
अन्तर्जगत के गुप्त तत्त्व
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मनुष्य के अन्तर्जगत में जो विलक्षण शक्तियाँ भरी हुई हैं, उनका जागरण भी गायत्री महामन्त्र द्वारा ही सम्भव है। इस महामन्त्र का एक- एक अक्षर शक्ति- बीज है। इन शक्ति बीजों के स्पर्श से शरीर में अवस्थित प्रधान षटचक्रों एवं अठारह उपचक्रों का इस प्रकार कुल २४ चक्रों का जागरण गायत्री उपासना से होता है। इस रत्न भण्डार सरीखे चक्र उपचक्रों में से प्रत्येक में वे शक्तियाँ और सिद्धियाँ भरी हुई हैं, जिन्हें प्राचीनकाल मे ऋषि मुनि प्राप्त करके अपने को ईश्वरीय तत्वों का अधिकारी- उत्तराधिकारी बनाये हुए थे। इसका प्रमाण इस प्रकार मिलता है ।।
चतुर्विशांक्षरी विद्या पर तत्व विनिर्मिता ।।
तत्कारात् यातकार पर्यन्त शब्द ब्रह्मस्वरूपिणी ॥
-गायत्री तन्त्र
अर्थात्- ‘तत्’ शब्द से लेकर ‘प्रचोदयात्’ शब्द पर्यन्त२४ अक्षरों वाली गायत्री पर- तत्त्व अर्थात् पराविद्या से ओत- प्रोत है।
परमात्मा तथा उसकी इस प्रधान शक्ति को लिंग भेद में विभाजित नहीं किया जा सकता। वह न नर है न नारी, परन्तु इतना अवश्य है कि उसे जिस रूप में जिस भाव से माना जाय, उसी के अनुरूप वह सामने उपस्थित होते हैं। भक्त की भावना के ढाँचे में वह महाशक्ति भी मिट्टी की तरह आसानी से ढल जाती है और तदनुसार अपने अस्तित्व का परिचय देती है। भगवान को भक्त अपनी अभिरूचि के अनुसार माता, पिता, बन्धु, सखा, पति, पुत्र आदि जो चाहे, सो मान सकता है और उसी के अनुसार उनको प्रत्युत्तर देते अनुभव कर सकता है।
इस संसार में माता का स्नेह एवं वात्सल्य सबसे उत्कृष्ट होता है इसलिए अन्य सम्बन्ध स्थापित करने की अपेक्षा उस ईश्वरीय सत्ता को माता के भाव से मानना, मातृ सम्बन्ध स्थापित करना, अधिक उत्तम है। इस मान्यता के कारण वह शक्ति भी माता के अनुरूप स्नेह एवं वात्सल्य के साथ हमारे सामने आ उपस्थित होती है। भगवान को माता के रूप में प्राप्त करना भक्त के लिये सबसे अधिक आनन्ददायक सौभाग्य हो सकता है। इसलिये गायत्री को माता के रूप में माता गया है और उसी रूप में उसकी पूजा की होती है।
गायत्री माता को नारी रूप में देखने की प्रतिक्रिया होती है- ‘‘नारी मात्र को गायत्री माता का स्वरूप समझना ।’’ स्त्री जाति में मातृ- भावना की स्थापना होकर साधक जब गायत्री की छवि को युवा नारी के रूप में सामने रख कर उसके चरणों पर अपना शुद्ध मातृ भाव समर्पित करता है, तो यही अभ्यास धीरे- धीरे दृढ़ होता हुआ इस स्थिति में जा पहुँचता है कि कोई स्त्री चाहे वह रूपवती या तरूणी ही क्यों न हो, गायत्री माता की प्रतीक ही दिखाई पड़ने लगती है। यह मातृ- बुद्धि प्राप्त होता एक बहुत बड़ी आध्यात्मिक सफलता है।
चतुर्विशांक्षरी विद्या पर तत्व विनिर्मिता ।।
तत्कारात् यातकार पर्यन्त शब्द ब्रह्मस्वरूपिणी ॥
-गायत्री तन्त्र
अर्थात्- ‘तत्’ शब्द से लेकर ‘प्रचोदयात्’ शब्द पर्यन्त२४ अक्षरों वाली गायत्री पर- तत्त्व अर्थात् पराविद्या से ओत- प्रोत है।
परमात्मा तथा उसकी इस प्रधान शक्ति को लिंग भेद में विभाजित नहीं किया जा सकता। वह न नर है न नारी, परन्तु इतना अवश्य है कि उसे जिस रूप में जिस भाव से माना जाय, उसी के अनुरूप वह सामने उपस्थित होते हैं। भक्त की भावना के ढाँचे में वह महाशक्ति भी मिट्टी की तरह आसानी से ढल जाती है और तदनुसार अपने अस्तित्व का परिचय देती है। भगवान को भक्त अपनी अभिरूचि के अनुसार माता, पिता, बन्धु, सखा, पति, पुत्र आदि जो चाहे, सो मान सकता है और उसी के अनुसार उनको प्रत्युत्तर देते अनुभव कर सकता है।
इस संसार में माता का स्नेह एवं वात्सल्य सबसे उत्कृष्ट होता है इसलिए अन्य सम्बन्ध स्थापित करने की अपेक्षा उस ईश्वरीय सत्ता को माता के भाव से मानना, मातृ सम्बन्ध स्थापित करना, अधिक उत्तम है। इस मान्यता के कारण वह शक्ति भी माता के अनुरूप स्नेह एवं वात्सल्य के साथ हमारे सामने आ उपस्थित होती है। भगवान को माता के रूप में प्राप्त करना भक्त के लिये सबसे अधिक आनन्ददायक सौभाग्य हो सकता है। इसलिये गायत्री को माता के रूप में माता गया है और उसी रूप में उसकी पूजा की होती है।
गायत्री माता को नारी रूप में देखने की प्रतिक्रिया होती है- ‘‘नारी मात्र को गायत्री माता का स्वरूप समझना ।’’ स्त्री जाति में मातृ- भावना की स्थापना होकर साधक जब गायत्री की छवि को युवा नारी के रूप में सामने रख कर उसके चरणों पर अपना शुद्ध मातृ भाव समर्पित करता है, तो यही अभ्यास धीरे- धीरे दृढ़ होता हुआ इस स्थिति में जा पहुँचता है कि कोई स्त्री चाहे वह रूपवती या तरूणी ही क्यों न हो, गायत्री माता की प्रतीक ही दिखाई पड़ने लगती है। यह मातृ- बुद्धि प्राप्त होता एक बहुत बड़ी आध्यात्मिक सफलता है।