• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • चिन्तन की दृष्टि से हम प्रौढ़ बनें!
    • चेतन सत्ता का अवतरण- व्यक्तित्व में परिवर्तन
    • प्रार्थना जीवन का अविच्छिन्न अंग बने।
    • नवयुग विवेक पर अवलम्बित होगा
    • प्रतिकूलताएँ निखारती हैं, व्यक्तित्व को
    • साधना से सिद्धि का शाश्वत सिद्धांत!
    • सूक्ष्म जगत में विद्यमान आसुरी सत्ता का प्रवाह!
    • Quotation
    • प्रसन्नता का चुम्बकत्व
    • मिठास का आनन्द (kahani)
    • सृजन प्रयोजनों के निमित्त परोक्ष-जगत का योगदान
    • मनस्विता की प्रचण्ड शक्ति
    • सुगंधों से मन को प्रफुल्लित करें, प्रसुप्त को जगायें
    • प्रतिभा एवं संकल्पशक्ति का उभार
    • राग-रागनियां आँदोलित करती है शरीर व मन को
    • आनंद का उद्गम-आत्मभाव
    • विरोध नहीं समभाव के विषय में सोचें!
    • Quotation
    • स्फूर्ति व मस्ती पाने की सही विधि!
    • विकास के साथ साथ विनाश से जूझना भी आवश्यक
    • रोगोपचार की एक ही कुँजी
    • मृत्यु का विस्मरण एक असाधारण प्रमाद
    • Quotation
    • सविता का अनुदान प्राणशक्ति के रूप में
    • विशेषताओं में हम से कहीं आगे हैं अन्यान्य प्राणी
    • चेतना को अन्तर्मुखी बनाऐं
    • भ्रान्तियों से उबरें, प्रगति पथ प्रशस्त करें
    • नारी का अद्भुत अन्तराल
    • जागरूकता और साहसिकता
    • व्यावहारिक जीवन का ध्यान योग
    • Quotation
    • परिस्थिति नहीं मनःस्थिति बदलें!
    • युगसंधि की प्रथम किरण
    • इक्कीसवीं सदी की नारी जाग चुकी है!
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • चिन्तन की दृष्टि से हम प्रौढ़ बनें!
    • चेतन सत्ता का अवतरण- व्यक्तित्व में परिवर्तन
    • प्रार्थना जीवन का अविच्छिन्न अंग बने।
    • नवयुग विवेक पर अवलम्बित होगा
    • प्रतिकूलताएँ निखारती हैं, व्यक्तित्व को
    • साधना से सिद्धि का शाश्वत सिद्धांत!
    • सूक्ष्म जगत में विद्यमान आसुरी सत्ता का प्रवाह!
    • Quotation
    • प्रसन्नता का चुम्बकत्व
    • मिठास का आनन्द (kahani)
    • सृजन प्रयोजनों के निमित्त परोक्ष-जगत का योगदान
    • मनस्विता की प्रचण्ड शक्ति
    • सुगंधों से मन को प्रफुल्लित करें, प्रसुप्त को जगायें
    • प्रतिभा एवं संकल्पशक्ति का उभार
    • राग-रागनियां आँदोलित करती है शरीर व मन को
    • आनंद का उद्गम-आत्मभाव
    • विरोध नहीं समभाव के विषय में सोचें!
    • Quotation
    • स्फूर्ति व मस्ती पाने की सही विधि!
    • विकास के साथ साथ विनाश से जूझना भी आवश्यक
    • रोगोपचार की एक ही कुँजी
    • मृत्यु का विस्मरण एक असाधारण प्रमाद
    • Quotation
    • सविता का अनुदान प्राणशक्ति के रूप में
    • विशेषताओं में हम से कहीं आगे हैं अन्यान्य प्राणी
    • चेतना को अन्तर्मुखी बनाऐं
    • भ्रान्तियों से उबरें, प्रगति पथ प्रशस्त करें
    • नारी का अद्भुत अन्तराल
    • जागरूकता और साहसिकता
    • व्यावहारिक जीवन का ध्यान योग
    • Quotation
    • परिस्थिति नहीं मनःस्थिति बदलें!
    • युगसंधि की प्रथम किरण
    • इक्कीसवीं सदी की नारी जाग चुकी है!
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1989 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


परिस्थिति नहीं मनःस्थिति बदलें!

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 31 33 Last
स्रष्टा ने यह सृष्टि चित्र विचित्र प्राणियों और परिस्थितियों के लिए बनायी है। इसमें समता और सुविधा भी कम नहीं, पर भिन्नताओं और प्रतिकूलताओं की भी यहाँ भर मार है। एक ही सुविधा दूसरे की असुविधा बन जाती है। ऐसी दशा में स्रष्टा को इसके लिए कैसे सहमत किया जाय कि किसी को असुविधा न हो और सर्वत्र एकता, समता, सुविधा बनी रहे ऐसा होना संभव नहीं, क्योंकि प्रतिकूलताओं को सहने से मनुष्य में सहनशक्ति विकसित होती है, साथ ही प्रतिकूलताओं से संघर्ष करने की भी। एक तीसरा उपाय भी है कि प्रतिकूलताओं को अनुकूलता में बदलने के लिए अपने चिन्तन और व्यवहार को ही बदल लिया जाय। इन तरीकों में से कोई एक मनुष्य को स्वयं ही अपनाना पड़ता है ताकि प्रतिकूलताएँ बनी रहने पर भी अपना काम किसी प्रकार चलता रहे। मनुष्य की बुद्धिमत्ता इसी में है। यों मिट जाने या मिटा देने की नीति भी अपनायी जा सकती है। पर वह इतनी महंगी है कि सहज गले नहीं उतरती। फिर आक्रोश और प्रतिशोध का एक कुचक्र भी ऐसा बन जाता है जिसका अन्त कभी होगा कि नहीं यह कहा नहीं जा सकता। चम्बल क्षेत्र में डाकुओं की भरमार के पीछे यह आक्रोश, आक्रामक प्रतिरोध, प्रतिशोध का सिलसिला पीढ़ियों से चलता आ रहा है और उसका अन्त कब होगा? यह कहा नहीं जा सकता। यही बात अपनी मर्जी किसी पर थोपने और उससे इच्छित काम करा लेने के सम्बन्ध में है। विवशता में कोई अपनी इच्छा के विरुद्ध झंझट समेटने की दृष्टि से मान भी ले तो यह नहीं कहा जा सकता कि द्वेष का अन्त हो गया और सहयोग का सिलसिला चल पड़ा। कहते हैं कि घायल साँप अवसर पाकर बदला लेता है। हो सकता है कि जिसे दबाया गया है, दबा कर मनमर्जी पर चलने के लिए बाधित किया गया है, वह उस समय मन मार कर बैठ जाय और मौका देखकर अपनी घात चलावें। इससे दबी हुई चिनगारी फिर भड़क उठने का खतरा है।

प्रतिकूलताओं के साथ सामंजस्य बिठा लेने की नीति सरल और सुविधाजनक है। इसमें हेठी अनुभव नहीं करनी चाहिए और न सिद्धान्त से हारने या हार मानने की कोई बात सोचनी चाहिए। इसे दूरदर्शिता और नीति मत्ता ही कहा जायगा।

वर्षाऋतु माली के अनुकूल पड़ती है। कुम्हार के प्रतिकूल। गर्मी में कुम्हार बर्तन बनाता, पकाता और रोटी कमाता है किन्तु माली के पेड़ सूख जाते हैं और उसे सिंचाई के लिए भारी प्रयत्न करना पड़ता है। दिवाचरों और निशाचरों की प्रकृति भिन्न है। जो एक वर्ग को अनुकूल पड़ता है, वही दूसरे को प्रतिकूल। फिर भी जीवधारी किसी प्रकार संगति बिठाते हुए अपना काम चलाते हैं। विद्रोह पर उतरें तो सृष्टि क्रम का बदलना तो कठिन है। स्वयं रुष्ट-क्रुद्ध होकर अपनी हैरानी बढ़ायेंगे।

मनुष्य का वास्ता कितनी ही प्रकृति के लोगों के साथ पड़ता है। इनमें से कुछ तो स्वभाव और संस्कारों से ऐसे होते हैं जिन्हें प्रतिकूल माना जा सके। कुछ ही आदतें आस्थाएँ ऐसी हैं जो सहज नहीं बदली जा सकती हैं। उनके सुधार का बहुत प्रयत्न करने पर भी थोड़ा सा ही प्रतिफल होता है। जो कमी रह जाती है उसे किसी प्रकार सहन करते रहने का ही एक मात्र मार्ग है। पृथक् हो जाने या पृथक् कर देने का दो टूक फैसला भी एक उपाय है। पर उसमें भी समस्या के निराकरण का सूत्र नहीं है। उससे नयी समस्यायें उत्पन्न होती हैं और वे अपेक्षाकृत अधिक भारी पड़ती हैं। अनचाहे निर्णय जब गले बँधते हैं तो उनसे घुटन होती है और उसकी प्रतिक्रिया भीतरी अशान्ति और बाहरी हानि के रूप में एक विभीषिका बन कर सामने आती है।

मन का सही उपयोग यह है कि उसे रेफ्रिजरेटर की तरह हर समय शान्त और शीतल रखा जाय। अशान्त, उद्विग्न और विक्षिप्त न होने दिया जाय। समस्याओं को हलकी फुलकी माना जाय। उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर न सोचा जाय। संसार का बड़े से बड़ा व्यवधान ऐसा नहीं है जो समझदार व्यक्ति की शान्ति का अपहरण कर सके। कितने ही बलिदानियों ने मौत का फंदा प्यार से चूमा और छाती खोलकर गोली लगने की प्रतीक्षा की। इन्हें हिम्मत वाले भी कह सकते हैं और भी अच्छा विश्लेषण किया जाय तो उन्हें संतुलित कहा जा सकता है। जब मौत को इतना हल्का करके आँका जा सकता है तो छुट पुट प्रतिकूलताएँ ऐसा नहीं हो सकतीं कि जिनके आगमन से पूर्व ही होश हवास गँवा बैठा जाय। धैर्य और साहस रखकर भावी कठिन संभावनाओं को सुलभ कर सकने वाली समस्या समझा जा सकता है और मस्तिष्क शान्त रखते हुए वह उपाय सोचा जा सकता है कि हल निकल सके जो सदस्य अपरिहार्य अंग हैं उन्हें उपेक्षा पूर्वक नहीं, सम्मान देते हुए एकाँगी प्रेम सद्भाव का निर्वाह किया जा सकता है। स्वामी या सेवक यदि बदले नहीं जा सकते तो उन्हें भी किसी प्रकार सहन करते रहना ही उचित है।

मन की उद्विग्नता ऐसी है जो प्रत्यक्ष रोग न दीखते हुए भी मानसिक, शारीरिक रोगों के रूप में प्रकट होती है। मानसिक रुग्णता शरीर को अस्वस्थ बनाती है। चिन्तन को लड़खड़ाती है। भय से विचारों को भर देती है और भविष्य को इस रूप में दिखाती है मानो वह अंधकार से भर गया हो। उस पर पराजय के घुटन भरे बादल छा गये हों। ऐसी स्थिति देर तक बनी रहने पर मानस तंत्र की कोमलता अस्त व्यस्त हुए बिना नहीं रहती। अशुद्ध चिन्तन उन्माद बनकर उभरता है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि शरीर रोगियों की तुलना में मनोरोगी बढ़ रहे हैं। आधी अस्वस्थता तो मानसिक विक्षेपों द्वारा उत्पन्न की हुई होती है और उसका कारण होता है, परिस्थिति के साथ मनःस्थिति का तालमेल न बिठा पाना। यहाँ यह समझ रखने की बात है कि परिस्थितियाँ इच्छानुरूप बना सकने की अपेक्षा यह ही सरल है कि मन को परिस्थितियों की प्रतिकूलता सह सकने योग्य बनाया जाय और सहनशक्ति को बढ़ाया जाय।

यह सोचना सही नहीं है कि यदि प्रतिकूलताएँ बनी रहीं तो संतुलन कैसे रखा जा सकेगा? यहाँ यह समझ लेना चाहिए कि परिस्थितियाँ दूसरों के हाथ हैं। ऐसे हाथों में जिन्हें हम कदाचित ही मोड़ मरोड़ सकें। इसकी अपेक्षा यह कहीं सरल है कि मन को चट्टान की तरह मजबूत बनाये रखा जाय और परिस्थितियों के बारे में सोचा जाय कि वह हवा के झोकों की तरह आने जाने वाली लहरें मात्र हैं। हवा चट्टान को नहीं डिगा सकती फिर प्रतिकूलताओं में से कौन ऐसी हो सकती है जो मनुष्य का धैर्य और साहस तोड़ दे। टूटता मनुष्य भीतर से है। समझता और कहता भर यह है कि उसे परिस्थितियों ने तोड़ा, हैरानियों ने झकझोरा पर इस प्रकार की कथनी से काम कुछ नहीं बनता। समस्या का हल किसी का नहीं होता। उलटा मनुष्य अपना विवेक खो बैठता है। चिन्तन में निषेधात्मक तत्व भर लेता है और आरम्भ में सनकी बनता है। सनकें ही व्यक्तित्व को विखण्डित कर देती हैं और उसे विक्षिप्तता के कटघरे में बन्द कर देती हैं। मस्तिष्क को हम स्वयं ही बिगाड़ते हैं। चाहें तो स्वयं ही बिगड़े को बना सकते हैं। यह अपनी संकल्प शक्ति के ऊपर निर्भर है।

First 31 33 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • चिन्तन की दृष्टि से हम प्रौढ़ बनें!
  • चेतन सत्ता का अवतरण- व्यक्तित्व में परिवर्तन
  • प्रार्थना जीवन का अविच्छिन्न अंग बने।
  • नवयुग विवेक पर अवलम्बित होगा
  • प्रतिकूलताएँ निखारती हैं, व्यक्तित्व को
  • साधना से सिद्धि का शाश्वत सिद्धांत!
  • सूक्ष्म जगत में विद्यमान आसुरी सत्ता का प्रवाह!
  • Quotation
  • प्रसन्नता का चुम्बकत्व
  • मिठास का आनन्द (kahani)
  • सृजन प्रयोजनों के निमित्त परोक्ष-जगत का योगदान
  • मनस्विता की प्रचण्ड शक्ति
  • सुगंधों से मन को प्रफुल्लित करें, प्रसुप्त को जगायें
  • प्रतिभा एवं संकल्पशक्ति का उभार
  • राग-रागनियां आँदोलित करती है शरीर व मन को
  • आनंद का उद्गम-आत्मभाव
  • विरोध नहीं समभाव के विषय में सोचें!
  • Quotation
  • स्फूर्ति व मस्ती पाने की सही विधि!
  • विकास के साथ साथ विनाश से जूझना भी आवश्यक
  • रोगोपचार की एक ही कुँजी
  • मृत्यु का विस्मरण एक असाधारण प्रमाद
  • Quotation
  • सविता का अनुदान प्राणशक्ति के रूप में
  • विशेषताओं में हम से कहीं आगे हैं अन्यान्य प्राणी
  • चेतना को अन्तर्मुखी बनाऐं
  • भ्रान्तियों से उबरें, प्रगति पथ प्रशस्त करें
  • नारी का अद्भुत अन्तराल
  • जागरूकता और साहसिकता
  • व्यावहारिक जीवन का ध्यान योग
  • Quotation
  • परिस्थिति नहीं मनःस्थिति बदलें!
  • युगसंधि की प्रथम किरण
  • इक्कीसवीं सदी की नारी जाग चुकी है!
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj