• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • पहले सेवा, फिर उपदेश
    • शांति से बढ़कर कोई सुख नहीं
    • बुद्धत्व ही जीवन का परम स्रोत
    • सत्य प्रकट होता है एकांत मौन में
    • बोधि के दिव्यास्त्र से विकारों का हनन
    • प्रभु प्रेम की कसौटी, उनका ध्यान
    • स्वच्छता-निर्मलता का मर्म
    • और, अंगुलिमाल अरिहन्त हो गया
    • ध्यान की आँख, विवेक की आँख
    • आसक्ति अनंत बार मारती है
    • क्रोध छोड़ें, अभिमान त्यागें
    • नमामि देवं भवरोग वैद्यम्
    • महानिर्वाण की अनुभूति
    • जीवन का अपने मूल स्रोत से जा मिलना
    • श्रद्धा की परिणति
    • गलत प्रव्रज्या में रमण दुःखदायी है
    • अहंकार गंदगी है, मल है
    • सदगुरु का स्मरण
    • मनुष्य अपना स्वामी स्वयं
    • प्रभु का सान्निध्य
    • अब फिर बज उठे रणभेरी
    • वीतराग रेवत की सन्निधि का चमत्कार
    • बुद्धत्व के सान्निध्य से जन्मा ब्राह्मणत्व
    • मोहजनित भ्रांति से प्रभु ने उबारा
    • सच्चा भिक्षु
    • जहाँ सत्य है, निश्छलता है, वहीं विजय है
    • बन्धन मुक्त ही ब्राह्मण है
    • सच्चा ब्राह्मण
    • पूर्णा चली पूर्णता की डगर पर
    • बहिरंग नहीं, प्रभु के अंतरंग को जाना
    • निंदा छोड़ो-ध्यान सीखो
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • पहले सेवा, फिर उपदेश
    • शांति से बढ़कर कोई सुख नहीं
    • बुद्धत्व ही जीवन का परम स्रोत
    • सत्य प्रकट होता है एकांत मौन में
    • बोधि के दिव्यास्त्र से विकारों का हनन
    • प्रभु प्रेम की कसौटी, उनका ध्यान
    • स्वच्छता-निर्मलता का मर्म
    • और, अंगुलिमाल अरिहन्त हो गया
    • ध्यान की आँख, विवेक की आँख
    • आसक्ति अनंत बार मारती है
    • क्रोध छोड़ें, अभिमान त्यागें
    • नमामि देवं भवरोग वैद्यम्
    • महानिर्वाण की अनुभूति
    • जीवन का अपने मूल स्रोत से जा मिलना
    • श्रद्धा की परिणति
    • गलत प्रव्रज्या में रमण दुःखदायी है
    • अहंकार गंदगी है, मल है
    • सदगुरु का स्मरण
    • मनुष्य अपना स्वामी स्वयं
    • प्रभु का सान्निध्य
    • अब फिर बज उठे रणभेरी
    • वीतराग रेवत की सन्निधि का चमत्कार
    • बुद्धत्व के सान्निध्य से जन्मा ब्राह्मणत्व
    • मोहजनित भ्रांति से प्रभु ने उबारा
    • सच्चा भिक्षु
    • जहाँ सत्य है, निश्छलता है, वहीं विजय है
    • बन्धन मुक्त ही ब्राह्मण है
    • सच्चा ब्राह्मण
    • पूर्णा चली पूर्णता की डगर पर
    • बहिरंग नहीं, प्रभु के अंतरंग को जाना
    • निंदा छोड़ो-ध्यान सीखो
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - अपने दीपक आप बनो तुम

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


श्रद्धा की परिणति

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 14 16 Last
         वह किंकर्त्तव्यविमूढ़ थी। सोच नहीं पा रही थी कि इस समय अपने को कैसे बचाए? उसकी बड़ी- बड़ी आँखों में विवशता झिलमिला उठी। गौरवर्णीय सुन्दर चेहरा विवर्ण हो गया। शायद कातर अन्तर्मन की टीस बरबस ही चेहरे पर छलक गयी। अस्तित्त्व के रोम- रोम में पीड़ा भरी पुकार छाने लगी। हृदय में उफनता प्रभु प्रेम और भी प्रगाढ़ हो गया। भगवान् तथागत के इस भक्तिपूर्ण स्मरण ने उसे थोड़ा धीरज दिया। कहीं गहरे में साहस की संवेदना मद्धम गति से प्रवाहित होने लगी। उसने भरी- भरी आँखों से अपने पति- श्वसुर और सास की ओर देखा। ये तीनों ही एकमत थे। और जबरदस्ती अपने अधिकारों की दुहाई देकर, उसके कर्त्तव्य का पाठ पढ़ाकर उसे विवश कर रहे थे।

      यह विवशता उसे सहन नहीं हो पा रही थी। भला ऐसे कामों को वह किस तरह करे, जो किसी भी भाँति उचित नहीं है। पर यह तो उसकी जिन्दगी की रोजाना की आफत थी। हर दिन उसके पति, सास अथवा फिर श्वसुर किसी ढोंगी साधु, या भयानक वेशभूषा वाले किसी तांत्रिक को ते आते और उसे विवश करते कि वह उनकी सेवा करे। इन साधुओं के ढोंग, तांत्रिकों की वासना भरी दृष्टि से उसे चिढ़ थी। वह नहीं समझ पाती थी कि आखिर वह क्यों इनकी सेवा करे? क्यों वह अपने देह- मन को इनकी वासना भरे ढोंग के चंगुल में फसने दे? उसने अपनी ससुराल के सदस्यों को भाँति- भाँति से समझाने की कोशिश की, पर उन पर जैसे कोई असर ही नहीं था।

       वे तो सब के सब बस चमत्कारों के मोहपाश में बंधे थे। चमत्कारों में ही उन्हें जीवन की सार्थकता लगती थी। चमत्कार ही उनकी श्रद्धा, भक्ति एवं भावनाओं के केन्द्र बिन्दु थे। वह जब कभी उन्हें भगवान् तथागत और उनके जीवन दर्शन के बारे में बताती- सबके सब मिलकर उसकी हँसी उड़ाते। पर वह कैसे भूल पाती प्रभु को। करूणा के अवतार तथागत तो उसके प्राणों में बसे थे। उसका अपना बचपन भगवान् की गोद में गुजरा था। उसने माँ के दूध के साथ प्रभु का प्रेम भी पिया था। बचपन में जब कभी वह प्रभु से पूछती- भगवान्! मुझे कभी आपसे अलग तो नहीं होना होगा? तथागत मुस्कराते हुए उत्तर देते- पुत्री! बिछुड़ते तो केवल शरीर हैं। भावनाएँ तो सदा ही घुली- मिली रहती हैं। श्रद्धा समय और स्थान की दूरी को पाट देती है। श्रद्धा गहरी हो तो अलगाव सम्भव ही नहीं।

        बचपन की ये बातें आज भी उसे पल- पल प्रभु में भिगोती रहती थी। वह भगवान् के परम भक्त श्रेष्ठी अनाथपिण्डक की पुत्री थी। पिता के साथ उसे भगवान् का अन्तरंग सान्निध्य मिला था। भगवान् ने ही उसे चूलसुभद्दा नाम दिया था। भगवान् के रूप में कोहिनूर की चमक देखी थी, अब भला सस्ते कांच के टुकड़ों की तरह ये ढोंगी साधु, तमाशेबाज मदारी उसे किस तरह लुभाते। जिसे भगवान् बुद्ध की गोद मिली हो उसे भला तांत्रिकों के चमत्कारों का चक्रव्यूह कैसे फँसाता। जिसने परम पवित्रता की सुगन्ध का स्वाद लिया हो, उसे भला दुर्गन्धित वासनाएँ कैसे आकर्षित कर पाती। पर उसकी यह भावदशा ससुराल के लोगों को समझ में न आती थी।

     उग्रनगर वासी उग्गत सेठ के पुत्र से उसका विवाह हुआ था। उग्गत सेठ मिथ्यादृष्टि था। वह पाखण्डियों का आदर करता था। धर्म में नहीं चमत्कारों में उसकी श्रद्धा थी। मदारियों, जादूगरों और धूर्तों का उसके घर में भारी सम्मान था। इन तरह- तरह के ढोंगियों के आने पर वह चूलसुभद्दा को उनकी सेवा करने के लिए कहता। वह सम्यक् दृष्टि वाली युवती किसी न किसी तरह इन ढोंगियों की एकान्त सेवा को टाल जाती। लेकिन उसका यह व्यवहार उसके ससुर को बहुत कष्टकर लगता। पति के भी अहंकार को चोट लगती। सास भी उससे परेशान रहती। सारा का सारा परिवार ही पाखंडियों के जाल में था।
   
   आज जब चूलसुभद्दा ने उनके अतिआग्रह के बावजूद काले कपड़े पहने खतरनाक डाकू की तरह दिखने वाले तांत्रिक की सेवा से मना किया तो वे सबके सब आगबबूला हो उठे। उसके पति ने उसे जोर का धक्का देते हुए कहा- तू सदा हमारे साधुओं का अनादर करती है। सो बुला अपने बुद्ध को और अपने साधुओं को, हम भी तो देखें उन्हें, क्या चमत्कार है उनमें। और देखें क्या ऋद्धियाँ- सिद्धियाँ हैं।

       चूलसुभद्दा ने पति की ऐसी बात सुनकर, जेतवन की ओर प्रणाम करके आँसू भरी आँखों, भक्ति से भरे हृदय के साथ कहा- भंते, कल के लिए पाँच सौ भिक्षुओं के साथ मेरा भोजन स्वीकार करें। मुझे भुला नहीं दिया मेरे आराध्य। मेरी पुकार सुन रहे हैं न भगवन्। मैं हूँ आपकी बेटी चूलसुभद्दा। और फिर उसने तीन मुट्ठी जुही के फूल आकाश की ओर फेंके। पति और उसका सारा परिवार उसके इस पागलपन पर खूब जोर से हँसा। क्योंकि जेतवन वहाँ से कई मील दूर था, जहाँ भगवान् ठहरे थे। लेकिन भगवान् की भक्ति से भरी चूलसुभद्दा तथागत और भिक्षु संघ के स्वागत की तैयारियों में जुट गयी।

         जिन क्षणों में चूलसुभद्दा ने भगवान् को पुकारा था, उस समय भगवान् जेतवन में प्रवचन कर रहे थे। वह बोलते- बोलते बीच में रुक गए और कहने लगे- भिक्षुओं, जुही के फूलों की गन्ध आती है न। और उन्होंने उग्रनगर की ओर दृष्टि उठायी। तभी अनाथपिण्डक ने खड़े होकर कहा, भन्ते कल के लिए मेरा भोजन स्वीकार करें। भगवान् ने कहा- गृहपति, मैं कल के लिए पुत्री चूलसुभद्दा का निमंत्रण स्वीकार कर चुका हूँ। उसने जुही की फूलों की सुगन्ध के साथ अभी- अभी आमंत्रण भेजा है। चकित श्रेष्ठी अनाथपिण्डक कहने लगे- भंते! चूलसुभद्दा तो यहाँ से मीलों दूर है, उसने कैसे आपको आमंत्रित किया है? मैं तो उसे यहाँ कहीं भी देख नहीं पा रहा।

भगवान् हँसे और उन्होंने यह धम्मगाथा कही-

दूरे संतो पकासेति हिमवंतो व पब्बता।
असंतेत्थ न दिस्संति रत्तिखित्रा यथासरा॥

     संत दूर होने पर भी हिमालय पर्वत की भाँति प्रकाशमान होते हैं। और असन्त पास होने पर भी रात में फेंके हुए बाण की भाँति नहीं दिखलाई देते।
अपने इस कथन को और भी स्पष्ट करते हुए भगवान् ने कहा- गृहपति, दूर रहते हुए भी सत्पुरुष सामने खड़े होने के समान प्रकाशित होते हैं। मैं अभी सुभद्दा के सामने ही खड़ा हूँ। श्रद्धा बड़ा सेतु है। वह समय और स्थान की सभी दूरियों को जोड़ने में समर्थ है। वस्तुतः श्रद्धा के आयाम में समय और स्थान का अस्तित्त्व ही नहीं है। अश्रद्धालु पास होकर भी दूर और श्रद्धालु दूर होकर भी पास होते हैं।

    अनाथपिण्डक और भिक्षुओं को श्रद्धा की महिमा का बोध कराकर भगवान् भिक्षुओं के साथ उग्रनगर की ओर चल पड़े। निश्चित समय में चूलसुभद्दा के सास- ससुर और पति ने भगवान् तथागत और उनके भिक्षुओं को अपने द्वार पर उपस्थित देखे। भगवान् के दर्शन मात्र से उनकी मलीनता धुल गई। उन्हें साधुता का प्रत्यक्ष बोध हो गया। भगवान् ने चरणों पर माथा नवाती चूलसुभद्दा से कहा- पुत्री! तू मुझसे कभी दूर नहीं है। मैं सदा- सदा मेरे पास हूँ। जिसके पास तेरी जैसी श्रद्धा है, उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।

First 14 16 Last


Other Version of this book



अपने दीपक आप बनो तुम
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अपने दीपक आप बनो तुम
Type: SCAN
Language: HINDI
...

પોતાનો દીપક સ્વયં બનો
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • पहले सेवा, फिर उपदेश
  • शांति से बढ़कर कोई सुख नहीं
  • बुद्धत्व ही जीवन का परम स्रोत
  • सत्य प्रकट होता है एकांत मौन में
  • बोधि के दिव्यास्त्र से विकारों का हनन
  • प्रभु प्रेम की कसौटी, उनका ध्यान
  • स्वच्छता-निर्मलता का मर्म
  • और, अंगुलिमाल अरिहन्त हो गया
  • ध्यान की आँख, विवेक की आँख
  • आसक्ति अनंत बार मारती है
  • क्रोध छोड़ें, अभिमान त्यागें
  • नमामि देवं भवरोग वैद्यम्
  • महानिर्वाण की अनुभूति
  • जीवन का अपने मूल स्रोत से जा मिलना
  • श्रद्धा की परिणति
  • गलत प्रव्रज्या में रमण दुःखदायी है
  • अहंकार गंदगी है, मल है
  • सदगुरु का स्मरण
  • मनुष्य अपना स्वामी स्वयं
  • प्रभु का सान्निध्य
  • अब फिर बज उठे रणभेरी
  • वीतराग रेवत की सन्निधि का चमत्कार
  • बुद्धत्व के सान्निध्य से जन्मा ब्राह्मणत्व
  • मोहजनित भ्रांति से प्रभु ने उबारा
  • सच्चा भिक्षु
  • जहाँ सत्य है, निश्छलता है, वहीं विजय है
  • बन्धन मुक्त ही ब्राह्मण है
  • सच्चा ब्राह्मण
  • पूर्णा चली पूर्णता की डगर पर
  • बहिरंग नहीं, प्रभु के अंतरंग को जाना
  • निंदा छोड़ो-ध्यान सीखो
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj