्तुतः यह दोष योजनाओं का नहीं साधनों की कमी का नहीं वरन् उस उपेक्षा का है जिसके कारण कार्यकर्त्ताओं को सुयोग्य और ईमानदार बनाने की ओर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना कि दिया जाना चाहिए। भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही क्षेत्रों पर यह बात समान रूप से लागू होती है। डडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडड मुझे लग रहा है कि यहां पर पेज छूट रखा है या पेज छूट रखें हैं। मेरे पास orignal नहीं है और पी डी एफ में भी ऐसा लग रहा है कि पेज गायब हैं। डडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडडड सिखाए गए हैं। मूल तो दर्शन है, शेष क्रियायोग तो सामान्य-सा खेल है।

नीति शास्त्र का सर्वप्रथम नियम यह है कि अपने पड़ौसी को अपनी की तरह प्यार करें। प्यार क्यों करें? इसका उत्तर वेदान्त में मिलेगा नीति शास्त्र में नहीं। वेदान्त का ‘तत्वमसि’ “पड़ौसी को इसलिए नहीं चाहेगा कि वह हमारी भलाई करेगा किन्तु तत्वमसि तो “स्प्रिचुअल वननेस”− ‘‘एक परमपिता के सन्तान” होने की बात सिखाता है। यही नीति शास्त्र का मूलभूत सिद्धान्त है “आध्यात्मिक एकता”। इस दृष्टि से किसी व्यक्ति को दुःख पहुँचाने का कोई कार्य हम नहीं करेंगे। इतना ही नहीं किसी अन्य को नुकसान पहुँचाकर अपना लाभ नहीं उठायेंगे। वेदान्त का सत्य निरूपण विभिन्न मत−मतान्तरों के बीच ही नहीं अपितु वास्तविक धर्म तथा वास्तविक विज्ञान के बीच उस समस्वरता का संस्थापन करता है जो आज की अतीव आवश्यकता है। मैक्समूलर ने कहा था “सभी तत्वज्ञान की विचारधाराओं में वेदान्त सर्वोत्तम है क्योंकि वह हर प्रकार के तत्वज्ञानों और सभी धर्मों का समन्वय करता है।”

सनातन धर्म के अनुसार परम शक्ति एक ही हो सकती है, चाहे आप किसी सम्प्रदाय के क्यों न हों। यह दिव्य शक्ति न केवल मनुष्यों को ही जीवन प्रदान करती है अपितु पशु तथा वनस्पति सृष्टि एवं जड़ सृष्टि को भी जीवन प्रदान करती है क्योंकि जड़ में भी मालीक्यूलर ऐक्टिविटी जैसे कि इलेक्ट्रान आयन, स्टेम्स या मालीक्युल की चित्र−विचित्र संरचना−हलचल हरदम होती रहती है। इसे आप चाहे लाइफ कोर्स या प्राण नाम दें, सारी सृष्टि वेदान्त के अनुसार प्राण तत्व से भरी हुई है।

वेदान्त कहता है कि वास्तव में मानवता ही ईश्वरत्व है। यदि आप अपने भाई या पड़ौसी से दुर्व्यवहार करते हैं, तो उसके मानी होते हैं कि आपका यह दुष्कृत्य भगवान के साथ हो रहा है।

प्रो. मैक्समुलर के अनुसार वेदान्त “सब तत्वज्ञानों की विचारधाराओं का सार है जो विश्व के सभी धर्मों का समन्वय करता है क्योंकि योरोप के विभिन्न मूर्धन्य तत्वज्ञानी जैसे प्लूटो, शोपेनहावर, हेगल, काष्ट, ह्यूम इत्यादि सभी ने उच्चतम सत्य के बारे में जो कुछ बताया है, उसको आप वेदान्त में पायेंगे। वैदिक धर्म पालन करने वाला एक सच्चा ईसाई, सच्चा मुसलमान, सच्चा बौद्ध या सच्चा हिन्दू है क्योंकि वह परम सत्ता की उपासना करता है और प्राणि मात्र में परमात्मा का दर्शन करता है, इसलिए विश्व के सभी पैगम्बरों और सन्तों का वह सम्मान करता है और पूज्य भाव दर्शाता है।”

जीवन के उद्देश्यों को समझने का प्रयत्न कीजिए और किसी भी भांति उस लक्ष्य, इष्ट से इसकी उपासना कीजिए। यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जब हम कोई बुरा काम करते हैं जिससे किसी को दुख होता है, हम अशांत हो उठते हैं क्योंकि हमारी आत्मा हमें कोसती है। इसी प्रकार जब हम सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं, किसी की भलाई करते हैं तो मन प्रसन्न शांत रहता है, उसी समय हम देवत्व का अनुभव करते हैं क्योंकि अशांत मन में शैतान रहा करता है। वेदांत के अनुसार इसी धरती पर स्वर्ग नर्क दोनों हैं। वेदांत की आधारशिला कर्म सिद्धांत है। कर्मयोग का जितना सुंदर विवेचन वेदांत में है, वह कहीं और देखने को नहीं मिलता।

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Type: SCAN
Language: HINDI
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Version 2
Type: TEXT
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