
असली अध्यात्म समझें
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मित्रो! मैं क्या कह रहा था? मनोकामना की बात, सिद्धियों की बात कह रहा था। अगर इसका नाम अध्यात्म है, गायत्री है, अनुष्ठान है, तो मैं आपसे बहुत ही नम्र शब्दों में कहना चाहूँगा कि इससे आपको कोई फायदा नहीं होने वाला है। आपको महात्मा के पास जाने से, चक्कर काटने से कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। आप दो ही देवताओं श्रम और शिक्षा की, ज्ञान की पूजा करें और अपने जीवन को महान बनाएँ। यह एक अध्याय आज समाप्त हुआ। इसके आधार पर भी भौतिक जीवन में आप सुख और आनंद पा सकते हैं।
मित्रो! एक दूसरा रास्ता और है, जिसे हम अध्यात्म कहते हैं। बेटे! अध्यात्म वह चीज है जो भौतिक शरीर के भीतर निवास करती है, जिसके द्वारा मनुष्य को सिद्धियों मिलती हैं। भौतिक शक्ति एवं आध्यात्मिक शक्ति को जब हम मिलाते हैं, तो एक नए किस्म की चीजें मिलती हैं, जिसे हम ''विभूतियाँ'' कहते हैं। विभूतियाँ वे चीजें हैं जो दिखलाई नहीं पड़ती हैं। मित्रो! हमारी नसों में-नाड़ियों में जो शक्ति है, उसे हम दिखा नहीं सकते हैं। हम नसों को दिखा सकते हैं, किंतु उसकी शक्ति को नहीं। नहीं साहब! हम तो उस शक्ति को देखना चाहते हैं, जिससे जब आप किसी को घूँसा मारते हैं और गिरा देते हैं। बेटे! हम अपनी चेतना को भी नहीं दिखा सकते हैं। वह भी उसी प्रकार की चीज है। बेटे! ब्रह्माण्ड में जो चीजें विद्यमान हैं वे सारी की सारी चीजें हमारे शरीर में भी विद्यमान हैं। इतना ही नहीं, हमारे अंदर दिव्यशक्ति विद्यमान है।
दिव्यशक्ति किसे कहते हैं? मित्रो! यह देवताओं की शक्ति है जो हमारे अंग-अंग में विद्यमान है। इसके अलावा हमारे भीतर ''सुप्रीम पावर'' अर्थात परमात्मा विद्यमान है। परमात्मा क्या है? यह आस्था है, संवेदना है। हम अपनी चेतना को आस्था एवं संवेदना के साथ जोड़ लें, तो हम सारी खुशी प्राप्त कर सकते हैं। हमारे अंदर ''शिवोऽहं'' की भावना आ सकती है। अगर चेतना को सुप्रीम पावर के साथ जोड़ लें, तो मनुष्य बहुत ज्यादा सुख तथा आनंद का अनुभव कर सकता है।
मित्रो! इसके साथ ही हमारे शरीर के हर चीज के दो रूप हैं। एक है भौतिक रूप आँखों का, जिसके द्वारा हम बाहर की चीजें देख सकते हैं। आँखों का आध्यात्मिक रूप जिसे हम आज्ञाचक्र कहते हैं, दिव्यदृष्टि कहते हैं। जिसके द्वारा दूर की चीजें, भूत, वर्तमान, भविष्य की चीजें देख सकते हैं। इसे हम माइक्रोस्कोप से भी नहीं देख सकते हैं। यह वस्तु का सूक्ष्म रूप है। यह टेलीविजन तथा टेलीफोन की तरह है। संजय ने अपनी दिव्यदृष्टि से महाभारत के सारे दृश्य देखे थे तथा धृतराष्ट्र को पूरा का पूरा विवरण सुनाया था। यह दिव्यदृष्टि क्या थी? मित्रो! हमारे भीतर बहुत सारी चीजें फिट हैं। इतनी ज्यादा फिट हैं कि हम उनका वर्णन नहीं कर सकते हैं। अगर हमारी अक्ल तथा श्रम ठीक से काम करे, तो उस टेलीविजन से हम सारी चीजें प्राप्त कर सकते हैं। हमारे भीतर अतींद्रिय क्षमताएँ भरी पड़ी हैं। अगर हम उसे जगा लें, तो सारी की सारी भौतिक उपलब्धियों प्राप्त कर सकते हैं।
मित्रो! एक दूसरा रास्ता और है, जिसे हम अध्यात्म कहते हैं। बेटे! अध्यात्म वह चीज है जो भौतिक शरीर के भीतर निवास करती है, जिसके द्वारा मनुष्य को सिद्धियों मिलती हैं। भौतिक शक्ति एवं आध्यात्मिक शक्ति को जब हम मिलाते हैं, तो एक नए किस्म की चीजें मिलती हैं, जिसे हम ''विभूतियाँ'' कहते हैं। विभूतियाँ वे चीजें हैं जो दिखलाई नहीं पड़ती हैं। मित्रो! हमारी नसों में-नाड़ियों में जो शक्ति है, उसे हम दिखा नहीं सकते हैं। हम नसों को दिखा सकते हैं, किंतु उसकी शक्ति को नहीं। नहीं साहब! हम तो उस शक्ति को देखना चाहते हैं, जिससे जब आप किसी को घूँसा मारते हैं और गिरा देते हैं। बेटे! हम अपनी चेतना को भी नहीं दिखा सकते हैं। वह भी उसी प्रकार की चीज है। बेटे! ब्रह्माण्ड में जो चीजें विद्यमान हैं वे सारी की सारी चीजें हमारे शरीर में भी विद्यमान हैं। इतना ही नहीं, हमारे अंदर दिव्यशक्ति विद्यमान है।
दिव्यशक्ति किसे कहते हैं? मित्रो! यह देवताओं की शक्ति है जो हमारे अंग-अंग में विद्यमान है। इसके अलावा हमारे भीतर ''सुप्रीम पावर'' अर्थात परमात्मा विद्यमान है। परमात्मा क्या है? यह आस्था है, संवेदना है। हम अपनी चेतना को आस्था एवं संवेदना के साथ जोड़ लें, तो हम सारी खुशी प्राप्त कर सकते हैं। हमारे अंदर ''शिवोऽहं'' की भावना आ सकती है। अगर चेतना को सुप्रीम पावर के साथ जोड़ लें, तो मनुष्य बहुत ज्यादा सुख तथा आनंद का अनुभव कर सकता है।
मित्रो! इसके साथ ही हमारे शरीर के हर चीज के दो रूप हैं। एक है भौतिक रूप आँखों का, जिसके द्वारा हम बाहर की चीजें देख सकते हैं। आँखों का आध्यात्मिक रूप जिसे हम आज्ञाचक्र कहते हैं, दिव्यदृष्टि कहते हैं। जिसके द्वारा दूर की चीजें, भूत, वर्तमान, भविष्य की चीजें देख सकते हैं। इसे हम माइक्रोस्कोप से भी नहीं देख सकते हैं। यह वस्तु का सूक्ष्म रूप है। यह टेलीविजन तथा टेलीफोन की तरह है। संजय ने अपनी दिव्यदृष्टि से महाभारत के सारे दृश्य देखे थे तथा धृतराष्ट्र को पूरा का पूरा विवरण सुनाया था। यह दिव्यदृष्टि क्या थी? मित्रो! हमारे भीतर बहुत सारी चीजें फिट हैं। इतनी ज्यादा फिट हैं कि हम उनका वर्णन नहीं कर सकते हैं। अगर हमारी अक्ल तथा श्रम ठीक से काम करे, तो उस टेलीविजन से हम सारी चीजें प्राप्त कर सकते हैं। हमारे भीतर अतींद्रिय क्षमताएँ भरी पड़ी हैं। अगर हम उसे जगा लें, तो सारी की सारी भौतिक उपलब्धियों प्राप्त कर सकते हैं।