• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • साधारण नित्य कर्म
    • माला की जरूरत है !
    • गायत्री- शक्ति का नारी स्वरूप
    • गायत्री का स्त्री स्वरूप क्यों ?
    • गायत्री माता का परिचय
    • परमात्मा की कार्यकर्त्री देव शक्ति
    • विभूतियों का भाण्डागार
    • रहस्यों का जानना आवश्यक है
    • तीन चरणों की अनन्त सामर्थ्य
    • मंगलमयी मधु विद्या
    • अन्तर्जगत के गुप्त तत्त्व
    • नारी के प्रति पूज्य भावना
    • महा महिमामयी माता
    • गायत्री- साधना का उद्देश्य
    • निष्काम साधना का तत्व- ज्ञान
    • द्विजों का नित्य नियम
    • गायत्री उपासना की अनिवार्यता
    • साधक का आहार- व्यवहार
    • आचार्य का वरण
    • दीक्षा और गुरू मंत्र
    • गायत्री उपासना विधिपूर्वक ही की जाय
    • प्रार्थना में भावना की प्रधानता
    • मन्त्र विद्या में विधि विधान की आवश्यकता
    • गायत्री उपासना से दुष्कृतों का शमन
    • मन्त्र शक्ति का मर्म व रहस्य
    • गायत्री उपासना में समय साधना का महत्त्व
    • साधना, एकाग्रता और स्थिरचित्त से होनी चाहिए
    • साधना के चार नियम
    • साधन काल के विक्षेप
    • गायत्री जप का वैज्ञानिक रूप
    • जप का महत्त्व
    • गायत्री साधना की सफलता
    • साधकों के लिए कुछ आवश्यक नियम
    • इन साधनाओं में अनिष्ट का कोई भय नहीं
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • साधारण नित्य कर्म
    • माला की जरूरत है !
    • गायत्री- शक्ति का नारी स्वरूप
    • गायत्री का स्त्री स्वरूप क्यों ?
    • गायत्री माता का परिचय
    • परमात्मा की कार्यकर्त्री देव शक्ति
    • विभूतियों का भाण्डागार
    • रहस्यों का जानना आवश्यक है
    • तीन चरणों की अनन्त सामर्थ्य
    • मंगलमयी मधु विद्या
    • अन्तर्जगत के गुप्त तत्त्व
    • नारी के प्रति पूज्य भावना
    • महा महिमामयी माता
    • गायत्री- साधना का उद्देश्य
    • निष्काम साधना का तत्व- ज्ञान
    • द्विजों का नित्य नियम
    • गायत्री उपासना की अनिवार्यता
    • साधक का आहार- व्यवहार
    • आचार्य का वरण
    • दीक्षा और गुरू मंत्र
    • गायत्री उपासना विधिपूर्वक ही की जाय
    • प्रार्थना में भावना की प्रधानता
    • मन्त्र विद्या में विधि विधान की आवश्यकता
    • गायत्री उपासना से दुष्कृतों का शमन
    • मन्त्र शक्ति का मर्म व रहस्य
    • गायत्री उपासना में समय साधना का महत्त्व
    • साधना, एकाग्रता और स्थिरचित्त से होनी चाहिए
    • साधना के चार नियम
    • साधन काल के विक्षेप
    • गायत्री जप का वैज्ञानिक रूप
    • जप का महत्त्व
    • गायत्री साधना की सफलता
    • साधकों के लिए कुछ आवश्यक नियम
    • इन साधनाओं में अनिष्ट का कोई भय नहीं
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - गायत्री सर्वतोन्मुखी समर्थता की अधिष्ठात्री

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


नारी के प्रति पूज्य भावना

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 9 11 Last
गायत्री उपासना से नारी मात्र के प्रति पवित्र भाव बढ़ते हैं उसके प्रति श्रेष्ठ व्यवहार करने की इच्छा स्वभावतः होती है। ऐसी भावना वाले व्यक्ति नारी सम्मान के, नारी पूजा के, प्रबल समर्थक होते हैं। यह समर्थन समाज में सुख- शान्ति एवं प्रगति के लिये नितान्त आवश्यक है। शास्त्रों में भी इसका समर्थन है-

जगदम्बम्बामयं पव्य स्त्रीमात्रमविशेषतः।
नारी मात्र को जगदम्बा का स्वरूप माने ॥
स्त्रीणां निन्दां प्रहारथ कौटिल्तचाप्रियं वचः।
आत्मनो हितमान्विच्छन्ददेवीं भक्तो विवर्जयेत् ॥

अपना कल्याण चाहने, वाला माता का उपासक, स्त्रियों की निन्दा न करे, न उन्हें मारे, न उनसे छल करे, न उनका जी दुःखाये।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ।।
यत्र नार्यो न पूज्यन्ते श्पशानं तन्नवै गृहम् ॥
जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। जहाँ नारी का तिरस्कार होता है, वह घर निश्चय ही श्मशान है।

गायत्री उपासक की नारी जाति के प्रति गायत्री माता की ही भावना रहती है, उन्हें वह परम पूज्य दृष्टि से देखता है ऐसी स्थिति में वासनात्मक कुविचार तो उसके पास तक नहीं फटकते-
वद्या समस्तास्तवदेविभेदाः स्त्रियः समस्तसमलाजकस्तु ।।
त्वयेकयापूरितमम्बयैतत् कास्ते स्तुतिः स्तव्यपरापरोक्तिः ॥
इस संसार में सम्पूर्ण परा अपरा विद्यायें आपका ही भेद हैं। मेरे संसार की समस्त नारियाँ आपका ही रूप हैं।

पिता से माता अधिक उदार

भक्त की कोमल भावनाएँ तो यहाँ तक मानती हैं कि न्यायकारी पिता यदि हमारे किन्हीं अपराधों से कुपित होकर दण्ड व्यवस्था करेंगे तो माता अपनी करूणा से द्रवित होकर उस दण्ड से बचा लेंगी। बचा ही नहीं लेंगी वरन् परमपिता को धमका भी देंगी कि मेरे भक्त को दुःख क्यों देते हैं, संसार में पूर्ण निर्दोष कौन है! जब सभी दोषी हैं, जब आप सभी पर दया करते हैं, उदारता और क्षमा का व्यवहार करते हैं तो मेरे भक्तों के प्रति वैसा उदार व्यवहार क्यों न करोगे! भक्त मानता है कि जब सिफरिस पर पिता को झुकना ही पड़ेगा। इन भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति देखिए -

पितेवत्वत्प्रेयाञ्जननि परिपूर्णागसिजने ।।
हितस्रोती वृत्या भवति च कदाचित्कलुषधीः ।।
किमेतन्निर्दोषः व इहजगतीति त्वमुचितैः ।।
रूपायै विस्मार्य स्वजनयसि माता तदसिनः ।।
-परासर भट्ट

परम पिता परमात्मा जब अपराधी जीव पर पिता के समान कुपित हो जाते हैं तब आप ही उन्हें समझाती हो कि ‘‘यह क्या करते हो ! इस संसार में पूर्ण निर्दोष कौन है’’ उनका क्रोध शान्त कर आप ही उन में दया उपजाती हैं। इसलिए आप ही दयामयी माता हैं।
परम पिता से महिमामयी माता अधिक उदार, अधिक करुणापूर्ण, अधिक वात्सल्य- युक्त हैं, इसका एक उदाहरण, कवि ने रामचन्द्र और जानकी की तुलना का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है।

मातर्मेथिली राक्षसी स्त्वयि तदेवार्द्रापराधस्त्वया ।।
रक्षन्त्या पवनात्मजाल्लघु तरा रामस्य गोष्ठी कृता ।।
काकतेच विभीषणं शरणभित्युक्ति क्षमौ रक्षतः ।।
सा न स्सान्द्र महागससुखयतुक्षान्तिस्तवा कस्मिकी ।।

रामचन्द्र जी ने शरण आने पर ही काक और विभीषण की रक्षा की ।। इसमें उनका क्या बड़ा गौरव है। जानकी जी की महानता देखो, उनके अपराध करने वाली राक्षसियों को बिना कोई प्रार्थना किये ही दण्ड देने को उद्यत हनुमान जी से छुड़ा दिया। जानकी जी की करुणा रामचन्द्र जी की अपेक्षा कहीं बड़ी है।

विश्वनारी की पवित्र आराधना
 
संसार में सब से अधिक प्रेम- सम्बन्ध का अद्वितीय उदाहरण माता है। माता अपने बालक को जितना प्रेम करती है उतना और कोई सम्बन्धी नहीं कर सकता। यौवन के उफान काल में पति- पत्नी में भी अधिक प्रेम देखा जाता है पर वह वास्तविक दृष्टि से माता के प्रेम की तुलना में बहुत ही हल्का और उथला बैठता है। पति- पत्नी का प्रेम, आदान- प्रदान एक दूसरे के मनः संतोष एवं प्रति फल के ऊपर निर्भर रहता है। उस में कमी या विघ्न हो तो वह प्रेम विरोध के रूप में परिवर्तित हो जाता है, परन्तु माता का प्रेम अतीव सात्विक और उच्च- कोटि का होता है। बालक से प्रतिफल मिलना तो दूर रहा, उलटे अनेक कष्ट होते हैं, इस पर भी वह वात्सल्य की, परम सात्विक प्रेम की अमृत धारा बालक को पिलाती रहती है। कुपुत्र होने पर भी माता की भावनाएँ घटती नहीं ।।

श्रीमद् भागवत में वर्णन आता है कि कंस की सभा में जब श्रीकृष्ण जी पधारे तो सभासदों ने अपनी- अपनी भावनाओं के अनुरूप उन्हें देखा। रामायण में वर्णन है, कि सिया स्वयंवर के समय उपस्थित जन समुदाय राम को साक्षात् वैसा ही देखते थे, जैसी कि उनकी भावना थी। ब्रह्म तत्व स्फटिक मणि के समान स्वच्छ निर्मल एवं निर्विकार है। अपनी- अपनी भावनाएँ ही कंस सभा और सीय स्वयंवर सभासदों की भांति  भगवान में परिलक्षित होती हैं। दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब दीखता है। कुएँ में अपनी ही प्रतिध्वनि वापिस लौटती है। स्फटिक मणि के निकट जिस रंग की वस्तु रक्खी होगी, उसी रंग की वह मणि देने लगेगी। भगवान को हम माता, पिता, भ्राता, सखा आदि जिस किसी भाव से देखेंगे, वे उसी भाव के अनुरूप हमारे लिए प्रतिध्वनित होंगे ।।

हम भगवान को प्रेम करते हैं और उनके अनन्य प्रेम का प्रतिदान प्राप्त करना चाहते हैं। तब माता के रूप में उन्हें भजना सब से अधिक उपयुक्त एवं अनुकूल बैठता है। माता का जैसा वात्सल्य अपने बालक पर होता है वैसा ही प्रेम प्रतिफल प्राप्त करने के लिए भगवान से मातृ- सम्बन्ध स्थापित करना आत्म विद्या के, मनोवैज्ञानिक रहस्यों के आधार पर अधिक उपयोगी एवं लाभदायक सिद्ध होता है। कंस, भगवान को काल के रूप में देखता था उसे दिन रात सोते जागते उनका प्राण धात्री श पाणि महा भयंकर स्वरूप दिखाई पड़ता था। सूरदास के कृष्ण बाल गोपाल स्वरूप थे। हमारे लिये माता का सम्बन्ध अधिक स्नेहमय हो सकता है। माता की गोदी में बालक अपने को सबसे अधिक आनंदित सुरक्षित संतुष्ट अनुभव करता है। प्रभु को माता मानकर जगज्जननी वेदमाता गायत्री के रूप में उसकी उपासना करें, तो उसकी प्रतिक्रिया भगवान की ओर से भी वैसे ही वात्सल्य मय होगी जैसी कि माता की अपने बच्चे के प्रति होती है।

इसके अतिरिक्त एक वैज्ञानिक कारण यह भी है कि विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण स्वभावतः अधिक होता है। पुरुष शरीर और मन में कुछ ऐसी कमियाँ हैं, जो स्त्री से ही पुरी होती हैं। इन अभावों की पूर्ति के लिए विपरीत लिंग की ओर सदैव खिंचाव रहता है। ध्यान करने में पुरूषाकृति रूप में मन की उतनी प्रवृत्ति नहीं होती जितनी कि स्त्री रूप में। गायत्री माता की उपासना में मन अपेक्षाकृत अधिक शान्त, स्थिर एवं संलग्न रह सकता है, इसलिए गायत्री का इष्ट शीघ्र सिद्ध होता है।

नारी- शक्ति पुरुष के लिए सब प्रकार आदरणीय, पूजनीय एवं पोषणीय है। पुत्री के रूप में, बहिन के रूप में, माता के रूप में, वह स्नेह करने योग्य, मैत्री करने योग्य एवं गुरूवत् पूजन करने योग्य है। पुरुष के शुष्क अन्तर में अमृत सिंचन यदि नारी द्वारा नहीं हो पाता, तो वैज्ञानिक बतलाते हैं कि वह बड़ा रूखा, कर्कश, क्रूर, निराश, संकीर्ण एवं अविकसित रह जाता है। वर्षा से जैसे पृथ्वी का हृदय हर्षित होता है और उसकी प्रसन्नता हरियाली एवं पुष्प- पल्लव के रूप में फूट पड़ती है। पुरूष भी नारी की स्नेह- वर्षा से इसी प्रकार सिंचन प्राप्त करके अपनी शक्तियों का विकास करता है, परन्तु एक भारी विघ्न इस मार्ग में वासना का है जो अमृत को विष बना देता है। दुराचार, कुदृष्टि एवं वासना का सम्मिश्रण हो जाने से नर- नारी के सान्निध्य से प्राप्त होने वाले अमृत फल, बीज बन जाते हैं। इसी बुराई के कारण स्त्री- पुरुषों को अलग- अलग रहने के, सामाजिक नियम बनाये गये हैं। फलस्वरूप दोनों पक्षों को उन असाधारण लाभों से वंचित रहना पड़ता है, जो नर- नारी के पवित्र मिलन से पुत्री, बहिन और माता के रूप में सामीप्य होने से मिल सकते हैं।

इस विकार की भावना का शमन करने के लिए गायत्री साधना परम उपयोगी है। विश्व नारी के रूप में भगवान की मातृभाव से परम पुण्य भावनाओं के साथ आराधना करना मातृ जाति के प्रति पवित्रता की अधिकाधिक वृद्धि करना है। इस दिशा में जितनी सफलता मिलती जाती है उस अनुपात से अन्य इन्द्रियों का निग्रह, मन का निरोध एवं अनेक मनोविकारों का शमन अपने आप होता जाता है। मातृ भक्त के हृदय में दुर्वासनाएँ अधिक देर नहीं ठहर सकतीं।

श्रीरामकृष्ण परमहंस, योगी अरविन्द घोष, छत्रपति शिवाजी आदि कितने ही महापुरुष शक्ति उपासक थे। शक्ति धर्म, भारत मा प्रधान धर्म है। जन्म भूमि को हम भारत माता के रूम में पूजते हैं सभी राष्ट्रवादी भारत माता की, मातृ शक्ति की जय बोलते हैं और उसकी उपासना करते हैं। शिव से पहले शक्ति की पूजा हैं। लक्ष्मी नारायण, सीताराम, राधेश्याम, गौरीशंकर आदि नामों को प्रथम और नर को गौण रखा गया है। माता का, पिता और गुरू से भी पहला स्थान है। इस प्रकार विश्व नारी के रूप में भगवान की पूजा करना नर पूजा की अपेक्षा अधिक उत्तम उपयोगी है। गायत्री उपासना को यही विशेषता है।

ब्रह्म निर्विकार है। इन्द्रियों से अतीत तथा बुद्धि से अगम्य है। उस तक सीधा पहुँचने का कोई मार्ग नहीं। नाम, जप, रूप का ध्यान, प्रार्थना, तपस्या, साधना, चिन्तन श्रवण, कीर्तन आदि सभी आध्यात्मिक उपकरण मायिक हैं। सतोगुणी माया, एवं चित शक्ति के द्वारा ही जीव और ईश्वर का मिलन हो सकता है, यह आत्मा और परमात्मा का मिलाप कराने वाली शक्ति गायत्री ही है। ऋषियों ने इसी की उपासना की है क्योंकि यह खुला रहस्य है कि शक्ति बिना मुक्ति नहीं। सरस्वती, लक्ष्मी, काली, माया, प्रकृति, राधा, सीता, सावित्री, पार्वती आदि के रूप में गायत्री की ही पूजा की जाती है। पिता से सम्बन्ध होने के कारण माता है। इसलिए पिता से माता का दर्जा ऊँचा है। समुद्र से जल ला- लाकर मेघमालाएँ ही वर्षा आयोजन करती हैं। ईश्वर की असीम आनन्द राशि का आस्वादन करने का सौभाग्य गायत्री माता द्वारा ही मानव प्राणी को प्राप्त होता है।

ब्रह्म की इच्छा, शक्ति एवं क्रिया गायत्री है ।। उसी से उत्पत्ति, विकास एवं अवसान का आयोजन होता है। सुन्दरता, मधुरता, क्रीणा, सम्पत्ति, कीर्ति, आशा, प्रसन्नता, करुणा, मैत्री आदि के रूप में यह महाशक्ति ही जीवन क्षेत्र को आनन्दित एवं तरंगित करती रहती है। इस विश्वनारी की, महागायत्री की, महामाता की आराधना करके हम अधिकाधिक आनन्द की ओर अग्रसर हो सकते हैं।


First 9 11 Last


Other Version of this book



गायत्री सर्वतोन्मुखी समर्थता की अधिष्ठात्री
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • साधारण नित्य कर्म
  • माला की जरूरत है !
  • गायत्री- शक्ति का नारी स्वरूप
  • गायत्री का स्त्री स्वरूप क्यों ?
  • गायत्री माता का परिचय
  • परमात्मा की कार्यकर्त्री देव शक्ति
  • विभूतियों का भाण्डागार
  • रहस्यों का जानना आवश्यक है
  • तीन चरणों की अनन्त सामर्थ्य
  • मंगलमयी मधु विद्या
  • अन्तर्जगत के गुप्त तत्त्व
  • नारी के प्रति पूज्य भावना
  • महा महिमामयी माता
  • गायत्री- साधना का उद्देश्य
  • निष्काम साधना का तत्व- ज्ञान
  • द्विजों का नित्य नियम
  • गायत्री उपासना की अनिवार्यता
  • साधक का आहार- व्यवहार
  • आचार्य का वरण
  • दीक्षा और गुरू मंत्र
  • गायत्री उपासना विधिपूर्वक ही की जाय
  • प्रार्थना में भावना की प्रधानता
  • मन्त्र विद्या में विधि विधान की आवश्यकता
  • गायत्री उपासना से दुष्कृतों का शमन
  • मन्त्र शक्ति का मर्म व रहस्य
  • गायत्री उपासना में समय साधना का महत्त्व
  • साधना, एकाग्रता और स्थिरचित्त से होनी चाहिए
  • साधना के चार नियम
  • साधन काल के विक्षेप
  • गायत्री जप का वैज्ञानिक रूप
  • जप का महत्त्व
  • गायत्री साधना की सफलता
  • साधकों के लिए कुछ आवश्यक नियम
  • इन साधनाओं में अनिष्ट का कोई भय नहीं
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj