
गायत्री उपासना से दुष्कृतों का शमन
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गायत्री उपासना का प्रभाव सबसे प्रथम मनुष्य के मनःक्षेत्र पर पड़ता है। उसके कुविचार दूर होते हैं, दुष्कर्मों से घृणा उत्पन्न होती है, आत्म निरीक्षण में अभिरुचि होती है और अपने अन्दर जो- जो दोष दुर्गुण हैं, उसे उपासक ढूँढ़ कर तलाश करता है ।। उनकी हानियों को समझता है और उन्हें त्याग को तत्पर हो जाता है ।। इस प्रक्रिया के कारण उसका वर्तमान जीवन पापमुक्त होता है और जैसे जैसे यह पवित्रता बढ़ती है उसी अनुमान से पूर्व जन्मों के दुष्कृत संस्कार भी घटने और नष्ट होने लगते हैं ।। इसीलिये गायत्री को पाप- नाशिनी, मोक्ष- दायिनी कल्याण- कारिणी कहा गया है ।। देखिये-
गायत्र्या परमं नास्ति देवि चेह न पावनम् ।।
हस्तत्राण प्रदा देवी पततां नरकार्णवे ॥
-शंखस्मृति अ० १२- २५
नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़ कर बचाने वाली गायत्री के समान पवित्र करने वाली वस्तु, इस पृथ्वी पर तथा स्वर्ग में कोई नहीं है ।।
धर्मोन्नतिमधर्मस्य नाशनं जनहृछु चिम् ।।
मांगल्ये जगतो माता गायत्री कुसनात्सदा ॥
धर्म की उन्नति अधर्म का नाश, भक्तों के हृदय की पवित्रता और संसार का कल्याण गायत्री माता करें।
गायत्री जाह्नवी चोमे सर्व पाप हरे स्मृतो ।।
गायत्रीच्छन्दसां माता माता लोकस्य जाह्नवी ॥
-नारद पुराण
गायत्री और गंगा यह दोनों ही सब पापों का नाश करने वाली हैं ।। गायत्री को वेद माता और गंगा को लोकमाता कहते हैं ।।
गायत्रीयो जपेन्नित्यं स न पापेन लिप्यते ।।
-हरितास्मृति ३- ४२
गायत्रीं पावनीं जप्त्वा ज्ञात्वा याति परां गतिम् ।।
न गायत्री विहीनस्य भद्रमत्र परत्र च ॥
अर्थात्- परम पावनी गायत्री का श्रद्धापूर्वक जप करके साधक परम गति को प्राप्त करता है। गायत्री रहित का तो न इस लोक में कल्याण होता है न परलोक में ।।
गायत्री जाप्य निरतो मोक्षोपापं च विंदति
अर्थात्- गायत्री मंत्र का जप करने वाला मोक्ष को प्राप्त करता है।
परांसिद्धिमवाप्नोति गायत्री मुक्तमां पठे त् ।।
गायत्री का जप करने से परा सिद्धि प्राप्त होती है।
सुख सौभाग्य दायक महा मन्त्र
गायत्री महामन्त्र की उपासना से उत्पन्न आध्यात्मिक शक्ति से मनुष्य के लौकिक जीवन पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है और उसकी अनेकों आपत्तियों तथा कठिनाइयों का समाधान होकर सुख, समृद्धि, सौभाग्य, सफलता एवं उन्नति के अवसर प्राप्त होते हैं। उपासकों के अनुभवों से भी यह प्रत्यक्ष है और शास्त्र वचनों से भी इसकी पुष्टि होती है।
एहिकामुष्यिकं सर्व गायत्रीं जपतो भवेत् ।।
-अग्नि पुराण
अर्थात्- गायत्री जप से सभी सांसारिक कामनायें पूर्ण होती हैं ।।
य एता वेद गायत्रीं पुण्या सर्व गुणान्विताम् ।।
तत्वे न भरत श्रेष्ठ सलो के न प्राणश्यति ॥
-म०भा०भीष्म पर्व १४।१६
जो इस पवित्रा सर्वगुणसम्पन्न गायत्री के तत्त्व को जानता है, उसे इस लोक में कोई कष्ट नहीं होता ।।
यो हवा एववित् स ब्रह्मवित् पुण्यां च कीर्ति लभते ।। सुरर्भीश्च गन्धान् सोऽपहतपाम्या अनन्तांश्चिययश्रुते य एवं वेद थश्चैव विद्वान एवमेता वेदानां मातरम् सावित्री संपदमुपनिषमुपास्ते ।।
-गोपथ ब्राह्मण
जो इस तत्त्व को जानता है वह पुण्य, कीर्ति, लक्ष्मी आदि को प्राप्त करता हुआ श्रेय प्राप्त करता है और वही वेदमाता गायत्री की वास्तविक उपासना करता है।
संकीर्णता यदा पश्येद्रोगाद्वा द्विषतोऽपिया ।।
तदा जपेश गायत्रीं सर्व दोषापनुत्तमे ॥
-वृहत्पाराशर स्मृति ८- ६०
रोना, शोक, द्वेष तथा अभाव की स्थिति में गायत्री जपने से इन कष्टों से छुटकारा मिल जाता है ।।
गायत्र्या परमं नास्ति देवि चेह न पावनम् ।।
हस्तत्राण प्रदा देवी पततां नरकार्णवे ॥
-शंखस्मृति अ० १२- २५
नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़ कर बचाने वाली गायत्री के समान पवित्र करने वाली वस्तु, इस पृथ्वी पर तथा स्वर्ग में कोई नहीं है ।।
धर्मोन्नतिमधर्मस्य नाशनं जनहृछु चिम् ।।
मांगल्ये जगतो माता गायत्री कुसनात्सदा ॥
धर्म की उन्नति अधर्म का नाश, भक्तों के हृदय की पवित्रता और संसार का कल्याण गायत्री माता करें।
गायत्री जाह्नवी चोमे सर्व पाप हरे स्मृतो ।।
गायत्रीच्छन्दसां माता माता लोकस्य जाह्नवी ॥
-नारद पुराण
गायत्री और गंगा यह दोनों ही सब पापों का नाश करने वाली हैं ।। गायत्री को वेद माता और गंगा को लोकमाता कहते हैं ।।
गायत्रीयो जपेन्नित्यं स न पापेन लिप्यते ।।
-हरितास्मृति ३- ४२
गायत्रीं पावनीं जप्त्वा ज्ञात्वा याति परां गतिम् ।।
न गायत्री विहीनस्य भद्रमत्र परत्र च ॥
अर्थात्- परम पावनी गायत्री का श्रद्धापूर्वक जप करके साधक परम गति को प्राप्त करता है। गायत्री रहित का तो न इस लोक में कल्याण होता है न परलोक में ।।
गायत्री जाप्य निरतो मोक्षोपापं च विंदति
अर्थात्- गायत्री मंत्र का जप करने वाला मोक्ष को प्राप्त करता है।
परांसिद्धिमवाप्नोति गायत्री मुक्तमां पठे त् ।।
गायत्री का जप करने से परा सिद्धि प्राप्त होती है।
सुख सौभाग्य दायक महा मन्त्र
गायत्री महामन्त्र की उपासना से उत्पन्न आध्यात्मिक शक्ति से मनुष्य के लौकिक जीवन पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है और उसकी अनेकों आपत्तियों तथा कठिनाइयों का समाधान होकर सुख, समृद्धि, सौभाग्य, सफलता एवं उन्नति के अवसर प्राप्त होते हैं। उपासकों के अनुभवों से भी यह प्रत्यक्ष है और शास्त्र वचनों से भी इसकी पुष्टि होती है।
एहिकामुष्यिकं सर्व गायत्रीं जपतो भवेत् ।।
-अग्नि पुराण
अर्थात्- गायत्री जप से सभी सांसारिक कामनायें पूर्ण होती हैं ।।
य एता वेद गायत्रीं पुण्या सर्व गुणान्विताम् ।।
तत्वे न भरत श्रेष्ठ सलो के न प्राणश्यति ॥
-म०भा०भीष्म पर्व १४।१६
जो इस पवित्रा सर्वगुणसम्पन्न गायत्री के तत्त्व को जानता है, उसे इस लोक में कोई कष्ट नहीं होता ।।
यो हवा एववित् स ब्रह्मवित् पुण्यां च कीर्ति लभते ।। सुरर्भीश्च गन्धान् सोऽपहतपाम्या अनन्तांश्चिययश्रुते य एवं वेद थश्चैव विद्वान एवमेता वेदानां मातरम् सावित्री संपदमुपनिषमुपास्ते ।।
-गोपथ ब्राह्मण
जो इस तत्त्व को जानता है वह पुण्य, कीर्ति, लक्ष्मी आदि को प्राप्त करता हुआ श्रेय प्राप्त करता है और वही वेदमाता गायत्री की वास्तविक उपासना करता है।
संकीर्णता यदा पश्येद्रोगाद्वा द्विषतोऽपिया ।।
तदा जपेश गायत्रीं सर्व दोषापनुत्तमे ॥
-वृहत्पाराशर स्मृति ८- ६०
रोना, शोक, द्वेष तथा अभाव की स्थिति में गायत्री जपने से इन कष्टों से छुटकारा मिल जाता है ।।