• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • महान धर्म प्रचारक - कुमार जीव
    • पाखण्ड विडम्बना के प्रबल शत्रु—संत कबीर
    • वेदान्त को अपने जीवन माध्यम से समझाने वाले—स्वामी रामतीर्थ
    • अध्यात्म धर्म के सच्चे प्रतिनिधि—संत तुकाराम
    • अमर शहीद-स्वामी श्रद्धानंद
    • ठाकुर दयानन्द—जिन्होंने भारतीय जनता को नया स्वर दिया
    • भारतीयता के संरक्षक—महात्मा हंसराज
    • मरुस्थल में खिला एक सुन्दर फूला—साधु वास्वानी
    • संन्यास जीवन के सार्थक प्रयोक्ता - स्वामी केशवानन्द
    • क्रान्तिकारी सन्त—गुरु नानक
    • संन्यास से गृहस्थ संन्यास की ओर
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • महान धर्म प्रचारक - कुमार जीव
    • पाखण्ड विडम्बना के प्रबल शत्रु—संत कबीर
    • वेदान्त को अपने जीवन माध्यम से समझाने वाले—स्वामी रामतीर्थ
    • अध्यात्म धर्म के सच्चे प्रतिनिधि—संत तुकाराम
    • अमर शहीद-स्वामी श्रद्धानंद
    • ठाकुर दयानन्द—जिन्होंने भारतीय जनता को नया स्वर दिया
    • भारतीयता के संरक्षक—महात्मा हंसराज
    • मरुस्थल में खिला एक सुन्दर फूला—साधु वास्वानी
    • संन्यास जीवन के सार्थक प्रयोक्ता - स्वामी केशवानन्द
    • क्रान्तिकारी सन्त—गुरु नानक
    • संन्यास से गृहस्थ संन्यास की ओर
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - धर्म संस्कृति के अग्रदूत

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


ठाकुर दयानन्द—जिन्होंने भारतीय जनता को नया स्वर दिया

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 5 7 Last


सन् 1905 में जब राष्ट्रीय नेताओं ने स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया तो भारतीय देश भक्तों में, लाख अच्छी हो पर विदेशी वस्तु परित्याज्य और कितनी भी बुरी हो पर अपने देश की चीज अच्छी, इस विचार धारा ने लाखों व्यक्तियों के आन्तरिक और बाहरी जीवन में उथल पुथल मचा दी। उस समय तो राजनैतिक आन्दोलन बड़ी तेजी से भड़का पर शीघ्र ही उसका जोश ठण्डा पड़ने लगा। यह आन्दोलन कुछ ही समय में शांत भले ही पड़ गया हो पर इसका प्रभाव चिरस्थायी हुआ।

जो भावनाशील लोग इस आन्दोलन के प्रवाह में बह गये थे उन्होंने बहना ही स्वीकार किया। बंगाल के एक शासकीय कार्यालय में कार्यरत एक कर्मचारी ने भावनाओं और देश प्रेम के वेग में अपनी नौकरी छोड़ दी और राष्ट्रीयता तथा भारतीयता के प्रति स्वयं को समर्पित कर दिया। युवक का चिन्तन दूसरी ही दिशा में चल रहा था। वह सोचता था वर्षों की गुलामी ने भारतीय जन मानस को इस बुरी तरह दिवालिया बना दिया है कि वह अपने गौरवशाली सांस्कृतिक मूल्यों को भी भूलता जा रहा है। कई शताब्दियों के इस्लामी राज्य ने भारतीय जनता को अपनी संस्कृति के प्रति उतना उदासीन नहीं बनाया जितना कि लगभग 100 वर्ष के ब्रिटिश राज्य ने। युवक इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि जब भारतीय जनता के हृदय में भारतीय जीवन मूल्यों के प्रति आस्था को पुनर्जागृत नहीं किया जाता तब तक स्वदेश प्रेम का स्थायी आधार नहीं बनेगा।

स्वदेशी आन्दोलन जब ठण्डा पड़ गया तो कई विचारशील व्यक्तियों ने भी इस स्थिति को अनुभव किया। वे भी सोचने लगे कि हम लोग अपने जातीय महत्व और गौरव को शनैः शनैः भूलते जा रहे हैं। विस्मृति का यह गम्भीर रोग अपनी सीमा पर पहुंच गया है और थोड़े समय और ऐसा चलता रहा तो भारत में ब्रिटिश राज के पैर स्थायी रूप से जड़ें जमा लेंगे। अतः मूर्धन्य नेताओं का ध्यान सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर भी गया। कई लोग अभियान स्तर के प्रयास में जुटे, सभाएं होती, संगठन खड़े किये जाने लगे, जन सम्पर्क आरम्भ हुआ और जन साधारण को भांति-भांति के तरीकों से अपने सांस्कृतिक गौर का स्मरण कराया जाने लगा।

पर वह युवक जिसकी आयु मुश्किल से तीस वर्ष की रही होगी—अपने लिए भिन्न रास्ता बना रहा था। वह आसाम के सिलचर नगर में गया और वहां से तीन मील दूर पहाड़ी जगह पर एक आश्रम की स्थापना की। जिसका नाम रखा—अरुणाचल आश्रम। अन्य लोग जहां सभायें आयोजित कर भाषणों द्वारा सांस्कृतिक पुनर्जागरण का कार्य वैचारिक धरातल पर कर रहे थे, वहीं इस युवक ने विचार से भी अधिक गहरे प्रभावित करने वाली भावनाओं के तार छेड़े। आश्रम में नित्य प्रति संकीर्तन चलता और उनके माध्यम से लोगों की भावनायें जगायी जातीं। संकीर्तन और भजन गायन से किसकी परहेज होता सो सभी वर्ग के लोग आश्रम में आते। युवक की वाणी में ऐसा जादू था कि वह हर किसी के हृदय को छू जाती और मन में ऐसी टीस कि सुनने वालों के अन्दर तक घुसती जाती। यही कारण था कि आश्रम में आने वाले युवक धीरे-धीरे देश और जाति के लिए अपने सर्वस्व उत्सर्ग करने की भावना से संन्यास लेने लगे। इस प्रकार जन जागरण का विशेष प्रयोजन पूरा करने के लिए धर्म के माध्यम से ही आगे पग बढ़ाने वाले अरुणाचल आश्रम के संस्थापक का नाम था ठाकुर दयानन्द जिन्होंने आगे चल कर जब स्वतन्त्रता आन्दोलन ने जोर पकड़ा तो एक से एक तपे हुए स्वतन्त्रता सेनानी देश को दिये।

अरुणाचल आश्रम में भगवान शंकर और महाकाली की प्रतिमा स्थापित की गयी थी और उसकी अध्यक्षा स्वामी विवेकानन्द की शिष्या भगिनी निवेदिता को बनाया गया। सिस्टर निवेदिता उस समय भारत में स्त्री शिक्षा और समाज सेवा का कार्य कर रही थी। तथा युवकों को राष्ट्र प्रेम और देश भक्ति की प्रेरणा भी देतीं। आश्रम में हर वर्ग और हर स्थिति के व्यक्ति को आने तथा मिशन का कार्य करने की छूट थी। लिंग और जाति भेद के कारण किसी से असमानता का व्यवहार नहीं किया जाता था। इस कारण ठाकुर दयानन्द के इस प्रयास की सामाजिक और विचारशील धार्मिक नेताओं ने भी सराहना की।

आश्रम यों तो संकीर्तन का केन्द्र और धर्म प्रचार का कार्य करता दिखाई देता था। पर मूलतः वहां से जो प्रवृत्तियां चलती थीं वे राष्ट्रीयता के जागरण और लोगों में स्वतन्त्रता प्राप्ति की भावना जगाने का ही प्रयोजन पूरा करती थीं। इस मिशन की कार्य प्रणाली बहुत कुछ बंकिम बाबू के उपन्यास ‘आनन्दमठ’ की तरह थी, आनन्दमठ उपन्यास ने अपने समय में स्वतन्त्रता आन्दोलन को जो बल दिया वह एक संगठन से भी अधिक है। इसमें एक ऐसे संन्यासी दल की कहानी है जो किसी घने जंगल में गुहा बनाकर रहता है और विदेशी शासकों को मातृ भूमि से खदेड़ देने का प्रयत्न करता है।

अरुणाचल आश्रम के कार्यकर्त्ता कुछ दिनों बाद गांव-गांव में भ्रमण करने लगे और प्रचार तथा संगठन बनाने लगे। उनके भजनों से सांस्कृतिक जागरण की ध्वनि सुन कर अंग्रेज अधिकारियों को शंका होने लगी कि ठाकुर दयानन्द कहीं आनन्दमठ की योजना को कार्यान्वित करने में तो नहीं लगे हैं, इसकी जांच करने के लिए जासूस भी लगाये गये पर सारा काम इतने सुनियोजित ढंग से चलता रहा कि अंग्रेजों को उन पर हाथ डालने का मौका भी नहीं आया।

लेकिन अधिकारियों को तो जैसे विश्वास हो गया था। इसलिए सरकार ने अरुणाचल आश्रम के आस-पास पुलिस का पहरा लगा दिया। वे आश्रम से सम्बन्ध लोगों को भी तरह-तरह से डालने धमकाने लगे। शासकीय कर्मचारियों पर आश्रम से कोई सम्बन्ध न रखने के लिए प्रतिबन्ध लगा दिया गया और उनका आना जाना भी रोक दिया गया। पर आश्रमवासी इससे न तो विचलित हुए और न भयभीत। वे अपना काम पूर्ववत करते रहे। अंग्रेज सरकार ने जब आश्रम के कार्यकर्ताओं को परेशान करना आरम्भ किया तो सन् 1911 में ठाकुर दयानन्द ने घोषणा की कि सरकार हम पर जो दोष लगा रही है और हम पर अत्याचार कर रही है उससे मजबूर होकर हम भी यह घोषणा करते हैं कि उसे हम अपना शासन नहीं मानते। आश्रम वासी उससे परेशान होकर जो कदम उठाये उसकी जिम्मेदारी शासक वर्ग पर ही होगी।

इस घोषणा से सरकारी अधिकारियों का रोष और बढ़ गया तथा 8 जुलाई 1912 को पुलिस के एक बड़े दल ने आश्रम पर धावा बोल दिया। आश्रम वासियों ने पुलिस वालों का प्रतिरोध नहीं किया तो भी शीघ्र ही पुलिस के सिपाहियों ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें बन्दूक के कुन्दों तथा संगीनों से बहुत मारा। महात्मा गांधी ने इससे आठ वर्ष बाद असहयोग का शंखनाद किया था पर ठाकुर दयानन्द ने जैसे उसी समय असहयोग का एक, उदाहरण प्रस्तुत किया। आक्रमण उन पर भी हुआ और उनकी रक्षा करते हुए माता मैत्रेयी की हड्डी टूट गयी।

सब मिलाकर लगभग 60 व्यक्ति गिरफ्तार किये गये। जिन्हें शाम तक थाने में रखा गया। उनमें से 45 को छोड़ दिया गया और शेष पर मुकदमा चलाया गया जिनमें ठाकुर दयानन्द भी थे। ठाकुर दयानन्द ने अदालत में भी बयान देने से इन्कार कर दिया और वहां भी असहयोग किया। उन्होंने इतना ही कहा—अभी तक सरकार ने हमारी शिकायतों पर ध्यान न देकर पक्षपात किया है। इसलिए मुझे अपने बचाव के लिए कुछ नहीं कहना।

ठाकुर दयानन्द के अन्य शिष्यों ने भी उन्हीं का अनुसरण किया और उनने भी अपने बचाव में कुछ नहीं कहा। जब किसी ने अपने बचाव में कुछ नहीं कहा। तो फैसला करने में क्या लगता था। अंग्रेज न्यायधीश ने ठाकुर दयानन्द को डेढ़-डेढ़ वर्ष की और शेष व्यक्तियों को तीन महीने से लेकर एक वर्ष तक की सजा दी। जेल जाते समय उन्होंने अपने अनुयायियों को धैर्य बंधाते हुए कहा—‘जिन लोगों में आध्यात्मिक शक्ति का विकास हो चुका है उनकी गति को कोई नहीं रोक नहीं सकता। यहां तक की भगवान भी।

उनके शिष्यों को आतंककारी कार्यों का भय नहीं था वरन् अपने गुरु पर आयी इस विपत्ति का दुःख था। लेकिन वे हाथ पर हाथ रख कर बैठे नहीं रहे। कुछ समय बाद अरुणाचल आश्रम के कार्यकर्ता पुनः संगठित होकर अपना कार्यक्रम चलाने लगे। अब जगह-जगह कीर्तन यज्ञ होते। पबना नगर के एक कार्यकर्ता में अपने यहां सात दिल अखण्ड कीर्तन चलाया। इससे वहां के अधिकारियों में बड़ी खलबली और चिन्ता फैली। उन्होंने किसी तरह कीर्तन मण्डली को वहां से हटाया।

राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करने के साथ-साथ अरुणाचल मिशन की दूसरी विशेषता थी समाज सुधार के कार्यक्रम। उस समय ऊंच-नीच, बाल विवाह, सती प्रथा आदि कितनी ही कुरीतियां समाज को घुन की तरह चाटे जा रही थीं। स्वामी जी द्वारा चलाये गये कीर्तन कार्यक्रमों द्वारा सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन से चेतन जागृत हुई।

इसके साथ ही ठाकुर दयानन्द ने सामाजिक विचार धारा भी समाज को दी। और अरुणाचल मिशन की विचार और कार्यपद्धति को स्पष्ट करते हुए मिशन की एक पत्रिका में लिखा—एक नवीन शक्ति प्राप्त करके संन्यासियों का एक दल कार्य सिद्धि के लिए उद्यत होगा। अनेक युवक साधना रत होकर अग्रसर होंगे। भारत जागृत होगा, समस्त विश्व में धर्म का राज्य स्थापित करने के लिए अब नया प्रकाश और नवीन आनन्द लेकर नया युग आ रहा है। भारतवासी क्षुद्र होकर नहीं रहेंगे वरन् सारे विश्व में एक विराट और उदार सभ्यता का प्रचार करेंगे।
इस प्रकार विश्वधर्म और विश्व मैत्री का संदेश देते हुए ठाकुर दयानन्द ने सन् 1931 में महाप्रयाण किया। उन्होंने भारतीय जनता को नवजागरण का सन्देश देते हुए विश्वधर्म का जो उदार स्वरूप विचारशील व्यक्तियों के सम्मुख रखा आज भी जन-जन के लिये प्रेरणादीप का कार्य कर रहा है।
First 5 7 Last


Other Version of this book



धर्म संस्कृति के अग्रदूत
Type: TEXT
Language: HINDI
...

धर्म संस्कृति के अग्रदूत
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

त्योहार और व्रत
Type: SCAN
Language: HINDI
...

ऋगवेद भाग 2-A
Type: SCAN
Language: EN
...

ऋगवेद भाग 2-A
Type: SCAN
Language: EN
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

धर्म और विज्ञान विरोधी नहीं पूरक हैं
Type: TEXT
Language: HINDI
...

वाल्मीकि रामायण से प्रगतिशील प्रेरणा
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भाव संवेदना की गंगोत्री
Type: SCAN
Language: EN
...

युग यज्ञ पद्धति - दीप यज्ञ
Type: SCAN
Language: HINDI
...

युग यज्ञ पद्धति - दीप यज्ञ
Type: SCAN
Language: HINDI
...

महिलाओं की गायत्री साधना
Type: SCAN
Language: EN
...

महिलाओं की गायत्री साधना
Type: SCAN
Language: EN
...

गायत्री की गुप्त शक्तियाँ
Type: SCAN
Language: EN
...

गायत्री की गुप्त शक्तियाँ
Type: SCAN
Language: EN
...

गायत्री शक्ति का नारी स्वरूप
Type: SCAN
Language: EN
...

गायत्री शक्ति का नारी स्वरूप
Type: SCAN
Language: EN
...

कर्मकाण्ड क्यों और कैसे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

कर्मकाण्ड क्यों और कैसे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

गायत्री के प्रत्यक्ष चमत्कार
Type: SCAN
Language: HINDI
...

गायत्री के प्रत्यक्ष चमत्कार
Type: SCAN
Language: HINDI
...

सावधानी और सुरक्षा
Type: SCAN
Language: EN
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • महान धर्म प्रचारक - कुमार जीव
  • पाखण्ड विडम्बना के प्रबल शत्रु—संत कबीर
  • वेदान्त को अपने जीवन माध्यम से समझाने वाले—स्वामी रामतीर्थ
  • अध्यात्म धर्म के सच्चे प्रतिनिधि—संत तुकाराम
  • अमर शहीद-स्वामी श्रद्धानंद
  • ठाकुर दयानन्द—जिन्होंने भारतीय जनता को नया स्वर दिया
  • भारतीयता के संरक्षक—महात्मा हंसराज
  • मरुस्थल में खिला एक सुन्दर फूला—साधु वास्वानी
  • संन्यास जीवन के सार्थक प्रयोक्ता - स्वामी केशवानन्द
  • क्रान्तिकारी सन्त—गुरु नानक
  • संन्यास से गृहस्थ संन्यास की ओर
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj