
न यहाँ भूत है, न वर्तमान, न भविष्यकाल
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हवा जब तक गेंद में भरी रहती है तब तक उसे विस्तृत और विशाल वायुमंडल से एकाकार होने का मौका नहीं मिलता, किन्तु उसके ऊपर के मोटे आवरण को ढीला करते हो वह वायु से मिलकर अधिक व्यापक ओर विराट हो जाती है। मनुष्य के साथ भी यही बात है। वह जब तक स्थूलता में जीता है, हाड़ माँस का पुतला भर बना रहता है, पर जैसे-जैसे यह बंधन ढीला होता जाता है वैसे ही वैसे उसकी सूक्ष्मता बढ़ती है और अंततः वह स्थिति पैदा होती है, जहाँ उसकी सूक्ष्म सत्ता सूक्ष्म जगत में प्रवेश कर नवीन जानकारियाँ अर्जित करने लगे। यही वह अवस्था है, जिसमें समय से पीछे चलकर विगत का ज्ञान प्राप्त कर सकना संभव होता है।
यों तो समय के तीन काल खण्डों में मनुष्य सामान्य स्थिति में केवल वर्तमान में जीता है, भूत और भविष्य उसके लिये अविज्ञात स्तर के रहस्य बने रहते हैं। इतने पर भी सच यह है कि वह एक साथ इन तीनों में जीता है या दूसरे शब्दों में कहें, तो वर्तमान शेष दोनों को अपने में संजोयें रहता है। अंतर मात्र इतना है कि विगत और अनागत के सूक्ष्म भूमिकाओं में होने के कारण मनुष्य उन्हें वर्तमान की तरह ग्रहण नहीं कर पाता, किन्तु इतने से ही सत्य बदल नहीं सकता। शब्द और ध्वनि उच्चारण के बाद विलुप्त होते प्रतीत होते हैं। ऐसा लगता है कि उनका अस्तित्व समाप्त हो गया, पर वैज्ञानिक जानते हैं कि उनका नाष नहीं होता। सिर्फ अपनी स्थूलता और अभिव्यक्ति खोकर अव्यक्त स्थिति में चले जाते हैं। काया मरती है, पर आत्मवेत्ताओं को यह भली-भांति विदित है कि जीवन एक सतत् प्रवाह है, वह मरता कहाँ! अग्नि जलती है, फिर भी उसकी वह ऊर्जा अक्षुण्ण बनी रहती है। घटनाओं के संदर्भ में भी यही बात है। वह एकबार अस्तित्व में आने के बाद समाप्त हो जाती है, सो बात नहीं, मात्र व्यक्त बनती हैं।
भौतिक जगत में समय को घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में देखने का आम प्रचलन है। इस आधार पर जो कुछ सामने दृष्टिगोचर होता है, समय के उस भाग को वर्तमान कह दिया जाता है ओर जो बीत गया उसे ‘भूत’ एवं अनागत वाले हिस्से को ‘ भविष्यत्’ कहा जाता है। इतने पर भी समय न तो केवल भूत है न भविष्य, न वर्तमान। वह एक संपूर्ण इकाई है, जिसमें एक साथ तीनों उपस्थित होते हैं। विज्ञानवेत्ताओं का कहना है जब रैखिक समय के मध्य भाग वर्तमान को मनुष्य जान सकता है, तो कोई कारण नहीं कि उसके आगे भविष्य पीछे भूत वाले हिस्से को वह न ग्रहण कर सके। सिद्धाँत रूप में वैज्ञानिकों ने इसे संभव बताया है और इसके लिये कई उपाय सुझाए है।
फ्राँसीसी विज्ञानवेत्ता एमाइल ड्राइवेट अपनी पुस्तक “इन दि डेड पास्ट” में आशा व्यक्त करते हुये लिखते हैं कि आने वाले समय में काल के विगत और अनागत वाले हिस्से में पहुँच पाना न केवल यथार्थ सिद्ध होगा, वरन् लोग वैज्ञानिक विधियों द्वारा उनमें आ जा सकेंगे। विगत में पहुंचने संबंधी एक परिकल्पना का उल्लेख करते हुये लिखते हैं कि चूँकि समय स्थिर है और गति हम सब कर रहे है इसलिये भूत में पहुँचने के लिये यह जानना जरूरी होगा कि विगत की उक्त तिथि में पृथ्वी अंतरिक्ष के किस बिंदु पर स्थित थीं चूँकि वह सूर्य के चारों ओर एक कुँडलाकार पथ में परिभ्रमण कर रही है और संपूर्ण सौर तंत्र स्वयं भी कृतिका नक्षत्र की परिक्रमा कर रहा है, अतः बीते समय के एक निश्चित दिन अपने ग्रह की वास्तविक स्थिति का पता लगा पाना बहुत ही मुश्किल काम होगा, इसलिये यह यात्रा भी असंभव स्तर की है या यों कहना चाहिये कि मात्र सैद्धांतिक है।
इसी प्रकार परिभ्रमणशील ब्रह्मांड में आइंस्टीन का सापेक्षवाद का सिद्धान्त भी भूत भ्रमण की संभाव्यता प्रकट करता है इसको आधार मानते हुये कुर्ट गोडेल नामक एक विज्ञानिविद् एवं तर्कशास्त्री ने तो यहाँ तक कह डाला हे कि यदि यह संभव हुआ, तो यात्रा के दौरान हर व्यक्ति अपनी ही युव अनुकृति से मिल सकेगा।
मूर्धन्य भौतिकीविद् जान ह्वीलर का वर्महोल सिद्धांत “ भी इस बात की संभावना दर्शाता है कि यदि दो ब्रह्माण्डों को जोड़ने वाली इस सुरंग में से किसी उपयुक्त में प्रवेश कर पाना शक्य हुआ, तो संभव है कि हम कहीं सुदूर भूत में जाकर बाहर निकलें।
किन्तु यह सब संभावना मात्र है। संभावना भी ऐसी, जो शायद ही साकार हो सके। ऐसे में विज्ञान लगभग निराश हो चुका था और मानने लगा था कि इस प्रकार सफलता शायद इस विधा द्वारा संभव नहीं। इसी बीच एक घटना घट गई। 17 अगस्त 1985 को मियामी हेराल्ड “ नामक समाचार पत्र ने एसोसियेटेड प्रेस के हवाले से एक ऐसे प्रयोग समाचार छापा जो उन दिनों यूनाइटेड स्टेट्स एयरफोर्स में चल रहा था।
विवरण का उल्लेख करते हुये अखबार लिखता है कि एक विशिष्ट प्रकार के अवरक्त कैमरे से एक बार सर्वेक्षण विमान के माध्यम से एक ऐसे भूखंड का चित्र खींचा गया, जो गाड़ियाँ खड़ी करने के काम आता था, पर तस्वीर लेते समय भूमि बिल्कुल खाली थी, वहाँ कोई भी वाहन नहीं था। कुछ घंटे पूर्व जो कारें खड़ी थी, वह सब जा चुकी थी। फोटो जब बनकर आया, तो सब यह देखकर हैरान रह गये कि उसमें असंख्यों मोटरें खड़ी दिखाई पड़ रही थी। इसका अर्थ यह हुआ कि कैमरे ने कुछ घंटे पूर्व के दृश्य को भी अपने अंदर कैद कर लिया था यही महत्वपूर्ण सूत्र साबित हुआ, जिसका कि बाद में सहारा लिया गया।
इस संपूर्ण प्रसंग का वर्णन एण्डू थामस ने अपने चर्चित ग्रंथ बियाण्ड दि टाइम बेरियर में विस्तारपूर्वक किया है उक्त घटना के उपराँत विज्ञानी यह मानने के लिये विवश हो गये कि समय के बीते भाग में इस प्रकार का प्रवेश संभव तो है, पर ऐसा मानसिक धरातल पर ही हो सकता है, शारीरिक स्तर पर नहीं। उनका विचार था कि सामान्य कैमरे से इस प्रकार के चित्र नहीं आने का एक ही मतलब हो सकता है साधारण प्रकाश भूत और वर्तमान के मध्यवर्ती अवरोध को चीरकर भूतकाल के गर्भ में प्रवेश पाने की क्षमता नहीं रखता, जो अपेक्षाकृत सूक्ष्म इन्फ्रारेड में विद्यमान है, अतः वह कुछ घंटे पूर्व ही घटना का फिल्माँकन करने में सफल होता है। इस सफलता के उपराँत वैज्ञानिक यह जानने का प्रयास करने लगे कि क्या ऐसा सुदूर भूत के दृश्यों ओर घटनाओं के साथ भी शक्य हो सकता है? इस निर्मित उनने भिन्न भिन्न स्थानों के कई स्थानों के कई ऐसे चित्र खींचे जहाँ सदियों पूर्व सुविकसित संभावनाएं थी, पर आज वे बीहड़ों जंगलों या रेगिस्तान में परिवर्तित हो चुके है।तस्वीर जब बनकर सामने आयी तो उनमें वही सारे दृश्य देखे, जिनके चित्र खींचे गये थे। कोई ऐसी विलक्षणता नहीं दिखाई पड़ी, जो उन स्थूलों में नहीं देखी गयी हो। इसमें शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि समय के साथ साथ घटनाएं और दृश्यावलियां अपेक्षाकृत अधिक सूक्ष्म स्तरों में प्रवेश करती जाती है फलतः वे विशिष्ट इन्फ्रारेड कैमरे की भी पकड़ से बचती रहती है। यदि कोई और अधिक वेधक सामर्थ्य वाली किरण हो तभी इनका फिल्माँकन कर पाना संभव है, पर विशेषज्ञ अभी ऐसी कोई रोशनी ढूंढ़ पाने में सफल नहीं हो सके है। ऐसी स्थिति में भूतकालीन जानकारियाँ उपलब्ध करने के लिये अनुसंधानकर्ता सूक्ष्म चेतना के महत्व से से इनकार नहीं करते। टाइम दि अल्टीमेट एनर्जी पुस्तक की विद्वान लेखिका महीहोप अपने उक्त ग्रंथ में लिखती है कि चूँकि चेतना विश्व का सर्वाधिक सूक्ष्म तत्व है अतएव व समय के अवरोध को पार करते हुये किसी भी काल खंड में प्रवेश करने में समर्थ होती है। सुषुप्ति की अवस्था में हर एक के साथ ऐसा इसलिये संभव हो पाता है क्योंकि इस दशा में चेतना और शरीर के बीच का बंधन ढीला पड़ जाता है, फलतः वह भूत भविष्य के किसी भी भाग में जाकर स्वप्नों के माध्यम से स्वप्न दृष्टा को अनागत विगत की ऐसी सूचनाएं देने लगती है जिससे वह सर्वथा अनभिज्ञ होता है कई बार यह जानकारियाँ इतनी स्पष्ट होती है और बार बार आती है कि दृष्टा भयभीत हो उठता है और किसी अनिष्ट की आशंका से चिंताग्रस्त हो जाता है। मरी होप ने इस पुस्तक में विगत का ज्ञान कराने वाले ऐसे अनेक स्वप्नों का उल्लेख किया है, जिसके बारे संबंधित व्यक्ति को कोई जानकारी नहीं थी। स्वप्न संकेतों के पश्चात जब संबद्ध स्थानों में पहुँचा गया तभी उनके बार बार आने का रहस्य समझा जा सका।
इतना स्पष्ट हो जाने के बाद अन्वेषणकर्ता यह तो मानने लगे कि सुषुप्तावस्था में बीते काल की उदर दरी में गति कर पाना संभव है पर फिर भी वे इस संभावना से इनकार करते रहे कि जाग्रत अवस्था में भी ऐसा कुछ संभाव्य है। इसका कारण वे एक ही बताते रहे कि इस दशा में चेतना काया से इतनी बुरी तरह आबद्ध होती है कि दोनों परस्पर पृथक कर पाना सरल नहीं। जिन दिनों विज्ञान जगत में इस विषय पर गंभीर चिंतन हो रहे थे। उन्हीं दिनों कुछ एक विलक्षण घटनाएं घट गई जिससे वैज्ञानिक इस पर पुनर्विचार के मजबूर हो गये।
एक घटना स्काटलैंड की हैं टामकिन परिवार की वहाँ बड़ी जागीर थी। एक दिन उसके एक सदस्य थामस टामकिन ने जो प्रायः ही अपने खेतों में दूर तक टहलने जाया करता था उस दिन कुछ नये दृश्य देखने का निश्चय किया। अनेक मैदानों खेतों को पार करने के पश्चात वह एक प्राचीन स्काटिष मुहल्ले के निकट आ पहुँचा। उसे देखते ही वह ठिठक गया और सोचने लगा कि पहले तो इसे उसने कभी नहीं देखा वह भी कितना मूर्ख है ! यह सोचते हुए वह उस ओर तनिक आगे बढ़ा। वहाँ कई झोंपड़ियों मकान तथा जानवर बंधे थे एक झरना भी बह रहा था कुछ और आगे बढ़ा तो कई लोग झोंपड़ियों के बाहर खड़े दिखाई पड़े किन्तु उनकी पोशाक इन दिनों जैसी नहीं थी। कई शताब्दी पूर्व लोग जैसा पहनावा करते थे उनकी ड्रेस उससे मिलती जुलती थी टामकिन ने उन्हें आवाज लगायी पर उसका कोई प्रभाव पड़ता उसे दृष्टिगोचर नहीं हुआ। वे सब स्वयं में ऐसे व्यस्त बने रहे मानों सब के सब बहरे हो और आवाज किसी को भी सुनाई नहीं पड़ी हो। हाँ बाहर खड़े पशुओं ने अवश्य प्रतिक्रिया दिखाई। वे सभी गर्दन घुमा कर टामकिन की ओर देखने लगे। इसके उपराँत टामकिन लौट आया। भवन में पहुँच कर उसने इस नयी बस्ती के बारे में लोगों को बताया पर लोग बार बार यही कहते रहे कि जागीर के उस भाग में कहीं कोई बस्ती नहीं। जब दोबारा टामकिन उन्हें दिखाने के लिये सभी के साथ उक्त स्थल पर पहुंचा तो वहाँ खाली मैदान के अतिरिक्त कुछ भी दृष्टिगत नहीं हुआ। वह आश्चर्य चकित रह गया पर भ्रम मानने के लिये बिलकुल तैयार नहीं था।
इस घटना की गवेषणा करने वाले विशेषज्ञ यह अनुमान लगाने लगे कि जाग्रतावस्था में भी यदि किसी प्रकार देह का बंधन ढीला हो जाय तो चेतना शरीर की परिधि से बाहर भी अपना विस्तार कर विस्तार कर वर्तमान के अतिरिक्त समय के दूसरे खंडों में प्रवेश कर सकती पर ऐसा किसी प्रकार हो?
इसे बता पाने में वे अब तक विफल रहे है किन्तु इतना अवश्य मानने लगे है कि जाग्रत रह कर भी ऐसा किया जा सकना संभव है। विज्ञान भले ही इसके विधान को बता पाने में असफल रहा हो पर अध्यात्म में इसका सुनिश्चित उपाय है जिसका यदि निष्ठापूर्वक अनुपालन किया गा तो इस पथ का कोई भी पथिक इस विभूति को करतलगत कर भूत भविष्य के अविज्ञात हिस्सों में प्रवेश पा सकता है। किन्तु इसके लिये चरित्र चिंतन व्यवहार के परिमार्जन की प्रारंभिक शर्त पहले पूरी होनी चाहिये, तभी अंततः अंतराल की अंतिम परिष्कृति पा सकना संभव है जिसने यह अनुबंध पूरा कर लिया उसके लिये समय संबंधी अवरोध को मिटा सकना सरला हो जाता हे -इसमें कोई दो मत नहीं।