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Magazine - Year 1985 - Version 2

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ऐसे होते हैं- दैत्य

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मनुष्य की जीवनी शक्ति का पारावार नहीं। यदि वह शारीरिक दृढ़ता बढ़ाने में ही अपने को लगा दे तो ऐसा दैत्य बन सकता है जिसे देखकर लोग आश्चर्य से चकित रह जाँय।

बंगाल प्रांत के व्यूर गाँव में जन्मी एक बालिका चार−पाँच आदमियों के बराबर भोजन करती थी। बड़ी होने पर शादी की गई तो ससुराल वालों ने बुरा−भला कहा जिससे खिन्न होकर उसने बिना कुछ खाये रहने का निश्चय किया। यह नियम 70 वर्ष जीवित रहने तक सध गया उसने 14 वर्ष की आयु से आहार त्याग दिया था यह उसकी संकल्प शक्ति की बदौलत ही सम्भव हो सका।

लैव लैण्ड के वैज्ञानिक जार्ज क्रायल ने इस सम्बन्ध में अपने एक शोध प्रबन्ध में सन् 1933 में कहा है कि यह आवश्यक नहीं कि आहार मात्र मुँह से ही ग्रहण किया और गले से उतार कर पाचन तन्त्र में ही पचाकर शरीर के विभिन्न अवयवों तक पहुँचाया जाय। वह साँस द्वारा आकाश में फैली हुई वायुभूत खाद्य सामग्री से भी उपलब्ध किया जा सकता है जीवन धारण हेतु प्रोटोज्म चाहिए वह किसी भी माध्यम से लिए जा सकते हैं।

दक्षिण अफ्रीका का पेराडम नगर में एक प्रीतिभोज की तैयारी की गई। आगन्तुकों को कौतुक सूझा तो प्रसिद्ध पेटू मेलायन लकड़हारे को आमन्त्रित कर लिया। यह तय किया गया कि पहले मेलायन को छककर भोजन कराया जाय शेष अतिथि बाद में बाँटकर खायेंगे। मेलायन को पूर्ण भरपेट खाने की छूट थी। उसने सोलह आदमियों के बराबर भोजन करके ही ऊपर दृष्टि उठाई। आगन्तुक कौतूहलवश देखते रहे बाद में रसोई घर में शेष चाय पीकर ही वापस गये।

वस्तुओं को तेजी से दूरी तक फेंकने वालों में मैक्लेन वर्ग जर्मनी का एडोल्फ प्रख्यात था। एक प्रदर्शन में उसने चाँदी के सिक्के बीस फीट दूर खड़े होकर बेतूल के पेड़ में खींचकर मारे। सिक्के इतनी गहराई तक जा घुसे उन्हें खोदकर निकालना पड़ा।

शून्य डिग्री से.ग्रे. तापमान पर कोई भी 10 मिनट से अधिक नहीं ठहर पाता। किन्तु मेजर डोन−मोल्ड एक घण्टे तक नंगे बदन बर्फ की शिला पर लेटे रहे और फिर सहज रूप से कपड़े पहनकर चलते बनें।

स्विट्जरलैंड और लोशेन स्टैज के मध्य 235 वर्ष तक सीमा विवाद चला और झंझट चलता रहा। अन्ततः एक बूढ़े सूझ−बूझ वाले लकड़हारे जोन कास्टवुड ने इस विवाद को सुलझाया। लकड़हारा बहुत बलिष्ठ व्यक्ति था उसने कहा कि 1040 पौण्ड भारी इस पत्थर को पीठ पर लादकर जहाँ तक वह चला जायेगा वहीं पर विभाजन रेखा मान ली जानी चाहिए दोनों पक्ष सहमत हो गये। भारी चट्टान को लादकर बूढ़ा 1 मील 4500 फीट दूरी तक गया और आगे भार न बहन करने से थककर चूर होकर गिर पड़ा जहाँ वह पत्थर गिरा उसी स्थान को विभाजन चिन्ह माना गया।

बर्फीली पहाड़ियों पर रहने वाले “लैप” जाति के लोग बर्फीली खाइयाँ पार करने के लिए छलाँग लगाने का अभ्यास करते हैं। उनमें युवा लोग 125 फीट तक की लम्बी छलाँग लगाते देखे गये हैं।

की वैस्ट “अफ्रीका” निवासी पीटर जेकाक्स के हाथ इतने मजबूत थे कि वह अपने हाथों की दोनों हथेलियों पर दो जवान आदमी बिठाकर सड़कों पर लिये−लिये फिरता था।

कोरिया का नाटे कद का ‘मांस’ नामक पहलवान मात्र 4 फीट 1 इंच का बौना था किन्तु सामर्थ्यों से भरा−पूरा। अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पहलवानों को चुटकी बजाते पछाड़ देता कठोर से कठोर ईंटों को हथेली में दबाकर चूर्ण बना डालता। पहलवान कुश्ती लड़ने से कतराने लगे। हारे हुए पहलवानों ने माँस को एक साँड से कुश्ती लड़ने की चुनौती दी। पहले तो माँस से इन्कार कर दिया। किन्तु बार−बार चिढ़ाये जाने पर वह तैयार हो गया। 13 मन का साँड दंगल में शराब पिलाकर उतारा गया। किन्तु आत्म−विश्वासी माँस ने पहली बार में ही जमकर ऐसा घूँसा मारा कि साँड चारों खाने चित्त आ गिरा और उठकर ऐसा भागा, यदि रोकथाम के लिए बाड़ न लगाई गई होती तो दर्शकों को ही कुचल देता।

अमेरिका के रिचर्ड ने अपनी काया की क्षमता को इतना विकसित कर लिया था कि बड़े से बड़े हथौड़े, भारी वजनी लकड़ी के लट्ठे, हाथी, तोप के गोले उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते। सैनफ्रांसिस्को के 6 भारी भरकम पहलवान घूँसे मारते−मारते थक गये किन्तु रिचर्ड ऐसे बैठा रहा जैसे उसकी मालिश की जा रही है। 1964 में 100 पौण्ड वजन तक के गोले का अभ्यास था किन्तु 1966 में उसने एक प्रदर्शन में तोप के मुँहाने के सामने खड़े होकर 150 पौण्ड वजन का गोला दगवाया किन्तु टेबल−टेनिस की गेंद की तरह गोला छिटककर दूर जा गिरा और रिचर्ड अविचलित खड़ा रहा। इस घटना के बाद वो “इस्पात का आदमी” कहा जाने लगा। रिचर्ड को यह विद्या कहाँ से हाथ लगी इसके उत्तर में उसने बताया कि सन् 1924-25 में हरिद्वार, ऋषिकेश, प्रयाग, वाराणसी गया जहाँ भारतीय योगियों के संपर्क में आया उन्होंने जो योग साधनाएँ बताई यह उसका ही परिणाम था।

गुन्नार हैमण्डसन् आइसलैण्ड दीप समूह के क्षेत्र में समुद्री डाकुओं का सरदार था। लड़ते समय उन दिनों लोहे के रक्षा कवच पहनने का रिवाज था। वह भी उस भारी परिधान को समय−समय पर धारण करता। इस वजन से लदा होने पर भी वह खड़े आदमी को छलाँग लगाकर पार जा सकता था। इतना ही नहीं वह उल्टी छलाँग भी इतनी ही ऊँची पीठ की दिशा में भी लगा सकता था। पीठ पीछे खड़े हुए आदमी को भी उल्टी छलाँग लगाकर पार करने में उसे कोई कठिनाई नहीं होती थी।

बेल्जियम का राजा रोमैन्सन पंचम युद्ध के समय लोहे का कवच पहनता था जो प्रायः चालीस पौण्ड भारी था। वह कवच पहने जमीन से उछलकर ऊँचे कद के घोड़े पर सवार होता था। सहारा लेकर जीन पर वह कभी चढ़ा ही नहीं।

जर्मनी का भीमकाय मैक्ससिक वजन उठाने की कला में अपने समय का दैत्य माना जाता था। वह स्वयं तो 147 पौण्ड भारी था। पर 200 पौण्ड भारी वजन को आसानी से उठाकर दिखा देता था। एक प्रदर्शन में 200 पौण्ड भारी मनुष्य को अपने सिर से ऊँचा उठाकर दिखाया। यह प्रदर्शन एक बार नहीं पूरे सोलह बार उसने एक हाथ से किया। दूसरे हाथ में उसने पानी से लबालब भरा गिलास थामा और दिखाया कि एक हाथ से वजन उठाने में उसे कुछ भी असाधारण कठिनाई नहीं उठानी पड़ती है। यदि ऐसा होता तो दूसरे हाथ के लबालब भरे गिलास का कुछ बूँद पानी तो फैलता।

इंग्लैण्ड में भी एक ऐसी महिला जन्मी थी, जिसके शरीर पर ज्वलनशील पदार्थों का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता था। ‘नाइट्रिक एसिड’ को कुछ देर मुँह में रखकर जब उसने एक लोहे पर थूका तो उसमें लपटें निकलने लगीं। उबलते तेल का मुँह में रखे रहना, पिघले मोम को पानी की तरह मुँह में रखकर ऊपर से सील करवा देना, उबलते जस्ते को मुँह में डालकर उसे सिक्के के रूप में बदल देना, उसके लिए नितांत आसान था। उसके विविध ऐसे प्रदर्शनों से यह सिद्ध हो गया था कि उसका शरीर एकदम ज्वलनशील नहीं है, न ही ज्वलनशीलता का उस पर किंचित प्रभाव पड़ता है।

प्रस्तुत उदाहरण मनुष्य में प्रसुप्त दैत्योपम क्षमताओं की झांकी दिखाते हैं। अपनी कमजोरी पर निरंतर रोने कलपने वाले मनुष्य ये प्रेरणा देते हैं व प्रामाणित करते हैं कि अभ्यास से सामान्य-सी काया में अप्रतिम सामर्थ्य का जखीरा एकत्र किया जा सकता है।

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