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Magazine - Year 1995 - Version 2

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Language: HINDI
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क्षेत्रीय योग प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वरूप और विधि व्यवस्था

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बहिर्मुखी प्रकृति के मनुष्य को अन्तर्मुखी बनाने तथा आज के भौतिकता प्रधान युग में आत्मिक प्रगति के सूत्र समझाने की जो विधा नूतन साधन पद्धति के रूप में युगऋषि ने शोधी, वह अपने आप में विशिष्ट हैं। हर व्यक्ति चाहता है कि उसे भौतिक आत्मिक दोनों ही क्षेत्रों में कुछ उपलब्धियाँ दिलाये। इसके लिये योगसाधना का आश्रय लेना पड़ता हैं सही जानकारी के अभाव में जन समुदाय भटकता रहता है, इधर-उधर हाथ पैर मारकर हठयोग की कुछ क्रियाएँ सीख तो लेता है पर फास्टफूड से लेकर द्रुतगति से चलने वाले वाहनों वाले इस युग में वह इनमें भी उनके पल्ले पड़ जाता है जो योग के नाम पर दुकानें तो चलाते है पर उसका मर्म उसके जीवन नहीं पाते। इसमें कुछ उसकी भी मजबूरी होती है कि वह हर काम जल्दी चाहता है, हथेली पर सरसों उगाना चाहता है किन्तु बहुधा जल्दबाजी दूसरी ओर से होती है क्योंकि वहाँ साधक, जिज्ञासु व गुरु का रिश्ता कम, फिटनेस लाने वाले एक वेतन भोगी शिक्षक का स्वरूप अधिक बन गया है।

कुछ अपवाद अवश्य है पर है। बहुत कम। लोगों की इस आवश्यकता की राहें नजर रख तथा युगसंधि काल में आत्मबल सम्पन्न व्यक्तियों-राष्ट्र के सशक्त नागरिकों के निर्माण की प्रक्रिया को द्रुतगामी बनाने के लिये शान्तिकुञ्ज ने निर्णय लिया है कि इस वर्षाकाल में 15 जुलाई से पाँच-पाँच दिन के योगाभ्यास प्रधान क्षेत्रीय आयोजन पूरे भारत भर में सम्पन्न किये जाये। इनमें शान्तिकुञ्ज से भेजा गया इस विधा में निष्णात पाँच सदस्यीय दल पाँच दिन की अल्पावधि में आहार परिवर्तन से लेकर आसन-प्राणायाम मुद्रा बंध ध्यान आदि के कुछ ऐसे प्रयोगों का जो युग ऋषि ने आज की परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुये आसान बना दिये है, शिक्षण देगा। विस्तार से किन्हीं को समझना हो तो उन्हें शान्तिकुञ्ज के विशिष्ट 9-9 दिन के साधना प्रधान सत्रों में आना होगा जिन्हें नियमित रूप से सम्पन्न तो किया जा रहा है किन्तु कुछ और विशेषताओं के साथ इस वर्ष शीतकाल में उन्हें चार माह तक प्रयोग के रूप में चलाया जायेगा।

प्रस्तुत पाँच दिवसीय योगसाधना सत्रों में आयोजनों में वे सभी भाग ले सकते हैं जो किसी भी आयु, वर्ग, लिंग के है किन्तु अपना आत्मबल मनोबल, शरीर बल बढ़ाने की जिज्ञासा होते हुये भी कभी इतना अवसर अब तक निकाल न पाए। कई शान्तिकुञ्ज न आ जाये वे इतना अधिक सीखने के क्रम में इन साधना उपचारों पर अधिक ध्यान न दे पाये। इन आयोजनों को 25 सितम्बर तक सतत् 12 टोलियों के माध्यम से चलाया जाना रहेगा तथा प्रत्येक के साथ रंगीन 35 एम-एम की स्लाइड प्रोजेक्टर इन विषयों पर विशिष्ट स्लाइड प्रोजेक्टर्स के साथ भेजी जाएँगी। शाम के समय हॉलों में दिखाई जाने वाली इन स्लाइडों से बहुत कुछ वह समझा जा सकेगा जो सामान्यतः पढ़ने आदि से कम समझ में आता है।

प्रथम दिन अपराह्न शान्तिकुञ्ज की टोली निर्धारित स्थान पर पहुँचेगी तथा शाम को पूर्व संध्या के उद्बोधन से अपना कार्यक्रम आरम्भ करेगी। योगाभ्यास का मूल तत्व दर्शन ध्यान हेतु मनोभूमि कैसे बने तथा वस्तु के अनुरूप आहार बना लिया जाय यह प्रथम दिन समझाया जायेगा। दूसरे दिन प्रातः यह 7 से 9 शिव संकल्प के गायन के साथ और आरम्भ होगी तथा इनमें तीन कक्षाएँ होगी जो 35 मिनट की होंगी। प्रत्येक में क्रमशः आसन मुद्रा बंध-प्राणायाम तक ध्यान के विभिन्न तरीकों पर व्यावहारिक क्रियापरक मार्गदर्शन दिया गया। सरस्वती पंचक के साथ प्रातः कामदसत्र समाप्त हो जाएगा ताकि ऑफिस व्यापार आदि से जुड़े व्यक्ति अपने काम पर जा सकें। दूसरा सत्र संध्या 6.30 से 8.30 का होगा जो गायन से आरम्भ होगा। पंद्रह मिनट प्रश्नोत्तरी के क्रम के बाद स्लाइड प्रोजेक्टर द्वारा रंगीन स्लाइडों से उद्बोधन आरम्भ होगा तथा तीन दिन तक भक्तियोग ज्ञानयोग-कर्मयोग की कक्षा के विभिन्न सोपानों के प्रशिक्षण का क्रम चलेगा। चौथे दिन संध्या एक विशिष्ट प्रयोग 2400 वेदी दीपयज्ञ के रूप में साधकों द्वारा लिये गये संकल्प के रूप में होगा। इसमें सभी को महाकाल के साथ साझेदारी का सामूहिक यज्ञ प्रक्रिया से जुड़ने का अवसर मिलेगा। अन्तिम दिन का सत्र विदाई सत्र होगा, जिसमें पिछले चार दिनों की जिज्ञासाओं का समाधान कर विदाई संदेश देकर टोली अगले कार्यक्रम के लिये रवाना हो जाएगी।

यों ये आयोजन प्रातः-सायं के ही है पर प्रति दिन दूसरे, तीसरे चौथे दिन मध्याह्न में 12.30 से 3.30 तक कार्यकर्ता स्तर के व्यक्तियों की गोष्ठी अनुयाज प्रशिक्षण, आँवलखेड़ा पूर्णाहुति प्रयाज शिक्षण, युग शिल्पी शिक्षण स्थान विशेष की आवश्यकतानुसार चलता रहेगा। यदि संयोग से बीच में छुट्टी पड़ जाये तो एक जनस्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन या संस्कार प्रधान सभा भी रखी जा सकती है। दिन में विभिन्न संस्कार व देव स्थापना तो नित्य हो सकते है। वयोवृद्ध-अत्यधिक जीर्ण रोग वाले व बहुत छोटे बच्चों पर तो प्रतिबंध है पर शाम की सभा में सभी आ सकते है। बहनें यदि आये तो साड़ी के साथ कमर पर फेंटा बाँधकर आये या सलवार कुर्ते में प्रातःकालीन सत्र में भाग लें। आयोजनों के प्रति अत्यधिक उत्साह क्षेत्र में उभरा है। जितने अधिक नये परिजन भाग ले सकें उतनी ही इनकी सार्थकता होगी।

*समाप्त*

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