
तालबद्ध; सुनियोजित जीवनक्रम
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यह विराट ब्रह्मांड एक निश्चित निर्धारित क्रम में गतिशील हो रहा है।इसमें कही भी व्यक्तिक्रम दिखाई नहीं पड़ता। सब के भीतर प्राकृतिक ताल एवं लय का संबंध दिखाई पड़ता है और इस गतिशीलता को देखकर किसी सुनियोजित सत्ता के असत् का भान होता है। यह नियमितता विश्व-ब्रह्मांड से लेकर प्रकृति पशु-पक्षियों कीड़े-मकोड़े में मानवीय शरीर में अनिवार्य रूप से परिलक्षित होती है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो यों कहना पड़ेगा कि नियमितता-ता-लय ही जीवन है विश्व रचना है एवं प्रकृतिगत गुण है। इसके महत्व को स्वीकारते हुए लक्ष्य निर्धारित करते हुए उसे जीवन का अनिवार्य अंग समझना चाहिए।
यह सूर्य एक नियमितता लिए हुए उदय एवं अस्त का सरंजाम जुटाता है। उसकी किरणें भी एक नियमित गति के साथ वायुमंडल से संघर्ष करती हुई हम तक पहुँचती है एवं पृथ्वी में नव जीवन का संसार करती है। इस गति के कारण हमें एक निश्चित निर्धारित मात्रा में सूर्य प्रकाश मिल पाता है प्रातः दोपहर संध्या एवं रात्रि की प्रक्रिया भी एक निर्धारित क्रम में संपन्न होती है। घड़ी एक नियमित ताल में टिक-टिक करती हुई एक मिनट में साठ सेकेण्ड बताती हुई 1 घंटे में साठ मिनट की दूरी तय करते हुए 24 घंटों को प्रदर्शित करती है। चौबीस घंटों में एक दिन रात 30 दिन से एक महीना एवं 12 महीनों से एक वर्ष की प्रक्रिया इतना सुसंबद्ध एवं सुनियोजित है कि उसमें एक भी क्षण का फेर-बदल नहीं होता। पृथ्वी चन्द्रमा ग्रह तारे सभी निश्चित गति से सुसंचालित है उनमें जरा सा गतिरोध समूचे ब्रह्मांड को धूल में परिवर्तित करने के लिए पर्याप्त है।
नदियों के बहाव में भी यही प्रक्रिया झलकती है कल-कल झरझर की आवाज उसी की परिणति है। पौधों का विकास भी उसी क्रम में हो रहा है।बीच में अंकुर फूटना कोपलें फूटना पुष्पित एवं पल्लवित होना फलों से लदना इन सबसे एक निश्चित अंतर दिखाई पड़ता है। जीव जंतुओं के विकास क्रम में भी इसी देवी की कृपा दृष्टि देखने को मिलती है। चूहे; बिल्ली; कुत्ते; गाय; बैल; भैंस आदि एक निश्चित समय में जन्म लेते एवं अपनी सामर्थ्य का परिचय देते हुए काल के गाल में समा जाते हैं।
प्रातः कालीन पक्षियों के सुमधुर कलरव का संबंध भी इसी से है। उत्साह; उमंग जैसे वातावरण से भरे ऋतुराज वसंत में कोयलों की कूक बड़ी प्यारी लगती है वह भी सुर और ताल से संबंध रखती है। संगीत शास्त्रियों ने इसी को ध्यान में रखकर सात स्वरों की रचना की जो किसी न किसी रूप में किसी न किसी जीव जंतु से संबंधित है। कोयल की कूक को वे पंचम की उपमा देते हैं। गौरैया का चहचहाना; टिटहरी की चहक मैना बतख तोता आदि की मधुर बोली इसी कारण से कानों कानों को बड़ी मधुर लगती है क्योंकि उसमें भी स्वरों की नियमितता है। इसी कारण से लोग इन्हें पालते हैं। गाय का रँभाना सुन एवं पहचानकर बछड़ा इसीलिए दौड़ा आता है क्योंकि वह उसके स्वरों के विशिष्ट एवं निश्चित अंतर को पहचानता है। हाथी का चिंघाड़ना शेर का दहाड़ना इसीलिए भय का संचार कर देता है।
इस प्राकृतिक लय-ताल रूप नियमितता से भला मानव शरीर अलग कैसे रह सकता है। वह भी एक निर्धारित क्रम में विकसित होता है। शैशवावस्था बाल्यावस्था किशोरावस्था युवावस्था प्रौढ़ावस्था उसी की परिणीत है।रक्त संचार प्रक्रिया पेशियों का आकुँचन प्रकुँचन श्वास-प्रश्वास सभी में ताल का अस्तित्व स्पष्ट परिलक्षित होता है। हृदय की धड़कन लप-डप की ध्वनि एवं उसके बीच क्षण भर का विश्राम-यही है जीवन प्राण जिससे समूचा जीवन तंत्र सुसंचालित है। इस ताल में क्षण भर दी यदि व्यतिरेक पड़ जाय तो इस इस काया का अंत हो जाय। हार्ट अटैक की बीमारियाँ लो ब्लड प्रेशर हाई ब्लड प्रेशर आदि इसी व्यतिक्रम का प्रतिफल है।
वह सुनियोजित सत्ता मानव जीवन में भी इस सम्मिलित कर इसे गतिशील रखने की आशा करती है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसका जीवन क्रम निश्चित है। उठना भोजन ग्रहण करना श्रम करना अपनी योग्यता विकसित करना सोना इस क्रम में भी यदि ध्यान दिया जाय तो नियमितता ही दिखाई देगी। आधि−व्याधियों इसके अव्यवस्थित होने की फलश्रुति है। पेट की पाचन क्रिया एक निश्चित मात्रा में आहार लेने से अच्छी तरह संपन्न होती है अन्यथा खट्टी डकार से लेकर कोष्ठबद्धता तक स्थिति पहुँच जाती है।
इस तरह नियमितता के रूप में ताल के महत्व का पता चलता है जो एक निश्चित निर्धारित प्राकृतिक गुण है। इसे अपने जीवन क्रम में स्थान देना उचित है। जहाँ अपने जीवन क्रम को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है वहाँ यह भी आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन ताल बद्ध हो।