• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सच्ची और झूठी प्रार्थना
    • अर्जुन का असमंजस
    • आत्मिक प्रगति का राजमार्ग
    • बिलकुल संकोच नही (Kahani)
    • अपने को परिष्कृत करें और सिद्धियों के भण्डार बनें
    • Quotation
    • सुख दुःख का कारण दृष्टिकोण (Kahani)
    • पत्थर और फुल (Kahani)
    • प्रतिभा- जागरुकता और तत्परता की परिणति
    • Quotation
    • स्वर्ग या नर्क में से किसी एक का चुनाव
    • कष्टकारक दुष्परिणाम (Kahani)
    • सर पर पाप क्यों (Kahani)
    • निष्काम कर्मयोग एवं मुक्ति
    • Quotation
    • सशक्तता शक्तियों के सदुपयोग पर अवलम्बित
    • ब्रह्मचर्य का लाभ (Kahani)
    • व्रतशीलता बनाम हठवादिता
    • Quotation
    • Quotation
    • मानवी सत्ता हर दृष्टि से अनुपम, अद्भुत एवं आश्चर्यजनक
    • Quotation
    • Quotation
    • Quotation
    • Quotation
    • ज्ञान की महिमा कम नहीं (Kahani)
    • अहंकार का उन्माद (Kahani)
    • तर्क एवं श्रद्धा का समन्वित रूप- धर्म
    • प्रेम ही परमेश्वर है।
    • कर्मफल का सुनियोजित व्यवस्था क्रम
    • मनोनिग्रह और आत्मिक उत्कर्ष
    • श्रम से चमत्कार (Kahani)
    • मनुष्य की विलक्षण सत्ता
    • चेतना ने पदार्थ बनाया
    • Quotation
    • सुख का कारण ज्ञान है (Kahani)
    • ब्रह्मांड के हृदय की धड़कन
    • Quotation
    • विज्ञान के लिए भारी शोध कार्य करने को पड़ा है।
    • Quotation
    • मानवीय गरिमा को प्रभावित करने वाले गुण (Kahani)
    • यौन परिवर्तन की विचित्र घटनाएँ
    • Quotation
    • प्रतिभा का उपयोग शालीनता के लिए
    • Quotation
    • शक्तियों के दो ध्रुव केन्द्र
    • अहन्ता को छोड़ो (Kahani)
    • जाकों राखे सांइयाँ, मार सके ना कोय
    • मुफ्त के धन में अनेक दुर्गुण (Kahani)
    • मानवी सत्ता चिरपुरातन है।
    • Quotation
    • बाल-बुद्धि के लिए क्षमा माँगी (Kahani)
    • भारतीय परम्परा और संगीत उपचार
    • शिवाजी को अमोघ तलवार मिली (Kahani)
    • प्रथम सन्तान
    • शिखा सूत्र- हिन्दू संस्कृति के प्रतीक चिन्ह
    • महायुद्ध की तैयारियाँ समय रहते रुक जाँय
    • Quotation
    • VigyapanSuchana
    • सद्गुण पर निर्भर शासन की सुख शांति (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात- गुरुदेव का श्रावणी संदेश
    • VigyapanSuchana
    • जीवन-ज्योति-प्रदाता
    • जीवन-ज्योति-प्रदाता (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सच्ची और झूठी प्रार्थना
    • अर्जुन का असमंजस
    • आत्मिक प्रगति का राजमार्ग
    • बिलकुल संकोच नही (Kahani)
    • अपने को परिष्कृत करें और सिद्धियों के भण्डार बनें
    • Quotation
    • सुख दुःख का कारण दृष्टिकोण (Kahani)
    • पत्थर और फुल (Kahani)
    • प्रतिभा- जागरुकता और तत्परता की परिणति
    • Quotation
    • स्वर्ग या नर्क में से किसी एक का चुनाव
    • कष्टकारक दुष्परिणाम (Kahani)
    • सर पर पाप क्यों (Kahani)
    • निष्काम कर्मयोग एवं मुक्ति
    • Quotation
    • सशक्तता शक्तियों के सदुपयोग पर अवलम्बित
    • ब्रह्मचर्य का लाभ (Kahani)
    • व्रतशीलता बनाम हठवादिता
    • Quotation
    • Quotation
    • मानवी सत्ता हर दृष्टि से अनुपम, अद्भुत एवं आश्चर्यजनक
    • Quotation
    • Quotation
    • Quotation
    • Quotation
    • ज्ञान की महिमा कम नहीं (Kahani)
    • अहंकार का उन्माद (Kahani)
    • तर्क एवं श्रद्धा का समन्वित रूप- धर्म
    • प्रेम ही परमेश्वर है।
    • कर्मफल का सुनियोजित व्यवस्था क्रम
    • मनोनिग्रह और आत्मिक उत्कर्ष
    • श्रम से चमत्कार (Kahani)
    • मनुष्य की विलक्षण सत्ता
    • चेतना ने पदार्थ बनाया
    • Quotation
    • सुख का कारण ज्ञान है (Kahani)
    • ब्रह्मांड के हृदय की धड़कन
    • Quotation
    • विज्ञान के लिए भारी शोध कार्य करने को पड़ा है।
    • Quotation
    • मानवीय गरिमा को प्रभावित करने वाले गुण (Kahani)
    • यौन परिवर्तन की विचित्र घटनाएँ
    • Quotation
    • प्रतिभा का उपयोग शालीनता के लिए
    • Quotation
    • शक्तियों के दो ध्रुव केन्द्र
    • अहन्ता को छोड़ो (Kahani)
    • जाकों राखे सांइयाँ, मार सके ना कोय
    • मुफ्त के धन में अनेक दुर्गुण (Kahani)
    • मानवी सत्ता चिरपुरातन है।
    • Quotation
    • बाल-बुद्धि के लिए क्षमा माँगी (Kahani)
    • भारतीय परम्परा और संगीत उपचार
    • शिवाजी को अमोघ तलवार मिली (Kahani)
    • प्रथम सन्तान
    • शिखा सूत्र- हिन्दू संस्कृति के प्रतीक चिन्ह
    • महायुद्ध की तैयारियाँ समय रहते रुक जाँय
    • Quotation
    • VigyapanSuchana
    • सद्गुण पर निर्भर शासन की सुख शांति (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात- गुरुदेव का श्रावणी संदेश
    • VigyapanSuchana
    • जीवन-ज्योति-प्रदाता
    • जीवन-ज्योति-प्रदाता (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1985 - Version2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


अपने को परिष्कृत करें और सिद्धियों के भण्डार बनें

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 4 6 Last
हवा एक संसार व्यापी तत्व है। पर वह कहाँ कितनी है, इसका नाप करने के लिए उस क्षेत्र पर दृष्टि डालनी पड़ेगी जिसमें वह वायु भरी है। इसी प्रकार जलाशयों में-समुद्र सरिताओं में असीम जल भरा पड़ा है, पर किसी व्यक्ति के अधिकार में कितना जल है इसका अनुमान उसके बर्तन या क्षेत्र को देखकर लगाना पड़ेगा। अग्नि का तेजस् सर्वत्र विद्यमान है पर उसकी प्रचण्डता का अनुमान इस बात पर निर्भर है कि उसे कितनी मात्रा में किस स्तर का ईंधन मिला।

परमात्मा चेतन सत्ता का एक ब्रह्मांड व्यापी विस्तार है, पर वह आत्माओं में उतना ही अवतरित होता है जितनी कि उसकी क्षमता है। किसी के पास वह बहुत स्वल्प होता है किसी के पास अति प्रचुर। इसका कारण उसकी धारण क्षमता पर निर्भर है। जिस कोठे में ठसा-ठस काठ-कबाड़ भरा हुआ है। उसमें किसी भले मानुष को ठहराने की व्यवस्था नहीं की जा सकती है। कीचड़ भरी नाली में स्वच्छ जल का प्रवाह किस प्रकार बहाया जायेगा। परमात्मा के सम्बन्ध में भी यही बात है। उसका किसी से राग द्वेष नहीं, न उसे किसी की मनुहार की जरूरत है और न भेंट उपहार की आवश्यकता। उसे केवल एक बात देखनी होती है कि धारण करने की किसमें कितनी क्षमता है। हाथी जितना वजन लादकर चल सकता है उतना गधा नहीं। दुर्व्यसनी भिखारी को उपेक्षापूर्वक कुछ देकर भगा दिया जाता है किन्तु संबंधियों में जमाता अथवा लोक सेवी प्रामाणिक व्यक्तियों को सामर्थ्य भरा अधिकाधिक देने का प्रयत्न सम्मान पूर्वक किया जाता है।

भगवान भी इन्हीं नीति नियमों का पालन करते हैं और अपनी अनन्त सामर्थ्य में से अपनी सन्तानों में से प्रत्येक को उतना ही हस्तान्तरित करता है जितनी कि उसकी योग्यता है। छोटे-बच्चे को चाकलेट खरीदने के लिए दस पैसे भर मिलते हैं, पर वही जब बड़ा हो जाता है तो उसकी योग्यता और व्यवसाय की उपयुक्तता देख कर कोई बड़ी योजना कार्यान्वित करने के लिए संचित पूँजी का बड़े से बड़ा अंश पिता उस युवक को हस्तान्तरित कर देता है। छोटा बच्चा एक रुपया माँगता है तो उसके सदुपयोग पर अविश्वास करते हुए अभिभावक स्पष्ट इनकार कर देते हैं। किन्तु बड़े होने पर उसे इंजीनियरिंग कालेज की पढ़ाई पर पाँच सो रुपया मासिक भी प्रसन्नतापूर्वक देते हैं। भगवान भी यही करते हैं।

परमात्मा की सामर्थ्य का इतना विस्तार है कि उसकी एक-एक कलाकृति देखकर आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है बीज में से पेड़ खड़ा कर देना एक आश्चर्य है। आसमान में चाँद सितारे जिस पर अधर में लटक रहे हैं। सूरज जिस प्रकार असीम ऊर्जा वितरित करता है। जलाशयों के प्राणी किस प्रकार उस कैद खाने में प्रसन्न रहते और कल्लोल करते हैं वह देखते ही बनता है। आकाश में उड़ता पक्षी और बिना इन्द्रियों वाले केंचुए किस प्रकार अपनी निर्वाह सुविधाएँ उपलब्ध कर लेते हैं यह कुछ कम आश्चर्य की बात नहीं है। आसमान से बरसने वाला मूसलाधार पानी किसी विचारशील को प्रपंचों में डाल देने और सर्व सत्ता मान की गरिमा का अनुमान लगाने में कुछ कठिनाई नहीं होती।

मनुष्य को अन्य प्राणियों की तरह पेट की भूख और जननेन्द्रिय की खुजली मिटाने भर के लिए सामान्य बुद्धि और शरीर संरचना प्रदान की है। यह बच्चों को झुनझुने या पतंग, गुब्बारे बाँटने की तरह है। यह प्राणि की न्यूनतम और अनिवार्य आवश्यकता है। इन कारणों में उसे शरीरगत तृप्ति जुटाने का अवसर मिलता है और वह अपने शरीर तथा मन को काम-धन्धे में जुटाये रहता है। यदि भूख और कामेच्छा न होती तो प्राणी ऐसे ही निठल्ले पड़े रहते और उनकी सक्रियता एवं बुद्धिमत्ता तक जीवित न रह सकती। जीवधारी को हलचल भरा जीवनयापन करने के लिए यह दो तकाजे, गले से इस प्रकार बाँध दिये जाते हैं जिससे वह निठल्ला होकर अपनी सत्ता को पिछड़ेपन के गर्त में न धकेल दे।

किन्तु ऐसा नहीं समझना चाहिए कि भगवान के भण्डार में या उसके भाग्य में इतना ही सीमित है। जो मिला है उससे असंख्य गुना पाने की इसमें अभी और भी गुंजाइश है। पाने वाला चाहता भी है और देने वाला भी कंजूस नहीं है। इतने पर भी देखा जाता है कि चाहने वाले को मन-मसोस कर रहना पड़ता है और देने वाला भी अपने दुर्भाग्य को कोसता है कि वह ऐसे सत्पात्र नहीं पा सका, जिसे अपनी विभूतियाँ अधिकाधिक मात्रा में देकर अपने मन का भारीपन दूर करता और पाने वाला भी निहाल होकर रहता।

आत्मा परमात्मा का सजातीय और वंशज है। उसे बहुत कुछ प्राप्त करने का हक है। किन्तु देखा जाता है कि लोग क्षुद्र स्तर का-नर पशुओं जैसा ही जीवन व्यतीत करते हैं। न उन्हें स्वयं सन्तोष गर्व गौरव प्राप्त करने का अवसर मिलता और न दूसरों के लिए ही कोई प्रेरणाप्रद मार्ग छोड़कर जाते हैं।

घर में मकड़ी, छिपकली, मक्खी, मच्छर जैसे प्राणी भी रहते हैं। जिन्दगी भी काट लेते हैं, पर उनकी ओर कोई दृष्टि उठाकर भी नहीं देखता और न उनकी उपस्थिति से कोई लाभ या यश देखता है। परिवार के बीच रहकर कितने ही मनुष्य इसी प्रकार मौत के दिन पूरे करते हैं। जो महत्वाकाँक्षाएँ आत्मा को श्रेय, संतोष और यश गौरव चाहती हैं, वे एक प्रकार से अर्ध मृत, अर्ध मूर्च्छित स्थिति में ही पड़ी रहती हैं। उन्हें जगाने की भीतर से उमंग उठे तो योग्यताएँ भी उभरे। परिस्थितियाँ भी बनें। साधन भी जुटें और ऐसा अवसर मिले कि मनुष्य अपनी और दूसरों की दृष्टि में महत्वपूर्ण गिना जा सके।

इस दिशा में यदि किसी का मन चले तो समझना चाहिए कि उसकी मानवी गरिमा भ्रूण की स्थिति में न रहकर नवजात शिशु की तरह स्वयं नवजीवन पाने और सम्बन्धियों को नये उत्तरदायित्व संभालने में सफल रही। प्रगति मार्ग की ओर यात्रा चल पड़ी। इसके लिए प्रथम लक्ष्य यही हो सकता है कि अपने व्यक्तित्व को मानवी गरिमा के ढाँचे में ढाला जाय। गुण, कर्म, स्वभाव की दृष्टि से अपने को परिष्कृत जनों की पंक्ति में बैठ सकने योग्य बनाया जाय। चिन्तन, चरित्र और व्यवहार ऐसा बनाया जाय कि जो संपर्क में आये प्रभावित हुए बिना न रहे और अपनी तुलना में अधिक विकसित सद्गुणी अनुभव करते हुए सम्मान ही नहीं सहयोग भी प्रदान करे।

दूसरा चरण प्रगति के लक्ष्य पर चलने का यह है कि अपना व्यवसाय, कार्यक्रम, इस प्रकार का बनाया जाय जिससे अपने निर्वाह और लोकमंगल की सन्तुलित व्यवस्था बनी रहे। तृष्णाएँ बहुधा ऐसा वैभव माँगती हैं जिसके ओछे लोगों पर उसके दुस्साहस की छाप पड़ सके। ईमानदार और उदार आदमी का सम्पन्न बन सकता। असंभव है। लोगों पर अपनी आदर्शवादिता का स्थायी प्रभाव छोड़ने की अपेक्षा यह सरल पड़ेगा कि अपराधियों जैसा षडयंत्र बनाकर लोगों ठगा या आतंकित किया जाय। आमतौर से महत्वाकाँक्षी लोग यही करते और अपने को अपेक्षाकृत अधिक बुद्धिमान और सफल अनुभव करते हैं। पर जिन्हें उच्चस्तरीय प्रगति की आकाँक्षा है, उन्हें संसार के परमार्थ परायण लोगों की जीवन गाथाएँ पढ़नी चाहिए और देखना चाहिए कि भीतर उपजी महानता उन्हें किस प्रकार ऊंचा उठा सकी। कहाँ से कितने साधन जुटा सकी। कितनों का भावभरा शानदार सहयोग उपलब्ध करा सकी।

आज का वातावरण क्षुद्र लोगों और क्षुद्र गतिविधियों से भरा हुआ है। उदाहरण समझने और अनुकरण कर बैठने की क्षुद्रता से हमें अपने को बचाना चाहिए और वर्तमान काल के तथा भूतकाल के महामानवों की विचारणा और लोकहित के लिए अपनाये गये क्रिया-कलापों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। आदर्शों पर, आदर्शवादियों पर अपनी श्रद्धा केन्द्रीभूत करना, उनके पद चिन्हों पर सामयिक परिस्थितियों के अनुरूप अपनी कार्य शैली निर्धारित करना। उस निर्धारण पर सुदृढ़ रहना, ऐसा बड़ा काम है जो किसी के भी जीवन को धन्य बना सकता है। भले ही वह थोड़े ही अवधि के लिए जिया गया हो। शंकराचार्य, विवेकानन्द, रामतीर्थ आदि भरी जवानी में ही उठ गये थे, पर वे ऐसा शानदार जीवन जिए जिस पर हजारों शतायुष्यों को निछावर किया जा सकता है।

बाल-बुद्धि की एक और माँग है कि वे अपने में कोई ऐसी विलक्षणता प्रकट कर सकें जिसे सिद्धियाँ चमत्कार कहा जाता है। यह प्रलोभन भूतकाल में भी था और अब भी पाया जाता है। योगी, तपस्वी, सिद्ध पुरुष अपनी विलक्षणताओं को दिखाकर सर्वसाधारण को प्रभावित करते थे। यहाँ तक कि वाम मार्ग- तन्त्र मार्ग की अवांछनीय प्रक्रिया का अवलम्बन करके हेय जीवन जीते और स्वार्थी लोगों की उचित अनुचित सहायता करते थे। जो इन प्रयोजनों के लिए कष्ट साध्य साधनाएँ नहीं कर सकते थे उनने इस प्रयोजन को जादूगरी या इन्द्रजाल से लोगों को हिप्नोटिज्म स्तर के प्रयोगों द्वारा अपने की विलक्षणता सिद्ध करने का प्रयास किया। अब भी वह शैली फल-फूल रही है और भोले भावुकों को भूत-प्रेत देवी-देवताओं के नाम पर भ्रम-जंजाल में फंसाया और उनके समय तथा धन को बर्बाद कराया जा रहा है।

यह बाल-बुद्धि किसी भी शालीनता समर्थक विज्ञजन को शोभा नहीं देती। सामान्य लोगों के बीच-सामान्य लोगों की तरह जीवनयापन करते हुए ऐसी छाप छोड़ना बहुत ही महत्वपूर्ण है। जिसमें उच्चस्तरीय यथार्थता हो और किसी छल-कपट का रहस्यवाद का आश्रय न लेना पड़ा।

चर्चा यदि सिद्धियों की ही चल पड़ी और व्यक्ति को अपनी अतीन्द्रिय क्षमताओं के प्रश्न पर विचार करना पड़े तो भी हमें यही मानकर चलना होगा कि वे विभूतियाँ श्रेष्ठ विभूतियाँ, श्रेष्ठ सज्जनों में-ऋषि मुनियों में अनायास ही उत्पन्न हो जाती हैं। संसार में कहाँ क्या हो रहा है? कब क्या होने जा रहा है? यह जानने के लिए किसी अतिरिक्त कला-कौशल को अपनाने की आवश्यकता नहीं है। यह कार्य स्वच्छ दर्पण पर प्रतिबिंब सही रूप में दिखने की तरह है। बढ़िया कैमरे में वस्तु स्थिति का चित्र खींचने की तरह टेलिस्कोप से दूर-दूर तक का देखने की तरह माइसकोप से अदृश्य कीटाणुओं को देख सकने की तरह-श्रेष्ठ जीवन में ऐसी विशेषताएँ स्वयमेव उत्पन्न हो जाती हैं।

इन दिनों परामनोविज्ञानी इस प्रकार की विलक्षणताओं को-अतीन्द्रिय क्षमता कह रहे हैं। दूर-दर्शन, दूर-श्रवण भविष्य कथन, विचार संचालन आदि को मानसिक क्षेत्र की सिद्धियाँ मान रहे हैं और उसके लिए क्या करना चाहिए। क्या किया गया था, इसका पता लगाना चाहते हैं किन्तु समझा जाना चाहिए कि जिन लोगों में अनायास ही ऐसी विशिष्टताएँ प्रकट होती हैं, उनमें पूर्वजन्मों की मानसिक स्वच्छता काम कर रही होती है। इस समय भी ऐसे अभ्यास किये जा सकते हैं जिनके द्वारा ऐसी विलक्षणताएं प्रकट की जा सकें। पर देखा जाता है कि जो अपने में ऐसी विशेषताएं प्रदर्शित करते हैं वे लोगों को अचम्भे में डालने और अपनी विलक्षणता सिद्ध करने तक ही सीमित रहते हैं। उन उपलब्धियों का उपयोग किसी ऐसे महान प्रयोजन के लिए नहीं होता जिससे व्यक्तित्वों को समुन्नत और विपन्नताओं का अनुकूलन किया जा सके। ऐसी दशा में वे अतीन्द्रिय क्षमताएँ भी चर्चा का विषय बनकर रह जाती हैं। अधिक से अधिक यह साबित कर सकती हैं कि मानवी सत्ता में कितने अनोखे रहस्य छिपे पड़े हैं। उनको हस्तगत करे अबकी अपेक्षा कितनी सुविधाएँ प्राप्त की जा सकती है।

यहाँ यह समझा जाना ही चाहिए कि ख्याति के लिए स्वार्थ साधन के लिए-अन्यों को नीचा दिखाने के लिए यदि इन शक्तियों का उपयोग किया जाय तो वे अधिक दिन तक ठहरती भी नहीं और उस जादूगर के लिए अन्ततः पश्चाताप ही छोड़ जीत हैं।

इन सिद्धियों को देखकर इतना समझना ही पर्याप्त होगा कि मनुष्य उतना ही सीमित नहीं है जितना कि दृष्टिगोचर होता है। उसमें ईश्वर का अंश होने के नाते लगभग उतनी ही क्षमताएँ एवं विलक्षणताएँ भरी पड़ी हैं, जितना कि आत्मा के उद्गम केन्द्र परमात्मा में है। वे इतनी अधिक है कि विज्ञात ऋद्धि-सिद्धियां तो सहज ही उससे मिलने के कारण हस्तगत हो ही जाती हैं वरन् ऐसी विभूतियाँ भी हस्तगत हो जाती हैं जो अभी चर्चा का विषय नहीं बन पाई हैं।

सिद्धियों में उत्कृष्ट चिन्तन, आदर्श चरित्र और परमार्थ परायण व्यवहार की तीन विभूतियाँ सर्वोपरि हैं। इनको प्राप्य करने के लिए निरन्तर जीवन को अभ्यस्त करना अपने आप में एक सर्वसुलभ ओर अत्यन्त उच्चतर का योगाभ्यास है। इसे कर गुजरने वाले अपने समीपवर्ती वातावरण को स्वर्ग जैसा सुखद पाते हैं। अनाचार की पशु प्रवृत्तियाँ छूटते ही वे भव-बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं। वे सिद्धियाँ जिन्हें विलक्षणताएँ कहते हैं, वे पवित्र आत्माओं के इर्द-गिर्द अनायास ही घूमती और उपेक्षित होती रहती हैं।

First 4 6 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सच्ची और झूठी प्रार्थना
  • अर्जुन का असमंजस
  • आत्मिक प्रगति का राजमार्ग
  • बिलकुल संकोच नही (Kahani)
  • अपने को परिष्कृत करें और सिद्धियों के भण्डार बनें
  • Quotation
  • सुख दुःख का कारण दृष्टिकोण (Kahani)
  • पत्थर और फुल (Kahani)
  • प्रतिभा- जागरुकता और तत्परता की परिणति
  • Quotation
  • स्वर्ग या नर्क में से किसी एक का चुनाव
  • कष्टकारक दुष्परिणाम (Kahani)
  • सर पर पाप क्यों (Kahani)
  • निष्काम कर्मयोग एवं मुक्ति
  • Quotation
  • सशक्तता शक्तियों के सदुपयोग पर अवलम्बित
  • ब्रह्मचर्य का लाभ (Kahani)
  • व्रतशीलता बनाम हठवादिता
  • Quotation
  • Quotation
  • मानवी सत्ता हर दृष्टि से अनुपम, अद्भुत एवं आश्चर्यजनक
  • Quotation
  • Quotation
  • Quotation
  • Quotation
  • ज्ञान की महिमा कम नहीं (Kahani)
  • अहंकार का उन्माद (Kahani)
  • तर्क एवं श्रद्धा का समन्वित रूप- धर्म
  • प्रेम ही परमेश्वर है।
  • कर्मफल का सुनियोजित व्यवस्था क्रम
  • मनोनिग्रह और आत्मिक उत्कर्ष
  • श्रम से चमत्कार (Kahani)
  • मनुष्य की विलक्षण सत्ता
  • चेतना ने पदार्थ बनाया
  • Quotation
  • सुख का कारण ज्ञान है (Kahani)
  • ब्रह्मांड के हृदय की धड़कन
  • Quotation
  • विज्ञान के लिए भारी शोध कार्य करने को पड़ा है।
  • Quotation
  • मानवीय गरिमा को प्रभावित करने वाले गुण (Kahani)
  • यौन परिवर्तन की विचित्र घटनाएँ
  • Quotation
  • प्रतिभा का उपयोग शालीनता के लिए
  • Quotation
  • शक्तियों के दो ध्रुव केन्द्र
  • अहन्ता को छोड़ो (Kahani)
  • जाकों राखे सांइयाँ, मार सके ना कोय
  • मुफ्त के धन में अनेक दुर्गुण (Kahani)
  • मानवी सत्ता चिरपुरातन है।
  • Quotation
  • बाल-बुद्धि के लिए क्षमा माँगी (Kahani)
  • भारतीय परम्परा और संगीत उपचार
  • शिवाजी को अमोघ तलवार मिली (Kahani)
  • प्रथम सन्तान
  • शिखा सूत्र- हिन्दू संस्कृति के प्रतीक चिन्ह
  • महायुद्ध की तैयारियाँ समय रहते रुक जाँय
  • Quotation
  • VigyapanSuchana
  • सद्गुण पर निर्भर शासन की सुख शांति (Kahani)
  • अपनों से अपनी बात- गुरुदेव का श्रावणी संदेश
  • VigyapanSuchana
  • जीवन-ज्योति-प्रदाता
  • जीवन-ज्योति-प्रदाता (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj