• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • आत्मिक प्रगति का अवलम्बन सेवा साधना
    • सही न्याय
    • सच्ची सुगन्ध (Kahani)
    • नैतिकता के उत्थान पर ही सब टिका है
    • घाट का पत्थर (Kahani)
    • स्नायु संस्थान में छिपी है जादुई पिटारी
    • नादब्रह्म साधना का ज्ञान-विज्ञान
    • सौंदर्य-बोध ने खोला मुक्ति का द्वारा
    • कोरी कल्पना नहीं है अमैथुनी सृष्टि
    • खुदा परस्ती ने दिखाया कारुँ का खजाना
    • तुच्छता से महानता की ओर
    • यदि ‘अर्थ’ बन जाए अध्यात्म परायण
    • मन पृथक् नहीं है शरीर से
    • जिजीविषा ही सफलता का पथ प्रशस्त करती है
    • क्या आप भी आत्महत्या करना चाहते हैं?
    • सुख वस्तुतः है क्या
    • अहंकार का उन्माद
    • दीर्घसूत्री ने बनें, विवेक को अपनाये
    • काश! ‘मैं’ स्वयं को समझ पाता?
    • व्यक्तित्व की अनगढ़ता मिटाते हैं-अध्यात्म उपचार
    • गुरुपर्व पर विशेष- - गुरुवर के सहचर
    • गुरुवर के सहचर (Kavita)
    • युगऋषि का अपरिग्रह
    • युगऋषि का अपरिग्रह (Kavita)
    • गुरु पूर्णिमा-प्रेरणा
    • गुरु पूर्णिमा-प्रेरणा (Kavita)
    • तुमको कोटि प्रणाम
    • तुमको कोटि प्रणाम (Kavita)
    • गुरुपूर्णिमा पर्व पर - मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं- मोक्षमूलं गुरुकृपा
    • देवात्मा हिमालय एवं ऋषि परम्परा -परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • युग शिल्पी अहमन्यता के विषपान से बचे रहें
    • क्षेत्रीय योग प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वरूप और विधि व्यवस्था
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • आत्मिक प्रगति का अवलम्बन सेवा साधना
    • सही न्याय
    • सच्ची सुगन्ध (Kahani)
    • नैतिकता के उत्थान पर ही सब टिका है
    • घाट का पत्थर (Kahani)
    • स्नायु संस्थान में छिपी है जादुई पिटारी
    • नादब्रह्म साधना का ज्ञान-विज्ञान
    • सौंदर्य-बोध ने खोला मुक्ति का द्वारा
    • कोरी कल्पना नहीं है अमैथुनी सृष्टि
    • खुदा परस्ती ने दिखाया कारुँ का खजाना
    • तुच्छता से महानता की ओर
    • यदि ‘अर्थ’ बन जाए अध्यात्म परायण
    • मन पृथक् नहीं है शरीर से
    • जिजीविषा ही सफलता का पथ प्रशस्त करती है
    • क्या आप भी आत्महत्या करना चाहते हैं?
    • सुख वस्तुतः है क्या
    • अहंकार का उन्माद
    • दीर्घसूत्री ने बनें, विवेक को अपनाये
    • काश! ‘मैं’ स्वयं को समझ पाता?
    • व्यक्तित्व की अनगढ़ता मिटाते हैं-अध्यात्म उपचार
    • गुरुपर्व पर विशेष- - गुरुवर के सहचर
    • गुरुवर के सहचर (Kavita)
    • युगऋषि का अपरिग्रह
    • युगऋषि का अपरिग्रह (Kavita)
    • गुरु पूर्णिमा-प्रेरणा
    • गुरु पूर्णिमा-प्रेरणा (Kavita)
    • तुमको कोटि प्रणाम
    • तुमको कोटि प्रणाम (Kavita)
    • गुरुपूर्णिमा पर्व पर - मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं- मोक्षमूलं गुरुकृपा
    • देवात्मा हिमालय एवं ऋषि परम्परा -परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • युग शिल्पी अहमन्यता के विषपान से बचे रहें
    • क्षेत्रीय योग प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वरूप और विधि व्यवस्था
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1995 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


नादब्रह्म साधना का ज्ञान-विज्ञान

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 6 8 Last
प्रकृति की प्रमुख शक्तियों में ताप, प्रकाश एवं विद्युत की भाँति ही ‘शब्द’ की भी गणना होती है। अध्यात्म शास्त्रों में शब्द को ब्रह्म तक कहा गया है, जबकि पदार्थ विज्ञानी शब्द को भौतिक तरंगों का स्पन्दन भर मानते हैं। उनका कहना है कि शब्द अर्थात् ध्वनि टकराव से उत्पन्न होती है और ईथर तथा वायु के सहारे अपना परिचय देती है। सामान्यतया उसे किसी घटना की जानकारी देने वाली समझा जाता है और सर्वाधिक उपयोग शब्द गुच्छकों के माध्यम से वार्तालाप में किया जाता है। परन्तु इसे इतने छोटे क्षेत्र तक ही सीमित नहीं मान लेना चाहिए। शब्द ब्रह्म की अपनी अद्भुत एवं असीम सामर्थ्य है और उसकी प्रभाव क्षमता प्राणि जगत एवं पदार्थ जगत में समान रूप से देखी जा सकती है।

ध्वनियाँ दो प्रकार की होती हैं-श्रव्य तथा अश्रव्य ध्वनियाँ। श्रव्य ध्वनियों का अपना एक प्रसार क्षेत्र होता है। हम उन्हीं ध्वनियों को शब्दों को सुन सकते हैं जो इस सीमा क्षेत्र के अंतर्गत आती हों। प्रायः यह प्रसार क्षेत्र 20 से लेकर 20,000 कम्पन प्रति सेकेण्ड होता है, अर्थात् हमारी कर्णेन्द्रियाँ उन्हीं तरंगों के ग्रहण कर सकती हैं तो उक्त दायरे में हों। इससे कम अथवा अधिक आवृत्ति वाली ध्वनियों को सुनने की सामर्थ्य हमारे कानों में नहीं होती। ऐसी ध्वनियाँ जिनकी बारम्बारता 20 हर्ट्ज से कम है- ‘इन्फ्रासोनिक ध्वनियाँ तथा 20,000 हर्ट्ज से अधिक आवृत्ति वाली ध्वनियाँ ‘अल्ट्रासोनिक’ कहलाती है। कम आवृत्ति वाली अश्रव्य ध्वनियाँ अपना असाधारण प्रभाव छोड़ती हैं। इनका हमें न तो ज्ञान ही है और अति सूक्ष्म एवं धीमी होने के कारण सुनाई भी नहीं देती फिर भी उनके प्रभावों से हम बच नहीं पाते।

मनुष्यों सहित अन्याय प्राणियों एवं इमारतों पर अश्रव्य ध्वनियों के प्रभाव को कई बार देखा परखा गया है। शक्तिशाली साइरन संचालकों का यह निजी अनुभव है कि जब भी उनका हाथ इस तरह की सूक्ष्म ध्वनि तरंगों के रास्ते में आता है तो कुछ ही समय में वहाँ गरमी के कारण जलन अनुभव होने लगती है। एक बार एक शक्तिशाली साइरन के अश्रव्य ध्वनि प्रवाह के सामने उसका संचालक अनजाने ही आ गया तो प्रतिक्रिया स्वरूप उसे मिचली का सा आभास होने लगा और संतुलन लड़खड़ाने लगा। इसी तरह के अनुभवों का वर्णन करते हुए चैकोस्लोवाकिया के एक इंजीनियर प्रो. गावराड ने लिखा है कि जब वह अपने ऑफिस के कक्ष में बैठता तो उसे प्रायः प्रतिदिन मिचली आने लगती और सिरदर्द रहने लगता। पर जैसे ही वह अपने कक्ष से बाहर निकलता, सारी व्यथायें दूर हो जाती। एक दिन वह अपने कक्ष में दीवार के सहारे टिका बैठा था तो उसे एक अत्यन्त सूक्ष्म कम्पन का आभास हुआ। स्रोत का पता लगाया तो मालूम हुआ कि समीप के एक औद्योगिक प्रतिष्ठान से यह सूक्ष्म ध्वनि तरंगित हो रही है। इसके उपरांत उसने पराध्वनि उत्पादक एक ऐसा यंत्र बनाया जिससे निस्सृत सूक्ष्म ध्वनि तरंगें कुछ ही क्षणों में बड़े-बड़े जीवधारियों का प्राण हरण कर लेती थीं। इन ध्वनि तरंगों की मारक क्षमता इतनी तीव्र होती कि उसके रास्ते में आये जीवधारियों के अंग-अवयव पिघल कर अर्थ तरल स्थिति में पहुँच जाते, परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो जाती।

कहा जाता है कि इजियन के सैण्टोरिनी द्वीप में कोई भी व्यक्ति एक-दो दिन से अधिक नहीं ठहर पाता, क्योंकि इससे अधिक दिन ठहरने वाले का जी घबराने लगता है, सिरदर्द आरम्भ हो जाता है और एक अजीब-सी बेचैनी घेर लेती है। वैज्ञानिकों ने इसका कारण जानने के लिए जब वहाँ एक भूकम्प मापी यंत्र लगाया तो उसने एक सूक्ष्म, पर चिरस्थायी ध्वनि परक कंपन रिकार्ड किया। उनके अनुसार इसी अश्रव्य ध्वनि कंपन के कारण यहाँ आने वाले सेनानियों को विभिन्न प्रकार की शारीरिक-मानसिक व्यथाओं का सामना करना पड़ता है।

वस्तुतः ध्वनियाँ भली-बुरी दोनों तरह की होती है। कुछ ध्वनियाँ मनुष्य एवं अन्य जीव-जन्तुओं व वनस्पतियों के लिए सत्परिणाम दायक होती है, तो कुछ इसके विपरीत। ध्वनि चिकित्सा आज एक सर्वमान्य उपचार पद्धति के रूप में सर्वत्र प्रयुक्त हो रही है। ब्रिटेन के कैंसर अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने अल्ट्रासोनिक टिष्यू करे क्टराइजेषन की एक नयी तकनीक विकसित की है, जिसमें बिना किसी सर्जरी के ही सूक्ष्म ध्वनि तरंगों के माध्यम से कैंसर रोग का आसानी से समझा जा सकता और तदनुरूप उपचार भी किया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ध्वनि तरंगें जब कोशिकाओं के समूह से टकराकर लौटती हैं तो उनमें कुछ परिवर्तन नजर आते हैं। ऊतकों के भीतर चल रही कोशिकाओं की हलचल को इन्हीं परिवर्तनों के आधार पर सरलतापूर्वक जाना जा सकता है। ‘हिस्टोग्राफ’ इसी प्रकार का एक नशा है जो ध्वनि तरंगों से शरीर के अत्यधिक भीतर के अवयवों के बारे में संकेत देता है। कोशिकाओं में जरा सी निष्क्रियता दिखलाई देने पर ही कैंसर होने की संभावनाएँ सुनिश्चित हो जाती है। इस तरह सरलतापूर्वक रोग की पहचान हो जाने पर उससे बचा भी जा सकता है। इसी तरह आँस्टियोफोनीक विधियों द्वारा टूटी हुई हड्डियों को बिना सर्जरी के ध्वनि तरंगों से पता लगा लेने की नयी तकनीक विकसित की गयी है। चिकित्सा के क्षेत्र में इस तरह की ध्वनि तरंगों पर आधारित अनेक पद्धतियाँ विकसित की जा चुकी है और निरन्तर नये प्रयोग हो रहे हैं।

संगीत भी एक प्रकार की ध्वनि है जिसका शरीर और मन पर आश्चर्यजनक रूप से प्रभाव पड़ता है। संगीत में शरीर और मन को उत्तेजित आन्दोलित करने तथा उसे स्वस्थ और शक्तिवान बनाने वाले तत्त्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसी कारण से प्राचीन भारतीय आचार्यों ने संगीत शास्त्र के विकास में इतनी अधिक रुचि दिखायी थी। भारतीय संगीत उस समय विकास की किन ऊँचाइयों को छू चुका था, इसका अनुमान इसके विभिन्न संग-संगिनियों के अद्भुत सामर्थ्य को देखकर लगाया जा सकता है। इसके इसी सामर्थ्य को देखते हुए चार वेदों में से एक ‘सामवेद’ की रचना संगीत शास्त्र पर आधारित रखी गयी। इसके महात्म्य का वर्णन करते हुए ऋग्वेद (8-33/2) में कहा गया है-यदि संगीत के साथ ईश्वर को अन्तरमन से याद किया जा तो वह प्रार्थी के हृदय में अवश्य प्रकट होता है और उसे अपना प्यार स्नेह प्रदान करता है।’

अब वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में संगीत चिकित्सा को मान्यता मिल चुकी है। वैज्ञानिकों ने भी इसके इस सामर्थ्य को स्वीकारा है। आस्ट्रिया के सुप्रसिद्ध शरीर शास्त्री वी.एम.लेजरलैजारियो ने इस सम्बन्ध में अपनी अनुसंधानपूर्ण कृति -’हेल्थ थ्रू बीविंग’ में अपने एक अनुभूत प्रयोग का उल्लेख करते हुए लिखा है कि किस प्रकार ये गठिया को लम्बी बीमारी से सँवारे-साधना के प्रयोग द्वारा चमत्कारिक ढंग से स्वस्थ हो सके। वे कहते हैं कि यदि उसे एक संयोग मात्र मान लिया जाय तो भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि स्वर-संगीत की मधुर ध्वनियों से मेरे मनोभावों पर इसका कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने अपनी उक्त पुस्तक में इस बात की भी चर्चा की है कि भिन्न-भिन्न स्वरों का भिन्न-भिन्न अंग-अवयवों पर पृथक्-पृथक् प्रभाव पड़ता है। शब्द-कौतूहल नामक ग्रंथ में मंद मुनि ने इस संदर्भ में विस्तृत वर्णन किया है। इस ग्रंथ में तीन प्रकरण है-प्रथम में रोगी के स्वर द्वारा रोग निदान का उल्लेख है। द्वितीय में विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों का वर्णन है तथा तीसरे प्रकरण में भिन्न-भिन्न रोगों के लिए अलग-अलग प्रकार के वाद्य संगीत निर्धारित हैं।

‘ग्रोब्स डिक्षनरी ऑफ म्यूजिक एण्ड म्यूजीशियन्स ’ नामक ग्रंथ में भी इस संदर्भ में विस्तृत वर्णन मिलता है। इस ग्रंथ में प्राचीनकाल के मिश्रवासियों द्वारा संगीत को उपचार की तरह प्रयुक्त किये जाने का उल्लेख मिलता है। इस बात की जानकारी वहाँ की एक अति प्राचीन पुस्तक ‘मेडिकल पेपिरी’ से मिलती है। रूस के भौतिक विज्ञानी और संगीत शास्त्री डॉ. बेरिवनिस्की द्वारा वोपिन नामक वाद्ययंत्र बजाकर अनिद्रा रोगियों का सफल उपचार किये जाने का वर्णन भी उक्त पुस्तक में मिलता है। उसमें इस बात का भी उल्लेख है कि तीव्र स्वरों और धुनों के प्रयोग से निम्न रक्तचाप और हल्की धुनों से उच्च रक्त चाप और हल्की धुनों से उच्च रक्तचाप वाले रोगियों को लाभ मिलता है जबकि इनके विपरीत प्रयोग से मरीजों को हानि होती है।

नारद विरचित ‘संगीत मकरंद’ नामक ग्रंथ में (संगीताध्याय, चतुर्थ पाद, श्लोक 80-83 में) भिन्न-भिन्न रोगों द्वारा पृथक्-पृथक् कार्यों की सिद्धि का विशद वर्णन है। स्वास्थ्य लाभ के लिए उसमें औडव रागों के गायन की सलाह दी गयी है। आचार्या विःषंक शारंगदेव ने भी अपने ग्रंथ ‘संगीत रत्नाकर’ में पृथक्-पृथक् स्वरों से सम्बद्ध अंगों, स्नायुओं और चक्रों (षट्चक्र) का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।

भारतीय संगीत में ‘राग’ का अपना विशिष्ट के स्थान है। यह अपने अन्दर भौतिक जगत से अध्यात्म जगत तक की सम्पूर्ण यात्रा का इतिहास संजोए हुए है। कपड़े को रंगने पर उसकी अवस्था पूर्ववत् नहीं रह जाती, उसमें परिवर्तन आता है और वह नवीनता को प्राप्त होती है। यही बात रोग का रंग चढ़ने पर चित्त की हो जाती है। वह अपनी विकास ग्रस्त अवस्था को त्यागकर राग के स्वरों के रंग में रंगकर उसी का रूप प्राप्त कर लेता है। तब उसका मूल रूप उसी प्रकार समाप्त हो जाता है जैसा वस्त्र रंगने के बाद उसका मूल रंग नहीं रह जाता। संगीत की इसी विशिष्टता की अनुभूति करके एक और जहाँ इसे दैनिक जीवन में ओत-प्रोत रखा गया, वहीं दूसरी ओर राग-रागनियों द्वारा नाद ब्रह्म की साधना करके ब्रह्मानंद के समतुल्य परमानन्द को अनुभूति की गयी। राग-रागनियों के रूप में स्वरों के पृथक्-पृथक् व्यक्तित्वों का निर्धारण उनमें देवशक्तियों का अधिष्ठान और उनके माध्यम से ब्रह्म सदृश अपूर्व आनन्द की प्राप्ति होती इस रूप में प्राचीन ऋषि मनीषियों द्वारा भारतीय संगीत को अमरता प्रदान की गई।

पाश्चात्य जगत में भी संगीत को शारीरिक एवं मानसिक चिकित्सक के लिए बग एक प्रभावी माध्यम की तरह प्रयुक्त किया जाने लगा है। स्टैण्ड फोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में अनुसंधानरत सुप्रसिद्ध स्वर-विज्ञानी पाल जे.मोसेज ने मानवी स्वरोच्चारण का विश्लेषण करते हुए उसे पाँच भागों में विभक्त किया है - (1) श्वसन (2) दूरी (3) स्वर-विस्तार (4) अनुवाद (5) लय एवं ताल बद्धता आदि। वह भौतिक प्रयोगों के आगे का वह क्षेत्र है जिसे प्राचीनकाल में वाद योग कहा जाता था। इस विद्या की रहस्यमयी शक्तियों के आधार पर ही मानवी काया में छिपी दिव्य सामर्थ्यों को जागृत किया जाता एवं उनसे लाभान्वित हुआ जाता था। संगीत और योग दोनों ही नाद विद्या के अंतर्गत आते हैं। नादब्रह्म की साधना मन को एकाग्र करने का अच्छा साधन है। इससे मानसिक तनाव और अवसाद जैसे मनोरोगों से सरलतापूर्वक छुटकारा पाया जा सकता है। इतना ही नहीं स्वर साधना से शरीर की जैव-विद्युत एवं रासायनिक क्रियायें भी परिवर्धित, परिवर्तित और परिष्कृत की जा सकती है।

First 6 8 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • आत्मिक प्रगति का अवलम्बन सेवा साधना
  • सही न्याय
  • सच्ची सुगन्ध (Kahani)
  • नैतिकता के उत्थान पर ही सब टिका है
  • घाट का पत्थर (Kahani)
  • स्नायु संस्थान में छिपी है जादुई पिटारी
  • नादब्रह्म साधना का ज्ञान-विज्ञान
  • सौंदर्य-बोध ने खोला मुक्ति का द्वारा
  • कोरी कल्पना नहीं है अमैथुनी सृष्टि
  • खुदा परस्ती ने दिखाया कारुँ का खजाना
  • तुच्छता से महानता की ओर
  • यदि ‘अर्थ’ बन जाए अध्यात्म परायण
  • मन पृथक् नहीं है शरीर से
  • जिजीविषा ही सफलता का पथ प्रशस्त करती है
  • क्या आप भी आत्महत्या करना चाहते हैं?
  • सुख वस्तुतः है क्या
  • अहंकार का उन्माद
  • दीर्घसूत्री ने बनें, विवेक को अपनाये
  • काश! ‘मैं’ स्वयं को समझ पाता?
  • व्यक्तित्व की अनगढ़ता मिटाते हैं-अध्यात्म उपचार
  • गुरुपर्व पर विशेष- - गुरुवर के सहचर
  • गुरुवर के सहचर (Kavita)
  • युगऋषि का अपरिग्रह
  • युगऋषि का अपरिग्रह (Kavita)
  • गुरु पूर्णिमा-प्रेरणा
  • गुरु पूर्णिमा-प्रेरणा (Kavita)
  • तुमको कोटि प्रणाम
  • तुमको कोटि प्रणाम (Kavita)
  • गुरुपूर्णिमा पर्व पर - मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं- मोक्षमूलं गुरुकृपा
  • देवात्मा हिमालय एवं ऋषि परम्परा -परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • युग शिल्पी अहमन्यता के विषपान से बचे रहें
  • क्षेत्रीय योग प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वरूप और विधि व्यवस्था
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj