
भ्रांतियों से निकलें, वास्तविकता जानें
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
अगर आप हिंदू हैं या मुसलमान हैं, तो आपके स्वर्ग एवं जन्नत में दो ही चीजें रखी हैं, शराब और अप्सराएँ। जन्नत में शराब एवं शहद रखा है, हूर और गुलाम है। अरे! आपको पानी पीने से क्या काम, आप तो शराब पिएँ। वहाँ सत्तर हूर रहती हैं। हूर किसे कहते हैं, खूबसूरत औरतों को। सत्तर गुलाम हैं, जो आपकी सेवा करेंगे। आपकी चप्पल उतारेंगे, पानी पिलाएँगे, शराब पिलाएँगे। आपका कुरता साफ करेंगे। स्वर्ग की कामना करने वाले ये कामचोर, हरामखोर, व्यभिचारी, घटिया लोग यही चाहते हैं कि ये चीजें जन्नत में मिलेंगी। इसी ख्वाब में लोग डूबे रहते हैं। आज के संतों पर हमें गुस्सा आता है। उनको यहाँ भी एकादशी के दिन उपवास और वहाँ स्वर्ग में जाने पर भी एकादशी का व्रत रहेगा और कहेंगे कि कहाँ है कल्पवृक्ष-मेवा और फल चाहिए। मक्कार कहीं का, केवल स्वर्ग की कामना करता है।
मित्रो! हम आपका वास्तविकता से परिचय कराना चाहते हैं। अगर आपको सांसारिकता से लगाव है तथा शरीर को नीरोग और खुशहाल बनाना चाहते हैं, तो मशक्कत करें, श्रम करें। अक्ल की भी पूजा कर लेंगे तो सब चीजें पूरी हो जाएँगी। आपकी कामना पूरी हो जाएगी। आपकी तृष्णा पूरी हो जाएगी। तृष्णा क्या है? बेटे! आपने बेटे की शादी में लाखों रुपए खरच कर दिया। ऐसा क्यों किया, जबकि आपको इसका सूद मिलता था। अब तो घाटा हो गया है। हाँ साहब! हो तो गया, पर दूसरों को दिखाने के लिए रोब झाड़ने के लिए अपना सिक्का जमाने हेतु ऐसा किया। इसे ही तृष्णा कहते हैं। एक और भूत हमारे ऊपर सवार रहता है, उसका नाम ''अहं'' है। जिसका हम प्रदर्शन करते हैं। मोटर पर बैठकर बादशाह की तरह से चलते हैं। यह है अहं, जो समाज को दिखाया जाता है। यह अहं ही पिशाच है, राक्षस है। यह हमको हर तरह से नुकसान पहुँचाते हैं। इसे पूरा करने के लिए हम न जाने कितना आडम्बर बनाते हैं। अहं, वासना और तृष्णा, ये ही मनुष्य को पतन की ओर ले जाते हैं।
हमारी जीभ में स्वाद है, परंतु उसके लिए खुराक चाहिए। पेट भरने के लिए रोटी, सब्जी चाहिए हमको अमुक चीज चाहिए। ये सारी चीजें पूरी करने के लिए मनुष्य को श्रम करना पड़ता है। श्रम तथा बुद्धि के आधार पर हम साधन इकट्ठा करते हैं। अगर आपको भौतिक चीजों की ही लालसा है, तो आपको आध्यात्मिकता की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। उसके लिए श्रम कीजिए।
मित्रो! किंतु क्या किया जाए! ये देवी -देवता हत्यारे हैं, चुड़ैल हैं, जो बकरा खाते हैं और मनोकामना पूर्ण करते हैं। आपकी समस्याएँ बिलकुल भौतिकवादी हैं। अध्यात्मवाद से आपका कोई संबंध नहीं है। आपकी तो मिट्टी पलीद हो ही चुकी है, अब हमारी होने वाली है। अध्यात्म की मिट्टी पलीद होने वाली है। अरे, हम एक नाव में जो बैठे हैं। आप मरेंगे तो हम भी मरेंगे। लोभी गुरु-लालची चेला, दोनों मरेंगे।
मित्रो! एक मौलवी साहब थे। उनका एक चेला था। चेले को समझाकर मौलवी साहब मक्का-मदीना हज करने चले गए। इधर चेले ने अपनी करामात दिखाना शुरू कर दिया। उसको जो भी चढ़ावा आता, वह उसे खाता तथा अपने पास रख लेता। इस बीच में वह चेला खूब खा-पीकर मोटा हो गया था।
चेले ने सोचा कि जब मौलवी साहब आ जायेंगे, तो हमारी क्या चलेगी तथा हमें कौन पूछेगा? उसने एक चाल चली और गाँव के हर मुसलमान के घर गया और औरत, बच्चे, बूढ़े प्रत्येक नर-नारी से एक ही बात कहता रहा कि मौलवी साहब मक्का-मदीना से आने वाले हैं। वे बहुत बड़े सिद्धपुरुष होकर के आ रहे हैं, जिसे जो कह देंगे, कर देंगे, उसको लाभ मिलेगा। वे बहुत चमत्कारी बनकर आ रहे हैं। उनतीस तारीख को मौलवी साहब आ गए। भीड़ लगने लगी। चेले ने कहा कि आप जानते नहीं हैं, मौलवी साहब की दाढ़ी में चमत्कार है। पहले बाल में पूरा चमत्कार है। दूसरे-तीसरे में क्रमश: बीस प्रतिशत, पंद्रह प्रतिशत लाभ मिलेगा। अब तो हल्ला मच गया। पहले बाल के चमत्कार को देखने के लिए भीड़ लग गई।
२९ तारीख को सबने अपना कारोबार बंद कर दिया और पहुँच गए मौलवी साहब के पास। सभी ने उन्हें मालाएँ पहनाई। मौलवी साहब प्रसन्न थे। वे बैठे भी नहीं थे कि अरे भाई! जरा रुको। यह क्या कर रहे हो? कोई माना नहीं और उनकी दाढ़ी तथा सिर के सभी बाल उखाड़ लिए। अब मौलवी साहब ने सोचा कि मेरे सारे बाल उखड़ गए। अब हम घर पर जाएँगे, तो घरवाली रहने नहीं देगी। अत: यहाँ से भागना ही अच्छा है। मौलवी साहब चले गए। चेले की पौ बारह हो गई।
मित्रो! हम आपका वास्तविकता से परिचय कराना चाहते हैं। अगर आपको सांसारिकता से लगाव है तथा शरीर को नीरोग और खुशहाल बनाना चाहते हैं, तो मशक्कत करें, श्रम करें। अक्ल की भी पूजा कर लेंगे तो सब चीजें पूरी हो जाएँगी। आपकी कामना पूरी हो जाएगी। आपकी तृष्णा पूरी हो जाएगी। तृष्णा क्या है? बेटे! आपने बेटे की शादी में लाखों रुपए खरच कर दिया। ऐसा क्यों किया, जबकि आपको इसका सूद मिलता था। अब तो घाटा हो गया है। हाँ साहब! हो तो गया, पर दूसरों को दिखाने के लिए रोब झाड़ने के लिए अपना सिक्का जमाने हेतु ऐसा किया। इसे ही तृष्णा कहते हैं। एक और भूत हमारे ऊपर सवार रहता है, उसका नाम ''अहं'' है। जिसका हम प्रदर्शन करते हैं। मोटर पर बैठकर बादशाह की तरह से चलते हैं। यह है अहं, जो समाज को दिखाया जाता है। यह अहं ही पिशाच है, राक्षस है। यह हमको हर तरह से नुकसान पहुँचाते हैं। इसे पूरा करने के लिए हम न जाने कितना आडम्बर बनाते हैं। अहं, वासना और तृष्णा, ये ही मनुष्य को पतन की ओर ले जाते हैं।
हमारी जीभ में स्वाद है, परंतु उसके लिए खुराक चाहिए। पेट भरने के लिए रोटी, सब्जी चाहिए हमको अमुक चीज चाहिए। ये सारी चीजें पूरी करने के लिए मनुष्य को श्रम करना पड़ता है। श्रम तथा बुद्धि के आधार पर हम साधन इकट्ठा करते हैं। अगर आपको भौतिक चीजों की ही लालसा है, तो आपको आध्यात्मिकता की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। उसके लिए श्रम कीजिए।
मित्रो! किंतु क्या किया जाए! ये देवी -देवता हत्यारे हैं, चुड़ैल हैं, जो बकरा खाते हैं और मनोकामना पूर्ण करते हैं। आपकी समस्याएँ बिलकुल भौतिकवादी हैं। अध्यात्मवाद से आपका कोई संबंध नहीं है। आपकी तो मिट्टी पलीद हो ही चुकी है, अब हमारी होने वाली है। अध्यात्म की मिट्टी पलीद होने वाली है। अरे, हम एक नाव में जो बैठे हैं। आप मरेंगे तो हम भी मरेंगे। लोभी गुरु-लालची चेला, दोनों मरेंगे।
मित्रो! एक मौलवी साहब थे। उनका एक चेला था। चेले को समझाकर मौलवी साहब मक्का-मदीना हज करने चले गए। इधर चेले ने अपनी करामात दिखाना शुरू कर दिया। उसको जो भी चढ़ावा आता, वह उसे खाता तथा अपने पास रख लेता। इस बीच में वह चेला खूब खा-पीकर मोटा हो गया था।
चेले ने सोचा कि जब मौलवी साहब आ जायेंगे, तो हमारी क्या चलेगी तथा हमें कौन पूछेगा? उसने एक चाल चली और गाँव के हर मुसलमान के घर गया और औरत, बच्चे, बूढ़े प्रत्येक नर-नारी से एक ही बात कहता रहा कि मौलवी साहब मक्का-मदीना से आने वाले हैं। वे बहुत बड़े सिद्धपुरुष होकर के आ रहे हैं, जिसे जो कह देंगे, कर देंगे, उसको लाभ मिलेगा। वे बहुत चमत्कारी बनकर आ रहे हैं। उनतीस तारीख को मौलवी साहब आ गए। भीड़ लगने लगी। चेले ने कहा कि आप जानते नहीं हैं, मौलवी साहब की दाढ़ी में चमत्कार है। पहले बाल में पूरा चमत्कार है। दूसरे-तीसरे में क्रमश: बीस प्रतिशत, पंद्रह प्रतिशत लाभ मिलेगा। अब तो हल्ला मच गया। पहले बाल के चमत्कार को देखने के लिए भीड़ लग गई।
२९ तारीख को सबने अपना कारोबार बंद कर दिया और पहुँच गए मौलवी साहब के पास। सभी ने उन्हें मालाएँ पहनाई। मौलवी साहब प्रसन्न थे। वे बैठे भी नहीं थे कि अरे भाई! जरा रुको। यह क्या कर रहे हो? कोई माना नहीं और उनकी दाढ़ी तथा सिर के सभी बाल उखाड़ लिए। अब मौलवी साहब ने सोचा कि मेरे सारे बाल उखड़ गए। अब हम घर पर जाएँगे, तो घरवाली रहने नहीं देगी। अत: यहाँ से भागना ही अच्छा है। मौलवी साहब चले गए। चेले की पौ बारह हो गई।