Magazine - Year 1989 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
सृजन प्रयोजनों के निमित्त परोक्ष-जगत का योगदान
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
संसार के जितने भी महान आन्दोलन या महाक्रान्तियाँ हुई हैं, उनको जन्म देने वाली प्रेरणा की निर्झरिणी का उद्गम केन्द्र एक अविज्ञात दैवी चेतन सत्ता ही परोक्ष रूप से रही है। अन्यथा उनके आरंभिक स्वरूप को देखते हुए कोई यह अनुमान नहीं लगा सकता था कि कभी वे इतनी सुविस्तृत बनेंगी और संसार की इतनी सेवा करेंगी। दैवी चेतना ने जहाँ उन महाक्रान्तियों को किसी परिष्कृत व्यक्तित्व के माध्यम से उसे विकसित किया, वहीं इतनी व्यवस्था और भी बनाई कि उस उत्पादन को अग्रगामी बनाने के लिए सहयोगियों की श्रृंखला बढ़ती चली जाय। एक विशेष बात यह है कि उस समय एक जैसे ही विचार असंख्यों के मन में उठते हैं और उन सबकी मिली-जुली शक्ति से सृजन स्तर के कार्य इतने अधिक और इतने सफल होने लगते हैं कि दर्शकों को इसका अवलोकन करके आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है।
विश्व इतिहास में कितनी ही ऐसी महाक्रान्तियाँ हुई हैं, जो चिरकाल तक स्मरण की जाती रहेंगी और लोक मानस को महत्वपूर्ण तथ्यों से अवगत कराती रहेंगी। वस्तुतः महान घटनाओं के पीछे दैवी प्रेरणा ही प्रमुख रूप से कार्यरत देखी जाती है जिनमें व्यापकता के साथ-साथ प्रवाह परिवर्तन भी जुड़ा होता है। ऐसी घटनाओं में चाहे पौराणिक काल का समुद्र मंथन, वृत्रासुर, गंगावतरण, हिरण्याक्ष के बन्धनों से पृथ्वी की मुक्ति, परशुराम द्वारा कुपथगामियों का ब्रेन-वाशिंग आदि हों अथवा इतिहास काल के कुछ शक्तिशाली परिवर्तन जैसे रामायण प्रसंग, महाभारत आयोजन और बुद्ध का धर्म चक्र प्रवर्तन आदि। यह सभी महाक्रान्तियाँ ऐसी थीं जिनने कालचक्र के परिवर्तन में महान भूमिका निभाई। असुरों के विनाश के उपरान्त रामराज्य के साथ सतयुग की वापसी संभव हुई। महाभारत के उपरान्त भारत की महान भारत बनाने का लक्ष्य पूरा हुआ। बुद्ध के धर्म चक्र प्रवर्तन से उठी चिनगारी ने अगणित क्षेत्रों के अगणित प्रसंगों की ऊर्जा और आभा से भर दिया। पिछले दिनों प्रजातंत्र और साम्यवाद की सशक्त नई विचारणा इस प्रकार उभरी जिसने लगभग समूची विश्व वसुधा को आन्दोलित करके रख दिया। ये महाक्रान्तियाँ सिद्ध करती हैं कि दैवी प्रवाह प्रेरणा जब भी सक्रिय होती है, मनीषा उस चेतन ऊर्जा से अनुप्राणित हो उठती है और वह कार्य कर दिखाती है जिसकी कभी कल्पना तक न की थी अथवा उसे असंभव माना जाता था।
अपने समय का महापरिवर्तन “युगान्तर” के नाम से जाना जा सकता है। युग परिवर्तन की प्रस्तुत प्रक्रिया का एक ज्वलन्त पक्ष तब देखने में आया, जब प्रायः दो हजार वर्षों से चले आ रहे आक्रमणों अनाचारों से छुटकारा मिला। दैवीचेतना से उद्भूत महाक्रान्ति ने अपना स्वरूप प्रकट किया और भारत ने लम्बे समय से चली आ रही राजनीतिक पराधीनता का जुआ देखते-देखते उतार फेंका। प्रचण्ड दावानल इतने तक ही नहीं रुका। संसार भर में प्रायः राजतंत्र का सफाया हो गया। जो अमीर, रजवाड़े और जमींदार छत्रप बने हुए थे, वे न जाने किस हवा के झोंके के साथ टूटी पतंग की तरह उड़ गये। अफ्रीका महाद्वीप के अधिकाँश देश साधारण से प्रयत्नों के सहारे स्वतंत्र हो गये। इसके अतिरिक्त छोटे-छोटे द्वीपों तक ने राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर ली। दास प्रथा जैसे इतने पुराने सामाजिक कुप्रचलनों को इतनी तेजी से उखाड़ना संभव हुआ, मानो किसी बड़े तूफान ने सब कुछ उलट-पलट कर रख दिया हो।
अग्रगामियों को सदैव दैवी प्रवाह प्रेरणा में बहते देखा जाता है। दैवी चेतना पग-पग पर उनका मार्गदर्शन करती और आवश्यक सरंजाम जुटाती चलती है। कितनों के अचेतन को झकझोरती और अग्रिम मोर्चे पर ला खड़ा करती है।
दास प्रथा के उन्मूलन में अब्राहम लिंकन और हैरियट स्टो के नाम मूर्धन्यों में लिये जाते हैं। इस कुप्रचलन को समाप्त कराने में अदृश्य चेतन सत्ता की परोक्ष भूमिका कार्यरत थी। सर ओलिवर लॉज ने भी अपनी पुस्तक “सरवाइवल आफ मैन” में इस तथ्य को स्वीकार किया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को अपने अधिकाँश कार्यों की प्रेरणा अदृश्य चेतन सत्ता के माध्यम से मिला करती थी।
फ्राँस की राज्यक्रान्ति की सफल संचालिका ‘जोन आफ आर्क’ एक मामूली से किसान के घर जन्मी थी। जब वह अपने पिता के घर थी तभी एक दिन आसमान से एक फरिश्ता उतरा और उसके कान में कह गया कि “अपने को पहचान समय की पुकार सुन और स्वतंत्रता की मशाल जला।” यह प्रेरणा इतनी जीवन्त और सशक्त थी कि जोन ने इन बातों को गाँठ बाँध लिया उसी समय से फ्राँस को स्वतंत्र कराने के लिए उत्साह के साथ काम करने लगी इतिहास साक्षी है कि उसने कितनी वीरता के साथ स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और अपने प्राणों की बाजी लगाकर सफलता प्राप्त की। साथ ही अपने आप को अमर कर गयी।
पिछले दिनों ऐसी अनेकों घटनाएँ घटी हैं जिसमें लोक मंगल के लिए जुट पड़ने के लिए व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से लोगों को दैवी प्रेरणाएं उभरी अथवा सूक्ष्म संकेत मिले। एक घटना बैनजुएला की है।
दक्षिण अमेरिका का यह देश तब एक स्पेनी उपनिवेश था। उसकी प्रजा में स्वतंत्रता के लिए कुँरामुसाहट तो थी, पर तीखे आन्दोलन के लिए कोई आगे न बढ़ रहा था। असंगठित प्रजा बेचारी करती क्या?
उन्हीं दिनों फ्राँस को नेपोलियन के नेतृत्व में आजादी मिली थी। बैनेजुएला के केरामश नगर के “बेलियर” नामक एक युवक ने भी उस विजयोत्सव को देखा था। उसे दैवी प्रेरणा मिली कि वह भी आजादी की मशाल जलाये और अपने देश को विदेशियों से मुक्त कराये। इससे प्रेरित होकर उसने रोम की एक पहाड़ी पर खड़े होकर एकाकी प्रतिज्ञा की कि वह अपने देश को आजाद कराके रहेगा। वह कैसे इस कार्य को करे, यह ताना-बाना बुन ही रहा था। तभी उसे अपने पुराने साथी फ्राँसिस्को मिराण्डा की याद आयी, जिसने कुछ दिन पहले आजादी की लड़ाई लड़ी थी, किन्तु असफल रहने के कारण इंग्लैण्ड में निर्वासित जीवन जी रहा था।
बोलियर ने मिराण्डा को इंग्लैण्ड से गुपचुप बुला लिया। दोनों ने मिलकर जन संपर्क साधा और एक दिन देश के स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। छापामार लड़ाई चलती रही। इसी बीच एक युद्ध में बोलियर और मिराण्डा घायल हो गये और एक छोटे से द्वीप में अपना इलाज कराने लगे। इन दोनों की बाद में वहीं मृत्यु हो गई किन्तु युद्ध जारी रहा और अन्ततः स्पेनी शासन के पैर उखड़ गये और बेनुजुएला स्वतंत्र राष्ट्र बन गया। आजादी की लड़ाई का यह तूफान बेनजुएला तक सीमित न रहकर पूरे दक्षिण अमेरिका में फैल गया और देखते-देखते सभी राज्य स्पेनी शासन से मुक्ति पाकर स्वतंत्र जनतंत्र बन कर अपनी पसन्दगी का शासन चलाने लगे।
उपरोक्त उदाहरण यह प्रमाणित करते हैं कि समय-समय पर दैवी चेतना प्रचण्ड प्रेरणा प्रवाह बनकर स्वयं अथवा प्रतिभावानों के माध्यम से जन मानस को प्रेरित-आन्दोलित करती, आवश्यक साधन जुटाती और धराधाम पर अभीष्ट परिवर्तन ला खड़ा करती है। इक्कीसवीं सदी की उज्ज्वल संभावना को साकार बनाने में उसी परम सत्ता की परोक्ष भूमिका को सक्रिय देखा जा सकता है।