
हमारा जीवन एक मिसाल
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मित्रो! आप भजन नहीं, काम करें। भजन तो एक घंटे होता है। बेटे! हमारा सिनेमा रात के एक बजे से प्रारंभ हो जाता है। हम भजन भी करते हैं तथा सोलह घंटे मशक्कत भी करते हैं। आप श्रम नहीं करेंगे, तो आपको मैं बेहूदा हरामखोर कहूँगा और इससे ऊपर की भी गाली दूँगा। जो मशक्कत नहीं करते हैं, उन्हें मैं घृणा की दृष्टि से देखता हूँ। बेटे! हमारा रात्रि एक बजे से सुबह सात बजे तक सिनेमा चलता है। सात बजे से नौ बजे तक ''इंटरवल'' होता है। इसके बाद जब तक हम आपको ध्यान नहीं करा देते हैं, विश्राम नहीं करते हैं। हम एक श्रमिक हैं। श्रमिक की दृष्टि से हमारी उम्र सत्रह वर्ष है, वैसे इस समय हमारी उम्र सत्तर वर्ष की है। ''सेवन्टीन'' तथा ''सेवन्टी'' में कोई अंतर नहीं है। साधारणतया दाँत न हों तो जबान से इस तरह की भूल हो जाती है, लेकिन शरीर और मन से हम ''सेवन्टीन'' के हैं। परिश्रम हमारे लिए एक योगाभ्यास है, प्रगति चाहने वाले हर मनुष्य के लिए यह आवश्यक है ।
मित्रो! शारीरिक श्रम के साथ ही मानसिक श्रम भी आवश्यक है। अमेरिका में बहुत से स्कूल हैं, परंतु वैसे विद्यार्थी अधिक हैं स्कूलों में, जो शनिवार और रविवार को क्लास करते हैं और अपना आत्मविकास करते हैं। इस कारण उनका प्रगति का रास्ता खुल जाता है। पाँच दिन मेहनत-मजदूरी करके पेट भरते हैं तथा दो दिन छुट्टी होती है, तो उसी के आधार पर उनका विकास होता चला जाता है। जब तक उनके आँखों की रोशनी खत्म नहीं होती है, वह अपनी पढ़ाई तथा आत्मविकास का कार्य रोकते नहीं हैं ।
मित्रो! मैं यह बतला रहा था कि आपके देवता तो अनेक हैं, परंतु उनमें से दो देवता-श्रम और ज्ञान, प्रधान हैं। अगर आप इनकी पूजा-उपासना कर सकेंगे, तो आपको भौतिकता की सारी उपलब्धियाँ प्राप्त हो जाएँगी। आप शेखचिल्ली की उड़ान न भरें, वरन आध्यात्मिकता के सही स्वरूप को समझने का प्रयास करें, तभी वास्तविक श्रम का लाभ व सत्परिणाम आपको प्राप्त होगा। आप दौलत चाहते हैं, तो आप इसे प्राप्त कर सकते हैं। हमको स्वर्ग की कोई इच्छा नहीं है। हमने पंडितों से सुना है कि एक स्वर्ग है, जो बहुत ही वाहियात किस्म का है। वहाँ बड़े-बड़े पेड़ हैं, इंद्र की अप्सराएँ नाच करती रहती हैं। आदमी के विचार वास्तव में जानवरों के समान हैं।
मित्रो! शारीरिक श्रम के साथ ही मानसिक श्रम भी आवश्यक है। अमेरिका में बहुत से स्कूल हैं, परंतु वैसे विद्यार्थी अधिक हैं स्कूलों में, जो शनिवार और रविवार को क्लास करते हैं और अपना आत्मविकास करते हैं। इस कारण उनका प्रगति का रास्ता खुल जाता है। पाँच दिन मेहनत-मजदूरी करके पेट भरते हैं तथा दो दिन छुट्टी होती है, तो उसी के आधार पर उनका विकास होता चला जाता है। जब तक उनके आँखों की रोशनी खत्म नहीं होती है, वह अपनी पढ़ाई तथा आत्मविकास का कार्य रोकते नहीं हैं ।
मित्रो! मैं यह बतला रहा था कि आपके देवता तो अनेक हैं, परंतु उनमें से दो देवता-श्रम और ज्ञान, प्रधान हैं। अगर आप इनकी पूजा-उपासना कर सकेंगे, तो आपको भौतिकता की सारी उपलब्धियाँ प्राप्त हो जाएँगी। आप शेखचिल्ली की उड़ान न भरें, वरन आध्यात्मिकता के सही स्वरूप को समझने का प्रयास करें, तभी वास्तविक श्रम का लाभ व सत्परिणाम आपको प्राप्त होगा। आप दौलत चाहते हैं, तो आप इसे प्राप्त कर सकते हैं। हमको स्वर्ग की कोई इच्छा नहीं है। हमने पंडितों से सुना है कि एक स्वर्ग है, जो बहुत ही वाहियात किस्म का है। वहाँ बड़े-बड़े पेड़ हैं, इंद्र की अप्सराएँ नाच करती रहती हैं। आदमी के विचार वास्तव में जानवरों के समान हैं।