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Magazine - Year 1989 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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First 51 53 Last
अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि युग संधि के बारह वर्षों में समस्त विश्व को समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, बहादुरी और दयानतदारी का पाठ नये सिरे से पढ़ाना होगा। बिखराव और टकराव को एकता-समता के केन्द्र पर केन्द्रीभूत करना पड़ेगा। इसके बिना शक्तियों का दुरुपयोग रोकना और उन्हें सृजन के सत्प्रयोजनों में नियोजित कर सकना संभव न होगा। उज्ज्वल भविष्य की संभावना इतना बन पड़ने पर ही सुनिश्चित हो सकतीं हैं। इस अति महत्वपूर्ण और अति व्यापक तैयारी के लिए करोड़ों की संख्या में सृजन शिल्पियों को विभिन्न मोर्चों पर उतरना पड़ेगा। अभाव साधनों का नहीं है। शक्ति सम्पादन के स्रोत भी अगणित हैं। कुशलता भी बड़ी मात्रा में मनुष्य समुदाय ने अर्जित कर ली है। कमी केवल एक ही पड़ रही है - उदारमना, प्रतिभाशाली व्यक्तित्वों की। यदि उन्हें जुटाया जा सके तो अन्य सभी कमियों को पूरा करना और समस्याओं को हल कर लेना कुछ भी कठिन न रह जाएगा।

इस दिनों करने योग्य तो अनेक काम हैं। गरीबी हटाओ, शिक्षा बढ़ाओ, साधन जुटाओ जैसे कार्यों को प्रमुखता दी जा रही है सो ठीक है, पर इससे भी अधिक प्रमुखता देकर उस कमी को पूरा करना है जिसके आधार पर जनज न में नव चेतना का संचार संभव हो सके। स्मरण रहे कि जले हुए दीपक ही दूसरे को जला पाने में समर्थ हो सकते हैं। दीपकों का अनुकरण करने के लिए प्रत्यक्ष आधार खड़े करना ही वह समर्थ माध्यम है जिसके सहारे विचारणाओं, मान्यताओं और तदनुरूप गतिविधियों का उच्चस्तरीय सूत्र संचालन संभव हो सकता है। इन बारह वर्षों में इसी अभाव को पूरा करने की बात को प्रमुखता दी जानी चाहिए।

अखण्ड-ज्योति परिवार ने अपने समुदाय में से एक लाख सृजन शिल्पी विश्व मानवता के चरणों पर अर्पित करने का संकल्प लिया है। उस पूरा करने में प्राणपण से कटिबद्ध भी होना है। योजनाबद्ध रूप से प्रयत्नशील होने पर ही भारी भरकम लक्ष्य तक पहुँचना संभव हो सकेगा। यों समग्र आवश्यकता को देखते हुए सृजन शिल्पियों की यह संख्या दिखती तो है बहुत कम, परन्तु आशा की जानी चाहिए कि प्रचलन चल पड़ने पर पुर्जा दूसरे को धकेलते घसीटते हुए समय की महती माँग का, कुछ कहने लायक अंश पूरा कर सकेगा।

संबद्ध लोगों में से भावनाशीलों को शान्तिकुँज में नौ दिवस वाले और एक महीने वाले वरिष्ठ परिजनों के लिए निर्धारित सत्रों में सम्मिलित होने के लिए बुलाया गया है। औसत साढ़े आठ हजार वार्षिक अर्थात् प्रायः 700 व्यक्तियों को प्रतिमाह आवश्यक प्रेरणा और प्रतिभा देकर उन कार्यों में जुटाना है, जिनके आधार पर नव युग का वातावरण बन सके, इक्कीसवीं सदी के उज्ज्वल भविष्य का आधार बनने वाला प्रभात पर्व अपने उदय का प्रमाण परिचय दे सके। यह अपनी हिस्सेदारी है। आशा की जानी चाहिए कि इस मॉडल को खड़ा होते देख कर अन्यान्य प्रतिभाएँ भी अपने अपने हिस्से का दायित्व सम्हालेंगी और समग्रता के लिए जो शेष है उसे पूरा करेंगी।

धर्मतन्त्र को माध्यम बनाकर, लोक शिक्षण की प्रक्रिया आशातीत उत्साह के साथ चल रही है। कोटि व्यक्तियों के दरवाजों पर अलख जगाने और नव सृजन की प्रेरणा उभारने का काम चल रहा है। दीप यज्ञों को प्रचार आयोजनों का स्वरूप दिया गया है। उनमें सम्मिलित होने वाले युग चेतना को ज्वलन्त बनाने के लिए समय दान-अंशदान का संकल्प लेते हैं। युग साहित्य के पठन श्रवण से, साप्ताहिक सत्संकल्पों के माध्यम से उनकी संगठन-आत्म साधना और नव सृजन के क्रिया-कलापों को कार्यान्वित करने की विधा, क्रमबद्ध रूप से चलती रहती है। इसी समुद्र मंथन में से कुछ उदीयमान प्रतिभाएँ हस्तगत होती हैं। इन्हें शान्तिकुँज के सत्रों में सम्मिलित होने की प्रेरणा दी जाती है। कुम्हार अपने कच्चे बर्तनों को सुखाकर इकट्ठे करता और आँवे में एक साथ पकाता है। इसी प्रक्रिया का एक रूप शान्तिकुँज की शिविर योजना है, जो इन सत्रों के माध्यम से आरम्भ से ही चल रही है और लक्ष्य पूरा होने तक अनवरत रूप से चलती ही रहेगी।

स्कूली शिक्षण तो गाँव गाँव चल सकता है। उसके लिए उपयुक्त शिक्षा प्राप्त शिक्षक भी पाठ्यक्रम पूरा करा सकते हैं। पर जहाँ तक भाव संवेदनाओं के लिए अमेरिका ने भारत सरकार से वैसी ....प्राप्त करने के लिए प्रयत्न भी किया है। .... उपयुक्त स्थान संसार में अन्यत्र मिला नहीं। ....के कजाकिस्तान व अजरबेजान क्षेत्र में जितनी ....आयु के जीने वाले दीर्घजीवी होते हैं, संसार .... अन्यत्र नहीं देखे जाते। वायु का दबाव जैसा .... में है, वैसा अन्यत्र कहीं नहीं। पवन .... उस देश में जितनी सफल हुई हैं उतनी .... किसी देश में नहीं। तिब्बत से आगे लम्बा ....का पठार ऐसा है, जिसे नितान्त ठंडा परन्तु .... ही कहा जा सकता है, यह अन्यत्र कहीं नहीं ....।

पृथ्वी का चुम्बकीय ध्रुव केन्द्र एक ही स्थान पर .... वह इतना संतुलित और संवेदनशील है कि वहाँ .... घूँसा भी कस कर मार दिया जाय तो पृथ्वी की .... और कक्षा का वर्तमान क्रम ही बदल जाय। .... ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव की अपनी-अपनी .... हैं। उनके-प्रदान चलता है।

शान्तिकुँज की स्थापना के समय भी ऐसी दिव्य .... उस क्षेत्र में खोजी गयी और युग साधना .... लिए सामर्थ्यवान साधकों को विनिर्मित करने के .... उसे अनेकों विशेषताओं से सम्पन्न किया गया।....परम्पराओं और नवीनतम विशिष्ट साधनाओं का .... समावेश किया गया है, ताकि वातावरण .... ऊर्जा भरी रहे और इस अध्यात्म संगम का .... करने वाले समुचित लाभ ले सकें।

गंगा की गोद हिमालय की छाया सप्तऋषियों की .... होने के कारण, शान्तिकुँज के स्थान की .... को आध्यात्मिक त्रिवेणी संगम कहा जा .... है। स्थापना के अवसर पर चौबीस लाख .... चौबीस महापुरश्चरणों का यहाँ आयोजन किया ....। 65 वर्ष से जलने वाली अखण्ड-ज्योति की .... अनुपम स्थापना है। नौ कुण्डों की यज्ञशाला .... अनुष्ठानी साधकों द्वारा हजारों आहुतियों का यज्ञ .... है। स्थानीय निवासी तथा बाहर के आगन्तुक .... अपनी साधना बड़ी मात्रा में करते हैं, जो प्रतिदिन कितने ही लक्ष मंत्र ज पके समकक्ष हो जाती है। यह प्रत्यक्ष है। परोक्ष वह है जिसमें हिमालय की देवात्मा सप्तऋषियों का प्रतीत पूजन अदृश्य सत्ताओं को आकर्षित करता रहता है। संस्थापक ऋषियुग्म की तपश्चर्या अपना विशेष प्रभाव उत्पन्न करती है।

साधना, स्वाध्याय, संयम और सेवा प्रक्रिया को, शिक्षार्थियों को अन्तराल की गहराई तक उतारने की व्यवस्था का सत्रों में समुचित समावेश है। मनोबल और आत्मबल बढ़ाने वाले आहार के साथ दिव्य औषधियों का सेवन भी आवश्यकतानुसार जुड़ा रहता है। ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में बहुमूल्य यंत्रों द्वारा मूर्धन्य वैज्ञानिक, हर शिविरार्थियों की जाँच पड़ताल करते हैं। साधना की सफलता का अनुमान बहुत कुछ इस आधार पर भी लग जाता है।

शान्तिकुँज आश्रम के निवासियों में से अधिकाँश उच्च शिक्षित, सेवा साधना में उच्चस्तरीय तत्परता के साथ निरत और ब्राह्मणोचित निर्वाह में पूरी तरह संतुष्ट और उल्लसित रह कर देखने वाले यह समझ सकते हैं, कि व्यवहार में अध्यात्म तत्वज्ञान और नीति संयम का समावेश कितना सहज और सुखद है।

पुरातन तीर्थ स्थानों में उच्चस्तरीय विशेषताएँ आदि से अन्त तक भरी रहती थीं। प्रयत्न किया गया है कि लगभग वैसा वातावरण यहाँ अक्षुण्ण रूप से बना रहे। तक्षशिला, नालंदा विश्वविद्यालयों में ऐसी ही विशेषताएँ थीं जिनके कारण वहाँ शिक्षा साधना करने वाले नर रत्न बनकर निकले।

युगसंधि के बारह वर्षों में जो युगशिल्पी सत्रों की योजना बनी है उसके साथ एक लाख पुरोहित वर्ग की प्रतिभाएँ उभारने का संकल्प भी साथ जुड़ा हुआ है। आशा की जानी चाहिए कि उपयुक्त प्रयास, उपयुक्त वातावरण, ऐसे व्यक्तित्व निखारने में सफल होगा जो इक्कीसवीं सदी के अवतरण में अपनी छोटी किन्तु उच्चस्तरीय भूमिका निभाने में सफल हो सके।

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Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
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Type: SCAN
Language: HINDI
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