
भजन-कर्म का मर्म (Kavita)
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किये मंत्र-जप, माला फेरी, पूजन आठों याम का,
रहे भाव संकीर्ण अगर तो, यह पूजन किस काम का?
हर पूनो, हर पर्व नहाए, गंगा जी के नीर में,
पर मन डूब न पाया बिल्कुल, किसी दुखी की पीर में,
करते रहे सफर हम निष्ठुर, मन से चारों धाम का
ईश्वर ने जो दिया, लगाया केवल अपने वास्ते,
स्वार्थ-पूर्ति हो जिनमें, हमने चुने वही सब रास्ते,
किया यत्नह र पल-छिन हमने, अपने सुख-आराम का,
प्रगति देखकर औरों की हम, भरे द्वेष में, लोभ में,
पूर्ण न हो पायी इच्छा तो, भरे तीव्र विक्षोभ में,
ध्यान रहा हर समय हमें तो, अपने ही धन-धाम का,
व्यर्थ ऐंठना अहंकार में, भरकर झूठी शान से,
किन्तु माँगते रहना, खुद के लिये सदा भगवान से,
द्वार-द्वार दौड़ना व्यर्थ में, यहाँ सुबह और शाम का,
जितना गड्ढा किया कि उतनी, मिट्टी डालो खेत में,
प्रायश्चित का सूत्र दिया, यह गुरुवर ने संकेत में,
ध्यान न रह पाया यदि हमको, पापों के परिणाम का,
-शचीन्द्र भटनागर