
जीवो ब्रह्मैव नापरः
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मित्रो! उसी चेतना को, जिसमें आध्यात्मिक शक्ति भरी पड़ी है, उसे अक्ल के माध्यम से, शिक्षा के माध्यम से, ज्ञान के माध्यम से हम जगा सकते हैं तथा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। उस समय हम महात्मा, सिद्धपुरुष, देवात्मा बन जाते हैं। हम परमात्मा भी बन सकते हैं। परमात्मा भी मनुष्य है। वह मनुष्य का साफ-सुथरा स्वरूप है। ब्रह्म अलग है, जिसका हमने स्वरूप नहीं देखा है, परंतु जो चौबीस अवतार हुए हैं, उसमें से अधिकांश का मनुष्य का ही स्वरूप रहा है। परशुराम जी तीन कला के, रामचंद्र जी बारह कला के और श्रीकृष्ण जी सोलह कला के अवतार थे। ये सब कला के मनुष्य थे। तीन कला का मतलब क्या हुआ? मनुष्य से तीन गुना अधिक शक्ति रखने वाले व्यक्ति। हम सब एक कला के भगवान हैं, अवतार हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश हेतु हमें अपनी चेतना को परिष्कृत करना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि एक दुनिया वह है, जो आपके लिए बाहर खड़ी है। एक दुनिया यह है, जो हमारे भीतर अर्थात ''एटम'' के भीतर है। इसे अध्यात्म द्वारा ही जाना जा सकता है।
मित्रो! हमें अब यह बतलाना है कि अंत: में जो ताकत है, उसे कैसे जगाया जा सकता है? अंतरंग जीवन में एक अनोखी और शक्तिशाली दुनिया है। इसमें अपनी अंतश्चेतना का प्रवेश कैसे करा सकते हैं, यह हमें बतलाना है। उसे विकसित कैसे कर सकते हैं, यह बतलाना है। अध्यात्म से भौतिक लाभ मिल सकते हैं? हाँ बेटे! भौतिक लाभ इससे मिल सकते हैं। इससे हम सिद्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं। सोने से कपड़ा खरीद सकते हैं, मकान खरीद सकते हैं। विभूतियों के द्वारा ही आध्यात्मिक सफलता मिलती है।
हम अपनी अंतःसामर्थ्य को कैसे विकसित कर सकते हैं, विभूतियों एवं सिद्धियाँ कैसे प्राप्त कर सकते हैं, यह कल से हम आपको बतलाने का प्रयास करेंगे। आज तो हमने आपको भौतिक जीवन का स्वरूप समझाने में अपना समय लगा दिया। अगर जब समय मिलेगा आपसे अध्यात्म की विशद चर्चा करेंगे तथा बताएँगे कि ब्रह्मवर्चस का उपासना-साधना का, आध्यात्मिक का जो प्रशिक्षण दिया जा रहा है, उसका उद्देश्य क्या है? उसका प्रयोग क्या है? उसके सिद्धांत बताने के साथ यह भी बतलाने का प्रयास करेंगे कि यहाँ पर जो क्रियाएँ हमने सिखाई हैं, उसमें आप कैसे सफल और पारंगत हो सकते हैं? इसमें आपको क्या-क्या करना होगा? यह विषय समझाना आज से हमारा उद्देश्य है। आज से हम अपनी व्याख्यान माला शुरू कर रहे हैं। आध्यात्मिकता का पूरा का पूरा स्वरूप आपकी समझ में जब तक नहीं आ जाए तब तक हमारा यह कार्यक्रम चालू रहेगा, ताकि आप आध्यात्मिकता का सही स्वरूप समझ सकें तथा इस रास्ते पर चलने का प्रयास कर सकें।
आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥
मित्रो! हमें अब यह बतलाना है कि अंत: में जो ताकत है, उसे कैसे जगाया जा सकता है? अंतरंग जीवन में एक अनोखी और शक्तिशाली दुनिया है। इसमें अपनी अंतश्चेतना का प्रवेश कैसे करा सकते हैं, यह हमें बतलाना है। उसे विकसित कैसे कर सकते हैं, यह बतलाना है। अध्यात्म से भौतिक लाभ मिल सकते हैं? हाँ बेटे! भौतिक लाभ इससे मिल सकते हैं। इससे हम सिद्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं। सोने से कपड़ा खरीद सकते हैं, मकान खरीद सकते हैं। विभूतियों के द्वारा ही आध्यात्मिक सफलता मिलती है।
हम अपनी अंतःसामर्थ्य को कैसे विकसित कर सकते हैं, विभूतियों एवं सिद्धियाँ कैसे प्राप्त कर सकते हैं, यह कल से हम आपको बतलाने का प्रयास करेंगे। आज तो हमने आपको भौतिक जीवन का स्वरूप समझाने में अपना समय लगा दिया। अगर जब समय मिलेगा आपसे अध्यात्म की विशद चर्चा करेंगे तथा बताएँगे कि ब्रह्मवर्चस का उपासना-साधना का, आध्यात्मिक का जो प्रशिक्षण दिया जा रहा है, उसका उद्देश्य क्या है? उसका प्रयोग क्या है? उसके सिद्धांत बताने के साथ यह भी बतलाने का प्रयास करेंगे कि यहाँ पर जो क्रियाएँ हमने सिखाई हैं, उसमें आप कैसे सफल और पारंगत हो सकते हैं? इसमें आपको क्या-क्या करना होगा? यह विषय समझाना आज से हमारा उद्देश्य है। आज से हम अपनी व्याख्यान माला शुरू कर रहे हैं। आध्यात्मिकता का पूरा का पूरा स्वरूप आपकी समझ में जब तक नहीं आ जाए तब तक हमारा यह कार्यक्रम चालू रहेगा, ताकि आप आध्यात्मिकता का सही स्वरूप समझ सकें तथा इस रास्ते पर चलने का प्रयास कर सकें।
आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥