
दैनन्दिन जीवन की सिद्धि
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मित्रो! अगर आपको भौतिक जीवन में तथा आध्यात्मिक जीवन में सिद्धांतों का पालन करना हो तो श्रम और ज्ञान के प्रति सम्मान होना चाहिए। अगर श्रम के प्रति आपके अंदर सम्मान है, तो फिर आप देखना कि क्या चमत्कार होता है? आप श्रम करेंगे तो दीर्घजीवी होंगे। इसके लिए खुराक की जरूरत है, अमुक चीज की जरूरत है, इसके साथ ही सबसे आवश्यक है, मनुष्य की मशक्कत यानि श्रम! इसके बिना मनुष्य को दीर्घजीवन प्राप्त करना संभव नहीं है। एशिया के अंतर्गत एक रेगिस्तान है। वहाँ के लोग सौ वर्ष से कम जीते ही नहीं हैं। एक आदमी अभी एक सौ साठ वर्ष की उम्र में मरा है। उसने सौ वर्ष की उम्र में भी शादी की थी। उसके साठ से ऊपर बच्चे थे। यह दीर्घजीवन कैसे मिला? यह खान-पान से हुआ था, यह भी ठीक है। यह संयम से संभव हुआ था, यह भी ठीक है, परंतु एक चीज इससे भी आगे की है और उसका नाम है श्रम। इसके बिना अर्थात मशक्कत किए बिना आप दीर्घजीवन नहीं प्राप्त कर सकते हैं। खुराक खाना ही ज्यादा नहीं है, अगर आप मशक्कत नहीं करेंगे तो आपका पेट बढ़ता हुआ चला जाएगा, चरबी बढ़ती हुई चली जाएगी और आप मरेंगे। बेटे यह भौतिकता की बात नहीं है, यह आध्यात्मिकता का प्रशिक्षण है, जिसके बिना आपको भौतिक लाभ मिल ही नहीं सकता।
मित्रो! एक दूसरी चीज है जिसका नाम शिक्षा है। इसके बिना मानवीय विकास संभव नहीं है। हम यूरोप गए थे और वहाँ देखकर आए थे। बेचारे गरीब लोग, जो किसी तरह अपना पेट भरते हैं, वह भी यह सोचते हैं कि हमारी शिक्षा का विकास होना चाहिए। केवल शरीर के विकास से ही सब कुछ संभव नहीं है। उनका यह विचार है कि मनुष्य के शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी जरूरी है। मानसिक विकास के बिना सांसारिक जीवन में हम प्रगति नहीं कर सकते हैं। वे सात घंटे परिश्रम करते हैं, परंतु दो घंटे नियमित रूप से रात्रि पाठशाला में भाग लेते हैं। आप तो पत्ते खेलने में समय बरबाद कर देते हैं। जो मैकेनिक होता है, वह अपने विभाग के लोगों से जानकारी लेता हुआ आगे चलकर बी० ई०, एम० ई० बन जाता है। छोटा सा मजदूर उसी क्षेत्र का इंजीनियर बन जाता है। उस क्षेत्र में नाम एवं ख्याति प्राप्त करता है।
स्वामी विवेकानन्द जब अमेरिका गए थे, उस समय वहाँ की जनता को वे वेदांत की शिक्षा देने लगे, तो उन्होंने एक प्रश्न किया कि क्या आपने भारतवर्ष में इस शिक्षा को पूरा कर लिया? थोड़ी देर वे मौन रहे, फिर उन्होंने कहा कि आप लोगों ने मैट्रिक पास कर लिया है। आप लोगों ने पहली चीज अर्थात शरीरबल प्राप्त कर लिया है। आपने श्रम करके संपत्ति भी प्राप्त कर ली है, जो आध्यात्मिकता का प्रथम चरण है। आगे अब आपको वेदांत की आवश्यकता है। इस कारण से हम यहाँ आए हैं। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में वह स्थिति नहीं आई है। वहाँ के लोगों को हम कर्मयोग सिखाते हैं। उन्हें हम बतलाते हैं कि आप मशक्कत करें तथा रोटी कमाना सीखें आपने तमोगुण को पूरा कर लिया अर्थात आप अब जड़ प्रकृति के नहीं हैं। आपने परिश्रम करना सीख लिया है। भारतवर्ष के अंतर्गत यह होता है कि बाप पचास वर्ष के हो गए तथा बेटा बाईस वर्ष का हो गया और नौकरी करने लगा, तो वह स्वयं काम करना ठीक नहीं समझते। यह है कामचोरी, हरामखोरी, जो आपके यहाँ नहीं है। अत: आपको वेदांत का शिक्षण दिया जा सकता है।
मित्रो! एक दूसरी चीज है जिसका नाम शिक्षा है। इसके बिना मानवीय विकास संभव नहीं है। हम यूरोप गए थे और वहाँ देखकर आए थे। बेचारे गरीब लोग, जो किसी तरह अपना पेट भरते हैं, वह भी यह सोचते हैं कि हमारी शिक्षा का विकास होना चाहिए। केवल शरीर के विकास से ही सब कुछ संभव नहीं है। उनका यह विचार है कि मनुष्य के शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी जरूरी है। मानसिक विकास के बिना सांसारिक जीवन में हम प्रगति नहीं कर सकते हैं। वे सात घंटे परिश्रम करते हैं, परंतु दो घंटे नियमित रूप से रात्रि पाठशाला में भाग लेते हैं। आप तो पत्ते खेलने में समय बरबाद कर देते हैं। जो मैकेनिक होता है, वह अपने विभाग के लोगों से जानकारी लेता हुआ आगे चलकर बी० ई०, एम० ई० बन जाता है। छोटा सा मजदूर उसी क्षेत्र का इंजीनियर बन जाता है। उस क्षेत्र में नाम एवं ख्याति प्राप्त करता है।
स्वामी विवेकानन्द जब अमेरिका गए थे, उस समय वहाँ की जनता को वे वेदांत की शिक्षा देने लगे, तो उन्होंने एक प्रश्न किया कि क्या आपने भारतवर्ष में इस शिक्षा को पूरा कर लिया? थोड़ी देर वे मौन रहे, फिर उन्होंने कहा कि आप लोगों ने मैट्रिक पास कर लिया है। आप लोगों ने पहली चीज अर्थात शरीरबल प्राप्त कर लिया है। आपने श्रम करके संपत्ति भी प्राप्त कर ली है, जो आध्यात्मिकता का प्रथम चरण है। आगे अब आपको वेदांत की आवश्यकता है। इस कारण से हम यहाँ आए हैं। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में वह स्थिति नहीं आई है। वहाँ के लोगों को हम कर्मयोग सिखाते हैं। उन्हें हम बतलाते हैं कि आप मशक्कत करें तथा रोटी कमाना सीखें आपने तमोगुण को पूरा कर लिया अर्थात आप अब जड़ प्रकृति के नहीं हैं। आपने परिश्रम करना सीख लिया है। भारतवर्ष के अंतर्गत यह होता है कि बाप पचास वर्ष के हो गए तथा बेटा बाईस वर्ष का हो गया और नौकरी करने लगा, तो वह स्वयं काम करना ठीक नहीं समझते। यह है कामचोरी, हरामखोरी, जो आपके यहाँ नहीं है। अत: आपको वेदांत का शिक्षण दिया जा सकता है।