• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • महात्मा बुद्ध - लोक कल्याण के व्रती
    • गौतम का विचार- मंथन
    • राजकीय बंधनों का त्याग
    • गृह त्याग और तपस्या
    • गौतम के समय की सामाजिक अवस्था
    • गौतम बुद्ध के सिद्धांत
    • परिवार वालों को धर्म- प्रचारक बनाना
    • परमार्थ परायण कार्यकर्ताओं का संगठन
    • स्वार्थ त्याग ही साधु का लक्षण है
    • समता के सिद्धांत पर आचरण
    • बुद्धिसंगत धर्म ही श्रेष्ठ है
    • सहकारी- जीवन की आवश्यकता
    • बुद्ध के अंतिम दिन
    • सुभद्र की कथा
    • बौद्ध धर्म की वृद्धि और ह्रास
    • पतन के कारण
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • महात्मा बुद्ध - लोक कल्याण के व्रती
    • गौतम का विचार- मंथन
    • राजकीय बंधनों का त्याग
    • गृह त्याग और तपस्या
    • गौतम के समय की सामाजिक अवस्था
    • गौतम बुद्ध के सिद्धांत
    • परिवार वालों को धर्म- प्रचारक बनाना
    • परमार्थ परायण कार्यकर्ताओं का संगठन
    • स्वार्थ त्याग ही साधु का लक्षण है
    • समता के सिद्धांत पर आचरण
    • बुद्धिसंगत धर्म ही श्रेष्ठ है
    • सहकारी- जीवन की आवश्यकता
    • बुद्ध के अंतिम दिन
    • सुभद्र की कथा
    • बौद्ध धर्म की वृद्धि और ह्रास
    • पतन के कारण
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - महात्मा गौत्तम बुद्ध

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


गौतम के समय की सामाजिक अवस्था

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 4 6 Last
महात्मा गौतम बुद्ध के समय भारतीय समाज की दशा बडी़ शोचनीय हो गई थी और बहुसंख्यक जनता हीन श्रेणी का जीवन व्यतीत कर रही थी। समाज के अगुआ और पुज्य माने जाने वाले ब्राह्मण, जिन्होंने किसी समय में अपनी त्याग और तपस्या के बल पर इस देश में रहने वालों को ही नहीं, संसार के अनेक देशों को कर्तव्य परायणता, परोपकार, सेवा- धर्म, अनासक्ति आदि सद्गुणों की शिक्षा दी थी और जन- समुदाय को बुराईयाँ त्यागकर सच्चा धार्मिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी थी, वे ही अब तुच्छ स्वार्थ के वशीभूत होकर केवल खाने- कमाने में तल्लीन हो गए थे। अपने स्वार्थ- साधन के लिए उन्होंने यज्ञीय कर्मकांडों को बहुत बढा़ दिया था और उनमें अधिकाधिक पशुओं की हिंसा  कराके विभत्सता का वातावरण उत्पन्न कर दिया था, वे अपनी पुरानी पदवी के कारण समाज पर अनुचित दबाव डालकर समाज में असमानता और अव्यवस्था की वृद्धि कर रहे थे, जिसके फल से समस्त देश का पतन होने लगा था। इस प्रकार समाज की प्रगति के लिए किसी प्रकार का उपयोगी कार्य न करते हुए भी, केवल ढोंग और जनता के अज्ञान के आधार पर वे अपना स्वार्थ- साधन कर रहे थे। जब समाज के अगुआओं की यह दशा थी तो अन्य लोगों से अपने धर्म- कर्तव्यों के उचित रूप में पालन करने की आशा कैसे की जा सकती थी?
 
इसका परिणाम यह हुआ था कि- "यज्ञ" जैसे महान् आध्यात्मिक और त्यागमूलक धर्म- कार्य ने एक व्यवसाय का रूप धारण कर लिया था। उससे लाभ उठाने वाला ब्राह्मण तरह- तरह से राजाओं और बडे़ लोगों कोबहकाकर, उनमें प्रतियोगिता की भावना उत्पन्न करके, बडे़- बडे यज्ञोत्सवों का आयोजन कराते थे और उसमें गरीब प्रजा के पसीने की कमाई का लाखों रुपया बर्बाद करा देते थे। सबसे बुरी बात यह थी कि उन्होंने बलिदान की प्रथा को इतना अधिक बढा़ दिया था कि ये 'यज्ञ उत्सव' धर्म- भावना की वृद्धि के बजाय एक प्रकार के कसाईखाने बन गए थे। एक- एक यज्ञ में जब चार- पाँच सौ बकरे- भेडों़ को खुलेआम काटा जाता होगा, तब वहाँ कैसा नर्क के समान दृश्य उपस्थित हो जाता होगा और उसका उपस्थित जनसमूह पर कैसा हानिकारक प्रभाव पड़ता होगा? इसकी कल्पना सहज में ही की जा सकती है।

धर्म के पतन तथा भ्रष्टता के साथ ही इसका एक दुष्परिणाम यह भी हुआ था कि समाज के निम्न वर्ग शूद्र औरकृषिकार्य करने वाले लोगों का जीवन- निर्वाह कठिन होता जाता था। यज्ञों का खर्च बहुत बढ़ गया था और उनके प्रदर्शन तथा निरर्थक रूढि़यों की पूर्ति के लिए लाखों लोगों का समय तथा सामग्री को नष्ट किया जाता था। इस सबका भार निम्न वर्ग पर ही पड़ता था। ब्राह्मणों के दंभ और राजाओं के शस्त्रबल के भय से उनको सब प्रकार के अन्याय सहन करके भी 'यज्ञों' के व्यर्थ पर महँगे उत्सवों की पूर्ति करनी पड़ती थी, चाहे इसके कारण उनको तथा उनके बच्चों को आधा पेट खाकर ही क्यों न गुजर करनी पड़ती हो, इससे उन लोगों में एक असंतोष तथा विद्रोह की भावना भी उत्पन्न हो रही थी, यद्यपि किसी उचित अवसर के अभाव से वह अभी अप्रकट ही था।

समाज की इसी संकटपूर्ण और गिरती हुई दशा ने गौतम और उनके जैसे मनस्वी कुछ अन्य व्यक्तियों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया था। देश में जगह- जगह इसका विरोध करने वाले कुछ व्यक्ति और छोटे- छोटे समुदाय उत्पन्न हो रहे थे। यद्यपि तात्कालीन सामाजिक व्यवस्था के कारण ऐसे लोग साधु, संन्यासी, तपस्वियों के रूप में रहते थे, पर वास्तव में वे उस समय के आंदोलनकारी ही थे। उनकी मान्यता थी कि कोरेकर्मकांड और यज्ञादि से किसी मनुष्य की आत्मोन्नति नहीं हो सकती और जब तक मनुष्य की आत्मा जाग्रत् नहीं होती, वह आत्मतत्व को समझकर सब प्राणियों में एक ही 'परमात्मा' के दर्शन नहीं करने लगता, तब तक वह मुक्ति का अधिकारी नहीं बन सकता। ये लोग अपने सिद्धांत का प्रचार भी करते थे, पर ब्राह्मणों के प्रभाव के सामने उनके प्रयत्नों का कोई परिणाम नहीं होता था। पर जब गौतम जैसे उच्च श्रेणी के और लोक कल्याण के व्रतधारी इस मार्ग पर आगे बढे़ और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रोणोत्सर्ग के लिए उद्यत हो गए तो फिर उन्होंने समाज का नक्शा ही बदल दिया।
 
First 4 6 Last


Other Version of this book



महात्मा गौत्तम बुद्ध
Type: TEXT
Language: HINDI
...

महात्मा गौतम बुद्ध
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युग सृजन का आरम्भ परिवार निर्माण से
Type: TEXT
Language: HINDI
...

वाल्मीकि रामायण से प्रगतिशील प्रेरणा
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

Real Joy of Entertainment -
Type: SCAN
Language: EN
...

Real Joy of Entertainment -
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

मनस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले
Type: SCAN
Language: EN
...

मनस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले
Type: SCAN
Language: EN
...

मनस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले
Type: SCAN
Language: EN
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • महात्मा बुद्ध - लोक कल्याण के व्रती
  • गौतम का विचार- मंथन
  • राजकीय बंधनों का त्याग
  • गृह त्याग और तपस्या
  • गौतम के समय की सामाजिक अवस्था
  • गौतम बुद्ध के सिद्धांत
  • परिवार वालों को धर्म- प्रचारक बनाना
  • परमार्थ परायण कार्यकर्ताओं का संगठन
  • स्वार्थ त्याग ही साधु का लक्षण है
  • समता के सिद्धांत पर आचरण
  • बुद्धिसंगत धर्म ही श्रेष्ठ है
  • सहकारी- जीवन की आवश्यकता
  • बुद्ध के अंतिम दिन
  • सुभद्र की कथा
  • बौद्ध धर्म की वृद्धि और ह्रास
  • पतन के कारण
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj