
शिक्षा नहीं ज्ञान
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मित्रो! दूसरी चीज ज्ञान है। यह शिक्षा से संबंध नहीं रखता है। ज्ञान का मतलब विद्या से है, जिसके द्वारा मनुष्य का विकास होता है, प्रगति होती है। ज्ञान, जिसे आप शिक्षा कहते हैं, इसे हम जानकारी कहते हैं। मित्रो! आप रास्ता बदल दें, तो आप भी मालदार बन सकते हैं। अभी आपको श्रम करने का अभ्यास नहीं है, श्रम का तिरस्कार करते हैं। हमारे इस अभागे समाज ने श्रम के प्रति अवज्ञा की है। जो आदमी श्रम करता है, उसे हम धोबी, डोम आदि कहते हैं तथा उसका हम तिरस्कार करते हैं। श्रम के प्रति इस देश में जब तक अवज्ञा होती रहेगी, इसका भविष्य उज्ज्वल नहीं हो सकता। मित्रो! हम श्रमिक हैं तथा २४ घंटे श्रम करते हैं। हम श्रम का सम्मान करते हैं। हमारे विचार में ''कामचोर'', ''हरामखोर'' एक गाली है। अत: यदि आप उन्नति करना और इससे बचना चाहते हैं, तो आपको श्रम करना चाहिए तथा श्रम के प्रति सम्मान जाग्रत करना चाहिए। हमारा विचार यही है कि भारत के लोग श्रम करें एवं सुखी रहें। आज आप अपनी औलाद को देखें, वह श्रम के अभाव में शराबी, माँसाहारी तथा व्यभिचारी हो गई है। चूँकि आपने ढेर सारी संपत्ति को उसके लिए रख छोड़ा है। वह मौज-मस्ती का जीवन जीती है। इस प्रकार आपका तो सत्यानाश हो जाएगा। आपने देखा नहीं कि राजमहलों का क्या हुआ? आप श्रम का सम्मान करेंगे, तो आपका विकास होगा। आज सम्मान उन्हें मिल रहा है, जो हाथ से काम नहीं करते हैं, जैसे कि पंडित जी, पुरोहित जी। आपकी निगाह में काम न करने वालों को पंडित जी, पुरोहित जी, जागीरदार जी, बाबू जी आदि कहा जाता है। यह गलत है। इसमें सुधार की आवश्यकता है।
मित्रो! अगर आपको दौलत प्राप्त करनी है, धनवान बनना है, तो हम आपको सही तरीका बतला सकते हैं। आप श्रम की शक्ति को बढ़ाइए। इसे आप तब बढ़ा सकेंगे, जब आप श्रम का सम्मान हमारी तरह कर रहे होंगे। हाथ-पाँव से मशक्कत करके आपने पैसा कमाया है, तो आप उसका उपयोग सही ढंग से कर सकते हैं। बाप की कमाई अगर बेटा खा रहा है, तो यह अनैतिक कार्य है। यह माँस खाने के बराबर है।
प्राचीनकाल में श्राद्ध की परंपरा थी। आज भी वह किसी न किसी रूप में जीवित है। पहले जमाने में जब किसी की मृत्यु हो जाती थी, तो पंचायत बैठती थी तथा यह निर्णय लेती थी कि इनके बच्चों का काम मेहनत करने से, मशक्कत करने से चल सकता है या नहीं? अगर ये वयस्क होते थे, हाथ से कमाते थे, तो उनके पिता का सारा पैसा समाज के कल्याण के लिए लगा दिया जाता था। उसका नाम श्राद्ध था। अगर उनके पास कुछ नहीं होता तो पंचायत उन बच्चों को दे देती थी। वास्तव में वही व्यक्ति सही रूप से खरच कर सकता है, जो श्रम से कमाता है।
मित्रो! शारीरिक श्रम से ही आत्मविकास एवं भौतिक प्रगति संभव है। प्राय: लोगों को शिकायत रहती है कि शारीरिक श्रम से हम थक जाते हैं। बेटे! वही व्यक्ति थकता है, जो श्रम को बेकार समझकर करता है। खिलाड़ी को कभी थकावट नहीं आती है, क्योंकि काम करते समय उसमें उत्साह होता है। इसलिए उसे थकावट नहीं आती। कैदी थकता है, परंतु किसान नहीं थकता है। थकता वह है जो काम को पराया समझता है। हमने शारीरिक तथा मानसिक श्रम किया है। आज जो आप देख रहे हैं, वह श्रम का फल है। श्रम करने से हमारे भीतर दो गुना उत्साह पैदा हो गया है। हमारी नस-नाड़ी, मस्तिष्क, शरीर पूर्ण स्वस्थ हैं। पेंशन पाने वाले आज जल्दी थक जाते हैं, अस्वस्थ हो जाते हैं। उनकी सेहत खराब हो जाती है।
आदमी को जन्म से लेकर मृत्यु तक श्रमिक होना चाहिए। रामप्रसाद विस्मिल को फाँसी लगने वाली थी। वह बीस मिनट पहले व्यायाम कर रहे थे। लोगों ने पूछा कि आपको तो अब फाँसी लगने वाली है, यह क्या कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि हमने जीवनभर मेहनत एवं मशक्कत की है। वह अभ्यास हमें हर दिन करना है। अजगर पड़ा रहता है। आप तो खरगोश बनें तथा दौड़ते रहें। मशक्कत करने से ही लाभ होगा। उनने चटाई उठाकर एक जगह पर रख दी तथा कहा कि अगर दूसरे कैदी आवें तो वह यह न कहें कि कैसा गंदा कैदी था। सब काम पूरा करने के बाद उसने गीता को उठाया और सीने से बाँधकर यह गीत गाता हुआ चल दिया-''मेरा रंग दे वसन्ती चोला '........।'' मैं आत्मा हूँ आत्मा रहूँगा। बदल डालूँगा यह पुराना चोला। ''
मित्रो! अगर आपको दौलत प्राप्त करनी है, धनवान बनना है, तो हम आपको सही तरीका बतला सकते हैं। आप श्रम की शक्ति को बढ़ाइए। इसे आप तब बढ़ा सकेंगे, जब आप श्रम का सम्मान हमारी तरह कर रहे होंगे। हाथ-पाँव से मशक्कत करके आपने पैसा कमाया है, तो आप उसका उपयोग सही ढंग से कर सकते हैं। बाप की कमाई अगर बेटा खा रहा है, तो यह अनैतिक कार्य है। यह माँस खाने के बराबर है।
प्राचीनकाल में श्राद्ध की परंपरा थी। आज भी वह किसी न किसी रूप में जीवित है। पहले जमाने में जब किसी की मृत्यु हो जाती थी, तो पंचायत बैठती थी तथा यह निर्णय लेती थी कि इनके बच्चों का काम मेहनत करने से, मशक्कत करने से चल सकता है या नहीं? अगर ये वयस्क होते थे, हाथ से कमाते थे, तो उनके पिता का सारा पैसा समाज के कल्याण के लिए लगा दिया जाता था। उसका नाम श्राद्ध था। अगर उनके पास कुछ नहीं होता तो पंचायत उन बच्चों को दे देती थी। वास्तव में वही व्यक्ति सही रूप से खरच कर सकता है, जो श्रम से कमाता है।
मित्रो! शारीरिक श्रम से ही आत्मविकास एवं भौतिक प्रगति संभव है। प्राय: लोगों को शिकायत रहती है कि शारीरिक श्रम से हम थक जाते हैं। बेटे! वही व्यक्ति थकता है, जो श्रम को बेकार समझकर करता है। खिलाड़ी को कभी थकावट नहीं आती है, क्योंकि काम करते समय उसमें उत्साह होता है। इसलिए उसे थकावट नहीं आती। कैदी थकता है, परंतु किसान नहीं थकता है। थकता वह है जो काम को पराया समझता है। हमने शारीरिक तथा मानसिक श्रम किया है। आज जो आप देख रहे हैं, वह श्रम का फल है। श्रम करने से हमारे भीतर दो गुना उत्साह पैदा हो गया है। हमारी नस-नाड़ी, मस्तिष्क, शरीर पूर्ण स्वस्थ हैं। पेंशन पाने वाले आज जल्दी थक जाते हैं, अस्वस्थ हो जाते हैं। उनकी सेहत खराब हो जाती है।
आदमी को जन्म से लेकर मृत्यु तक श्रमिक होना चाहिए। रामप्रसाद विस्मिल को फाँसी लगने वाली थी। वह बीस मिनट पहले व्यायाम कर रहे थे। लोगों ने पूछा कि आपको तो अब फाँसी लगने वाली है, यह क्या कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि हमने जीवनभर मेहनत एवं मशक्कत की है। वह अभ्यास हमें हर दिन करना है। अजगर पड़ा रहता है। आप तो खरगोश बनें तथा दौड़ते रहें। मशक्कत करने से ही लाभ होगा। उनने चटाई उठाकर एक जगह पर रख दी तथा कहा कि अगर दूसरे कैदी आवें तो वह यह न कहें कि कैसा गंदा कैदी था। सब काम पूरा करने के बाद उसने गीता को उठाया और सीने से बाँधकर यह गीत गाता हुआ चल दिया-''मेरा रंग दे वसन्ती चोला '........।'' मैं आत्मा हूँ आत्मा रहूँगा। बदल डालूँगा यह पुराना चोला। ''