• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • भगवान पवित्रता के क्षीर सागर में विराजते हैं
    • एक नारी की निश्छल साधना
    • जप के साथ ध्यान-यही है साधना का महाविज्ञान
    • स्वप्नों के झरोखे से अन्तर्जगत् का अवलोकन
    • शिष्य की विनयशीलता (Kahani)
    • देवाधिदेव आत्मदेव को ही साधे
    • पुण्य का सही अर्थ ज्ञात हुआ (Kahani)
    • भोगी नहीं, ऊर्ध्वरेता बनें
    • विशाखा सन्त के रूप में प्रख्यात हुई (Kahani)
    • चरित्र रक्षा से बढ़कर कोई सिद्धि नहीं
    • तुच्छता को त्यागें, महानता का वरण करें
    • नारी का सबसे बड़ा आभूषण (Kahani)
    • सारा जगत ही शब्दमय है
    • साहसी ग्रेट कनिंघम (Kahani)
    • सिद्धियों का भाण्डागार है मानवी अन्तराल
    • Quotation
    • जरा जगाकर तो देखिए मस्तिष्क की प्रसुप्त परतों को
    • देवमानव-ऋषि के पद पर चलने से श्रेष्टता प्राप्त (Kahani)
    • कारण शरीर की कर्णेन्द्रिय साधना
    • साँप की डंडे से खबर ली (Kahani)
    • बुद्धि का अपच
    • मंत्रों में निहित शक्ति एवं उसकी जाग्रति
    • ज्ञानार्जन-स्वाध्याय पिछड़ जाते हैं वे पछताते हैं (Kahani)
    • विज्ञान नकारे तो भी सत्य तो सत्य ही है
    • मन का समाधान (Kahani)
    • अवतार की पहचान
    • सामूहिक प्रार्थना के चमत्कारी सत्परिणाम
    • अहंता और नम्रता के अन्तर पर विचार (Kahani)
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • पूज्यवर की लेखनी से विशेष लेख - जो मिला वह वस्तुतः खरीदा गया
    • अपने अंग अवयवों से
    • गायत्री मंत्र और वाक् शक्ति
    • ज्ञातव्य
    • एक अति विशेष अनुरोध
    • अपनों से अपनी बात - पुनर्गठन की वेला में अब आ पहुँचा प्रथम पूर्णाहुति पर्व
    • वेदों के उद्धार हेतु प्राणवान परिजन आगे आयें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • भगवान पवित्रता के क्षीर सागर में विराजते हैं
    • एक नारी की निश्छल साधना
    • जप के साथ ध्यान-यही है साधना का महाविज्ञान
    • स्वप्नों के झरोखे से अन्तर्जगत् का अवलोकन
    • शिष्य की विनयशीलता (Kahani)
    • देवाधिदेव आत्मदेव को ही साधे
    • पुण्य का सही अर्थ ज्ञात हुआ (Kahani)
    • भोगी नहीं, ऊर्ध्वरेता बनें
    • विशाखा सन्त के रूप में प्रख्यात हुई (Kahani)
    • चरित्र रक्षा से बढ़कर कोई सिद्धि नहीं
    • तुच्छता को त्यागें, महानता का वरण करें
    • नारी का सबसे बड़ा आभूषण (Kahani)
    • सारा जगत ही शब्दमय है
    • साहसी ग्रेट कनिंघम (Kahani)
    • सिद्धियों का भाण्डागार है मानवी अन्तराल
    • Quotation
    • जरा जगाकर तो देखिए मस्तिष्क की प्रसुप्त परतों को
    • देवमानव-ऋषि के पद पर चलने से श्रेष्टता प्राप्त (Kahani)
    • कारण शरीर की कर्णेन्द्रिय साधना
    • साँप की डंडे से खबर ली (Kahani)
    • बुद्धि का अपच
    • मंत्रों में निहित शक्ति एवं उसकी जाग्रति
    • ज्ञानार्जन-स्वाध्याय पिछड़ जाते हैं वे पछताते हैं (Kahani)
    • विज्ञान नकारे तो भी सत्य तो सत्य ही है
    • मन का समाधान (Kahani)
    • अवतार की पहचान
    • सामूहिक प्रार्थना के चमत्कारी सत्परिणाम
    • अहंता और नम्रता के अन्तर पर विचार (Kahani)
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • पूज्यवर की लेखनी से विशेष लेख - जो मिला वह वस्तुतः खरीदा गया
    • अपने अंग अवयवों से
    • गायत्री मंत्र और वाक् शक्ति
    • ज्ञातव्य
    • एक अति विशेष अनुरोध
    • अपनों से अपनी बात - पुनर्गठन की वेला में अब आ पहुँचा प्रथम पूर्णाहुति पर्व
    • वेदों के उद्धार हेतु प्राणवान परिजन आगे आयें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1995 - October 1995

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


चरित्र रक्षा से बढ़कर कोई सिद्धि नहीं

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 9 11 Last
हे तात्! मरकत मणि, सुवर्णनिस्क, मुक्तामाल यह सब बहुमूल्य आभूषण यदा-कदा धारण किए जाते हैं। अधिकाँश समय तो उनकी सुरक्षा व्यवस्था में ही जाता है। इसलिए इन्हें प्रत्येक व्यक्ति अपने पास नहीं रख सकते। किन्हीं सम्राट-साम्राज्ञियों श्री सामन्तों के पास ही वे सुरक्षित रह पाते हैं। सिद्धि भी ऐसी ही एक बहुमूल्य सम्पदा है, जिसे सुरक्षित रख सकना सबके लिए सम्भव नहीं। साँसारिक सुखोपभोग के आकर्षण में अधिकाँश योगी उसका विनिमय कर डालते हैं। उनकी अन्तःगति तो राज्य से निष्कासित चक्रवर्ती सम्राट और मणिहीन सर्प की सी दयनीय हो जाती है। इसीलिए विधान है कि जो उपयुक्त पात्र हो, जिसे तितीक्षा की कसौटी पर भली प्रकार कस लिया गया है उसे ही सिद्धि का अधिकार प्रदान किया जाये।

यह कहकर महामुनि क्रौष्टक चुप हो गए। उनकी मुख मुद्रा देखने से ऐसा प्रतीत होता था, जैसे अब उनकी चेतना विचारों के अगाध सागर में विलीन हो गयी हो। वे कुछ गम्भीर चिन्तन में निमग्न हो गए हैं-ऐसा समझकर कुछ आगे की बात न करके शिष्य सौभरि भी चुप हो गए और वहाँ से उठकर आचार्य देव के लिए संध्यादि के प्रबन्ध में जुट गए।

देर तक विचार करने के बाद भी क्रौष्टक अन्तिम निर्णय न कर सके कि सौभरि को सिद्धि प्रदान करने वाली उच्चस्तरीय साधनाओं का अधिकार प्रदान किया जाये अथवा नहीं। उनकी करुणा, उनका सहज स्नेह उमड़ता और कहता सौभरि ने तुम्हारी बड़ी सेवाएँ की हैं, उसे यह अधिकार मिलना ही चाहिए। किन्तु शास्त्र, अनुभव आड़े आ खड़े होते और पूछते-क्रौष्टक सिद्धि पाने के बाद भी क्या तुझे विचलित करने वाली परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ा? क्या तुझे इन्द्रिय लालसाओं के दमन में अत्यधिक कठोरता बरतनी नहीं पड़ी? क्या यह सम्भव है कि सिद्धि पाने के बाद सौभरि को ऐसे सामाजिक जीवन के अनिवार्य सन्दर्भों का सामना नहीं करना पड़ेगा? मान लो यदि सौभरि तब अपने को न संभाल पाया, तो होगा न सिद्धि का दुरुपयोग? क्या यह ठीक नहीं, कि पहले उसे अग्नि दीक्षा में कस कर देख लिया जाये? पीछे पंचाग्नि साधना में प्रवेश दिया जाये?

क्रौष्टक का अन्तिम निर्णय यही रहा। दूसरे दिन प्रातःकाल होते ही शिष्य सौभरि को उन्होंने अपने समीप बुलाया और बड़े स्नेह के साथ कहा-वत्स आश्रम जीवन की कठोरता के कारण तुम थक गए होंगे। आओ मैं तुम्हारे पैरों में एक अभिमंत्रित लेप करता हूँ। उससे तुम जहाँ भी पहुँचने की इच्छा करोगे, वायुवेग से वहीं जा पहुँचोगे और जब तक चाहोगे वहाँ पर विचरण करते रह सकोगे। इससे तुम्हारा श्रम, तुम्हारी उद्विग्नता दूर हो जाएगी।

गुरुदेव के वचन और इस अप्रत्याशित परिस्थिति पर सौभरि को आश्चर्य अवश्य हुआ किन्तु देश-भ्रमण की लालसा वेगवती हो उठी, सो उसने गुरुदेव की योजना का कोई विरोध नहीं किया।

क्रौष्टक ने सौभरि के पाँवों में अभिमन्त्रित औषधि का लेप कर दिया। अब मुझे महेन्द्र पर्वत(हिमालय) चलना चाहिए-ऐसी इच्छा करते ही सौभरि क्षण भर में उत्तर दिशा की ओर उड़ चले। उस रमणीय हिम और पुष्प लताओं से आच्छादित सुरम्य शिखरावली तक पहुँचने में उन्हें कुछ ही क्षण लगे। यहाँ की वन श्री, वन सौरभ स्वर्ग से भी बढ़कर अतुलित सौंदर्य वाले देखकर सौभरि का मन बड़ा प्रसन्न हुआ। वे भूमि पर उतरकर बहुत देर तक वहाँ विचरण करते रहे।

सुख की अभीप्सा है ही कुछ ऐसी कि व्यक्ति के विवेक, चातुर्य और जागरूकता को थोड़ी ही देर में नष्ट कर डालती है। ध्यान रहा नहीं। सौभरि के पैर शीतल तुषार में चलते रहे और धीरे-धीरे पैर में लगा सारा अनुलेप खुल गया। जब उनके मन में वापस लौटने की इच्छा हुई, तब पता चला कि वहाँ से वापस लौटा ले चलने वाली शक्ति तो नष्ट हो चुकी। सौभरि बड़े दुखी हुए और पश्चाताप करने लगे। आज पहली बार उन्हें किसी सिद्धि के प्रति घृणा और मानवीय पुरुषार्थ के प्रति विराट् आस्था का बोध हुआ। उन्होंने अनुभव किया-यह सामर्थ्य आत्म पराक्रम में ही है, जो व्यक्ति को चरम सीमा तक पहुँचाकर वहाँ से उद्धार भी कर सकती है।”

सौभरि अभी इसी तरह के विचारों में खोए ही थे कि उन्हें उस पर्वतीय उपत्यिका में शनैः शनैः समीप आती हुई सी पायलों की मधुर झंकार सुनायी दी। सौभरि सोचने लगे-यहाँ और कौन हो सकता है? तभी तिलोत्तमा के समान अप्रतिम सौंदर्य वाली मौलेया अप्सरा वरुथिनी आ उपस्थित हुई। सौभरि को उसने दूर से ही देख लिया था। वह सौभरि की सुगठित देह यष्टि और उनके दीप्तिमान सौंदर्य के प्रति आसक्त हो उठी थी। सौभरि को आकर्षित कर प्रणय जाल में बाँध लेने की इच्छा से वह जितना श्रृंगार कर सकती थी, किया था। स्वर्ण थाल में लाए वस्त्राभूषण, सुगन्धित अनुलेप और मधुर भोज्य प्रस्तुत करते हुए वरुथिनी ने एक लुभावनी दृष्टि सौभरि पर डाली और बोली-महाभाग मैंने पूर्व जन्म में कोई श्रेष्ठ पुण्य किया है, तभी आप जैसे प्रतापी सिंह पुरुष को पाने का सौभाग्य मिला है।”

“ओह भद्रे!” बहुत देर बाद सौभरि का कण्ठ फूटा-मैं तुम्हारी क्या सेवा कर सकता हूँ? तुम्हें किसी ने बंदी बनाया हो तो शीघ्र बताओ, मैं अभी उसे परास्त कर तुम्हें मुक्त कर सकता हूँ। तुम पर किसी ने ओछी दृष्टि डाली हो तो बताओ। आर्ये, तुम निश्चित जानो, मैं उसका मान मर्दन करने में किंचित् भी डरुँगा नहीं।”

यह सब होता तो वरुथिनी कहती भी। वह तो उस योग माया की तरह आयी थी जो संसार को क्षणिक सुख आकर्षण में बाँधकर, पारलौकिक सुख, संयम, शक्ति और जीवन से विच्युत किया करता है। एक क्षीण किन्तु मर्माहत कामुक दृष्टि से निक्षेप करते हुए वरुथिनी ने कहा-देव पुरुष! आपको पाकर मुझे अब एक ही वस्तु प्राप्त करने की इच्छा रह गई है। आप जानते ही होंगे, स्त्री पत्नी बनने के बाद एक मात्र मातृत्व की इच्छा रखती है। सो मैं भी उसी लालसा से आपकी सेवा में प्रस्तुत हुई हूँ। महान् पुरुष किसी की इच्छा ठुकराते नहीं हैं।” यह कहती हुई वरुथिनी सौभरि के बिलकुल समीप तक जा पहुँची।

सौभरि हतप्रभ रह गए। एक ओर मोहक रूप जाल था− दूसरी तरफ अध्यात्म का प्रकाशमान राज मार्ग। एक की दिशा सर्वस्व नाश की ओर थी, दूसरा अनन्तता की प्राप्ति का आश्वासन देता था। वह सोचने लगे, वासना जीवन का लक्ष्य नहीं हो सकती। अगले पल उनका मन दृढ़ हो गया। उनके आध्यात्मिक संस्कार बड़े बलवान थे, वरुथिनी का आकर्षण जाल उन्हें बाँध नहीं पाया। उन्होंने कहा-भद्रे “मैंने जिस क्षण तुम्हें देखा, उसी समय मुझे अपनी कनिष्ठ सहोदरा का ध्यान आया था। तुम मेरी बहिन के समान हो। मैं तुम्हारे साथ समागम कैसे कर सकता हूँ?”

First 9 11 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

October 1995
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • भगवान पवित्रता के क्षीर सागर में विराजते हैं
  • एक नारी की निश्छल साधना
  • जप के साथ ध्यान-यही है साधना का महाविज्ञान
  • स्वप्नों के झरोखे से अन्तर्जगत् का अवलोकन
  • शिष्य की विनयशीलता (Kahani)
  • देवाधिदेव आत्मदेव को ही साधे
  • पुण्य का सही अर्थ ज्ञात हुआ (Kahani)
  • भोगी नहीं, ऊर्ध्वरेता बनें
  • विशाखा सन्त के रूप में प्रख्यात हुई (Kahani)
  • चरित्र रक्षा से बढ़कर कोई सिद्धि नहीं
  • तुच्छता को त्यागें, महानता का वरण करें
  • नारी का सबसे बड़ा आभूषण (Kahani)
  • सारा जगत ही शब्दमय है
  • साहसी ग्रेट कनिंघम (Kahani)
  • सिद्धियों का भाण्डागार है मानवी अन्तराल
  • Quotation
  • जरा जगाकर तो देखिए मस्तिष्क की प्रसुप्त परतों को
  • देवमानव-ऋषि के पद पर चलने से श्रेष्टता प्राप्त (Kahani)
  • कारण शरीर की कर्णेन्द्रिय साधना
  • साँप की डंडे से खबर ली (Kahani)
  • बुद्धि का अपच
  • मंत्रों में निहित शक्ति एवं उसकी जाग्रति
  • ज्ञानार्जन-स्वाध्याय पिछड़ जाते हैं वे पछताते हैं (Kahani)
  • विज्ञान नकारे तो भी सत्य तो सत्य ही है
  • मन का समाधान (Kahani)
  • अवतार की पहचान
  • सामूहिक प्रार्थना के चमत्कारी सत्परिणाम
  • अहंता और नम्रता के अन्तर पर विचार (Kahani)
  • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • पूज्यवर की लेखनी से विशेष लेख - जो मिला वह वस्तुतः खरीदा गया
  • अपने अंग अवयवों से
  • गायत्री मंत्र और वाक् शक्ति
  • ज्ञातव्य
  • एक अति विशेष अनुरोध
  • अपनों से अपनी बात - पुनर्गठन की वेला में अब आ पहुँचा प्रथम पूर्णाहुति पर्व
  • वेदों के उद्धार हेतु प्राणवान परिजन आगे आयें
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj