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Magazine - Year 1994 - Version 2

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परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - कैसे ही आध्यात्मिक कायाकल्प?

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शांति में सतत् कल्प साधना सत्र चलते रहे है। उन दिनों पूज्यवर स्वयं साधकों को संबोधित कर कल्प प्रक्रिया की जटिलताओं एवं कैसे अपने अंदर परिवर्तन लाया जाय, इस विशय पर उद्बोधन देते थे। इसी विशय पर दो अंकों में प्रकाशित दो प्रवचनों की पहली कई यहाँ प्रस्तुत है। 1983-84 के इन प्रवचनों को जिनने सुना है- हृदयंगम किया है, उनके जीवन को एक नयी दिशा मिली, न केवल स्वास्थ्य सुधरा, चिंतन परिष्कृत हुआ एवं आत्मिक प्रगति का पथ भी प्रशस्त हुआ। पढ़े अमृतवाणी-

गायत्री मंत्र, साथ-साथ-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

कल्प साधना के लिए आप सभी यहाँ शांतिकुंज आये है। कल्प आखिर है क्या जिसके लिए हमने आपको यहाँ बुलाया है। कल्प का अर्थ होता है परिवर्तन। आपको बदलने का हमारा मन है। आप यदि अभी तक दुखी जीवन जीते रहे है तो सुखी जीवन जियें। आप बीमार जीवन जीते रहे है तो स्वस्थ जीवन जियें। आप यदि गुत्थियों से उलझा हुआ जीवन जीते रहे है तो अब हँसता-हँसाता जीवन जियें। यदि घिनौना, कमजोर और उपेक्षित जीवन जोते रहे है तो अब ऐसा शानदार जीवन जियें कि जिसको देखकर आपका भी जी बाग-बाग हो जाय और जो कोई भी बाहर इसे देख पाये, उसकी भी खुशी का ठिकाना न रहे ऐसा ही आपके जीवन में कायाकल्प करने का हमारा मन था। आपने हमारे विचारो का पढ़ा होगा और उसी से प्रभावित होकर वहाँ आये है। आइये अब विचार करे कि यह कैसे संभव होगा? इसके लिए क्या करना पड़ेगा? इन सारे प्रश्नों पर गंभीरता से हम और आप विचार करें।

आमतौर से कल्प साधना के बारे में यह भ्रम फैला हुआ है कि कल्प माने बूढ़े से जवान हो जाना, पर यह एक भ्राँति है। बूढ़े का जवान होना संभव नहीं है क्योंकि वह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है। प्रकृति के नियमों को कोई बदल नहीं सकता। सूर्य पूर्व से निकलता है और पश्चिम में डूबता है। ऐसा हो सकता कि सूर्य पश्चिम से निकले और पूर्व में डूबा करें। भगवान ने प्रकृति को ऐसा बना दिया है कि वे अपने म्यान पर रहेंगे और जब से बने है तब से और जब तक सृष्टि रहेगी, तब तक बने रहेंगे। इसलिए बूढ़े आदमी का जवान होना नामुमकिन है। पुराणों के कथायें तो है, पर मालूम नहीं वे कहाँ तक ठीक है। आपने च्यवन ऋषि की बात सुनी होगी जो बूढ़े थे और जवान हो गये थे। आपने राजा ययाति की कहानी भी सुनी होगी कि बेटे की जवानी लेकर वह बूढ़े से जवान हो गये थे। लोगों ने कोशिशें तो की है, यूरोप में भी बहुत प्रयत्न हुए है वृद्धों को जवान बनाने के लिए। पर सफलता नहीं मिली। स्टालिन रूस का अधिनायक था। उसको बंदर की ग्रंथियाँ काट-काट कर लगायीं और यह कोशिश की गयी कि वह वह फिर से जवान हो जाय, पर ऐसा नहीं हो सका। प्रकृति से लड़ाई लड़ना नामुमकिन है। किसी को यह आशा नहीं करनी चाहिए कि हमारा बूढ़ा शरीर जवान बन जायेगा, पर हाँ यह आशा हम-आप में से हर व्यक्ति कर सकता है कि कमजोरी और बीमारी जो हमने आपने बुला कर रखी है, उसको इनकार कर दें और यह कह दे कि हम आपको अपने यहाँ रखने की स्थिति में नहीं है, कृपा करके आप चली जाइए। इनको हम भगा सकते हैं, क्योंकि ये प्राकृतिक नहीं है।

जीवधारी पैदा होते हैं और मरते भी है, पर न कोई बीमार रहता है और न कोई कमजोर रहता है। जब कमजोरी आती है तो मौत के मुँह में चले जाते हैं। भला कमजोर जिंदगी जीना कौन पसंद करेगा और ऐसी जिंदगी को पसंद करेगा जो बीमारियों से घिरी हुई हो कमजोरी और बीमारियों से घिरा हुआ होना-यह प्रकृति के विरुद्ध है। इसको आप और हम हटा सकते हैं। शरीर के बारे में यहीं तक मुमकिन है और इसके आगे कुछ नहीं हो सकता। शरीर के कायाकल्प से अगर आप का मतलब हो और इसी ख्याल से अगर आप यहाँ आए हों तो कृपा करके यह बात नोट कर लीजिए शरीर के बारे में कि यह जो उमर है वह आगे ही बढ़ेगी, पीछे की ओर घटेगी नहीं। जवान को तो बच्चा कैसे बना पायेंगे हम? बच्चे का माँ के पेट में तो कैसे धकेल पायेंगे? संभव नहीं है। आपकी उमर तो जरूर बढ़ेगी और आपको शरीर पर जो प्रभाव पड़ेगा, वह सब पड़ना ही चाहिए। लेकिन आपका स्तर बदल जायेगा। आकृति तो ज्यों की त्यों रहेगी, पर प्रकृति बदल जायगी। प्रकृति को बदलना मुमकिन है। यदि आपकी प्रकृति बदल जायेगी तो परिस्थितियाँ भी बदल जायेगी।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि मनःस्थिति का ही नाम परिस्थिति है।। मनः स्थिति अगर आदमी बदल लें तो परिस्थितियों के बदलने में कोई शक नहीं हैं। बस यही कायाकल्प हैं। इसी को हम कराना चाहते हैं।

आपके भीतर वाला जरूर बदल जाएगा। मनःस्थिति में हेर फेर कर ले तो उसके अनुसार परिस्थितियाँ अपने आप बदल जायेंगी। इसलिये कल्प साधना से आपको जो यहाँ अर्थ लेना चाहिये वह यह लेना चाहिये कि यहाँ जो आपसे कराया जाने वाला है जो आपसे कराने के लिये दबाव डालेंगे कि आपका भीतर वाला हिस्सा जिसका अर्थ होता है मन बुद्धि और चित्त जिसका अर्थ होता है जीवात्मा जिसका अर्थ होता है आपका दृष्टिकोण चिंतन और चरित्र बदल जाय। अगर इसे हम बदल दे तो आप विश्वास रखिये कि आपका जीवन पिछले दिनों जैसा भी कुछ रहा है भविष्य में वैसा रह ही नहीं सकता। आपने इतिहास पढ़ा होगा और आपको उन भक्तों के नाम याद होंगे जो पहले सामान्य स्थिति में गये बीते थे लेकिन जब उन्होंने अपना मन स्तर और दृष्टिकोण बदल दिया तो कितना कमाल हो गया। उनकी जिंदगी कैसी शानदार हो गयी। अगर उन्होंने भीतर वाले हिस्से को अर्थात् दृष्टिकोण को बदला न होता तो बाहर वाली परिस्थितियाँ बिलकुल मामूली आदमी के तरीके की रही होती।

इस संदर्भ में मैं आपके सामने कुछ ऐसे आदमियों के नाम रखना चाहता हूँ। कि परिवर्तन कैसे होते हैं। शंकराचार्य को आप जानते हैं न। शंकराचार्य एक मामूली घर के लड़के थे। उनकी माता यह उम्मीद करती थी कि पढ़ने के बाद में लड़के की शादी ब्याह कर देंगे। बाल बच्चे होंगे नाती पोते खिलायेंगे, लेकिन शंकर ने अपना दृष्टिकोण बदल लिया और माँ से इनकार कर दिया। उन्होंने अपने भावी लक्ष्य और भावी जीवन का एक स्वरूप बना लिया। यह स्वरूप उनका अपना बनाया हुआ था। यह दृष्टिकोण उन्होंने स्वयं बनाया था। कार्यपद्धति उन्होंने स्वयं बनायी। बाद में सहायता दूसरों ने भी की। शुरुआत तो उन्होंने ही किया। शंकराचार्य फिर क्या हुये? वे शंकर भगवान के अवतार माने जाते हैं। अगर आदि शंकराचार्य ने अपने दृष्टिकोण में हर फेर न किया होता तो तब फिर वहीं होता जो उनकी माँ चाहती थी। वे एक मामूली पंडित पुरोहित होते जन्म पत्नियाँ बनाते फिराते पूजा पाठ कराते फिरते बाल बच्चे बच्चे होते और गये बीते स्तर के होते। पर जब दृष्टिकोण उन्होंने बदल दिया तो आदि शंकराचार्य हो गये।

हर आदमी को यह अधिकार मिला हुआ है कि वह चाहे जैसा बन जाय। भगवान ने हर आदमी को इस लायक बनाया है कि वह चाहे तो अपने आपको बदल दे। विवेकानंद की बात आपको मालूम है न। वे एक मामूली से विद्यार्थी थे। खास प्रतिभावानों में उनकी शुमार नहीं होती थी। घर की परिस्थितियाँ भी ऐसी थी। पिता जी मरने के घर लेकिन यह निश्चय किया कि अपने सोचने के तरीके अपने दृष्टिकोण और अपने जीवन का लक्ष्य तथा उद्देश्य बदल देंगे। यही उन्होंने किया भी। जब इस बात का फैसला उन्होंने कर लिया तो रामकृष्ण परमहंस ने उनकी सहायता की? नहीं ऐसा मत कहिये रामकृष्ण परमहंस के लिये सहायता करना मुमकिन रहा होता तो हजारों आदमी उनके पास आया करते थे और उनसे दीक्षा लेते थे। हजारों आदमी उनके शिष्य कहलाते थे पर एक भी तो नहीं हुआ। केवल एक आदमी हुआ विवेकानंद। तो क्या रामकृष्ण की कृपा एक पर ही थी? नहीं असलियत यह नहीं है। उनकी सब पर कृपा बरसती थी पर उन्होंने अपने को बदला नहीं जबकि विवेकानन्द ने अपने आपको भीतर से बदल लिया। बदले हुये आदमी की कौन सहायता नहीं करेगा। आप जिस दिशा में भी आगे बढ़ना चाहते हैं, उसमें सहायता करने वालों की दुनिया में कुछ कमी है क्या? विवेकानन्द की भी सहायता हुई।

और किसकी सहायता हुई? सदन का नाम सुना है आपने कि वह कैसा आदमी था। कसाई का धंधा करता था जानवर काटता था पवित्र शालिग्राम पत्थर के बदले माँस तौल तौल कर बेचता था। बेचता ईमानदारी से था हर आदमी की दृष्टि में उसकी कीमत दो कौड़ी की थी। लेकिन जब उसने आपको बदल लिया। ईश्वरीय सत्ता से तादात्म्य बिठा लिया तो भगवान के भक्तों में सदन कसाई मूर्धन्य हो गये। मनः स्थिति बदल जाने के बाद में परिस्थितियों क्यों नहीं बदलेंगी? पहले जिससे लोग नफरत करते थे उसकी को सब प्रणाम करने लगे। मस्तक झुकाने लगे और न जाने क्या क्या करने लगे। बाल्मीकि का नाम आपने सुना है न पहले उसकी कैसी जिंदगी थी। पहले वे घटिया वाली खराब वाली जिंदगी रहे थे। आदमी उससे भयभीत रहता था। हर आदमी उस पर धिक्कार बरसता था। लेकिन जब उन्होंने अपने आपको बदल लिया। तब वह संत बाल्मीकि हो गये, ऋषि बाल्मीकि हो गये। उनका जीवन धर्म पत्नी सीता की हिफाजत के लिये उनकी गार्जियन शिप के लिये और कोई संत न दिखाई पड़ा। बाल्मीकि ही सीताजी द्वारा सुसंतति उत्पादन हेतु सबसे बड़े संत दिखाई पड़े। उनके आश्रम में भगवान राम ने अपनी पत्नी और बच्चों को सहर्ष रहने दिया ताकि उनका पालन पालन पोषण संस्कार और शिक्षण ठीक ढंग से हो सके। वहीं बाल्मीकि जिनका पूर्व का जीवन दस्यु का था उनका कायाकल्प हो गया वे संत ऋषि देव पुरुष बन गये वही कायाकल्प करने के लिये आप लोग यहाँ आये है। भीतर वाले को बदल दीजिये फिर देखिये परिस्थितियाँ बदलती कि नहीं।

हमने आपके सामने बाल्मीकि का उदाहरण पेश किया। अभी मेरा मन कुछ और उदाहरण पेश किया। अभी मेरा कुछ और उदाहरण पेश करने का है। आम्रपाली का नाम सुना होगा आपने। वह एक वेश्या थी जिसको हर आदमी ऐसे समझता था कि हम क्या कहें आप से। उसने कितने आदमियों की जिंदगी खराब की थी। लेकिन जब उसने अपने आपको बदल दिया, तब फिर आम्रपाली-आम्रपाली नहीं रही-वेश्या नहीं रही, वह भगवान् बुद्ध की बेटी हो गयी। सारे सारे एशिया के अधिकांश देशों में वह घूमी। महिला संगठन की दृष्टि से उसने न जाने क्या से क्या कर डाला कैसे हो गया यह सब? उसने अपने आपको बदल दिया और उसका कायाकल्प हो गया। कायाकल्प कैसे होगा? यही मैं आपको बताने वाला हूँ, पर पहले आपको यह जान ही लेना चाहिए कि कायाकल्प भीतर से होता है। बाहरी शरीर के कायाकल्प से कोई मतलब नहीं है। आँतरिक कायाकल्प की विधा प्राचीनकाल में भी रही है और अभी भी है तथा आगे भी रहेगी। इसी के लिए हमने आपको बुलाया है।

ध्रुव का नाम सुना होगा आपने, वह बिलकुल एक सामान्य दर्जे के राजकुमार थे। राजाओं के ढेरों बच्चे होते हैं। एक को गोद में लिया और एक को गोद से उतार दिया। जरासी परिवार की एक घटना। उससे ध्रुव ने अपने आपको बदल लिया। उन्होंने कहा-राजकुमार रहना नहीं है और यदि रहना ही होगा तो भगवान के राजकुमार क्यों नहीं रहेंगे। बस, भगवान का राजकुमार बनने का फैसला कर लिया उसने। दृढ़ निश्चयी की सहायता करने वाले कम हैं क्या? नारद जी आ गये और उनने उसकी सहायता की। नारदजी बाकी बच्चों-ध्रुव के भाई-बहनों के पास क्यों नहीं गये? उनसे क्यों नहीं कहा? नहीं नारद जी उनसे कह नहीं सकते थे, क्योंकि जो आदमी अपना निश्चय स्वयं करता है उसी की सहायता दूसरे करते हैं। आपने वह कहावत सुनी होगा - ‘ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करते हैं।’ यह बात बिलकुल सोलह आने सच है। प्रहलाद का नाम जानते हैं न, अगर वह अपने दैत्य बाप के कहने पर चला होता और पुरानी परंपरा पर चला होता तो सिवाय दैत्य के क्या हो सकता था? बाप-दादे तो काम करते थे, वही काम प्रह्लाद भी करता। परंतु प्रहलाद ने अपने आपको बदल दिया। इसी तरह गुरुनानक के पिताजी मामूली सा व्यापार करते थे। वे चाहते थे कि उनका लड़का भी व्यापार करे। व्यापार के लिए एक बार पैसा भी दिया जिसे उन्होंने परमार्थ में खर्च कर डाला। बाप के कहने पर वे चले नहीं उनकी बातें मानने से इनकार कर दिया मित्रों ने, पड़ोसियों ने भी कहा होगा, पर एक का भी कहना उन्होंने नहीं माना। अपने ईमान और भगवान का कहना उन्होंने माना। अपने ईमान और भगवान का कहना मानने वाले नानक का क्या हो गया देखा है न आपने कि सारे संसार में कितनी इज्जत है उनकी। सिक्ख धर्म में उन्हें भगवान मानते हैं। वे महान बन गये, पर अगर बाप की मर्जी पर चले होते तो पुराने ढर्रे पर ही गाड़ी लुढ़कती रही होती और वे बिलकुल मामूली से आदमी होते और एक बनिये की दुकान कर रहे होते। ढेरों बच्चे पैदा करके मामूली आदमी के तरीके से जिंदगी बसर कर रहे होते। पर ऐसा नहीं हुआ। नानक का कायाकल्प हो गया। नानक संत हो गये, ऋषि हो गये, भगवान हो गये, अवतार हो गये।

शिवाजी की भी यही कहानी है। उनके पिताजी मिलिट्री में नौकरी करते थे वे जैसे मामूली घर-गृहस्थी के बच्चे होते हैं, उसी तरह थे। यदि ढर्रे का जीवन जिया होता और उस ढर्रे से इनकार न किया होता तथा अपने लिए कोई नया निर्धारण न किया होता या निश्चय न किया होता तो क्या आप विचार कर सकते हैं कि शिवाजी वैसे ही रहे होते जैसे कि हम उन्हें छत्रपति शिवाजी कहते हैं। यह कैसे हुआ? कायाकल्प हो गया। वह शिवाजी तो माता के पेट में से पैदा हुआ था, घर-गृहस्थी में गुजारा करता था, उसकी तुलना में महापुरुष शिवाजी की रूप रेखा बिलकुल अलग है। इसी तरह चन्द्रगुप्त का नाम अपने सुना होगा। चाणक्य ने उसके अंदर की कसक को देखा और उसे पढ़ लिया। उसकी पात्रता को देखा और उसके भीतर हो रहे मनःस्थिति के बदलाव को देखा। चाणक्य ने उसे क्या से क्या बना दिया। गाँधीजी परिस्थिति से ऐसे ही थे क्या? उनके पिताजी एक दोटी स्टेट के दीवान थे। वह अपने लड़के को वकील बनाना चाहते थे। गाँधीजी यदि उनके अनुसार चले होते तो एक मामूली वकील रहे होते। सफल या असफल यह बात दूसरी है। पर सिवाय वकील के और कुछ नहीं हो सकते थे। लेकिन जब उन्होंने यह निश्चय किया कि हमको कुछ बनना है और जिंदगी का बड़ा उद्देश्य पूरा करना है, तो वे फिर महात्मा गाँधी हो गये, अवतार हो गये, बापू हो गये और युग प्रवर्तक हो गये। लाखों आदमियों को दिशा देने वाले हो गये। आखिर यह हुआ कैसे? भगवान ने कर दिया क्या? नहीं। तो फिर भाग्य ने किया क्या? नहीं। तो फिर किसी आदमी ने किया होगा। नहीं, किसी ने भी नहीं किया। उन्होंने स्वयं अपना कायाकल्प कर लिया था। सहायता जरूर औरों ने की। सहायता का तो दुनिया में द्वार खुला है। बुरे लोगों के लिए भी सहायता का द्वारा खुला हुआ है और अच्छे लोगों के लिए भर खुला है। गाँधीजी के बाबत यही हुआ। बुद्ध के बारे में भी यही बात लागू होती है। बुद्ध भगवान क्या थे? एक मामूली राजा के लड़के थे। छोटी उम्र में विवाह शादी कर दी गयी थी। लेकिन जब उन्होंने यह निश्चय किया कि हमें बड़प्पन की दिशा में चलना है, कुछ महान कार्य करने हैं, तो बुद्ध का कायाकल्प हो गया और वे भगवान बुद्ध हो गये।

उपरोक्त पुराने उदाहरण मैंने इसलिए दिये है कि आप विचार कर सके कि हमारा बदलना संभव है। चलिये आपका यह ख्याल हो शायद के हम तो मामूली आदमी हैं। हमारी घिनौनी और गंदी जिंदगी रही है। जिसके कारण हम नहीं बदल पायेंगे और जिस ढर्रे पर हम चल रहे है, जिस कोल्हू में हम पिल रहे हैं, उसी में हम पिलते रहेंगे ते यह आपकी मर्जी के ऊपर है, अन्यथा मामूली और घिनौने आदमी तो और भी आसानी से बदल सकते हैं। यह आपकी मर्जी के ऊपर है कि आप चाहें तो इस तरीके से भी रह सकते हैं जैसे कि अभी रह रहे हैं। लेकिन अगर आपका मन हो कि हमको बदल जाना चाहिए तो सूरदास का उदाहरण आपके सामने है। सूरदास कैसे आदमी थे? आप जानते हैं न। विल्वमंगल का नाम सुना है न आपने। कैसी घिनौनी और कामुक जिंदगी थी इसकी। पर जब कायाकल्प हुआ तो अंध होने के बाद में भगवान उन्हें अपनी लाठी पकड़ा कर ले जाते थे। तुलसीदास की भी पिछली जिंदगी ऐसी थी कि कामुकता से पीड़ित होकर उन्होंने मुर्दे पर सवार होकर नदी पार की थी। साँप की पूँछ पकड़कर छत पर चढ़ गये और अपनी धर्मपत्नी के पास पहुँचे थे। धर्मपत्नी ने यह कहा था कि जितना प्यार आप हमसे करते हैं यदि उतना ही प्यार आप भगवान से करें तो क्या से क्या हो सकता है? यह बात उकेम न में लग लगी और लगने के बाद में उन्होंने अपने आपको बदल दिया। बदला हुआ तेवर तुलसीदास का आप जानते हैं न। रामायण को बनाने वाले उस तुलसीदास को आप जानते हैं जिनके बारे में प्रसिद्ध है कि ‘तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुबीर’।

भगवान राम तुलसीदास को चंदन लगाते थे और श्रीकृष्ण भगवान सूरदास को पकड़कर साथ साथ घूमते हैं। ऐसा हो सकता है क्या? हाँ हो सकता है और आपके लिए भी हो सकता है, यकीन रखिये। यकीन के जिए ही हमने आपको यहाँ बुलाया है। आप चाहें तो जरूर कर सकते हैं। यह क्या होगा? इसमें दो आदमियों के सहयोग की जरूरत पड़ती है, अकेले आप नहीं कर पायेंगे। लेकिन कोई बाहर का आदमी अकेला आपकी सहायता करना चाहे तो वह भी मुमकिन नहीं है। आप प्रयत्न कीजिए हम आपकी सहायता करेंगे। मरीज को दवा खानी होती है और परहेज करना होता है। चिकित्सा करने वाला दूसरा आदमी होता है। हम आपकी चिकित्सा कर सकते हैं, लेकिन परहेज तो आपको ही करना पड़ेगा। दवा तो आपको ही खानी पड़ेगी। आपने देखा होगा कि अंडा किस तरीके से फूटता है। मुर्गी के पेट में से अंडा निकलता है। मुर्गी की दया न हो तो अंडा कहाँ से आये। जन्म लेने से पहले अंडे के भीतर रीने वाले बच्चे को मेहनत करनी पड़ती है और अपनी ताकत के हिसाब से अंडे को भीतर से तोड़ना पड़ता है। कोई और तोड़ने नहीं आता। आपने देखा होगा कि जब बच्चा बाहर आता है तो अंडे के भीतर बैठे उस चूजे को मेहनत करनी पड़ती है। अपनी ताकत से वह अंडे में दरार डालता है और फूट कर बाहर निकल पड़ता है। बच्चे की ताकत, हुकूमत काम नहीं करती, उसके पहले या पीछे उसे जन्म नहीं दे सकती।

आपको अंउ के तरीके से अपना दायरा तोड़ना पड़ेगा, बच्चे के तरीके से बाहर तो निकलना पड़ेगा। आपको जो करना है, यही करना है कि आपके ऊपर जो केंचुली लगी हुई है, यदि आप उसे उतार देंगे तो आप साँप के तरीके से दौड़ते हुए चले जायेंगे। समस्या हल जायेगी, तो यह मुमकिन नहीं है। आप और हम मिलजुल कर कार्य करें। आप हमारा कहना मानें और हम आपके लिए मदद करें। अंधे और पंगे के तरीके से हम लोग मिलजुलकर नदी पार कर लें। तब परिस्थितियाँ भी ऐसी बदल जायेंगी कि मला आ जायगा।

कायाकल्प से हमारा मतलब यही था कि आपके लिए हम सहायता करेंगे कि आप अदल जायें।

आप पर हम दबाव डालेंगे कि जिस तरह की जिंदगी आप जीते रहे हैं, वह मुनासिब नहीं है। आप का जो स्वरूप अब तक का रहा है, वह आपके लिए मुनासिब स्वरूप नहीं है। अगर आपको यह दावत स्वीकार हो तो फिर आप तैयार हो जाइये, हिम्मत कीजिए, उसके लिए संघर्ष कीजिए और अनुशासन पालने के लिए तैयार हो जाइये। फिर देखिये आपका भविष्य कैसे शानदार बनता है। कायाकल्प से हमारा उद्देश्य यही था और आपको भी कायाकल्प का यही उद्देश्य समझना चाहिए और अपनी तैयारी के लिए जो मुनासिब हो, वह करने के लिए कमर खड़े होना चाहिये।

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