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Books - पुरुषार्थ—मनुष्य की सर्वोपरि सामर्थ्य

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


भाग्यवाद के नाम पर पनपती विकृतियां

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प्राचीनकाल में ज्योतिष का सीधा सम्बन्ध नक्षत्र विद्या से था। सुदूर स्थित ग्रह नक्षत्रों का ज्ञान, उनकी गति गणना और स्थिति का वैज्ञानिक अनुसंधान अपने देश में उस समय चरम सीमा पर पहुंचा हुआ था जबकि पृथ्वी के कई क्षेत्रों के लोग नदी, स्रोतों और झरनों के किनारे बैठकर जानवरों की तरह पानी पिया करते थे। जब तक ज्योतिष विशुद्ध विज्ञान का विषय रहा तब तक इस दिशा में काफी प्रगति होती रही और लोगों में कर्म, परिश्रम तथा पुरुषार्थ के प्रति आस्था भी बनी रही। पर न जाने किस काल में यह मान्यता चल पड़ी कि लाखों मील दूर पर स्थित तारे और नक्षत्र एक-एक व्यक्ति के निजी जीवन पर अपना विशिष्ट प्रभाव डालते हैं।
फलित-ज्योतिष, हस्तरेखा, अंक विज्ञान, आकृति विज्ञान न जाने कितनी विद्यायें चल पड़ीं जिनके माध्यम से मनुष्य अनागत को जानने की चेष्टा करने लगा। कहा जाता है कि इन विद्याओं से भविष्य को जानकर व्यक्ति संभावित विपत्तियों से बच सकता है। इस मान्यता की संगति भारतीय संस्कृति के प्राण-कर्मफल के सिद्धान्त से कहां मेल खाती है? प्रत्येक भारतीय धर्मानुयायी यह जानता और मानता है कि हम जो कर्म कर चुके हैं उनका ही फल आज भोग रहे हैं और जो आज कर रहे हैं उनके सत्परिणाम या दुष्परिणाम कल भोगने पड़ेंगे तो भविष्य की सम्भावित घटनायें जानकर व्यक्ति उनसे कहां तब बच सकता है। पहली बात तो यह कि उन घटनाओं को जाना ही नहीं जा सकता और जान भी लिया जाय तो उनके परिणामों से बच पाना असंभव है फिर उन्हें जानने से क्या लाभ?

लाभ तो कुछ नहीं होता। हां हानि की ही अधिक सम्भावना रहती है। एक व्यक्ति को यदि पता चल जाये कि वह कल मरने वाला है तो वह आज से ही मरने के समान हो जायेगा। वह कल मरे या न मरे पर आज उसका खाना-पीना छूट जायेगा, नींद खो जायेगी, बेचैनी, चिन्ता, उद्वेग और शोक की काली छायाएं उसे घेर डालेंगी। और भले ही वह कल मरने वाला न हो पर यदि उसे भविष्य वक्ता पर पूरा विश्वास है तो वह कल की अपेक्षा आज ही मर सकता है और कल तो उसकी मृत्यु जो नहीं आनी हो—वह भी निश्चित हो जाती है।

इस तथ्य को किसी कहानीकार ने एक कथा के माध्यम से बड़े सुन्दर ढंग से समझाया है। कहा जाता है कि सृष्टि के निर्माण होने के बाद विधाता ने प्रत्येक मनुष्य को जन्म लेने पर उसका भविष्य सुना देने का नियम बनाया था। उस नियम का बराबर पालन भी किया जाता। एक बार किसी कुकर्मी व्यक्ति ने पुनर्जन्म लिया पिछले जन्म के पापों का दुष्परिणाम उसे इस जन्म में भोगना था अतः उसका भाग्य बड़े ही भयंकर ढंग से लिखा गया। 60 वर्ष की आयु तक उसकी किस्मत में तमाम कठिनाईयां और विपत्तियां लिखी गई थीं। फिर उसे एक ऐसे भयंकर रोग से ग्रस्त होना बताया गया कि उसके सारे शरीर में कीड़े पड़ जायें। चालीस वर्ष तक रोग की इन यातनाओं को सहते हुए उसके भाग्य में सौ वर्ष की आयु पार करने के बाद मृत्यु लिखी गयी।

यह भविष्य उस व्यक्ति के जन्म लेते ही नियमानुसार सुनाया गया। एक-एक विपत्ति का वर्णन सुनकर वह व्यथित होता गया और अन्त में जाकर वह इतना चिंतित तथा उद्विग्न हो उठा कि सौ वर्ष की उम्र जीना तो दूर रहा वह तत्क्षण ही भय के कारण मर गया। यह एक रूपक की तरह है जिसे पढ़कर समझना चाहिए कि दूरदर्शी और करुणामय परमात्मा यदि कर्मफल दृष्टि से किसी का भाग्य निश्चित करता भी हो तो उसे जानने के कोई सूत्र नहीं छोड़ता। यदि इस प्रकार के सूत्र छोड़े जाते तो मनुष्य अपना सारा भविष्य पहले से ही जान लेता और यदि भाग्य में सुख सुविधायें लिखी हैं तो पहले से ही निश्चिन्त होकर बैठा जाता। क्योंकि करने से तो कुछ होना ही नहीं है नियति ने पहले से ही सब कुछ निश्चित कर रखा है। फिर कुछ करने कराने से क्या अन्तर पड़ता है। और यदि भाग्य कष्ट विपत्तियां ही हैं तो क्यों न पहले से ही आत्म-हत्या कर उनसे छुटकारा पा ले।

कर्मफल के इन सामान्य सिद्धान्तों से परिचित होने के बावजूद भी शिक्षित अशिक्षित लोगों को अपना भाग्य जानने के लिये इधर-उधर भटकते हुए देखा जा सकता है। लोगों में अपना भविष्य जानने की इतनी उत्सुकता है कि ज्योतिष आज कल एक लाभदायक व्यवसाय के रूप में विकसित है। ज्योतिषी, हस्तरेखा विद्, आकृति विज्ञानी, रमलविद्, आदि भविष्य वक्ता भोली जनता को भाग्य सितारों की चाल बताकर दोनों हाथों से अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। यही नहीं तथाकथित प्रगतिशील अखबारों और पत्र पत्रिकाओं में भी दैनिक, साप्ताहिक, मासिक तथा वार्षिक राशिफल छपते रहते हैं। कई लोग तो राशिफल देखने के लिए ही अखबार खरीदते हैं। समझ में नहीं आता कि अपनी प्रगतिशीलता का ढिंढोरा पीटने वाले अखबार भी इस अवसर वादिता से लाभ उठाने में क्यों संकोच नहीं करते?

अखबारों और पत्र पत्रिकाओं की भविष्यवाणियों में स्पष्ट रूप से अन्तर देखा जा सकता है। यह मान भी लिया जाय कि नक्षत्र और फलित ज्योतिष विद्या सही भी है और उसका प्रभाव भी होता है तो एक एक व्यक्ति के लिए निश्चित भविष्य रहना चाहिए और फलित ज्योतिष के गणित से सभी ज्योतिषियों को समान निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए। जैसे दो और दो चार होते हैं भविष्य विद्या की सत्यता भी इतनी ही निश्चित रहनी चाहिए। दो और दो का जोड़ कोई भी लगाये योगफल चार ही आता है उसी प्रकार भविष्य जानने के लिए लगाया गया हिसाब भी निश्चित परिणाम देने वाला रहे। परन्तु ऐसा नहीं होता। एक राशि का भविष्यफल किसी अखबार में कुछ छपा है और किसी में कुछ और। कोई अखबार वृश्चिक राशि के लिए यह सप्ताह शुभ तथा मंगलकारी बताता है तो कोई अखबार अशुभ और खतरों से सतर्क रहने का निर्णय देता है। हालांकि ये भविष्यवाणियां कभी सच सिद्ध नहीं होतीं फिर भी लोग प्रति सप्ताह या प्रतिदिन इन भविष्य फलों के पृष्ठ बड़ी बेताबी से उलटते तथा पढ़ते हैं। यह कहां तक सच सिद्ध हो सकता है कि संसार में केवल 12 प्रकार की घटनायें या परिस्थितियां ही होती हैं, जिनमें मेष, वृषभ आदि राशियों के लोगों को जीना पड़ता है जबकि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी निजी परिस्थितियां और घटनायें अलग-अलग होती हों।

इस साधारण सी बात पर कोई ध्यान न देते हुए अपना भविष्य जानने के लिए सड़कों पर बैठ कर दस या पच्चीस पैसे में भाग्य देखने वाले लोगों से लेकर एयरकन्डीशन होटलों में ठहरने वाले ज्योतिषियों तक के चक्कर काटते रहते हैं। सच तो यह है कि ज्योतिष आज विशुद्ध व्यवसाय बन गया है और इस अव्यवसाय में लगे लोग अपने फन में ऐसे माहिर होते हैं कि आस-पास जैसे ही ग्राहक मण्डराता दिखाई दे वे तुरन्त उसे फांस लेते हैं। लोग भी इतने आंख से अंधे होते हैं कि छोटे-छोटे कार्यों से लेकर बड़े अभियानों तक के ढुंढ़वाने के लिए ज्योतिषियों के आस-पास चक्कर काटते रहते हैं। शादी का मुहूर्त निकलवाना हो, या बच्चे को स्कूल में भर्ती करवाना हो, नया घर बनवाना हो अथवा किसी यात्रा पर निकलना हो—बिना ज्योतिषी से पूछे कोई काम करवाने की हिम्मत नहीं पड़ती।

साधारण पढ़े-लिखे या अशिक्षित लोग ही इस तरह की रीति-नीति अपनाते हों, ऐसी बात भी नहीं है। शिक्षित और प्रबुद्ध आधुनिकतावादी भी ऐसे अन्धविश्वासी व्यक्तियों की कमी नहीं है। फिर भी प्रायः साधारण मध्य वर्ग के लोगों को ज्योतिषियों के चक्कर  में फंसते अधिक देखा जाता है, इसका कारण है गरीब आदमी कम से कम मध्यमवर्ग की सी सुविधाओं वाला जीवन जीने की आशा करता है और मध्यम वर्ग का व्यक्ति धनवान व्यक्ति की तरह जीना चाहता है। गरीब व्यक्ति तो फिर भी किसी तरह संतोष करता रहता है पर मध्यमवर्ग में धनवान बनने की उत्कण्ठा इस कदर व्याप्त रहती है कि वह बिना परिश्रम और पुरुषार्थ किये ही धनवान बनने की आकांक्षा करने लगता है, और इसी आकांक्षा की सम्भावना को जानने के लिए ज्योतिषियों के चक्कर में फंसता जाता है।

जिस प्रकार सभी क्षेत्रों में नये प्रयोग हो रहे हैं और नयी पद्धतियां चल पड़ी हैं उसी प्रकार है ज्योतिष के क्षेत्र में भी अंक विज्ञान की नई धारा लोकप्रिय होने लगी है। अंक विज्ञानी प्रत्येक अंक की अलग-अलग संख्या निर्धारित रखता है जैसे क की 1 तो ख की 2। अब प्रश्नकर्ता के नाम से या प्रश्न के अक्षरों के हिसाब लगा कर उसका मूल्य निकालता है फिर उसके अनुसार भविष्यवाणी करता है। कहना नहीं होगा कि अंकों की विशेषताएं पहले से ही निर्धारित रहती हैं और उन्हीं के अनुसार भविष्य बताया जाता है।

अंकों की निर्धारित विशेषताओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता वे केवल कल्पना द्वारा ही निर्धारित किये जाते हैं। अतः उनकी प्रामाणिकता और सत्यता का कोई आधार नहीं बताया जा सकता है। नयी पद्धतियों की तरह भविष्यवाणियों का यह नया ढंग भी आजकल आधुनिक लोगों को काफी लोकप्रिय हो रहा है।

फलित ज्योतिष के पक्षपातियों का कहना है कि यह एक विशुद्ध विज्ञान है और पश्चिम में भी बड़ा लोकप्रिय है वस्तुतः यह तर्क फलित ज्योतिष की प्रामाणिकता को सिद्ध नहीं करता वरन् हमारी मानसिक दासता का ही परिचय देता है। बहुत से विषयों में हम पश्चिमी धारणाओं का हवाला देकर यह बताने की कोशिश करते हैं कि हम गलत नहीं हैं। हम गलत हैं या नहीं है यह इससे भले ही सिद्ध नहीं होता पर अवश्य सिद्ध हो जाता है कि हम तीस साल बीत जाने के बाद भी मानसिक दृष्टि से पश्चिम के ही अनुयायी है।

निस्सन्देह पश्चिम ने विज्ञान के क्षेत्र में आशातीत प्रगति की है पर इसका तात्पर्य यह नहीं है कि वहां जो कुछ भी प्रचलित है वह सब सत्य है। विज्ञान के क्षेत्र में पश्चिम के लोग आगे हैं पर अन्धविश्वास के क्षेत्र में भी वे हमसे पीछे नहीं हैं, बहुत आगे हैं। वहां ऐसे-ऐसे अन्धविश्वास प्रचलित हैं जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। जैसे कहा जाता है कि पश्चिमी देशों में अधिकांश लोग तेरह का अंक अशुभ मानते हैं। वहां के कई होटलों में इस नम्बर का कमरा ही नहीं रखा जाता। ग्यारह, बारह के बाद सीधे चौदह की संख्या आ जाती है तो फलित ज्योतिष को लेकर भी वहां इसी तरह के अन्धविश्वास चलते हैं तो इसमें क्या आश्चर्य। यह जरूर आश्चर्य की बात है कि हम लोग उनके सन्दर्भ देकर अपने को सही प्रमाणित करने की चेष्टा करते हैं।

ज्योतिष विद्या के अन्तर्गत प्रायः अज्ञात अंकों और कल्पित शक्तियों का आधार लेकर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। एक आकृति विज्ञान और हस्तरेखा विद्या ही ऐसी पद्धतियां हैं जो शरीर को आधार बनाकर चलती हैं। हस्तरेखाओं को विधाता की लिपि समझा जाता है और एक मर्मज्ञ कहा जाने वाला हस्तरेखा शास्त्री जो कह देता है उसे अटल सत्य के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। सब लोगों की रेखायें भी भिन्न भिन्न होती हैं। इसलिये उनसे अलग अलग परिणामों के भी निष्कर्ष निकाले जाते हैं तो कहा जा सकता है कि भविष्य ज्ञान के लिए हस्तरेखाएं तो प्रमाणित आधार हैं।

यहां हस्तरेखा के सम्बन्ध में कुछ बातें जान लेनी चाहिए। हस्तरेखाएं सभी व्यक्तियों की अलग-अलग होती हैं और किसी की एक दूसरे से नहीं मिलती यह तो ठीक है परन्तु यह कोई भविष्य ज्ञान का स्रोत नहीं है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हस्तरेखाएं मनुष्य के मनोभावों और प्रवृत्तियों का संकेत देती हैं, न कि उसके भविष्य का। तीव्र संकल्प शक्ति द्वारा उन्हें कभी भी बदला जा सकता है और वैसे भी सात वर्ष में हस्तरेखाएं अपने आप बदल जाती हैं, क्योंकि तब व्यक्ति कि रुचियां और प्रवृत्तियां काफी कुछ बदल जाती हैं। तो हस्तरेखाओं के आधार पर भविष्य का सुनिश्चित ज्ञान कैसे सम्भव हो सचाई तो यह है कि व्यक्ति का अपने जीवन के भविष्य में झांकना कठिन ही नहीं असम्भव है।

हमें अनुगृहीत होकर भाग्य के जानने के लिए इधर-उधर भटकने की अपेक्षा परिश्रम और पुरुषार्थ द्वारा अपने भाग्य का निर्माण करने में लगाना चाहिए। भाग्य को जानना असम्भव है पर उसका निर्माण किया जा सकता है। यह चेतना जब प्रत्येक व्यक्ति में जागेगी तो समाज में कर्मठता, पुरुषार्थ और लगन की भावना पैदा होगी।

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