• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • Quotation
    • आँगन में विद्यमान कल्पवृक्ष
    • महान् कार्यों के लिए महान व्यक्तित्वों की आवश्यकता
    • Quotation
    • डा. माम (kahani)
    • भक्ति में देना ही पड़ता है।
    • नालन्दा विश्वविद्यालय (kahani)
    • अन्तरंग योग की पृष्ठभूमि
    • क्रियायोग के चार विधान
    • व्यक्तित्व का अधःपतन और उसकी परिणति
    • Quotation
    • बड़प्पन का मापदण्ड
    • आत्मा और शरीर का वास्तविक हित साधन
    • मिस्र के सन्त (kahani)
    • मनुष्य की सशक्त प्राण-ऊर्जा
    • धन बेटों को बाँट दिया (kahani)
    • धर्म अपने स्वस्थ स्वरूप में ही वरणीय है।
    • संयम से रहें दीर्घजीवी बनें
    • Quotation
    • Quotation
    • आवश्यकताओं और इच्छाओं का अन्तर
    • Quotation
    • मानवी सत्ता−जादू की पिटारी
    • संगीत और आत्मोत्कर्ष
    • Quotation
    • सत्संग में बैठने का चस्का (kahani)
    • भूत, भविष्य की नहीं, मात्र वर्तमान की सोचें
    • साहस और सूझबूझ के धनी
    • नानक देव की बढ़ती लगन (kahani)
    • आखिर में आवाजें किसकी थी?
    • आत्मवत् सर्व भूतेषुः (kahani)
    • पालब्रिन्टन द्वारा गुप्त भारत की खोज
    • Quotation
    • पुरातन गरिमा को भुलायें नहीं
    • Quotation
    • समय के साथ बदलिये
    • Quotation
    • योग की साधना की जाय, विडम्बना नहीं
    • Quotation
    • प्रेतों का अस्तित्व और स्वभाव
    • Quotation
    • किसी अन्य लोक में जा बसने की तैयारी
    • Quotation
    • Quotation
    • ब्राह्मण पद्मनाभ (kahani)
    • ऐसे होते हैं- दैत्य
    • Quotation
    • चेतना का रहस्यवाद
    • बाहर और भीतर की समृद्धियाँ
    • न आत्म−विश्वास खोयें न भयाक्रान्त रहें
    • Quotation
    • बढ़ते हुए मनोरोग−कारण और निवारण
    • Quotation
    • गुरुदेव की सावित्री साधना के संदर्भ में विशेष लेखमाला−
    • Quotation
    • VigyapanSuchana
    • स्थिति के अनुरूप साधनों की भिन्नता
    • ‘यज्ञ’−ज्ञान और विज्ञान का भाण्डागार
    • गलती न दुहराए (kahani)
    • ब्राह्मणत्व गिरेगा तो समाज की बर्बादी होगी
    • Quotation
    • अपनों से अपनी बात- ‘‘हीरक जयंती का सफल आयोजन’’
    • जमीन में गाड़ रखा (kahani)
    • तप की सामर्थ्य
    • तप की सामर्थ्य (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • Quotation
    • आँगन में विद्यमान कल्पवृक्ष
    • महान् कार्यों के लिए महान व्यक्तित्वों की आवश्यकता
    • Quotation
    • डा. माम (kahani)
    • भक्ति में देना ही पड़ता है।
    • नालन्दा विश्वविद्यालय (kahani)
    • अन्तरंग योग की पृष्ठभूमि
    • क्रियायोग के चार विधान
    • व्यक्तित्व का अधःपतन और उसकी परिणति
    • Quotation
    • बड़प्पन का मापदण्ड
    • आत्मा और शरीर का वास्तविक हित साधन
    • मिस्र के सन्त (kahani)
    • मनुष्य की सशक्त प्राण-ऊर्जा
    • धन बेटों को बाँट दिया (kahani)
    • धर्म अपने स्वस्थ स्वरूप में ही वरणीय है।
    • संयम से रहें दीर्घजीवी बनें
    • Quotation
    • Quotation
    • आवश्यकताओं और इच्छाओं का अन्तर
    • Quotation
    • मानवी सत्ता−जादू की पिटारी
    • संगीत और आत्मोत्कर्ष
    • Quotation
    • सत्संग में बैठने का चस्का (kahani)
    • भूत, भविष्य की नहीं, मात्र वर्तमान की सोचें
    • साहस और सूझबूझ के धनी
    • नानक देव की बढ़ती लगन (kahani)
    • आखिर में आवाजें किसकी थी?
    • आत्मवत् सर्व भूतेषुः (kahani)
    • पालब्रिन्टन द्वारा गुप्त भारत की खोज
    • Quotation
    • पुरातन गरिमा को भुलायें नहीं
    • Quotation
    • समय के साथ बदलिये
    • Quotation
    • योग की साधना की जाय, विडम्बना नहीं
    • Quotation
    • प्रेतों का अस्तित्व और स्वभाव
    • Quotation
    • किसी अन्य लोक में जा बसने की तैयारी
    • Quotation
    • Quotation
    • ब्राह्मण पद्मनाभ (kahani)
    • ऐसे होते हैं- दैत्य
    • Quotation
    • चेतना का रहस्यवाद
    • बाहर और भीतर की समृद्धियाँ
    • न आत्म−विश्वास खोयें न भयाक्रान्त रहें
    • Quotation
    • बढ़ते हुए मनोरोग−कारण और निवारण
    • Quotation
    • गुरुदेव की सावित्री साधना के संदर्भ में विशेष लेखमाला−
    • Quotation
    • VigyapanSuchana
    • स्थिति के अनुरूप साधनों की भिन्नता
    • ‘यज्ञ’−ज्ञान और विज्ञान का भाण्डागार
    • गलती न दुहराए (kahani)
    • ब्राह्मणत्व गिरेगा तो समाज की बर्बादी होगी
    • Quotation
    • अपनों से अपनी बात- ‘‘हीरक जयंती का सफल आयोजन’’
    • जमीन में गाड़ रखा (kahani)
    • तप की सामर्थ्य
    • तप की सामर्थ्य (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1985 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


योग की साधना की जाय, विडम्बना नहीं

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 37 39 Last
सेवा भी साधना है। उस माध्यम को अपनाकर अपना और दूसरों का कल्याण किया जा सकता है सेवा बिना उदारता और त्याग के बन नहीं पड़ती। इनका अभ्यास ही आत्मा को उच्च स्थिति तक पहुँचाता है। तालाब में घुसे बिना तैरना नहीं आता, परमार्थ−प्रयोजनों में संलग्न हुए बिना यह सम्भव नहीं कि जिन सत्प्रवृत्तियों का गुणानुवाद स्वाध्याय एवं सत्संग में पढ़ा गया है। उनको व्यवहार में भी उतारा जा सके। अध्यात्म सिद्धांतों का क्रियान्वयन लोक मंगल प्रयासों में संलग्न होने पर ही होता है। इसलिए साधु, ब्राह्मण सदा व्यक्ति और समाज के कल्याण में निरत रहने के कार्यक्रम बनाते और उनमें जीवन खपाते रहे हैं। सर्वसाधारण के लिए यही मध्यवर्ती मार्ग उपयोगी है।

योग क्षेत्र का एक विशेष वर्ग है। जिन्हें वैज्ञानिक स्तर का कह सकते हैं। उन्हें अंतर्मुखी होना पड़ता है साथ ही चिन्तन की दिशा विशेष में नियोजित रखने के लिए एकान्त की आवश्यकता होती है। भौतिक विज्ञानी भी अपने अन्वेषण, पर्यवेक्षणों में अपनी प्रयोगशाला ऐसे स्थान पर बनाते हैं जहाँ ध्यान बटाने वाला शोरगुल न हो। मन को अपने विशेष लक्ष्य में तादात्म्य होने की सुविधा रहे। गहन विषयों के आविष्कारक अपने लिए ऐसी ही परिस्थितियाँ तलाश करते रहते हैं।

आध्यात्मिक क्षेत्र का शोध पर्यवेक्षण कार्य भी ऐसा ही है जिसमें कोलाहल रहित वातावरण में एकान्त ढूंढ़ना पड़ता है। और लोगों की पूछताछ−वार्तालाप प्रसंग से बचने के लिए मौन भी रहना पड़ता है। इतना ही नहीं उन्हें शीत प्रधान वातावरण चाहिए। गरम प्रदेश में शरीर का बाह्य कलेवर भी उत्तेजित नहीं रहता वरन् अन्तःक्षेत्र भी अशान्त, उत्तेजित होने लगता है। ऐसी परिस्थितियों में शोध, अन्वेषण, चित्त का एकाकीकरण ठीक तरह नहीं हो पाता। अनेक साथियों का सान्निध्य ऐसी स्थिति में विक्षेप ही उत्पन्न करता है। ऐसी स्थिति में भौतिक विज्ञानी तथा आत्म विज्ञानी जिन्हें अपने निजी चिन्तन पर ही निर्भर रहना पड़ता है वे एकांत ही नहीं ढूंढ़ते वरन् एकाकी निवास का भी प्रबन्ध करते हैं। मौन भी धारण करते हैं। पर यह सदा के लिए नहीं हो सकता। कुछ सीमित काल के लिए ही होता है। क्योंकि अन्न, वस्त्र, आग जैसी दैनिक आवश्यकताएँ लम्बे समय के लिए संग्रह करके नहीं रखी जा सकतीं। और न कोई ऐसा क्षेत्र अब रहता है जहाँ भोज पत्र के वस्त्र और कन्द मूल, फल, बहुलता से मिलते हों। न कोई वन ही ऐसा है जहाँ सरीसृप एवं हिंस्र जीवों का अभाव हो। ऐसी दशा में सुरक्षा की भी एक समस्या सामने रहती है।

प्राचीन काल में अध्यात्म क्षेत्र के शोध विज्ञानी प्रायः ऐसी परिस्थितियाँ अपने महान कार्य के लिए ढूंढ़ते थे और हिमालय की कन्दराओं में रहकर अपने आत्मबल से जुड़ी हुई सिद्धियों के सहारे शरीर रक्षा का प्रबन्ध कर लेते थे। पर यह भूमिका अत्यंत उच्चस्तरीय है। सामान्य स्तर के साधक न तो ऐसी परिस्थितियाँ ढूंढ़ सकते हैं और न वहाँ भय और आशंका का परित्याग करके बिना साधनों के भी शरीर रक्षा का प्रबन्ध कर सकते हैं। इसलिए बदली परिस्थितियों में उन्हें भी मध्यवर्ती मार्ग तलाश करना पड़ता है और जीवनयापन की सुविधाएँ जुटाते हुए यदि किसी गम्भीर शोध में लगाना हो तो लगते हैं।

किन्तु यह समय ऐसा है नहीं। व्यापक परिस्थितियाँ आपत्ति काल जैसी हैं। आपत्ति काल में सामान्य निर्धारण छोड़कर आपत्ति धर्म का पालन करता है।

भगवान का भजन कहीं भी किसी भी परिस्थिति में हो सकता है। वह मनुहार या उपहार की अपेक्षा व्यक्ति का चिन्तन, चरित्र और व्यवहार भी देखता नहीं परखता है। इसलिए इसकी कसौटी तो एक ही रहती है कि कौन उसकी इच्छाओं की पूर्ति और आज्ञाओं का पालन करने में किस सीमा तक लगा हुआ है। यह कार्य जन संपर्क में संलग्न रहने विशेषतया पिछड़ों को ऊँचा उठाने में ही सम्भव हो सकता है। इसी रीति−नीति को अपनाने पर ईश्वर की प्रसन्नता निर्भर है।

वैज्ञानिक शोध प्रक्रिया में प्रवेश करना ही हर किसी का काम नहीं है और न ऐसी जोखिम भरी जगह तलाश करने की आवश्यकता है जिसमें एकान्त की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए निर्वाह सामग्री का अभाव एवं अनेक प्रकार के भय विक्षोभों का सामना करना पड़े। यह शोध कार्य ऐसे वातावरण में भी हो सकता है। जहाँ सहज सुविधाएँ उपलब्ध हों और समान स्तर के दूसरे लोगों के साथ विचारों तथा साधनों का आदान−प्रदान करने की सुविधा हो।

वह समय दूसरा था जिसमें अपने अन्तराल में से ही अंतर्मुखी होकर हर स्तर के यन्त्र उपकरणों का उत्पादन करना पड़ता था। उन दिनों गहन एकान्त की आवश्यकता पड़ती थी और चित्त की अंतःचेतना की अत्यन्त गहराई में उतारना पड़ता था। आज विज्ञान की प्रगति ने ऐसे उपकरण उपलब्ध करा दिये हैं जो न केवल प्रकृति की−शरीर की शोध करने में सहायक हो सकते हैं वरन् मन और अन्तःकरण का पर्यवेक्षण करने में भी सहायक सिद्ध हो सकते हैं। उनकी उपस्थिति में भी अपने आपको उन यन्त्रों का स्थानापन्न बनाने के लिए क्यों प्रयत्न किया जाय।

ऐसे लोग देश में मुश्किल से दो पाँच ही हो सकते हैं। अरविन्द घोष, महर्षि रमण जैसे सूक्ष्मदर्शी पिछली शताब्दी में भी उँगलियों पर गिनने लायक ही हुए हैं। जिनकी आन्तरिक स्थिति वैसी है वे भूतकाल के सूक्ष्म शरीरधारी निष्णातों में अभी भी संपर्क बना सकते हैं और उनकी उपलब्धियों से अवगत हो सकते हैं। आवश्यक नहीं कि मध्यम श्रेणी के लोग भी हिमाचल में निवास करने के भावावेश में घर छोड़ें और अपनी चारित्रिक दुर्बलताओं के कारण ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करें जिसमें यह सारा परिवार ही बदनाम होता हो।

अभी योग में पारंगत होने और सिद्धि चमत्कार दिखाने की प्रवंचना में उन लोगों को नहीं फँसना चाहिए जिनने सच्चे अर्थों में अभी साधु ब्राह्मण की भूमिका भी सम्पन्न नहीं की है। ऐसे लोगों के अधूरे प्रयास और कुछ ही दिनों में निराश होकर पाखण्ड रचने के करतब लोगों में देखने में आते हैं तब उन लोगों का भी साहस टूटता है जो अध्यात्म विज्ञान की गहराई में उतरकर महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त करने की बात सचमुच ही सोचते हैं।

अधूरे योगी बनने और उपहासास्पद विडम्बनाएँ रचने की अपेक्षा अध्यात्म विज्ञान में वास्तविक रुचि रखने वालों के लिए निष्णातों का यही परामर्श उचित है कि वे युग धर्म के समझें। व्यक्ति और समाज के सम्मुख उपस्थित असंख्य समस्याओं के समाधान में−आस्था संकट के निराकरण में अपना समय लगायें।

बड़ों का अनुकरण करने का कार्य रंग मंच के नटों के लिए छोड़ देना चाहिए। वे क्षण में योगी, क्षण में राजा, क्षण में विदूषक बन सकते हैं। वही कार्य यदि अध्यात्मवाद में रुचि रखने वाले भी करने लगे तो अपना और साथ ही इस समूचे क्षेत्र का गौरव गिरा देंगे।

यह समय हिमालय में जाकर योग साधना करने और किन्हीं सिद्ध पुरुषों को ढूँढ़ निकालने का नहीं है। उस स्तर का अपने को बनाये बिना किसी सच्चे सिद्ध पुरुष को ढूँढ़ पाना भी कठिन है। उनका अनुग्रह और सहयोग पाना तो बहुत आगे की बात है।

इन दिनों धर्म और अध्यात्म का सर्वसाधारण के योग्य रास्ता एक ही है कि वे ब्राह्मण, साधु और वानप्रस्थ परम्परा को पुनर्जीवित करें और भारत की महान संस्कृति देव संस्कृति में नये सिरे से प्राण भरें।

First 37 39 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • Quotation
  • आँगन में विद्यमान कल्पवृक्ष
  • महान् कार्यों के लिए महान व्यक्तित्वों की आवश्यकता
  • Quotation
  • डा. माम (kahani)
  • भक्ति में देना ही पड़ता है।
  • नालन्दा विश्वविद्यालय (kahani)
  • अन्तरंग योग की पृष्ठभूमि
  • क्रियायोग के चार विधान
  • व्यक्तित्व का अधःपतन और उसकी परिणति
  • Quotation
  • बड़प्पन का मापदण्ड
  • आत्मा और शरीर का वास्तविक हित साधन
  • मिस्र के सन्त (kahani)
  • मनुष्य की सशक्त प्राण-ऊर्जा
  • धन बेटों को बाँट दिया (kahani)
  • धर्म अपने स्वस्थ स्वरूप में ही वरणीय है।
  • संयम से रहें दीर्घजीवी बनें
  • Quotation
  • Quotation
  • आवश्यकताओं और इच्छाओं का अन्तर
  • Quotation
  • मानवी सत्ता−जादू की पिटारी
  • संगीत और आत्मोत्कर्ष
  • Quotation
  • सत्संग में बैठने का चस्का (kahani)
  • भूत, भविष्य की नहीं, मात्र वर्तमान की सोचें
  • साहस और सूझबूझ के धनी
  • नानक देव की बढ़ती लगन (kahani)
  • आखिर में आवाजें किसकी थी?
  • आत्मवत् सर्व भूतेषुः (kahani)
  • पालब्रिन्टन द्वारा गुप्त भारत की खोज
  • Quotation
  • पुरातन गरिमा को भुलायें नहीं
  • Quotation
  • समय के साथ बदलिये
  • Quotation
  • योग की साधना की जाय, विडम्बना नहीं
  • Quotation
  • प्रेतों का अस्तित्व और स्वभाव
  • Quotation
  • किसी अन्य लोक में जा बसने की तैयारी
  • Quotation
  • Quotation
  • ब्राह्मण पद्मनाभ (kahani)
  • ऐसे होते हैं- दैत्य
  • Quotation
  • चेतना का रहस्यवाद
  • बाहर और भीतर की समृद्धियाँ
  • न आत्म−विश्वास खोयें न भयाक्रान्त रहें
  • Quotation
  • बढ़ते हुए मनोरोग−कारण और निवारण
  • Quotation
  • गुरुदेव की सावित्री साधना के संदर्भ में विशेष लेखमाला−
  • Quotation
  • VigyapanSuchana
  • स्थिति के अनुरूप साधनों की भिन्नता
  • ‘यज्ञ’−ज्ञान और विज्ञान का भाण्डागार
  • गलती न दुहराए (kahani)
  • ब्राह्मणत्व गिरेगा तो समाज की बर्बादी होगी
  • Quotation
  • अपनों से अपनी बात- ‘‘हीरक जयंती का सफल आयोजन’’
  • जमीन में गाड़ रखा (kahani)
  • तप की सामर्थ्य
  • तप की सामर्थ्य (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj