• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • गीत तो बहुत गा लिए-अब गीता गाएँ
    • गूढ़ वार्तालाप
    • द्रष्टा बनकर महावर्तमान में जिये
    • श्रम बड़ा है या बुद्धि (Kahani)
    • आइए, करें ईश्वर से वार्तालाप
    • नारी अभ्युदय का अरुणोदय अब सन्निकट
    • संसार परिवर्तनशील है (Kahani)
    • दूषित अन्न कराता है दुर्गति
    • रुष्ट प्रकृति का परिचायक है यह ‘अलनीनो’
    • चक्र-उपत्यिकाओं का रहस्यमय लीला जगत अपने ही भीतर
    • सौंदर्य का यथार्थ साहचर्य
    • दौलत के लिए इतनी मशक्कत किस काम की
    • Quotation
    • कर्ता एकमात्र भगवान
    • विवेकशील को ज्योतिष की क्या जरूरत
    • ज्ञान-दान संसार का सबसे बड़ा दान
    • Quotation
    • धर्मा रक्षति रक्षितः
    • स्वर्ग-नरक सब यही पर विद्यमान
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष -2 शिष्टता का नये सिरे से उभार -
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष 3 - प्रतिभा परिवर्धन के तथ्य और सिद्धान्त
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष 4 - प्रतिभा संवर्द्धन का मूल्य भी चुकाया जाय
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-5 - भ्रान्तियों के घटाटोप में रह रहे हम सब
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-6 - बुद्धि विपर्यय से विचारक्रान्ति निपटेंगी
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-7 - युगसंधि की द्विधा नियति-परिणति
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-8 - आ रहा है एकता और समता का नवयुग
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-9 - चेतना क्षेत्र की अराजकता
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष 10 - महापुरश्चरण का स्वरूप और विस्तार
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - 1971, विदाई की पूर्व वेला में गायत्री तपोभूमि, मथुरा में दिया गया प्रवचन
    • अपनों से अपनी बात -
    • युग साधना ही हम सबको सुरक्षा कवच प्रदान कर सकेगी
    • आत्मा की खोज (Kahani)
    • पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का जीवन दर्शन समग्र वांग्मय
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • गीत तो बहुत गा लिए-अब गीता गाएँ
    • गूढ़ वार्तालाप
    • द्रष्टा बनकर महावर्तमान में जिये
    • श्रम बड़ा है या बुद्धि (Kahani)
    • आइए, करें ईश्वर से वार्तालाप
    • नारी अभ्युदय का अरुणोदय अब सन्निकट
    • संसार परिवर्तनशील है (Kahani)
    • दूषित अन्न कराता है दुर्गति
    • रुष्ट प्रकृति का परिचायक है यह ‘अलनीनो’
    • चक्र-उपत्यिकाओं का रहस्यमय लीला जगत अपने ही भीतर
    • सौंदर्य का यथार्थ साहचर्य
    • दौलत के लिए इतनी मशक्कत किस काम की
    • Quotation
    • कर्ता एकमात्र भगवान
    • विवेकशील को ज्योतिष की क्या जरूरत
    • ज्ञान-दान संसार का सबसे बड़ा दान
    • Quotation
    • धर्मा रक्षति रक्षितः
    • स्वर्ग-नरक सब यही पर विद्यमान
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष -2 शिष्टता का नये सिरे से उभार -
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष 3 - प्रतिभा परिवर्धन के तथ्य और सिद्धान्त
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष 4 - प्रतिभा संवर्द्धन का मूल्य भी चुकाया जाय
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-5 - भ्रान्तियों के घटाटोप में रह रहे हम सब
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-6 - बुद्धि विपर्यय से विचारक्रान्ति निपटेंगी
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-7 - युगसंधि की द्विधा नियति-परिणति
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-8 - आ रहा है एकता और समता का नवयुग
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-9 - चेतना क्षेत्र की अराजकता
    • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष 10 - महापुरश्चरण का स्वरूप और विस्तार
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - 1971, विदाई की पूर्व वेला में गायत्री तपोभूमि, मथुरा में दिया गया प्रवचन
    • अपनों से अपनी बात -
    • युग साधना ही हम सबको सुरक्षा कवच प्रदान कर सकेगी
    • आत्मा की खोज (Kahani)
    • पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का जीवन दर्शन समग्र वांग्मय
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1998 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


युग साधना ही हम सबको सुरक्षा कवच प्रदान कर सकेगी

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 30 32 Last
हम सबके जीवन के इन क्षणों में आज और कल और अधिक व्यापक हो वर्तमान और भविष्य का ताना बाना पहन लिया है। मिलन वेला दशक और षती की न होकर दो सहस्राब्दियों की है। यही क्यों दो महायुग मिलने वाले है। ऐसे में मिलन मुहूर्त का गौरव असंख्य गुना बढ़ जाना स्वाभाविक है और सचमुच प्रस्तुत समय परिवर्तन का महापर्व बन चुका है। दृश्यजगत के स्पन्दन किसी अदृश्य महाशक्ति के संकेतों के अनुसार तीव्रतर तीव्रतम होते चले जा रहे है। परमपूज्य गुरुदेव के हाथों लिखी ये पंक्तियाँ मई 1989 की अखण्ड ज्योति पत्रिका से उद्धृत है। इनसे हमें एक अनुमान लगता है कि भविष्य के गर्भ में जाकर संभावित भवितव्यता का दर्शन कर उनने वह सब कुछ आज से 9 वर्ष लिख ही नहीं दिया था वरन् सभी परिजनों से उसी के निमित्त वसंत पंचमी 1989 से एक अभूतपूर्व युगसंधि गायत्री महापुरश्चरण भी आरम्भ करा दिया था।

प्रस्तुत समय की विषमता किसी से छिपी नहीं है। विगत दस वर्षों में समस्यायें बड़े व्यापक स्तर पर उभरी है एवं निरन्तर बढ़ती ही जा रही है। श्री अरविन्द ने ऐसे ही समय को भागवत् मुहूर्त की संज्ञा दी थी व कहा था कि परिवर्तन के ऐसे क्षण जब भी आते है बड़े विशिष्ट होते है, विशिष्ट स्तर पर उपचार की अपेक्षा रखते है। उनने मातृवाणी में लिखा है” अभागा है वह मनुष्य या राष्ट्र, जो भागवत् मुहूर्त के आने पर सोया रहे और उसके उपयोग के लिये दिया संजोकर न रखे और उसकी पुकार से कान बन्द कर ले।

इन्हीं सब सम्भावित परिस्थितियों को दृष्टिगत रख परमपूज्य गुरुदेव ने फरवरी 90 की अखण्ड ज्योति में लिखा अदृश्य वातावरण से भरे भौतिक एवं चेतनात्मक प्रदूषण से निपटने के लिये अध्यात्म स्तर का एक अतीव व्यापक युगसंधि महापुरश्चरण आरम्भ किया गया है। विश्वास किया गया है कि इस सामूहिक साधना में अगले ही दिनों करोड़ों सम्मिलित होंगे। एक ही प्रयोजन के लिये एक ही सूत्र में आबद्ध होकर एक ही दिन में एकरूपता वाली साधना चलती है तो उससे बिखराव वाली अस्त–व्यस्तता की तुलना में अनेक गुना सत्परिणाम हस्तगत होता है आगे वे इसी लेख में लिखते है यह साधना नहीं है वरन् उसका एक बड़ा भाग उन भागीदारी द्वारा सम्पन्न हो रहा है जो अपने अपने स्थानों पर रहकर भी उस प्रयोग को निर्धारित अनुशासन के साथ सम्पन्न कर रहे है। युगसंधि का मध्यान्तर उसकी रूपरेखा लेख से उद्धृत पृष्ठ 25 अखण्ड ज्योति फरवरी 90 पूज्यवर ने लिखा कि अदृश्य वातावरण में सूक्ष्मजगत छाई हुई प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदल सकने में इस दिव्य साधना की अभूतपूर्व भूमिका प्रस्तुत होने की सम्भावना है।

यदि इस मिशन का इतिहास जो सन् 1926 से अखण्ड दीपक प्रज्ज्वलन से आरम्भ हुआ उठाकर देखें तो शुरू से अंत साधनात्मक पुरुषार्थों द्वारा सूक्ष्मजगत का क्रुद्ध प्रकृति का सम्भावित विभीषिकाओं का शमन ही इसके मूल में दिखाई पड़ता हैं। मानों स्रष्टा ने यह विशिष्ट दायित्व उस मिशन को विशेष जिम्मेदारी के साथ सौंपा हो। परमपूज्य गुरुदेव के चौबीस चौबीस लक्ष के चौबीस महापुरश्चरण 1926 से आरम्भ होकर प्रायः 1952 के अंत तक चले। पूर्णाहुति अवश्य ज्येष्ठ सुदी सन् 2010 गायत्री जयन्ती सन् 1943 में सम्पन्न हुई किन्तु एकाकी नहीं। पूज्यवर ने सहस्रांशु गायत्री ब्रह्मयज्ञ में 125 करोड़ गायत्री का जप 125 लाख आहुतियों का हवन 125 हजार से अधिक व्यक्तियों की एक वर्ष तक भागीदारी कराके सम्पन्न कराया अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1952 में दिये गये सम्पादकीय के अनुसार। साथ में गायत्री मंत्र लेखन के लिये सवा करोड़ मंत्र लिखे जाने संकल्प भी वर्ष भर में पूरा करवाया जिसकी पूर्णाहुति गायत्री तपोभूमि की मन्दिर स्थापना व मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में सम्पन्न हुई कहने का आशय यह कि इस मिशन का जो बीज है आधारभूत पृष्ठभूमि है उसे समष्टि के हित के लिये समूह द्वारा की गयी साधना कहा जाय तो अत्युक्तिपूर्ण न होगा।

1942 में जब अखण्ड ज्योति को मात्र 4-5 वर्ष ही प्रकाशित होते हुये पूरे हुये थे- भारत छोड़ो आंदोलन राजनैतिक क्षितिज पर चल रहा था, तब पूज्यवर ने आध्यात्मिक धरातल पर कैसे अब 2000 विक्रम संवत् के आगमन के साथ सतयुग का आगमन होने जा रहा है यह समझाते हुये एक विशेषांक प्रकाशित किया था। गायत्री साधना के साथ साथ आजाद होने जा रहे भारत को ऋषियों की तपश्चर्या का बल कैसे मिलेगा यह प्रतिपादन करते हुये साधकों की शंकाओं का समाधान वे प्रत्येक अंक में करते थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समापन एवं भारतवर्ष के विभाजन के समय उनने परिजनों से विशिष्ट साधनाएँ संपन्न कराई। ब्रह्माण्डीय ज्योतिष के ज्ञाता परमपूज्य गुरुदेव ने 1951 से 1958 तक सतत् गायत्री साधना व यज्ञों के भिन्न भिन्न प्रकारों की श्रृंखलायें चलायी एवं सूर्य शक्ति के नवयुग होते दोहन हेतु विशिष्ट 1008 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ का सफल संचालन मथुरा में 1958 की कार्तिक पूर्णिमा में आयोजन कर किया। गायत्री परिवार उसके बाद ही बृहत् रूप लेता चला गया। तुरन्त बाद पूज्यवर हिमालय की अज्ञातवास की कठोर तपश्चर्या पर चले गये, जहाँ से उनने साधक की डायरी के कुछ पृष्ठ भेजे जो बाद में सुनसान के सहचर के रूप में पुस्तकाकार में प्रकाशित हुए। इस विशेष साधना का लक्ष्य भी भारत पर चीन के हमले से संभावित खतरे की गम्भीरता को कम करना, अष्टग्रही योग को टालना एवं जन जन के मनोबल का संवर्द्धन करना था।1962 में आते ही उनने युगनिर्माण साधना आरम्भ की।

यह पंचकोशी साधना गायत्री की उच्चस्तरीय साधना के प्रशिक्षण के रूप में तीन वर्ष तक चलती रही। विशिष्ट तपश्चर्या के कल्पवास चांद्रायण के सत्र भी मथुरा में चले। 1962 में परमपूज्य गुरुदेव की लेखनी रौद्र रूप लेती हुई अग्नि उगलने लगी थी दिसम्बर 1962 की अखण्ड ज्योति में पृष्ठ 50, 51 पृष्ठ पर लेख प्रकाशित हुआ- अग्निपरीक्षा की घड़ी में हमारा कर्तव्य। इसमें उनने धर्मयुद्ध की सफलता के लिये सभी से एक एक माला प्रतिदिन सम्पन्न करने को कहा। इसी वर्ष उनने श्री अरविन्द का उदाहरण देते हुये एक लेख में लिखा इस समय संसार में बड़ी बुरी से बुरी घटनाएँ घट रही है और मैं कहना चाहता हूँ कि अभी उससे भी कहीं अधिक बुरी परिस्थिति आना निश्चित है। पर इसमें घबराने की कोई बात नहीं वरन् मनुष्यों को यह समझना चाहिये कि इस प्रकार की घटनाओं का होना अनिवार्य है। इसी से एक नवीन और श्रेष्ठ संसार की रचना हो सकनी संभव है 1948 में लिखा गया श्री अरविन्द का एक पत्र कहने का आशय यह है कि पूज्य गुरुदेव तब से ही सभी को इस स्थिति के लिये तैयार कर रहे थे, जो सदी के अंत में संवत् 2055 से 2060 के बीच आने वाली थी। इसी के निमित्त सभी के साधना पराक्रम को बार बार और बढ़ाये जाने की बात वे सतत् लिखते रहे।

1967 में पूज्यवर ने युद्ध और अगले तीस वर्ष की संभावनाओं पर एक विशेषांक प्रकाशित किया, जुलाई माह का। इसमें उनने लिखा अगले दिन बहुत ही उलट पुलट से भरे है। उनमें ऐसी घटनाएँ घटेगी ऐसे परिवर्तन होंगे, जो हमें विचित्र भयावह एवं कष्टकर भले ही लगें हम नये संसार की अभिनव रचना के लिये वे आवश्यक है युगपरिवर्तन की बात लिखते हुये उसी विशेषांक में उनने महाकाल और उसकी युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया का उल्लेख करते हुये आगामी तीस से पैंतीस वर्ष का समय अत्यधिक महत्वपूर्ण बताते हुये इसे विश्व के भाग्य परिवर्तन की एक विलक्षण घटना बताया।

अखण्ड ज्योति अक्टूबर 67 के पृष्ठ 13 पर हमारी गुरुसत्ता ने लिखा वर्तमान विचारक्रान्ति महाकाल का तीसरा नेत्र ही है जो प्रचण्ड दावानल का रूप धारण कर अज्ञान युग की सारी विडम्बनाओं को भस्मसात् कर स्वस्थ और स्वच्छ दृष्टिकोण प्रदान करेगी। इन उपलब्धियों के बाद विश्वशान्ति के मार्ग में कोई कठिनाई शेष न रह जायेगी। इसी के बाद अखण्ड ज्योति के अक्टूबर नवम्बर दिसम्बर 1967 के अंक विशेषांकों के रूप में प्रकाशित हुए जिनमें भावी विभीषिकाएँ और उनका प्रयोजन महाकाल और उनका रौद्र रूप शिव का तृतीय नेत्र उन्मीलन दशावतार और इतिहास की पुनरावृत्ति जैसे शीर्षकों की लेखमालाएं थी। इन्हीं का संपादन करके महाकाल और उसकी युगप्रत्यावर्तन प्रक्रिया पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसके कई संस्करण अब तक छप चुके है। क्राँतिकारी चिंतन अवतारी सत्ता का स्वरूप एवं हम सबके दायित्व बोध पर लिखे गये इन लेखों का एक एक वाक्य जलती हुई आग की चिनगारी के समान है बाद में वांग्मय में इन्हीं लेखों को वांग्मय कृ 29 में 1.1 से1.70 तक अनौचित्य का प्रतिकार शीर्षक से प्रकाशित कर एक स्थान पर उसी से संबंधित विषय के साथ उपलब्ध कर दिया गया है।

1965 से लेकर 1988 के अक्टूबर माह तक चाहे गायत्री तपोभूमि मथुरा में वे रहे हों अथवा गायत्री तीर्थ शाँतिकुँज हरिद्वार में वे समष्टि परिशोधनार्थ सूक्ष्म जगत के संशोधन हेतु स्वयं भी तप करते रहे अनेकों साधकों से कराते रहे ताकि साधना की शक्ति से निखरी हुई तप की सामर्थ्य युगपरिवर्तन में नियोजित हो सके। 1965 का भारत पाक युद्ध 1971 का बंगला देश की मुक्ति हेतु हुआ संग्राम 1968-69 में स्काईलैब के धरती पर आ गिरने से सम्भावित विभीषिका,1980-82 में जुपिटर इफेक्ट के कारण सम्भावित विपत्तियों के निराकरण हेतु विशिष्ट साधनाएँ सभी अखण्ड ज्योति पाठकों परिजनों से कराई जाती रही 1984 से 1986 तक सूक्ष्मीकरण साधना की विशिष्ट अवधि बीती जिसमें एक से पाँच बनने की पाँच वीरभद्रों के निर्माण की प्रक्रिया सम्पन्न हुई। 1987 में भारत भर में हुये राष्ट्रीय एकता सम्मेलनों 108 कुण्डीय महायज्ञों के बाद 1988 में युगसंधि महापुरश्चरणों की घोषणा कर दी गयी जो कि बारहवर्षीय था व जिसकी पूर्णाहुति सन् 2000 में होनी थी इसी महापुरश्चरण के विषय में विस्तार से इस अंक में अन्यत्र प्रायः 24 पृष्ठों में सारी सामग्री एक ही स्थान पर पाठकों की जानकारी के लिये दी जा रही है। जो इस युगसंधि महापुरश्चरण में बाद में जुड़े अभी अभी जुड़े है वे इनके माध्यम से उस गम्भीरता को समझ सकेंगे जिसे दृष्टि में रख अब आगामी दो ढाई वर्षों के साधना पुरुषार्थ को और अधिक प्रखर बनाया जा रहा है।

आज सारा विश्व जिन समस्याओं से जूझ रहा है वे दस वर्ष पूर्व की परिस्थितियों से कहीं अधिक जटिल है। समस्त वैश्विक स्तर आज तनाव है छिटपुट युद्ध संघर्ष सारे विश्व में कही न कहीं सतत् चल रहे है। पारिवारिक विग्रह सामाजिक बिखराव चरम सीमा पर है। सूक्ष्मजगत चेतना का महासागर विष से भर गया है एवं प्रतिक्रिया स्वरूप रौद्र प्रकृति का स्वरूप चारों ओर महाप्रलय के रूप में दिखाई पड़ रहा है। समय समय पर ऐसी विपत्तियों का उपचार आध्यात्मिक शक्तियों के माध्यम से ही हुआ है। श्री अरविन्द व रमण महर्षि की तपश्चर्या इसका प्रमाण है। परमपूज्य गुरुदेव का तप व सद्विचारों के विस्तार की विचारक्रांति भी इसी निमित्त नियोजित हुई है। अब हम सब की बारी है कैसे यह गोवर्धन उठेगा इसका एक ही उत्तर है कि सबके सामूहिक साधना पुरुषार्थ से। इस समय हिमालय में भी एक नहीं प्रायः 88000 ऋषिकल्प स्तर की आत्माएँ तपश्चर्या कर रही है ताकि विश्व के भाग्योदय की वेला में कहीं कुछ अधिक बिगाड़ न हो सब कुछ ठीक से संपन्न हो जाये।

महापुरश्चरण के अन्तिम दो तीन वर्षों में गुजर रहे इस समय को चार भागों में बाँटकर साधना पुरुषार्थ प्रखरतम किये जाने व तदुपरान्त पूर्णाहुति संपन्न किये जाने की चर्चा विगत अंक में की थी। भगवत्−सत्ता के अवतरण हेतु हमारा अंतर्मन एक योग्य उपकरण बन सके,इसके लिये सभी को इस पुरुषार्थ में जुटना होगा। इस चार भागों में बंटे समय का प्रथम चरण परम वंदनीय माताजी की महाप्रयाण तिथि 6 सितम्बर 1998 से 30 सितम्बर 1998 की अवधि में संकल्प अवधि के रूप में पूरा होना था। 1 अक्टूबर 1998 विजयादशमी से 22 जनवरी 1999 वसन्तपर्व तक का समय द्वितीय चरण में सारे भारत व विश्व में साधना प्रशिक्षण अवधि के रूप में संपन्न होगा। आश्विन नवरात्रि की पावन वेला एवं विशिष्ट 24 दिवसीय साधनावधि में जो संकल्प लिये गये होंगे उन्हें इन 3 माह की अवधि में पकाया जाएगा व प्रशिक्षण द्वारा अनेकानेक साधकों की सहभागिता बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा। यह प्रशिक्षण अभी भारतवर्ष में 40 स्थानों पर सात दिवसीय सत्रों के रूप में आरम्भ हो रहा है जिनमें शाँतिकुँज के वरिष्ठ कार्यकर्ता स्वयं जाकर मार्गदर्शन देंगे एवं इस कार्य के विस्तार हेतु किये जाने वाले समयदान का नियोजन करेंगे। वसंत पंचमी 1999, 22 जनवरी से बसंत पंचमी 2000,10 फरवरी तक एक वर्ष की अवधि को विशिष्ट साधना वर्ष के रूप में सारे भारत व विश्व में मनाया जा रहा है। इस पूरे एक वर्ष में सारे विश्व में समूह चेतना के जागरण की प्रक्रिया सूक्ष्म स्तर पर एक करोड़ से अधिक साधकों द्वारा संपन्न होने वाले इस महापुरश्चरण महाअभियान के द्वारा होने जा रही है। आशा की जानी चाहिये कि इस अभिनव प्रयोग से जिसका निर्देश पूज्यवर अपने जीवन काल में दे गये थे, भविष्य की आसन्न विभीषिकाएँ निरस्त होगी एवं सतयुग की संभावनाएँ साकार करने वाला स्वरूप स्पष्ट होता चला जाएगा।

चतुर्थ चरण युगसंधि महापुरश्चरण की द्वितीय एवं अन्तिम महापूर्णाहुति के रूप में एक करोड़ साधकों द्वारा वसन्तपर्व से आरम्भ होने वाले पुरुषार्थ के रूप में सारे विश्वभर में संपन्न किया जायेगा। यह प्रक्रिया पूरे वर्ष भर चलेगी, स्थान स्थान पर होगी एवं अन्तिम प्रायः चौबीस से चालीस दिन का विराट आयोजन गायत्रीतीर्थ शाँतिकुँज हरिद्वार में संपन्न होकर समाप्त होगी। यह वस्तुतः नहीं एक शुरुआत भर है इक्कीसवीं सदी नवयुग की स्वर्णिम अवधि की। इस महापूर्णाहुति के विस्तृत स्वरूप को पारस्परिक विचार विनिमय से अभी निखारा जा रहा है ढाँचा बन गया है तूलिका से रंग भरना मात्र बाकी है अगले दो तीन अंकों में परिजन उसे विस्तार से जान सकेंगे। ज्ञातव्य है कि आगामी नवम्बर 1998 एवं जनवरी 1999 के ये दो अंक युगपरिवर्तन की वेला में साधना जैसे विषय पर आधारित होंगे प्रथम अंक में साधना का तत्त्वदर्शन मानवी प्रकृति सूक्ष्म संरचनाओं की जानकारी कुण्डलिनी षट्चक्र पर नवीनतम विस्तार के साथ साथ आज साधना क्यों वे किसलिए की जानी चाहिये इस विषय पर विराट् विवेचन होगा। दूसरे अंक में साधना की फलश्रुतियों 1999 की दुनिया कैसी होगी, 21 सदी में प्रवेश करते ही हमें क्या देखने को मिलने जा रहा है वैयक्तिक सामाजिक वैश्विक स्तर पर परिवर्तन कैसे होने जा रहा है इन विषयों पर प्रकाश डाला जायेगा। निश्चित ही कोई भी इनसे वंचित नहीं होना चाहेगा।

परमपूज्य गुरुदेव ने 1988 की अखण्ड ज्योति में एक स्थान पर लिखा है कुसमय का अंत होते होते कहर बरसने की वेला में हमारी साधना एक सुरक्षा कवच के रूप में ब्रह्मास्त्र के रूप में हम सबकी ढाल बन जाये एव हम सभी इक्कीसवीं सदी में बढ़ी ब्रह्मबल के साथ प्रवेश करें। कोई भी इस काफ़िले से बिछुड़ने न पाये।

First 30 32 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • गीत तो बहुत गा लिए-अब गीता गाएँ
  • गूढ़ वार्तालाप
  • द्रष्टा बनकर महावर्तमान में जिये
  • श्रम बड़ा है या बुद्धि (Kahani)
  • आइए, करें ईश्वर से वार्तालाप
  • नारी अभ्युदय का अरुणोदय अब सन्निकट
  • संसार परिवर्तनशील है (Kahani)
  • दूषित अन्न कराता है दुर्गति
  • रुष्ट प्रकृति का परिचायक है यह ‘अलनीनो’
  • चक्र-उपत्यिकाओं का रहस्यमय लीला जगत अपने ही भीतर
  • सौंदर्य का यथार्थ साहचर्य
  • दौलत के लिए इतनी मशक्कत किस काम की
  • Quotation
  • कर्ता एकमात्र भगवान
  • विवेकशील को ज्योतिष की क्या जरूरत
  • ज्ञान-दान संसार का सबसे बड़ा दान
  • Quotation
  • धर्मा रक्षति रक्षितः
  • स्वर्ग-नरक सब यही पर विद्यमान
  • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष -2 शिष्टता का नये सिरे से उभार -
  • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष 3 - प्रतिभा परिवर्धन के तथ्य और सिद्धान्त
  • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष 4 - प्रतिभा संवर्द्धन का मूल्य भी चुकाया जाय
  • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-5 - भ्रान्तियों के घटाटोप में रह रहे हम सब
  • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-6 - बुद्धि विपर्यय से विचारक्रान्ति निपटेंगी
  • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-7 - युगसंधि की द्विधा नियति-परिणति
  • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-8 - आ रहा है एकता और समता का नवयुग
  • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष-9 - चेतना क्षेत्र की अराजकता
  • युगसंधि महापुरश्चरण साधना वर्ष 10 - महापुरश्चरण का स्वरूप और विस्तार
  • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - 1971, विदाई की पूर्व वेला में गायत्री तपोभूमि, मथुरा में दिया गया प्रवचन
  • अपनों से अपनी बात -
  • युग साधना ही हम सबको सुरक्षा कवच प्रदान कर सकेगी
  • आत्मा की खोज (Kahani)
  • पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का जीवन दर्शन समग्र वांग्मय
  • Quotation
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj