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Magazine - Year 1993 - Version 2

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परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

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गायत्री मंत्र हमारे साथ-

“ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।”

देवियो! भाइयो! सामान्य सिद्धान्त का जिक्र मैं कल कर रहा था आपसे। अपने बाहुबल से, पुरुषार्थ से और पराक्रम से बहुत आदमियों ने भौतिक जीवन में और आध्यात्मिक जीवन में बहुत कुछ पाया है। यह मोटा सिद्धान्त आप सबको मालूम है। जन लोगों ने उन्नतियाँ की हैं दुनिया में, अपने पराक्रम और पुरुषार्थ किये हैं, वे धन भी कमाये हैं, विज्ञान की शोधें भी की है और जीवन में आगे भी बढ़े है। महर्षि विश्वामित्र का नाम आपको मालूम होगा। जब उन्होंने गुरु वशिष्ठ से कहा कि हमको राजर्षि नहीं रहना है, ऋषि बनना है, तो उनने कहा कि फिर तप किया। लम्बे समय तक महर्षि दधिचि ने तप किया। यह क्या है? यह प्रयोग और पुरुषार्थ है। आपको मालूम नहीं है, तप करने और पुरुषार्थ है। आपको मालूम नहीं है, तप करने और पुरुषार्थ करने से आदमी भौतिक जीवन में और आध्यात्मिक जीवन में उन्नति करते रहे हैं। इस सिद्धान्त में दो राय नहीं, एक राय है। ये क्या बात कह रहे हैं? मैं पराक्रम और पुरुषार्थ की बात कह रहा हूँ। इनका महत्व आपकी दृष्टि में कम यहाँ तो मुझे एक नई बात कहनी थी अनुदान की। अनुदान, जो कभी-कभी मिलते हैं और किसी खास मकसद के लिए मिलते हैं, उसकी बाबत कहनी थी। पुराने जमाने की बात बताऊँ। क्या चलिए बताता हूँ। अर्जुन हार गया था दुर्योधन से और मारे-मारे फिर रहा था। पाँडवों में से कोई नचकैया, कोई रसोइया बन रहे थे। थक कर बिलकुल निढाल हो गये थे। पराक्रम चुक रहा था, तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा-आप महाभारत में काम कीजिए। हमारे अनुदान आपको मिलेंगे। अर्जुन ने केवल गाण्डीव पर रख कर तीर चलाये थे। श्रेय उन्हीं को मिल गया। भगवान ने फतह उन्हीं की करायी। यह मैं अनुदान की बात कह रहा हूँ, भगवान कृष्ण के अनुदान की और बताऊँ? अच्छा और बताता हूं। सुदामा जी को पैसे की आवश्यकता पड़ी। किस काम के लिए? सुदामा जी बड़े गरीब थे, और भिखारी थे, नंगे थे, भूखे थे। खबरदार! सुदामा जी की शान में ऐसी बात कही, तो मैं कान उखाड़ लूँगा। ब्राह्मण की बेइज्जती मत कीजिए, संत की बेइज्जती मत कीजिए, अध्यात्म की बेइज्जती मत कीजिए। मित्रों! बड़े शानदार आदमी थे सुदामा जी और शानदार काम के लिए-विश्वविद्यालय चलाने के लिए मदद माँगने गये थे। तब भगवान ने अपनी सारी की सारी कमाई द्वारिका से उठा कर के पोरबन्दर ट्राँसफर कर दी थी। पाई-पाई सुदामा जी के सुपुर्द कर दिया था। यह श्रीकृष्ण की कथा कह रहा था मैं आपसे और राम की कहूँ। राम की कथा कहता हूँ। एक आदमी का नाम था-विभीषण। शरीर की दृष्टि से बहुत कमजोर था, लेकिन रामचन्द्र जी ने उसे रातोंरात मालदार बना दिया, लंका का मालिक बना दिया। यह कैसे हो गया? भगवान का अनुदान था तो और किसको दिया था? हनुमान जी को दिया था। हनुमान जी की ताकत स्वयं की उपार्जित नहीं थी। स्वयं की रही होती, तो उन्होंने सुग्रीव की मदद जरूर की होती। सुग्रीव की मदद करने में वे बिल्कुल असफल थे। फिर क्या करने लगे? पहाड़ उठाने लगे, समुद्र छलाँग ने लगे। एक लाख पूत सवा लाख नाती-दो-दो लाख आदमियों से-दैत्यों से-जाइण्टों से-राक्षसों से अकेले मुकाबला करने लगे। राक्षस कैसे होते हैं? दो-दो योजन मूंछें ठानी। दो-दो योजना लम्बी उनकी मूंछें थीं। ऐसे जबरदस्त राक्षसों से लड़ने के लिए आमादा हो गये, हनुमान जी। कैसे हो गये? अनुदान था।

आप समझिए ऊँचे सिद्धान्तों को। आप तो समझना भी नहीं चाहते। श्रीकृष्ण भगवान और रामचन्द्र जी ने हर एक को किसी खास काज के लिए अनुदान दिये थे। नहीं साहब, मजा उड़ाने के दिया था, ऐयाशी के लिए दिया था। खबरदार।

भगवान के बारे में ऐसी बेइज्जती की बातें कहीं तो। बेकार की बात मत कहिए। मित्रों! अभी पुरानी बात बतायी मैंने। अब नई बात बताता हूँ। बिनोवा को गाँधीजी के अनुदान मिले थे। बिनोवा अपने आप उठे थे? नहीं, अपने आप सन्त रह सकते थे और अपनी गीता का प्रचार करते रह सकते थे और अपनी गीता का प्रचार करते रह सकते थे, पर दूसरा गाँधी, बापूजी ने बनाया था उन्हें और जिसने वामन अवतार के तरीके से अपने डगों से सारे हिन्दुस्तान को नाप डाला और सैकड़ों-एकड़ जमीनें मिलती चली गई और किसको मिले गाँधी के अनुदान? करमसद गाँव का एक पटेल मामूली बना दिया-हिन्दुस्तान का गृहमंत्री बना दिया था।

मित्रों! मैं अनुदान की बात कर रहा था।

मित्रों! मैं अनुदान की बात कर रहा था। चलिए अभी और बताता हूँ। पंडित नेहरू ने लाल बहादुर शास्त्री को मिनिस्टर बना दिया और प्रधानमंत्री बना दिया था। लाल बहादुर शास्त्री की कोई हैसियत नहीं थी। यह क्या दिया गया था-अनुदान। नेहरूजी का अनुदान। उन्होंने हीरालाल शास्त्री जो कि एक कन्या विद्यालय चलाते थे, राजस्थान का मुख्यमंत्री बना दिया था। ये क्या है? ये अनुदानों की बात कह रहा था। अनुदानों का जिक्र अक्सर मैं अपने प्रवचनों में करता रहा हूँ। उसमें से एक और कड़ी मैं हमेशा अपनी शामिल करता रहा हूँ। हमने अनुदानों से पाया है। आपने तो हमारी शक्ल देखी भी नहीं है अभी तक। आपने तो हमारा एक काम देखा है। गुरुजी कितने बड़े हैं? जितना बड़ा हमारा काम। आपकी दृष्टि से हमारा समग्र रूप नहीं आ सकता; क्योंकि आपकी आंखें बहुत छोटी है। आप हमारी औकात, इज्जत, ताकत और हस्ती का इतना मूल्यांकन करते हैं कि हमारी मनोकामना पूरी की कि नहीं। आपके बेटा हुआ कि नहीं हुआ। बेटा हो गया, तो गुरुजी चमत्कारी सिद्ध पुरुष और आपके बेटा नहीं हुआ तो सौ गाली। आपकी अक्ल, आपकी बुद्धि, आपकी दृष्टि ऐसी छोटी आँख होती है। आप हमारी हैसियत और व्यक्तित्व को इतना छोटा मानते हैं; जितना हमारे शरीर में कान की लम्बाई-चौड़ाई है। उतने को आप परखते हैं, उतने को सोचते हैं, उतने को देखते हैं। लेकिन हमारा व्यक्तित्व बहुत बड़ा है। कितना बड़ा है? आप कल्पना नहीं कर सकते है। बीस साल निकल जाने दीजिए। जो जिन्दा रहे, जरा देखना गुरुजी किसी आदमी का नाम था। हम आपकी दृष्टि में छोटे हो सकते हैं; लेकिन संसार के लिए हम बहुत बड़े आदमी हैं। जरा अगली वाली हिस्ट्री को पढ़ना। अगली वाली पीढ़ियों की आँखें से हमको देखना। सारी मनुष्य जाति के इतिहास में हम एक कमाल करने जा रहे हैं। तो क्या चीज है ये? अनुदान है हमारे। हमको बहुत शानदार अनुदान मिले हैं, ऐसे कि सारे इंसान के लिए इंसानी समाज के लिए, इंसानी भविष्य के लिए एक ऐसा नया इतिहास लिखेंगे, जिसे कि लोग याद करते रह जायेंगे, और अचम्भे में रह जायेंगे।

यह अनुदान में मिला है हमको।

मित्रों! मैं अनुदान की बात बता रहा था कि छोटे कामों के लिए अब ये दिन नहीं है। यदि आप हमारे पास बैठे और हमारे व्यक्तिगत जीवन में प्रवेश करें, तो आपको पता चलेगा कि आदमी का एक-एक सेकेण्ड का इन दिनों हमको सारे विश्व के लिए-सारे विश्व की सम्पदा के रूप में इस्तेमाल करना पड़ रहा है। ऐसे समय में आपका ये अनुदान-सत्र हमने खास मकसद के लिए लगाया है कि आपको कुछ कीमती सी चीजें दे दें। कभी आवश्यकता होती है, तो इसी तरह के अनुदान दिये जाते हैं। आवश्यकता होती है, तो इसी तरह के अनुदान दिये जाते है। आवश्यकता पड़ी थी रामकृष्ण परमहंस को और वे इस बात की तलाश में थे कि कोई ऐसा आदमी मिल जाय, तब उसको अनुदान देदें। बहुत मुश्किल से एक आदमी दिखाई पड़ा, जिसका नाम था विवेकानन्द। रामकृष्ण उनके पास स्वयं गये थे? जिसको दिया जाता है, वो वजनदार आदमी होना चाहिए। पहले भी व्याकुल थे; इन दिनों तो बहुत ही व्याकुल हो रहे हैं। व्याकुल देवताओं के अनुग्रह प्राप्त करने के लिए कुछ आपको काम करना है वहीं बात कहनी है आपसे। हमारा गुरु व्याकुल हो रहा था और हमारे घर आया था। देवता आपके भी घर आयेगा। आप यकीन रखिये; पर देवताओं को तो आप पागल समझते हैं। पागल मत कहिए। भगवान के साथ में व्यक्तिगत तालमेल मत भिड़ाइये। भगवान व्यक्ति नहीं है। वह एक कायदे का नाम है- भगवान व्यक्ति नहीं है। वह एक कायदे का नाम है-भगवान एक कानून का नाम है- भगवान एक नियम का नाम है-मर्यादा का नाम है। उसमें किसी व्यक्ति के साथ में व्यक्तिगत रूप से न तो नाखुशी की गुंजाइश है। नाराजी की गुंजाइश रही होती, तो चाइना वालों को, रशिया वालों को, जो ईश्वर पर विश्वास नहीं करते और न केवल विश्वास नहीं करते, बल्कि गाली-गलौज भी देते रहते हैं, अब तक भगवान जी ने कचूमर निकाल दिया होता।

तो मैं क्या कह रहा था? मैं ये कहने वाला था कि अनुदान-सत्र, जिसने हमने आपको बुलाया है, उसकी तीन शर्तें है- तीन कसौटियाँ है। एक कसौटी ये है, जिसका अर्थ होता है- ईश्वर का विश्वास-पत्रता का विकास। इसका दूसरा क्या है? उपासना। उपासना का एक बहुत छोटा अंग है- भजन। उपासना समग्र फिलॉसफी है। उपासना किसे कहते हैं? भगवान के नजदीक बैठना। भगवान के नजदीक बैठने का अर्थ होता है उसकी विशेषताओं को ग्रहण करना, मसलन आग के आप नजदीक बैठते हैं, तो आग की विशेषताओं को ग्रहण करते हैं। अपनी ठंडक और नमी दोनों को मिटा लेते हैं। गर्मी आपके अन्दर चली जाती और ठंडक दूर हो जाती है। उपासना इसी को कहते हैं। उपासना का अर्थ यही होता है कि आप सिद्धान्तों के लिए अपने आपको समर्पित कर दें। श्रद्धा इसी का नाम है। समर्पण इसी का नाम है। गीता ने बार-बार यही कहा है- ”मरुयेव मन आधत्रुस्व मयि बुद्धिं निवेशय।” अरे अभागे! अपनी अक्ल को हमारे पास ला-अपनी बुद्धि को-मनोकामनाओं को हमारे पास ला। अपनी उपासना के लिए यही करना चाहिए। हमने भी यही किया और आपको भी यही करना चाहिए। हमने भी यही किया और आपको भी यही करना चाहिए। हमने अपनी कठपुतली के सारे धागे अपने बाँस की हथेलियों में बाँध दिये हैं और वही वहाँ से नचाते रहते हैं। हमारी भक्ति इसी बात पर है कि हमने हर चीज को धागा से बाँध दिया है और ये कहा है कि आप हुक्म दीजिये। आपके हुक्म पर हम चलेंगे और आप तो जाने क्या कहते हैं? ये कहते हैं भगवान से कि आप अपनी तृष्णाओं के लिए, अपने घटियापन के लिए और कमीनेपन की पूर्ति के हलण् आप तो ये कहते हैं भगवान से अपने सिद्धान्तों का सफाया कर दीजिए-अपने कायदों का सफाया कर दीजिए। भगवान की शान को ध्यान में रखिए। भक्ति के नाम पर ये मत कहिए। हमारी कोई मनोकामना नहीं है। हमारी एक ही मनोकामना है- ‘‘मालिक तेरी रजा रहे और तू ही रहे, बाकी न मैं रहूँ, न मेरी आरजू रहे। “ यह भक्ति है। अगर भक्ति आप के पास आयी, तो आप देख लेना, भगवान आपके पास आयेंगे।

यह उपासना के बारे में बता रहा था, मित्रों! उपासना के अलावा एक और काम आपको पात्रता विकास के लिए करना पड़ेगा, उसका नाम है- साधना।

साधना किसे कहते हैं? आदतें एक, मान्यताएँ दो और आकाँक्षाएँ तीन -इन तीनों को उच्चस्तरीय बनाना पड़ेगा। यही साधना है। जरा ऊंचे स्तर पर उठ के तो देखिए। जिस जमीन पर आए रहते हैं, वहाँ पर चलना बहुत मुश्किल है। एक घंटे में आप तीन मील चलेंगे; लेकिन जरा ऊँचे तो उठिए, फिर आप देखिए एक घंटे में छः मील की रफ्तार से जाते हैं। बोइंग जहाज छः सौ मील की रफ्तार से चलते हैं, जरा उठिए। जो उपग्रह पृथ्वी के चक्कर काटते हैं, उन चक्करों को देखिए। वे ढाई हजार मील प्रति मिनट के हिसाब से चलते हैं। आप तो वहाँ पड़े हुए हैं, जहाँ सड़न-कीचड़ भरी पड़ी है; जिसको जमीन कहते हैं; जहाँ से न चलाना संभव है लेकिन अगर आप अपने व्यक्तित्व को परिष्कृत कर लेते, तब क्या कहूँ आपसे-आप बहुत शानदार आदमी होते। जब मैं आपसे कहता- साधक अगर आपने आप व्यक्तित्व को परिष्कृत किया होता तो मैं यकीन दिलाता हूँ, आपको आपका आकर्षक व्यक्तित्व देवताओं की कृपा को-भगवान की कृपा को-सिद्धियों को-अनुदानों को खींच के ले आता। आपमें से हर आदमी में कबीर के बराबर, रैदास के बराबर, विवेकानन्द के बराबर योग्यता है; पर हम क्या करें। ये घटियापन तो चैन नहीं लेने देता। खा गया घटियापन आपके पैसे को, आपकी अक्ल को, आपके श्रम को, हर चीज को खा लिया, साधना किसे कहते हो? अपने घटियापन को दूर कराने के लिए जद्दोजहद करना, लड़ाई करना। तपश्चर्या इसी का नाम है। उपासना इसी का नाम है। अनुष्ठन इसी का नाम है। जप इसी का नाम है, भगवान के ऊपर डोरे डालने का नाम नहीं है; खुशामदें करने का नाम नहीं है।

आध्यात्मिक उन्नति के लिए पात्रता की दो शर्तों के अतिरिक्त एक तीसरी कसौटी भी है, उसका नाम है-आराधना। भगवान के ऊपर असर डालने वाली यही एक चीज है, दूसरी कोई नहीं। उपासना, साधना स्वयं के लिए और भगवान को प्रभावित करने के लिए अंतिम चरण रह जाता है-आराधना। आराधना का अर्थ है- लोक सेवा, जनहित, जनकल्याण, समाजसेवा। अपने समय में से, अपने श्रम में से, अपनी मेहनत में से और पैसों में से भगवान का काम कीजिए। भगवान का क्या काम है? भगवान का एक काम है-उसकी दुनिया को सुसंस्कृत और समुन्नत बनाना, उसकी सभ्यता और संस्कृति और समुन्नत बनाना, उसकी सभ्यता और संस्कृति को बढ़ाना। सभ्यता किसे कहते हैं-लोगों की चाल-चलन में शालीनता का समावेश और संस्कृति उसे कहा गया है, जिसको उदारता कहते हैं, सेवा कहते हैं, करुणा कहते हैं, परोपकार, लोकमंगल और दान कहते हैं। आप भगवान की आराधना कीजिए, ताकि भगवान आपकी आराधना करें। हमने अपने बाँस की आराधना की है। उसने हमारी आराधना की है। हमने अपने आपको उनके सुपुर्द कर दिया है, उन्होंने अपने आपको हमारे सुपुर्द कर दिया है। ये कैसे? वाणी से नहीं, गपबाजी से नहीं, ख्वाबों से और कल्पनाओं से नहीं। कार्य से ऊँचे उद्देश्यों के लिए, देश के लिए, धर्म के लिए समर्पण से।

मित्रों! यह तीन काम अगर आप कर सकते हों-पात्रता विकास के लिए कुछ कदम बढ़ा सकते हों, तो उसी कदम के नाप-तौल के हिसाब से, उसी अनुपात से आपको वे अनुदान मिलेंगे, जिसे आप हजार वर्ष तक उपासना करने के बाद भी नहीं पा सकते थे, पर इन दिनों अनुदान से पा सकते हैं। कल हमने आपको अनुदानों की एक किश्त के बारे में जानकारी करायी थी, कि प्राणधारा का संचार प्राप्त करने के लिए दैवी शक्तियाँ आपकी क्या सहायता कर सकती हैं। उसके तीन लाभ हैं-एक लाभ है उसका-जीवन शक्ति, दूसरा लाभ है उसका-साहसिकता, तीसरा लाभ है उसका-प्रतिभा। ये तीन प्रत्यक्ष सिद्धियाँ हैं। चमत्कारी सिद्धियों की बात आप मत पूछिये। उसे यदि हम आपको बता भी दें, और करा भी दें, तो मारीच के तरीके से, भस्मासुर के तरीके से, कुँभकरण के तरीके से, रावण, हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष के तरीके से तबाही के मुँह में जाना पड़ेगा। उनको तो नहीं बताते, लेकिन आपके व्यावहारिक जीवन में तीनों चीजें आ सकती है। जीवनी शक्ति एक, हिम्मत दो, प्रतिभा तीन। जीवनी शक्ति उसे कहते हैं जिसमें आदमी अपने शरीर और जीवट को अक्षुण्ण रख सकता है, मौत से लड़ सकता है, बीमारियों से लड़ सकता है। ये क्या हैं? ये प्राणधारा है, जो हमको भी मिली हुई है। 71 वर्ष की उम्र में हम 17 वर्ष के आदमी के तरीके से जिंदा हैं। हमने कामधेनु का दूध पिया है और हमारे अंदर प्राणधारा है, जीवट है, इसलिए श्रम करने की शक्ति, बीमार न होने की शक्ति, पूरी की पूरी मात्रा में हमारे पास है, आप सुनते भी नहीं है।

प्राणधारा का दूसरा फायदा-साहसिकता है। साहसिकता हिम्मत को कहते हैं, जिसके सहारे नेपोलियन जैसा दो कौड़ी का आदमी कहाँ से कहाँ जा पहुँचा था।

कोलम्बस जैसा दो कौड़ी का आदमी अमेरिका जा पहुँचा था और सारे यूरोपियनों द्वारा अमेरिका पर कब्जा कराने के लिए उतना दूर जाने में समर्थ हो गया था। ये हिम्मत है। हिम्मत तो आप में है भी नहीं। हिम्मत के नाम पर तो जनाजा निकल गया है। रोज संकल्प लेते हैं-बीड़ी नहीं पियेंगे, सिगरेट नहीं पियेंगे, फिर क्या बात हो गयी? संकल्प शक्ति का अभाव। अच्छे कामों के लिए एक इंच आपकी संकल्प शक्ति काम नहीं देती है। श्रेष्ठ कामों के लिए संकल्प करना भगवान का अनुदान है। खराब कामों के लिए तो साहस हर एक में होता है। चोरी के लिए, डकैती के लिए, बेईमानी के लिए, बदमाशी के लिए, साहस हर एक में होता है, पर ऊँचा उठाने वाले साहस कभी किसी-किसी में पाये जाते हैं और जिनमें पाये जाते हैं, वे निहाल हो जाते हैं।

तीसरी चीज का नाम है-प्रतिभा। प्रतिभा किसे कहते हैं? जिसमें आदमी हावी हो जाता है, दूसरों पर। गाँधीजी सारे समाज पर हावी हो गये थे, बुद्ध सारे के सारे जमाने पर हावी हो गये थे। हावी होने वाली क्षमता का नाम है-प्रतिभा। प्रतिभा के अभाव में आपकी औरत तक कहना नहीं मानती। आपके बच्चे, आपके पड़ोसी, आपके सबोर्डिनेट आपका कहना नहीं मानते, लेकिन अगर आपके पास वो सामर्थ्य रही होती, तो दूसरे आदमी आपकी बात को मानने के लिए मजबूर होते।

मित्रों! हम इन्हीं वस्तुओं के आधार पर आगे बढ़े हैं। आपको भी प्राणसंचार धारा के लिए ये चीजें अनुदान में-अनुदान सत्र में हम देने को तैयार हैं। शर्त एक ही है कि आप अपने व्यक्तित्व को पात्रता के उपयुक्त बनाइए। ये समय बिल्कुल इसके लायक है कि आप ये फायदा उठा सकते हैं। आज हम आपको दूसरी किश्त सायंकाल को बतायेंगे कि सूक्ष्म शरीर में क्या-क्या चीजें अनुदान के रूप में हिमालय से मिल सकती हैं। कल तो बसंत पंचमी है। अगले दिन हम वो बतायेंगे कि कारण शरीर में विद्यमान ऋद्धि-सिद्धियों का जखीरा किस तरीके से प्राप्त कर सकते हैं। यह तीनों अनुदान आपके लिए बिल्कुल सुरक्षित है, शानदार हैं। ऐसे अनुदान हैं,जो आज की स्थिति की तुलना में आपको हजारों-लाखों गुना सामर्थ्यवान बना सकते हैं। हमारी बात समाप्त। ॐ शान्ति!

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  • न्यायप्रियता कलुषित हो जायेगी (Kahani)
  • हीरा जनम अमोल है
  • मन में गुंजाइश होना (Kahani)
  • अग्नि तत्व-प्राण है देव संस्कृति का
  • हे दयानिधान्! आप हमें दुःख देते रहें
  • सभी जीव शूद्र (Kahani)
  • धरती के मानव को देवात्मा हिमालय का संदेश
  • असाधारण विपत्तियां (Kahani)
  • आइये यंत्रों से मंत्र सिद्ध करें
  • बुद्धि की सराहना की (Kahani)
  • जो पीर पराई जाने रे
  • अतिवादी-आत्मघाती
  • पथिक निरुत्तर हो चला (Kahani)
  • मानवी शिशु, जिन्हें पशुओं ने पाला
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  • माँसाहार मानवता विरुद्ध है
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  • अंतिम जीत सत्य की है
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  • विचार प्रवाहों से विनिर्मित होता है प्रखर व्यक्तित्व
  • विषमता मिटेगी, समता का युग आयेगा
  • कुकल्पनाओं का अनौचित्य
  • सूर्योपासना की सार्वभौमिकता
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  • परिष्कृत कल्याणकारी विचार ही बनते हैं संस्कार
  • भलाई का अनुसरण (Kahani)
  • संयोग जो वरदान बना
  • जानकारी से वंचित (Kahani)
  • साइंस को नकारते हैं, आकाश गमन के ये प्राण
  • सत्परिणाम सामने आया (Kahani)
  • तन्मेमनः शिव संकल्पमस्तु
  • अकाल मृत्यु से बचने की रीति-नीति
  • प्रगति के पथ पर (Kahani)
  • सर्वोपयोगी-सर्व सुलभ गायत्री साधना
  • नौ सद्गुणों की लड़ी है-यज्ञोपवीत का धागा
  • परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • मानव का सच्चा आभूषण सादगी
  • बसंती चोला केसरिया बाना
  • बसंती चोला केसरिया बाना (Kahani)
  • अश्वमेध लेखमाला - दशमावतार की अश्वमेध प्रक्रिया
  • संप्रदायवादी विषमता (Kahani)
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  • राजा ने समझा (Kahani)
  • अपनों से अपनी बात- - कर्मवीरों का प्रशस्ति पुरस्कार ज्ञान यज्ञ को सेवाएँ देने वालों को लोग जानें, याद करें।
  • महाभारत की रचना (Kahani)
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