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Books - कर्मकांड प्रदीप

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शिवाभिषेक

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माहात्म्य बोध- महाशिवरात्रि पर्व भगवान् शिव की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए प्रसिद्ध है। निश्चित रूप से उन्हें प्रसन्न करने के लिए मनुष्य को उनके अनुरूप ही बनना पड़ता है। सूत्र है- 'शिवो भूत्वा शिवं यजे' अर्थात् शिव बनकर शिव की पूजा करें, तभी उनकी कृपा प्राप्त हो सकती है। यह भाव गहराई से साधकों को हृदयङ्गम कराया जा सके तथा शिव की विशेषताओं को सही रूप से ध्यान में लाया जा सके, तो वास्तव में  साधना के आश्चर्यजनक परिणाम मिलने लगें। शिवजी के प्रति जन साधारण में बहुत आकर्षण है; किन्तु उनके सम्बन्ध में भ्रान्तियाँ भी खूब हैं, इसलिए शिव की साधना के नाम पर ही अशिव आचरण होते रहते हैं। शिवरात्रि पर्व पर सामूहिक आयोजन के माध्यम से फैली भ्रान्तियों का निवारण करते हुए शिव की गरिमा के अनुरूप उनके स्वरूप पर जन आस्थाएँ स्थापित की जा सकती हैं। ऐसा करना व्यक्तिगत पुण्य अर्जन और लोककल्याण दोनों दृष्टियों से बहुत महत्त्व रखता है।   शिव का अर्थ है- शुभ, शङ्कर का अर्थ है कल्याण करने वाला। शुभ और कल्याणकारी चिन्तन, चरित्र एवं आकांक्षाएँ बनाना ही शिव आराधना    की तैयारी अथवा शिव सान्निध्य का लाभ है। शिवलिङ्ग का अर्थ होता है- शुभ प्रतीक चिह्न- बीज। शिव की स्थापना लिङ्ग रूप में की जातीहै,फिर वही क्रमशः विकसित होता हुआ सारे जीवन को आवृत कर लेता है। शिव अपने लिए कठोर दूसरों के लिए उदार हैं। यह अध्यात्म साधकों के लिए आदर्श सूत्र है। स्वयं न्यूनतम साधनों से काम चलाते हुए ,, दूसरों को बहुमूल्य उपहार देना, स्वयं न्यूनतम में भी मस्त  रहना, शिवत्व का प्रामाणिक सूत्र है।   नशीली वस्तुएँ आदि शिव को चढ़ाने की परिपाटी है। मादक पदार्थ सेवन अकल्याणकारी हैं, किन्तु उनमें औषधीय गुण भी हैं। शिव को चढ़ाने    का अर्थ हुआ- उनके शिव- शुभ उपयोग को ही स्वीकार करना, अशुभ व्यसन रूप का त्याग करना। ऐसी अगणित प्रेरणाएँ शिव विग्रह के साथ जुड़ी हुई हैं। त्रिनेत्र विवेक से कामदहन, मस्तक पर चन्द्रमा मानसिक सन्तुलन, गङ्गा- ज्ञान प्रवाह, भूत आदि पिछड़े वर्गों को स्नेह देना आदि प्रकरण युग निर्माण साहित्य में जहाँ- तहाँ बिखरे पड़े हैं, उनका उपयोग विवेकपूर्वक प्रेरणा- प्रवाह पैदा करने में किया जा सकता है।   ॥ पूर्व व्यवस्था॥ शिवरात्रि पर्व के लिए सामूहिक आयोजन में मञ्च पर शिव जी का चित्र सजाएँ। कामदहन, गङ्गावतरण, विषपान जैसे चित्रों का उपयोग किया जा सकता है। शिव पञ्चायतन, जिसमें शिवपरिवार तथा गण भी हों, ऐसा चित्र मिल सके, तो और भी अच्छा है। पूजन सामग्री के साथ पूजन के लिए किसी प्रतिनिधि को बिठाया जाए।   ॥ पर्व पूजन क्रम॥ प्रारम्भिक यज्ञीय कर्मकाण्ड से षट्कर्म, सर्वदेव नमस्कार, स्वस्तिवाचन आदि कृत्य (पृष्ठ संख्या ८ से २७) पूरे कर लिए जाएँ। तत्पश्चात् भगवान् शिव, उनके परिवार और गणादि का आवाहन किया जाए।   ॥ शिव आवाहन॥ 
ॐ रुद्राः स * सृज्यपृथिवीं बृहज्ज्योतिः समीधिरे। तेषां भानुरजस्रऽ इच्छुक्र देवेषु रोचते॥ - ११.५४ ॐ याते रुद्र शिवा तनूः शिवा विश्वाहा भेषजी। शिवा रुतस्य भेषजी तया नो मृड जीवसे॥ ॐ श्री शिवाय नमः। आवाहयामि स्थापयामि, ध्यायामि।- १६.४९   ॥ शिव परिवार आवाहन॥ 
शिवजी का परिवार आदर्श परिवार है, सभी अपने- अपने व्यक्तित्व के धनी तथा स्वतन्त्र रूप से उपयोगी हैं। अर्धाङ्गिनी- असुरनिकन्दिनी, ज्येष्ठ पुत्र- देव सेनापति कार्तिकेय तथा कनिष्ठ पुत्र प्रथम पूज्य- गणपति हैं। शिव के आराधक को शिव परिवार जैसा श्रेष्ठ संस्कार युक्त परिवार    निर्माण के लिए तत्पर होना चाहिए। भावना करें कि पारिवारिक आदर्श का प्रवाह हमारे बीच प्रवाहित हो रहा है। 
अक्षत, पुष्प लेकर शिव परिवार का आवाहन करें। (गणेश, गौरी, आदि की प्रतिमा न होने पर पूजन सामग्री शिवलिंग पर ही समर्पित करें।) 
॥ गणेश आवाहनम्॥ 
ॐ लम्बोदर! नमस्तुभ्यं, सततं मोदकप्रिय। निर्विघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा॥ ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥ ॐ श्री गणपतये नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।   ॥ भवानी आवाहनम्॥ ॐ प्राणाय स्वाहा पानाय स्वाहा व्यानाय स्वाहा। अम्बे अम्बिकेम्बालिके न मा नयति कश्चन। ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्॥ -- २३.१८ ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्॥ ॐ श्री गौर्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।   ॥ नन्दीश्वर आवाहनम्॥ ॐ आयं गौः पृश्निरक्रमीदसदन् मातरं पुरः। पितरञ्च प्रयन्त्स्वः॥ ॐ नन्दीश्वराय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥- ३.६   ॥ स्वामी कार्तिकेय आवाहनम्॥ ॐ यदक्रन्दः प्रथमं जायमानऽ उद्यन्त् समुद्रादुत वा पुरीषात्। श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहू उपस्तुत्यं महि जातं ते अर्वन्॥ -२९.१२ ॐ श्री स्कन्दाय नमः। आवाहयामि,स्थापयामि, ध्यायामि।   ॥ गण आवाहनम्॥ ॐ भद्रो नो अग्निराहुतो भद्रारातिः, सुभग भद्रो अध्वरः। भद्राऽ उत प्रशस्तयः॥ -१५.३८ ॐ सर्वेभ्यो गणेभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।   ॥ सर्प आवाहनम्॥ ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु। ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः। ॐ सर्पेभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥- १३.६ 
अब एकादश रुद्रों एवं एकादश शक्तियों के नाम मन्त्रों से भगवान्श्रीसाम्बसदाशिव को हाथ जोड़कर नमन करें।   ॥ एकादश- रुद्र नमन॥ ॐ अघोराय नमः ॐ पशुपतये नमः ॐ शर्वाय नमः ॐ विरूपाक्षाय नमः ॐ विश्वरूपिणे नमः ॐ त्र्यम्बकाय नमः  ॐ कपर्दिने नमः  ॐ भैरवाय नमः  ॐ शूलपाणये नमः  ॐ ईशानायनमः ॐ महेश्वराय नमः ॐ एकादश रुद्रेभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।   ॥ एकादश- शक्ति नमन॥ ॐ उमायै नमः ॐ शङ्करप्रियायै नमः ॐ पार्वत्यै नमः ॐ गौर्य्यै नमः  ॐ काल्यै नमः  ॐ कालिन्द्यै नमः ॐ कोटर्यै नमः  ॐ विश्वधारिण्यै नमः  ॐ ह्रां नमः ॐ ह्रीं नमः ॐ गङ्गादेव्यै नमः  ॐ एकादश शक्तिभ्यो नमः।आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। 
अब शिव परिवार सहित सभी देव शक्तियों का पञ्चोपचार विधि से पूजन करें। 
ॐ श्री शिवपरिवारेभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि। जलं, गन्धाक्षतं, पुष्पाणि, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि।   ॥ अथ अष्टोत्तरशत शिवनाम स्मरणम्॥ विनियोगः- एक आचमनी जल लें। ॐ अस्य श्री शिवाष्टोत्तरशतनाम मन्त्रस्य नारायणऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीसदाशिवो देवता गौरी उमाशक्तिः श्रीसाम्ब सदाशिव प्रीतयेअष्टोत्तरशतनामभिः शिवस्मरणे विनियोगः। जल छोड़ दें। अब हाथ जोड़कर भगवान् श्रीसाम्बसदाशिव का ध्यान करें।   शान्ताकारं शिखरि शयनं नीलकण्ठं सुरेशम्। विश्वाधारं स्फटिक सदृशं शुभ्रवर्णं शुभाङ्गम्॥ गौरीकान्तं त्रितयनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्। वन्दे शम्भुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥   ॥ श्रीसदाशिव पूजनम्॥ अब भगवान् शिव का पूजन करने के लिये सम्बन्धित सामग्री हाथ में लें, मन्त्रोच्चार के साथ अथवा पूरा होने पर समर्पित कर दें।   ॥ ध्यानम्॥ ॐ वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं, वन्दे जगत्कारणम्। वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनाम्पतिम्॥ वन्दे सूर्यशशाङ्क वह्निनयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम् ।। वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं, वन्दे शिवं शङ्करम्॥ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, ध्यानम् समर्पयामि।   ॥ आवाहनम्॥ ॐ सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्। स भूमि * सर्वतस्पृत्वा अत्यतिष्ठद् दशाङ्गुलम्॥- ३१.१ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, आवाहयामि, स्थापयामि।   ॥ आसनम्॥ ॐ पुरुषऽ एवेद* सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम्। उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति॥ -- ३१.२ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, आसनं समर्पयामि।   ॥ पाद्यम्॥ ॐ एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः। पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥ -- ३१.३ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, पाद्यं समर्पयामि।   ॥ अर्घ्यम्॥ ॐ त्रिपादूर्ध्वऽ उदैत्पुरुषः पादोस्येहाभवत्पुनः। ततो विष्वङ् व्यक्रामत् साशनानशने अभि॥- ३१.४ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, अर्घ्यं समर्पयामि।   ॥ आचमनम्॥ ॐ ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुषः। स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद् भूमिमथो पुरः॥ -३१.५ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, आचमनीयं समर्पयामि।   ॥ स्नानम्॥ ॐ तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम्। पशूँस्ताँश्चक्रे वायव्यान् आरण्या ग्राम्याश्च ये॥ -- ३१.६ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, स्नानं समर्पयामि।   शिवलिंग अच्छी तरह से साफ कर लें। स्नान में प्रयुक्त दूध, दही, घी, मधु, शर्करा आदि को इकठ्ठा कर प्रसाद स्वरूप सबको वितरित कर दें।   
॥ पयः स्नानम् (दुग्ध) ॥ ॐ पयः पृथिव्यां पय ऽ ओषधीषुु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्। -१८.३६ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, पयःस्नानं समर्पयामि।   ॥ दधिस्नानम्॥ ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः। सुरभि नो मुखा करत्प्र णऽ आयू*षि तारिषत्॥ -२३.३२ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, दधिस्नानं समर्पयामि।   ॥ घृतस्नानम्॥ ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसां वसापावानःपिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा। दिशःप्रदिशऽ आदिशो विदिशऽ उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा॥ -६.१९ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, घृतस्नानं समर्पयामि। 
॥ मधुस्नानम्॥ ॐ मधु वाताऽ ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः। ॐ मधु नक्तमुतोषसो मधुमत् पार्थिव*रजः। मधुद्यौरस्तुनःपिता। ॐ मधुमान्नो वनस्पतिः मधुमाँ२अस्तु सूर्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः॥ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, मधुस्नानं समर्पयामि।- १३.२७   ॥ शर्करास्नानम्॥ ॐ अपा * रसमुद्वयस * सूर्ये सन्त * समाहितम्। अपा * रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णामि उत्तममुपयाम गृहीतोसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्।- ९.३ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, शर्करास्नानं समर्पयामि। 
॥ पञ्चामृतस्नानम्॥ ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्रोतसः। सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेभवत्सरित्॥ -३४.११ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः,पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि। 
॥ शुद्धोदकस्नानम्॥ ॐ शुद्धवालः सर्वशुद्धवालो मणिवालस्तऽआश्विनाः श्येतः श्येताक्षोरुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्णा यामाऽ अवलिप्ता रौद्रा नभोरूपाःपार्जन्याः॥- २४.३ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।   ॥ गन्धोदकस्नानम्॥ (हल्दी, चन्दन आदि से) ॐ अ* शुना ते अ* शुः पृच्यतां परुषा परुः। गन्धस्ते सोममवतु मदाय रसो अच्युतः।- २०.२७ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः,गन्धोदक स्नानं समर्पयामि। 
(पुनः शुद्ध जल से स्नान करायें। ॐ शुद्धवालः सर्वशुद्धवालो.... अन्य उपस्थित जन जलाभिषेक करें, इस बीच ॐ नमःशिवाय का पाठ करते रहें।) 
॥ महाभिषेकस्नानम्॥ शृङ्गी या लोटे से भगवान् शिव के ऊपर जलधार छोड़ें, महाभिषेक स्नान करायें। जब तक मन्त्र चलता रहे, जलधार बनाये रखना चाहिए। ॐ नमस्ते रुद्र मन्यवऽ उतो तऽ इषवे नमः। बाहुभ्यामुतते नमः॥१॥ या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी। तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि॥२॥ यामिषुं गिरिशन्त हस्ते बिभर्ष्यस्तवे। शिवां गिरित्र तां कुरु मा हि * सीः पुरुषं जगत्॥३॥ शिवेन वचसा त्वा गिरिशाच्छावदामसि।
यथा नः सर्वमिज्जगदयक्ष्म * सुमनाऽ असत्॥४॥ अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक्। अहीँश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योऽधराचीः परा सुव॥५॥ असौ यस्ताम्रो अरुणऽ उत बभ्रुः सुमङ्गलः। ये चैन *रुद्राऽ अभितो दिक्षु श्रिताः सहस्रशोऽवैषा*हेडऽ ईमहे॥६॥ असौ योऽवसर्पति नीलग्रीवो विलोहितः। उतैनं गोपाऽअदृश्रन्नदृश्रन्नुदहार्यः स दृष्टो मृडयाति नः॥७॥ नमोऽस्तु नीलग्रीवाय सहस्राक्षाय मीढुषे। अथो ये अस्य सत्वानोऽहं तेभ्योऽकरं नमः॥८॥ प्रमुञ्च धन्वनस् त्वमुभयोरार्त् न्योर्ज्याम्। याश्च ते हस्तऽइषवः परा ता भगवो वप॥९॥ विज्यं धनुः कपर्दिनो विशल्यो बाणवाँ२ उत। अनेशन्नस्य याऽ इषवऽआभुरस्य निषङ्गधिः॥१०॥ या ते हेतिर्मीढुष्टम हस्ते बभूव ते धनुः। तयाऽस्मान् विश्वतस् त्वमयक्ष्मया परि भुज॥११॥ परि ते धन्वनो हेतिरस्मान्वृणक्तु विश्वतः। अथो यऽ इषुधिस्तवारे अस्मन्निधेहि तम्॥१२॥ अवतत्य धनुष्ट्व * सहस्राक्ष शतेषुधे। निशीर्य शल्यानां मुखा शिवो नः सुमना भव॥१३॥ नमस्तऽ आयुधायानातताय धृष्णवे। उभाभ्यामुत ते नमो बाहुभ्यां तव धन्वने॥१४॥ मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा नऽउक्षन्तमुत मा नऽ उक्षितम्। मा नो वधीः पितरं मोत मातरं मा नः प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः॥१५॥ मा नस्तोके तनये मा नऽआयुषि मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः। मा नो वीरान् रुद्र भामिनो वधीर्हविष्मन्तः सदमित् त्वा हवामहे॥१६॥ -१६.१- १६ (पुनः शुद्ध जल से स्नान करायें। ॐ शुद्धवालः सर्वशुद्धवालो.... ))   ॥ वस्त्रम्॥ ॐ तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतऽ ऋचः सामानि जज्ञिरे। छन्दा * सि जज्ञिरे तस्माद् यजुस्तस्मादजायत॥ -३१.७ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, वस्त्रं समर्पयामि।   ॥ यज्ञोपवीतम्॥ ॐ तस्मादश्वा ऽ अजायन्त ये के चोभयादतः। गावो ह जज्ञिरे तस्मात् तस्माज्जाता ऽ अजावयः॥ -- ३१.८ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि।   ॥ गन्धम्॥ ॐ तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः। तेन देवाऽअयजन्त साध्या ऽ ऋषयश्च ये॥- ३१.९ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, गन्धं विलेपयामि।   ॥ भस्मम्॥ ॐ प्रसद्य भस्मना योनिमपश्च पृथिवीमग्ने। स * सृज्य मातृभिष्ट्वं ज्योतिष्मान् पुनरासदः॥ -१२.३८ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, भस्मम् विलेपयामि।   ॥ अक्षतान्॥ ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रियाऽ अधूषत। अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजान्विन्द्र ते हरी॥ -३.५१ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, अक्षतान् समर्पयामि। 
॥ पुष्पाणि॥ ॐ यत् पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन्। मुखं किमस्यासीत्किं बाहू किमूरू पादा उच्येते॥ -३१.१० ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, पुष्पाणि समर्पयामि। 
॥ बिल्वपत्रार्पणम्॥ ॐ त्रिदलं त्रिगुणाकारं, त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपाप संहारं, बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥ दर्शनं बिल्वपत्रस्य, स्पर्शनं पापनाशनम्। अघोरपाप संहारं, बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, बिल्वपत्रं समर्पयामि। 
ध्यान के बाद भगवान् शिव के आगे लिखे १०८ नामों से शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ायें अथवा पुष्पाक्षत आदि से भगवान् शिव का पूजन करें, नमन करें। (कोई बिल्वपत्र चढ़ाना चाहें तो प्रत्येक नाम के साथ समर्पित करते चलें।) 
१. ॐ शिवाय नमः, २. ॐ महेश्वराय नमः, ३. ॐ शम्भवे नमः, ४. ॐ पिनाकिने नमः, ५. ॐ शशिशेखराय नमः, ६. ॐ वामदेवाय नमः, ७. ॐ विरूपाक्षाय नमः, ८. ॐ कपर्दिने नमः, ९. ॐ नीललोहिताय नमः, १०. ॐ शङ्कराय नमः, ११. ॐ शूलपाणिने नमः, १२. ॐ खट्वाङ्गिने नमः, १३. ॐ विष्णुवल्लभाय नमः, १४. ॐ शिपिविष्टाय नमः, १५. ॐ अम्बिकानाथाय नमः, १६. ॐ श्री कण्ठाय नमः, १७. ॐ भक्तवत्सलाय नमः, १८. ॐ भवाय नमः, १९. ॐ शर्वाय नमः, २०. ॐ त्रिलोकेशाय नमः, २१. ॐ शितिकण्ठाय नमः, २२. ॐ शिवाप्रियाय नमः, २३. ॐ उग्राय नमः, २४. ॐ कपालिने नमः, २५. ॐ कामारये नमः, २६. ॐ अन्धकासुर सूदनाय नमः, २७. ॐ गङ्गाधराय नमः, २८. ॐ ललाटाक्षाय नमः, २९. ॐ कालकालाय नमः, ३०. ॐ कृपानिधये नमः, ३१. ॐ भीमाय नमः  ३२. ॐ परशुहस्ताय नमः, ३३. ॐ मृगपाणये नमः, ३४. ॐ जटाधराय नमः, ३५. ॐ कैलासवासिने नमः, ३६. ॐ कवचिने नमः, ३७. ॐ कठोराय नमः, ३८. ॐ त्रिपुरान्तकाय नमः, ३९. ॐ वृषाङ्काय नमः, ४०. ॐ वृषभारूढाय नमः, ४१. ॐ भस्मोद् धूलितविग्रहाय नमः, ४२. ॐ सामप्रियाय नमः, ४३. ॐ स्वरमयाय नमः, ४४. ॐ त्रयीमूर्तये नमः, ४५. ॐ अनीश्वराय नमः, ४६. ॐ सर्वज्ञाय नमः, ४७. ॐ परमात्मने नमः, ४८. ॐ सोमलोचनाय नमः, ४९. ॐ सूर्यलोचनाय नमः, ५०. ॐ अग्निलोचनाय नमः, ५१. ॐ हविर्यज्ञमयाय नमः, ५२. ॐ सोमाय नमः, ५३. ॐ पञ्चवक्त्राय नमः, ५४. ॐ सदाशिवाय नमः, ५५. ॐ विश्वेश्वराय नमः, ५६. ॐ वीरभद्राय नमः, ५७. ॐ गणनाथाय नमः, ५८. ॐ प्रजापतये नमः, ५९. ॐ हिरण्यरेतसे नमः, ६०. ॐ दुर्धर्षाय नमः, ६१. ॐ गिरीशाय नमः, ६२. ॐ गिरिशाय नमः, ६३. ॐ अनघाय नमः, ६४. ॐ भुजङ्गभूषणाय नमः, ६५. ॐ भर्गाय नमः, ६६. ॐ गिरिधन्विने नमः, ६७. ॐ गिरिप्रियाय नमः, ६८. ॐ कृत्तिवाससे नमः, ६९. ॐ पुरारातये नमः, ७०. ॐ भगवते नमः, ७१. ॐ प्रमथाधिपाय नमः, ७२. ॐ मृत्युञ्जयाय नमः, ७३. ॐ सूक्ष्मतनवे नमः, ७४. ॐ जगद्व्यापिने नमः, ७५. ॐ जगद्गुरवे नमः, ७६. ॐ व्योमकेशाय नमः, ७७. ॐ महासेन जनकाय नमः, ७८.ॐ चारुविक्रमाय नमः, ७९. ॐ रुद्राय नमः, ८०. ॐ भूतपतये नमः, ८१. ॐ स्थाणवे नमः, ८२. ॐ अहिर्बुध्न्याय नमः, ८३. ॐ दिगम्बराय नमः, ८४. ॐ अष्टमूर्तये नमः, ८५. ॐ अनेकात्मने नमः, ८६. ॐ सात्त्विकाय नमः, ८७. ॐ शुद्धविग्रहाय नमः, ८८. ॐ शाश्वताय नमः, ८९. ॐ खण्डपरशवे नमः, ९०. ॐ अजपाश विमोचकाय नमः, ९१. ॐ मृडाय नमः, ९२. ॐ पशुपतये नमः, ९३. ॐ देवाय नमः, ९४. ॐ महादेवाय नमः, ९५. ॐ अव्ययाय नमः, ९६. ॐ प्रभवे नमः, ९७. ॐ पूषदन्तभिदे नमः, ९८. ॐ अव्यग्राय नमः, ९९. ॐ दक्षाध्वर हराय नमः,  १००. ॐ हराय नमः, १०१. ॐ भगनेत्रभिदे नमः, १०२. ॐ अव्यक्ताय नमः, १०३. ॐ सहस्राक्षाय नमः, १०४. ॐ सहस्रपदे नमः, १०५. ॐ अपवर्गप्रदाय नमः, १०६. ॐ अनन्ताय नमः, १०७. ॐ तारकाय नमः, १०८. ॐ परमेश्वराय नमः। 
॥ दूर्वाङ्कुरम् ॥ ॐ काण्डात् काण्डात् प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि। एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्रेण शतेन च॥ -१३.२० ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, दूर्वांकुरम् समर्पयामि। 
यदि पूजन में शमी पत्र, भाँग, धतूरा- मदार, इत्र आदि चढ़ाना हो तो दूर्वांकुरम् के पश्चात् त्र्यम्बकम् यजामहे .... मन्त्र बोलकर समर्पित कर दें। ॥ सौभाग्य द्रव्याणि॥ (कुमकुम, अबीर, गुलाल) 
ॐ अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः। हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमा * सं परि पातु विश्वतः॥- २९.५१ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, सौभाग्य द्रव्याणि समर्पयामि।   ॥ धूपम्॥ ॐ ब्राह्मणोस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः। ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्या * शूद्रोअजायत॥- ३१.११ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, धूपं आघ्रापयामि।   ॥ दीपम्॥ 
ॐ चन्द्रमा मनसो जातः चक्षोः सूर्यो अजायत। श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत॥- ३१.१२ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, दीपं दर्शयामि।   ॥ नैवेद्यम्॥ 
ॐ नाभ्याऽ आसीदन्तरिक्ष * शीर्ष्णो द्यौः समवर्त्तत। पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात् तथा लोकाँ२ अकल्पयन्॥ -३१.१३ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, नैवेद्यं निवेदयामि।   ॥ ऋतुफलम्॥ ॐ याः फलिनीर्याऽ अफलाऽ अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व * हसः॥ -१२.८९ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, ऋतुफलं समर्पयामि।   ॥ ताम्बूलपूगीफलानि॥ ॐ यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत। वसन्तोस्यासीदाज्यं ग्रीष्म ऽ इध्मः शरद्धविः॥- ३१.१४ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, ताम्बूलपूगीफलानि समर्पयामि।  ॥ दक्षिणा॥ ॐ सप्तास्यासन् परिधयः त्रिः सप्त समिधः कृताः। प्त समिधः कृताः। देवा यद्यज्ञं तन्वानाऽ अबध्नन् पुरुषं पशुम्॥- ३१.१५ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, दक्षिणां समर्पयामि। 
।। अशिव त्याग सङ्कल्प।। 
अशुभ तत्त्वों का भी शुभ योग सम्भव है। कुछ ओषधियों में मादकता और विषैलापन भी होता है, उसे व्यसन न बनने दें। ओषधियों के प्रयोग        तक उनकी छूट है। व्यसन बन गये हों, तो उन्हें छोड़ें, शिवजी को चढ़ाएँ। सङ्कल्प करें कि इनका अशिव उपयोग नहीं करेंगे। मन्त्र के साथ अशिव पदार्थ छुड़वाए जाएँ, बाद में इन्हें जमीन में गाड़ दिया जाए- 
ॐ अमङ्गलानां शमनं, शमनं दुष्कृतस्य च। दुःस्वप्ननाशनं धन्यं, प्रपद्येऽहं शिवं शुभम्॥ तत्पश्चात् अशिव त्याग का सङ्कल्प करें। ...............नामाऽहं शिवरात्रिपर्वणि  भगवतः शिवप्रीतये तत्सन्निधौ अशिव- चिन्तन त्यागानां   निष्ठापूर्वकं सङ्कल्पमहं करिष्ये। तत्प्रतीकरूपेण.....दोषं त्यक्तुं सङ्कल्पयिष्ये। सङ्कल्प के अक्षत- पुष्प सभी लोग पुष्पाञ्जलि के रूप में पंक्ति बनाकर भगवान् को चढ़ाएँ। बाद में यज्ञ अथवा दीपयज्ञ करके क्रम समाप्त किया जाए। 
॥ मन्त्र- पुष्पाञ्जलिः॥ 
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्। ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥- ३१.१६ ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे। स मे कामान् कामकामाय मह्यम्। कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु। कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः। -तै०आ० १.३१ ॐ भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः, मन्त्र पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि। दोनों हाथ जोड़कर नमन करें। ॐनमोऽस्त्वनन्तायसहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे। सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटी युगधारिणे नमः॥ 
यदि कालसर्प योग दोष निवारण हेतु पूजन किया गया है, तो मंत्र पुष्पाञ्जलि के बाद अग्नि स्थापन कर यज्ञीय प्रक्रिया जोड़ें। गायत्री मंत्रकी११ एवं महामृत्युञ्जय मन्त्र की २७ आहुतियाँ प्रदान करें। पूर्णाहुति कर आरती सम्पन्न करें।   ॥ आरती॥ 
ॐ यं ब्रह्मवेदान्तविदो वदन्ति, परं प्रधानं पुरुषं तथान्ये। विश्वोद्गतेः कारणमीश्वरं वा, तस्मै नमोविघ्नविनाशनाय॥ ॐ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्र मरुतः, स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवैः, वेदैः सांगपदक्रमोपनिषदैः, गायन्ति यं सामगाः। ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा, पश्यन्ति यं योगिनो, यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणाः, देवाय तस्मै नमः॥ कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा वसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामि॥ त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव- देव॥  (सभी लोग व्यक्तिगत या सामूहिक आरती लें।)   ॥ क्षमा- प्रार्थना॥ ॐ आवाहनं न जानामि, नैव जानामि पूजनम्। विसर्जनं न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर!॥ १॥ मन्त्रहीनं क्रियाहीनं, भक्तिहीनं सुरेश्वर। यत्पूजितं मया देव! परिपूर्णं तदस्तु मे॥ २॥ अनेन कृतेन श्रीशिवाभिषेक कर्मणा, श्रीभवानी शङ्करमहारुद्रः प्रीयताम् न मम॥ ३॥ सबके कल्याण हेतु शुभकामना करें- ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात्॥१॥ श्रद्धां मेधां यशः प्रज्ञां, विद्यां पुष्टिं श्रियं बलम्। तेज आयुष्यमारोग्यं, देहि मे हव्यवाहन॥- लौगा० स्मृ० 
॥ शान्ति- अभिषिञ्चनम्॥ ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष* शान्तिः  पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः   शान्तिर्ब्रह्मशान्तिःसर्व*शान्तिः, शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥  ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः। सर्वारिष्टसुशान्तिर्भवतु।- ३६.१७ (अन्य उपस्थित जन पुष्प- बिल्वपत्रादि चढ़ायें, इस बीच पञ्चाक्षर स्तोत्र, महाकालाष्टक आदि का पाठ, शिव कीर्तन किया जाय। प्रतिष्ठित मूर्ति का विसर्जन नहीं किया जाता)। 
॥ ॐ श्रीसाम्बसदाशिवार्पणमस्तु॥ 
टिप्पणीः- प्रतिष्ठित शिवलिंग न हो तो धातु, पत्थर या मिट्टी आदि की प्रतिमा बनाकर प्राण प्रतिष्ठा हेतु स्वस्तिवाचन के पश्चात् दायें हाथ में पुष्प लेकर शिवलिंग (गणेश, पार्वती हों तो उनका भी)स्पर्श करें। 
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ*समिमं दधातु। विश्वेदेवास ऽ इह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ- २.१३ ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु, अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चायै, मामहेति च कश्चन॥- प्रति० म०पृ०३५२ पूजन की समाप्ति पर विसर्जन कर दें। 
॥ विसर्जनम्॥ ॐ यान्तु देवगणाः सर्वे, पूजामादाय मामकीम्।इष्टकाम समृद्ध्यर्थं, पुनरागमनाय च॥
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